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सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्णय: “यदि न्यायालय केवल पंचाट पुरस्कार को रद्द कर सकते हैं, संशोधन नहीं कर सकते, तो पक्षकारों को नए सिरे से मध्यस्थता प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा”

शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्णय: “यदि न्यायालय केवल पंचाट पुरस्कार को रद्द कर सकते हैं, संशोधन नहीं कर सकते, तो पक्षकारों को नए सिरे से मध्यस्थता प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा”


परिचय:

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि न्यायालयों को केवल पंचाट (arbitral) पुरस्कारों को रद्द करने का ही अधिकार है और उन्हें संशोधित (modify) करने का कोई विवेकाधिकार नहीं दिया जाता, तो इससे पक्षकारों को दोबारा मध्यस्थता की लंबी और खर्चीली प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। यह टिप्पणी न केवल वैधानिक व्याख्या को स्पष्ट करती है, बल्कि भारत में वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली (ADR) की प्रभावशीलता पर भी गहरा प्रभाव डालती है।


मामले की पृष्ठभूमि:

इस टिप्पणी का संदर्भ Gayatri Projects Ltd. v. Reliance Infrastructure Ltd. नामक मामले से जुड़ा है, जिसमें मध्यस्थता न्यायाधिकरण द्वारा पारित पुरस्कार को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि ट्रिब्यूनल द्वारा कुछ गणनात्मक त्रुटियां की गई हैं, और न्यायालय को उन्हें ठीक करने या आवश्यक संशोधन करने का अधिकार होना चाहिए।


सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस वी भट की पीठ ने कहा:

“यदि कोर्ट के पास केवल पुरस्कार को रद्द करने की शक्ति होगी, संशोधित करने की नहीं, तो पक्षकारों को फिर से मध्यस्थता की पूरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, जो न केवल समय और संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि न्यायिक दक्षता के सिद्धांत के भी विपरीत है।”


विधिक स्थिति:

  • आर्बिट्रेशन एंड कन्सिलिएशन एक्ट, 1996 की धारा 34 न्यायालय को यह शक्ति देती है कि वह एक पंचाट पुरस्कार को रद्द कर सके यदि वह:
    • सार्वजनिक नीति के विरुद्ध है
    • या पंचाट प्रक्रिया में गंभीर त्रुटि हुई है
  • लेकिन इस धारा में पुरस्कार को संशोधित करने (modification) की कोई स्पष्ट शक्ति नहीं दी गई है। यह कानून ‘set aside or nothing’ के सिद्धांत पर आधारित है।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण क्यों महत्वपूर्ण है?

  1. न्यायिक दक्षता: यदि कोर्ट केवल पुरस्कार को रद्द करता है, तो विवाद पुनः उसी बिंदु पर पहुंच जाता है जहां से उसने शुरू किया था, जिससे समय और न्यायिक संसाधनों की भारी बर्बादी होती है।
  2. विवादों का शीघ्र समाधान: IBC, MSME अधिनियम, और अन्य व्यावसायिक कानूनों की भावना के अनुरूप, अदालतों का यह अधिकार कि वे उचित स्थान पर संशोधन कर सकें, विवादों को जल्दी निपटाने में मदद करेगा।
  3. पक्षकारों की सुविधा: संशोधन की शक्ति पक्षकारों को आर्थिक और मानसिक राहत प्रदान करती है, जिससे उन्हें नए सिरे से पंचाट प्रक्रिया में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

भविष्य की दिशा:

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी विधायिका के लिए एक संकेत हो सकती है कि वह आर्बिट्रेशन एक्ट में संशोधन कर न्यायालयों को सीमित परिस्थितियों में पंचाट पुरस्कारों को संशोधित करने की शक्ति प्रदान करे, जैसा कि कुछ अन्य देशों के कानूनों में किया गया है।


निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारत में मध्यस्थता कानून के व्यावहारिक पहलुओं की ओर इशारा करती है। यदि न्यायालयों को केवल पुरस्कार रद्द करने का ही अधिकार रहेगा और उन्हें सुधारने या संशोधित करने की शक्ति नहीं दी जाएगी, तो इससे ADR प्रणाली की प्रभावशीलता प्रभावित हो सकती है। ऐसी स्थिति में विधायिका को आगे आकर स्पष्ट प्रावधान लाने चाहिए जिससे न्यायिक दक्षता और न्यायिक प्रक्रिया की अर्थवत्ता बनी रह सके।