“अंतरिम जमानत: एक अपवाद न कि सामान्य नियम — Asim Mallik बनाम राज्य ओडिशा, 2025 का विश्लेषण”

“अंतरिम जमानत: एक अपवाद न कि सामान्य नियम — Asim Mallik बनाम राज्य ओडिशा, 2025 का विश्लेषण”

परिचय:
भारतीय न्याय प्रणाली में जमानत (bail) का सिद्धांत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यायिक विवेक के बीच संतुलन बनाए रखने का महत्वपूर्ण माध्यम है। हाल ही में Asim Mallik v. State of Odisha (SLP (Criminal) No. 57403 of 2024) में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अंतरिम जमानत (interim bail) को एक सामान्य नियम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह एक अपवाद होना चाहिए, जो केवल विशिष्ट परिस्थितियों में ही प्रदान की जानी चाहिए।

मामले की पृष्ठभूमि:
असीम मलिक ने अपने विरुद्ध दायर आपराधिक प्रकरण में अंतरिम जमानत की याचिका दायर की थी। इस याचिका पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण अवलोकन किया कि अंतरिम जमानत को बार-बार या बिना पर्याप्त कारण के देना न केवल न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है, बल्कि आरोपी को अनुचित लाभ भी दे सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन और निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:

  1. नियम नहीं, अपवाद:
    अंतरिम जमानत कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए जिसे प्रत्येक याचिका पर आसानी से दिया जाए। यह केवल उन मामलों में दी जानी चाहिए जहाँ विशेष आपात या मानवीय परिस्थितियाँ हों।
  2. वैकल्पिक दृष्टिकोण:
    अदालत को या तो नियमित जमानत (regular bail) देनी चाहिए या उसे अस्वीकार कर देना चाहिए। केवल इस कारण से कि नियमित जमानत पर तुरंत निर्णय नहीं लिया जा सका, अंतरिम जमानत देना एक स्वीकार्य कारण नहीं हो सकता।
  3. न्यायिक विवेक और संतुलन:
    न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपी को अनुचित लाभ न मिले और साथ ही पीड़ित व समाज के हितों की रक्षा हो। अंतरिम जमानत के दुरुपयोग से न्याय का संतुलन बिगड़ सकता है।

प्रभाव और महत्व:
यह निर्णय न्यायपालिका को यह याद दिलाता है कि बेल का अधिकार अनियमित और अनियंत्रित नहीं हो सकता। विशेषकर अंतरिम जमानत के मामलों में यह सिद्धांत लागू होता है कि यदि इसे सामान्य रूप से दिया जाने लगे तो यह न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता को प्रभावित कर सकता है।

उदाहरण के रूप में संभावित परिस्थितियाँ जहाँ अंतरिम जमानत दी जा सकती है:

  • आरोपी को किसी आपात चिकित्सा उपचार की आवश्यकता हो
  • परिवार में मृत्यु या गंभीर स्थिति हो
  • अदालत द्वारा नियमित जमानत पर विचार करने में समय लगे, किन्तु परिस्थिति अत्यंत संवेदनशील हो

निष्कर्ष:
Asim Mallik बनाम राज्य ओडिशा में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया यह निर्णय एक मार्गदर्शक दृष्टांत है, जो अदालतों को यह स्मरण कराता है कि अंतरिम जमानत न्यायिक विवेक और संतुलित दृष्टिकोण से ही दी जानी चाहिए। यह निर्णय निश्चित ही न्यायिक प्रणाली में संतुलन, अनुशासन और जवाबदेही को सुदृढ़ करेगा।