शीर्षक: “विशेष निष्पादन के दावों में अपंजीकृत बिक्री अनुबंध की प्रमाणिकता: सुप्रीम कोर्ट का मार्गदर्शक निर्णय – Muruganandam बनाम Muniyandi (मृतक) द्वारा LRs”
परिचय:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने Muruganandam बनाम Muniyandi (D) through LRs, दिनांक 08 मई 2025 [S.L.P. (Civ.) No. 10893/2021] में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि अपंजीकृत बिक्री अनुबंध (Unregistered Agreement to Sell) को भी कुछ विशेष परिस्थितियों में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, भले ही वह ₹100 या उससे अधिक मूल्य की अचल संपत्ति से संबंधित हो। यह निर्णय विशेष निष्पादन (Specific Performance) के मामलों में पक्षकारों को वैधानिक राहत देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
मामले की पृष्ठभूमि:
वादकर्ता (Muruganandam) ने प्रतिवादी (Muniyandi) के विरुद्ध एक विशेष निष्पादन का वाद दायर किया था, जिसमें उन्होंने एक अपंजीकृत बिक्री अनुबंध पर भरोसा किया था। उन्होंने इस दस्तावेज़ को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी, परंतु निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया था।
प्रमुख विवाद यह था कि चूंकि बिक्री अनुबंध पंजीकृत नहीं था, इसलिए क्या उसे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है या नहीं।
कानूनी प्रश्न:
क्या एक अपंजीकृत बिक्री अनुबंध को विशेष निष्पादन के दावे में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत और स्वीकार किया जा सकता है, विशेषकर जब यह संपत्ति ₹100 या उससे अधिक मूल्य की हो?
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय:
- धारा 17 और 49, पंजीकरण अधिनियम, 1908 का विवेचन:
- धारा 17 के अनुसार, ₹100 या उससे अधिक मूल्य की अचल संपत्ति से संबंधित बिक्री अनुबंध को पंजीकृत किया जाना आवश्यक होता है।
- धारा 49 यह बताती है कि अपंजीकृत दस्तावेज को आम तौर पर साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
- प्रावधान (Proviso) का महत्व:
- न्यायालय ने धारा 49 के प्रावधान (Proviso) पर बल देते हुए कहा कि यदि अपंजीकृत दस्तावेज को किसी मौखिक समझौते या सहायक लेन-देन (Collateral Transaction) को सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो वह स्वीकार्य हो सकता है।
- ऐसा दस्तावेज तब “पूरक साक्ष्य” के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है, न कि पूर्ण बिक्री का प्रमाण मानकर।
- Order 7 Rule 14(3) और Section 151 CPC का प्रयोग:
- न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत, यदि ऐसा दस्तावेज पहले प्रस्तुत नहीं किया गया, तो न्यायालय उसे विशेष परिस्थितियों में इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन के माध्यम से स्वीकार कर सकता है।
- न्यायालय का अंतिम निष्कर्ष:
- सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने तकनीकी आधारों पर दस्तावेज को अस्वीकार कर दिया था, जो न्यायोचित नहीं था।
- हाईकोर्ट का निर्णय रद्द किया गया और अपील स्वीकृत कर ली गई।
फैसले का महत्व और प्रभाव:
- कानूनी लचीलापन और न्याय की प्राथमिकता:
- यह निर्णय दिखाता है कि न्यायालय दस्तावेज की प्रकृति और उद्देश्य के अनुसार साक्ष्य की स्वीकार्यता तय कर सकता है।
- वास्तविक समझौतों की पुष्टि का मार्ग:
- जब एक पक्षकार मौखिक समझौते के अस्तित्व को सिद्ध करना चाहता है, तो अपंजीकृत बिक्री अनुबंध को प्रमाणिकता के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।
- न्यायिक विवेक और प्रक्रिया का संतुलन:
- निर्णय सिखाता है कि न्यायालय को केवल प्रक्रिया नहीं, बल्कि न्याय के मूल तत्व को प्राथमिकता देनी चाहिए।
निष्कर्ष:
Muruganandam बनाम Muniyandi केस में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारतीय सिविल न्याय प्रणाली में विशेष निष्पादन और साक्ष्य कानून के अंतःसंबंधों को लेकर अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह निर्णय यह स्थापित करता है कि अपंजीकृत बिक्री अनुबंध, भले ही वह पूर्ण बिक्री का प्रमाण न हो, फिर भी मौखिक समझौते की पुष्टि के लिए साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य हो सकता है, यदि उसे सीमित प्रयोजन के लिए प्रस्तुत किया जाए। यह न केवल न्याय की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, बल्कि उन पक्षकारों के लिए भी राहत है जिनके अनुबंध किन्हीं कारणों से पंजीकृत नहीं हो सके।