“Order 22 CPC और अधिवक्ता की भूमिका: Satnam Singh & Ors बनाम Harwinder Singh, 2025 के संदर्भ में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

“Order 22 CPC और अधिवक्ता की भूमिका: Satnam Singh & Ors बनाम Harwinder Singh, 2025 के संदर्भ में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”


प्रस्तावना:
दिवानी प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure – CPC) के आदेश 22 में वाद-पक्षकार की मृत्यु की स्थिति में प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। वर्ष 2025 के Satnam Singh and Ors v/s Harwinder Singh (CR-1907-2025) मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने आदेश 22 से संबंधित एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्याख्या की है, जो न केवल अधिवक्ताओं की जिम्मेदारी को रेखांकित करती है, बल्कि पक्षकारों के अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायिक विवेक का भी उदाहरण प्रस्तुत करती है।


मामले की पृष्ठभूमि:
इस वाद में वादी हरविंदर सिंह थे और प्रतिवादी सतनाम सिंह एवं अन्य। वाद के दौरान प्रतिवादी की मृत्यु हो गई। सामान्यतः ऐसे मामलों में मृतक पक्षकार के वैधानिक उत्तराधिकारी (Legal Representatives – LRs) को वाद में प्रतिवादी के स्थान पर लाना आवश्यक होता है। इसी संदर्भ में आदेश 22, नियम 4 CPC लागू होता है।


न्यायालय का दृष्टिकोण:
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने 2025 के फैसले में यह स्पष्ट किया कि:

  1. अधिवक्ता की जिम्मेदारी: यदि प्रतिवादी की मृत्यु हो जाती है और वह अधिवक्ता की जानकारी में है, तो यह अधिवक्ता का कर्तव्य है कि वह इस तथ्य को न केवल न्यायालय को, बल्कि वादी को भी तत्काल सूचित करे।
  2. Legal Representatives को रिकॉर्ड पर लाने का दायित्व:
    • हाईकोर्ट ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के संशोधन (Amendment) का हवाला देते हुए यह कहा कि अधिवक्ता, जो मृत प्रतिवादी की ओर से पेश हो रहा था, LRs को रिकॉर्ड में लाने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।
    • यह दायित्व वादी (Plaintiff) पर नहीं डाला जा सकता क्योंकि वादी Dominus Litis होता है, जिसका अर्थ है कि वह वाद की प्रक्रिया का नियंत्रणकर्ता होता है, परन्तु उसे प्रतिवादी के व्यक्तिगत विवरणों की जानकारी होना आवश्यक नहीं है।

न्यायिक व्याख्या का महत्व:
इस निर्णय से निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट होते हैं:

  • प्रक्रियात्मक न्याय (Procedural Justice) के लिए अधिवक्ताओं की भूमिका निर्णायक होती है।
  • न्यायालय की सहायता करना एक अधिवक्ता का धर्म है, और इसमें ईमानदारी पूर्वक अदालती कार्यवाही में प्रासंगिक तथ्यों को प्रस्तुत करना शामिल है।
  • Order 22 CPC की प्रक्रिया केवल औपचारिक नहीं है, बल्कि यह आवश्यक है ताकि पक्षकारों के अधिकार और दायित्व सही रूप से संरक्षित रहें।

निष्कर्ष:
Satnam Singh and Ors v/s Harwinder Singh, 2025 का निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता, अधिवक्ता की जिम्मेदारी, और कानून के अनुपालन को एक नई दिशा देता है। इस फैसले से स्पष्ट होता है कि प्रतिवादी की मृत्यु पर चुप रहना और LRs को रिकॉर्ड में न लाना एक गंभीर चूक मानी जाएगी, जिससे कार्यवाही रद्द की जा सकती है या अन्य दंडात्मक कार्यवाही भी संभव है।


संदर्भ:

  • Satnam Singh & Ors v. Harwinder Singh, 2025, Punjab & Haryana High Court, CR-1907-2025
  • Order 22, Code of Civil Procedure, 1908
  • Punjab & Haryana High Court (Amendment to CPC – Local Rules)