“धारा 138 एन.आई. एक्ट के अंतर्गत अभियोजन से पहले आवश्यक शर्तों की पूर्ति अनिवार्य: कुलभूषण गुप्ता बनाम बिशम्बर राम मामला”

“धारा 138 एन.आई. एक्ट के अंतर्गत अभियोजन से पहले आवश्यक शर्तों की पूर्ति अनिवार्य: कुलभूषण गुप्ता बनाम बिशम्बर राम मामला”


लेख (Article):

परिचय:
हाल ही में Kulbhushan Gupta बनाम Bishambar Ram मामले में जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए धारा 138, विनिमेय लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के तहत दर्ज कई शिकायतों को खारिज कर दिया। इस निर्णय में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चूंकि यह धारा दंडात्मक प्रकृति की है, अतः इसकी व्याख्या सख्ती से की जानी चाहिए और अभियोजन शुरू करने से पूर्व अधिनियम में वर्णित आवश्यक शर्तों का पालन करना अनिवार्य है।

मामले की पृष्ठभूमि:
इस प्रकरण में वादी द्वारा अभियुक्त के विरुद्ध धारा 138 के अंतर्गत कई शिकायतें दायर की गई थीं, जिनमें यह आरोप था कि अभियुक्त द्वारा जारी चेक बाउंस हो गए थे। हालांकि, प्रतिवादी ने यह दलील दी कि शिकायतकर्ता ने अधिनियम में निर्धारित प्रारंभिक आवश्यकताओं, जैसे विधिवत नोटिस देना, समय-सीमा का पालन करना, और शिकायत उचित समय पर दर्ज करने की शर्तों का पालन नहीं किया।

उच्च न्यायालय का अवलोकन:
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि:

  • धारा 138 एन.आई. एक्ट एक दंडात्मक प्रावधान है, जो अभियुक्त को दंडित करता है।
  • इसके तहत शिकायत दर्ज करने से पूर्व तीन प्रमुख शर्तों का पालन अनिवार्य है, जो इसके प्रोविज़ो (a), (b), और (c) में वर्णित हैं:
    1. (a) – शिकायतकर्ता को चेक बाउंस होने के पश्चात विधिवत नोटिस भेजना चाहिए।
    2. (b) – नोटिस प्राप्ति के 15 दिनों के भीतर भुगतान न होने पर ही मामला दायर किया जा सकता है।
    3. (c) – शिकायत नोटिस भेजे जाने के 30 दिनों के भीतर दाखिल की जानी चाहिए।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इन अनिवार्य शर्तों में किसी प्रकार की ढील या उपेक्षा अभियोजन को अवैध बना देती है।

निर्णय और प्रभाव:
उच्च न्यायालय ने पाया कि वादी द्वारा इन अनिवार्य शर्तों का पालन नहीं किया गया था। इसलिए, अभियोजन प्रक्रिया में गंभीर प्रक्रिया संबंधी त्रुटियाँ थीं। फलस्वरूप, शिकायतें खारिज कर दी गईं। यह निर्णय यह स्थापित करता है कि विधि की स्पष्ट प्रक्रियाओं का पालन किए बिना किसी पर दंडात्मक कार्यवाही नहीं की जा सकती।

न्यायिक व्याख्या का महत्व:
यह निर्णय भविष्य में उन सभी मामलों पर प्रभाव डालेगा जहाँ धारा 138 के अंतर्गत शिकायतें दायर की जाती हैं। यह न्यायालयों को यह स्पष्ट सन्देश देता है कि बिना वैधानिक पूर्व-शर्तों की पूर्ति के, कोई भी दंडात्मक कार्यवाही वैध नहीं मानी जा सकती।