“पूर्व मुख्य न्यायाधीश की गरिमा पर आक्षेप की अनुमति नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे पक्ष की याचिका खारिज की”

“पूर्व मुख्य न्यायाधीश की गरिमा पर आक्षेप की अनुमति नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे पक्ष की याचिका खारिज की”

भूमिका:
भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि न्यायपालिका की गरिमा और पूर्व मुख्य न्यायाधीश की प्रतिष्ठा को बचाए रखना संविधानिक संस्थाओं की रक्षा के लिए अनिवार्य है। यह टिप्पणी उस समय की गई जब एक तीसरे पक्ष (third party) द्वारा पश्चिम बंगाल के कुलपति (Vice-Chancellor) नियुक्ति विवाद से संबंधित न्यायमूर्ति यू.यू. ललित द्वारा तैयार रिपोर्ट की प्रति मांगी गई।


मामले की पृष्ठभूमि:
पश्चिम बंगाल में कुलपति नियुक्तियों को लेकर राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच चल रहे विवाद की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू.यू. ललित को तटस्थ पर्यवेक्षक नियुक्त किया था। उनके द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट अदालत के रिकॉर्ड में है, परंतु एक बाहरी व्यक्ति (तीसरा पक्ष) ने उस रिपोर्ट की प्रति प्राप्त करने हेतु याचिका दायर की।


सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और निर्णय:
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि:

  1. पूर्व CJI की गरिमा की रक्षा आवश्यक है:
    अदालत ने कहा कि हम “एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश की छवि को कीचड़ उछालने (mudslinging) के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दे सकते।”
  2. रिपोर्ट न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है:
    चूँकि रिपोर्ट न्यायिक अवलोकन हेतु तैयार की गई थी, यह सार्वजनिक जांच का विषय नहीं हो सकती जब तक कोर्ट उसे रिकॉर्ड पर नहीं लाती।
  3. तीसरे पक्ष की सीमाएं:
    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एक तीसरे पक्ष को न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने या संवेदनशील दस्तावेजों की मांग करने का स्वतः अधिकार नहीं है।

न्यायिक महत्व:
यह निर्णय न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को बनाए रखने की दिशा में एक सशक्त संदेश है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दोहराया कि न्यायिक अधिकारियों और विशेष रूप से पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के विरुद्ध सार्वजनिक आलोचना या अप्रत्यक्ष अपमान कानून के शासन को कमजोर कर सकता है।


निष्कर्ष:
यह फैसला न्यायपालिका की गरिमा, संस्थागत सम्मान और न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखने का सशक्त उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि सार्वजनिक हित के नाम पर भी किसी को न्यायपालिका की नींव को हिला देने की अनुमति नहीं दी जा सकती।