जैव विविधता के संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय संधियों जैसे ‘Convention on Biological Diversity (CBD)’ की भूमिका का विश्लेषण
परिचय
जैव विविधता (Biodiversity) का संरक्षण आज वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है। जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण, वनों की कटाई, प्रदूषण, और अनियंत्रित दोहन ने जैव विविधता को गंभीर संकट में डाल दिया है। इस संकट से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने कई समझौते और संधियाँ की हैं, जिनमें Convention on Biological Diversity (CBD) सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक संधि है।
CBD का परिचय और पृष्ठभूमि
- स्थापना: Convention on Biological Diversity (CBD) की शुरुआत 1992 में ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित Earth Summit (UNCED) के दौरान हुई।
- लागू होने की तिथि: 29 दिसंबर 1993
- उद्देश्य:
- जैव विविधता का संरक्षण
- जैविक संसाधनों का सतत उपयोग
- जैव संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों का न्यायपूर्ण और समान वितरण (Access and Benefit Sharing – ABS)
CBD एकमात्र ऐसा अंतरराष्ट्रीय कानूनी उपकरण है जो जैव विविधता से संबंधित तीनों आयामों को समग्र रूप से संबोधित करता है।
CBD की मुख्य विशेषताएँ और उसकी भूमिका
- नैतिक और कानूनी ढांचा प्रदान करना
CBD ने वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण के लिए कानूनी प्रतिबद्धता की नींव रखी। यह सदस्य देशों को जैव विविधता के संरक्षण हेतु घरेलू कानून बनाने के लिए बाध्य करता है। - राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAPs)
सदस्य देशों को अपनी जैव विविधता की रक्षा के लिए National Biodiversity Strategy and Action Plans बनाना अनिवार्य किया गया। भारत सहित अधिकांश देशों ने अपनी-अपनी रणनीतियाँ तैयार कीं। - Nagoya Protocol (2010)
यह ABS के कार्यान्वयन से संबंधित है, जो जैव संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान से प्राप्त लाभों को स्रोत देश और स्थानीय समुदायों के साथ साझा करने की व्यवस्था करता है। - Cartagena Protocol (2000)
यह जैव सुरक्षा (Biosafety) से संबंधित है, विशेषकर जीवित संशोधित जीवों (LMOs) के सीमा पार परिवहन को नियंत्रित करने के लिए। - COP (Conference of Parties)
CBD के तहत हर दो साल में COP का आयोजन होता है, जहाँ सदस्य देश जैव विविधता के मुद्दों पर चर्चा करते हैं और नई नीतियाँ अपनाते हैं। उदाहरण: COP-15 में Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework (2022) अपनाया गया। - ज्ञान साझा करने और क्षमता निर्माण
CBD देशों के बीच पारदर्शिता, वैज्ञानिक जानकारी साझा करने और अनुसंधान सहयोग को प्रोत्साहित करता है। यह विकासशील देशों की क्षमताओं को सशक्त करने में भी सहायक है।
भारत में CBD का प्रभाव
- भारत 1994 में CBD का पक्षकार बना और इसके उद्देश्यों को पूरा करने के लिए Biological Diversity Act, 2002 पारित किया।
- भारत ने अपनी राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना (NBSAP) तैयार की है।
- भारत में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA), राज्य जैव विविधता बोर्ड, और स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ इसी दिशा में कार्य कर रही हैं।
महत्त्वपूर्ण योगदान
- वैश्विक जागरूकता: CBD ने जैव विविधता संरक्षण को केवल पर्यावरणविदों का विषय न रहकर वैश्विक नीति निर्धारण का हिस्सा बना दिया।
- समुदाय-आधारित संरक्षण: स्थानीय और स्वदेशी समुदायों की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया।
- विकास और संरक्षण का संतुलन: सतत विकास की अवधारणा को संस्थागत रूप दिया।
चुनौतियाँ
- सदस्य देशों की प्रतिबद्धता में असमानता
- धन और संसाधनों की कमी
- अनुपालन और निगरानी में कठिनाई
- जैव चोरी (Biopiracy) की घटनाएँ
निष्कर्ष
Convention on Biological Diversity (CBD) ने जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय, न्यायपूर्ण, और दीर्घकालिक ढांचा प्रदान किया है। इसने वैश्विक समुदाय को इस दिशा में एकजुट करने में निर्णायक भूमिका निभाई है। हालांकि चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन सतत प्रयासों और प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से CBD जैव विविधता संरक्षण की दिशा में एक मजबूत आधारशिला सिद्ध हुई है।