यह रहा व्यक्तिगत दिवालियापन और कॉर्पोरेट दिवालियापन के बीच एक विस्तृत और तुलनात्मक विवरण — उदाहरण सहित — जो इन दोनों प्रक्रियाओं की प्रकृति, उद्देश्य, प्रक्रिया और कानूनी ढांचे को गहराई से समझाता है:
1. परिचय (Introduction)
भारत में Insolvency and Bankruptcy Code, 2016 (IBC) ने दिवालियापन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए एक एकीकृत कानूनी ढांचा प्रदान किया। यह कानून तीन प्रमुख श्रेणियों पर लागू होता है:
- व्यक्ति (Individuals)
- साझेदारी फर्म (Partnership Firms)
- कॉर्पोरेट संस्थाएं (Companies & LLPs)
2. व्यक्तिगत दिवालियापन (Personal Insolvency)
परिभाषा:
जब कोई व्यक्ति (जैसे व्यापारी, सेवा कर्मी आदि) अपने ऊपर लिए गए ऋणों को चुकाने में असमर्थ हो जाता है, और उसकी संपत्ति उसकी देनदारियों से कम हो जाती है, तो उसे व्यक्तिगत दिवालियापन कहा जाता है।
उद्देश्य:
व्यक्ति को वित्तीय बोझ से मुक्ति दिलाकर उसे पुनः आर्थिक रूप से स्थिर बनाने का अवसर देना।
प्रक्रिया (IBC के तहत):
व्यक्तिगत दिवालियापन की प्रक्रिया तीन चरणों में होती है:
- Fresh Start Process (यदि कुल आय और संपत्ति सीमित है)
- Insolvency Resolution Process (IRP): ऋणों का पुनर्गठन
- Bankruptcy Process: यदि समाधान संभव नहीं हो, तो परिसंपत्तियों की बिक्री
न्यायिक मंच:
Debt Recovery Tribunal (DRT)
उदाहरण:
राम, एक छोटे स्तर का व्यापारी है जिसने बैंक से ₹10 लाख का लोन लिया था। व्यापार में भारी नुकसान के कारण वह बैंक का पैसा चुकाने में विफल रहा। बैंक ने DRT में आवेदन दिया और राम के खिलाफ व्यक्तिगत दिवालियापन की कार्यवाही शुरू की गई।
3. कॉर्पोरेट दिवालियापन (Corporate Insolvency)
परिभाषा:
जब कोई कंपनी या कॉर्पोरेट इकाई अपने ऋणों का भुगतान नहीं कर पाती, तो IBC की धारा 7, 9 या 10 के अंतर्गत उसके खिलाफ Corporate Insolvency Resolution Process (CIRP) शुरू की जा सकती है।
उद्देश्य:
कंपनी को आर्थिक रूप से पुनर्जीवित करना या, यदि वह संभव न हो, तो उसकी परिसंपत्तियाँ बेचकर ऋणदाताओं को भुगतान करना।
प्रक्रिया (CIRP):
- आवेदन (NCLT में) – वित्तीय/संचालनात्मक लेनदार या स्वयं कंपनी द्वारा
- Interim Resolution Professional (IRP) की नियुक्ति
- ऋणदाताओं की समिति (Committee of Creditors – CoC) का गठन
- समाधान योजना (Resolution Plan) का अनुमोदन
- समाधान विफल हो तो परिसमापन (Liquidation)
न्यायिक मंच:
National Company Law Tribunal (NCLT)
उदाहरण:
XYZ Pvt. Ltd., एक रियल एस्टेट कंपनी है, जिसने विभिन्न बैंकों से ₹50 करोड़ का ऋण लिया लेकिन निर्माण कार्य में देरी और बिक्री में गिरावट के कारण भुगतान करने में विफल रही। ऋणदाता ने NCLT में आवेदन दिया और XYZ के खिलाफ कॉर्पोरेट दिवालियापन प्रक्रिया शुरू हुई।
4. मुख्य अंतर:
- लागू होने की सीमा:
व्यक्तिगत दिवालियापन व्यक्तियों और साझेदारी फर्मों पर लागू होता है, जबकि कॉर्पोरेट दिवालियापन कंपनियों और LLPs (लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप) पर लागू होता है। - न्यायिक मंच:
व्यक्तिगत दिवालियापन की सुनवाई DRT (Debt Recovery Tribunal) में होती है, जबकि कॉर्पोरेट दिवालियापन की सुनवाई NCLT (National Company Law Tribunal) में होती है। - प्रक्रिया शुरू करने वाला:
व्यक्तिगत दिवालियापन की प्रक्रिया ऋणदाता या स्वयं व्यक्ति शुरू कर सकता है। वहीं, कॉर्पोरेट दिवालियापन की प्रक्रिया वित्तीय लेनदार, संचालनात्मक लेनदार या खुद कंपनी शुरू कर सकती है। - प्रमुख उद्देश्य:
व्यक्तिगत दिवालियापन का उद्देश्य उस व्यक्ति को आर्थिक रूप से पुनः स्थापित करना होता है, जबकि कॉर्पोरेट दिवालियापन का उद्देश्य कंपनी को पुनर्गठित करना या उसकी परिसंपत्तियों को बेचकर कर्ज चुकाना होता है। - समाधान प्रक्रिया:
व्यक्तिगत दिवालियापन में Fresh Start, Resolution Process और Bankruptcy शामिल होते हैं। वहीं, कॉर्पोरेट दिवालियापन में Corporate Insolvency Resolution Process (CIRP) और जरूरत पड़ने पर Liquidation की प्रक्रिया होती है। - समय सीमा:
कॉर्पोरेट दिवालियापन की प्रक्रिया अधिकतम 330 दिनों में पूरी करनी होती है, जबकि व्यक्तिगत मामलों में समय सीमा लचीली हो सकती है। - ऋण की सीमा:
IBC के अनुसार, व्यक्तिगत दिवालियापन की कार्यवाही शुरू करने के लिए कम से कम ₹1,000 का डिफॉल्ट होना चाहिए, जबकि कॉर्पोरेट दिवालियापन के लिए ₹1 करोड़ या उससे अधिक का डिफॉल्ट होना चाहिए (सरकारी अधिसूचना अनुसार परिवर्तन संभव है)।
5. निष्कर्ष (Conclusion):
व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट दिवालियापन की प्रक्रियाओं का मुख्य अंतर यह है कि व्यक्तिगत दिवालियापन व्यक्तियों को आर्थिक पुनर्निर्माण का अवसर देता है जबकि कॉर्पोरेट दिवालियापन कंपनियों के लिए व्यावसायिक अस्तित्व बनाए रखने या संरचित रूप से बंद होने का मार्ग प्रदान करता है। IBC इन दोनों ही मामलों में एक पारदर्शी, समयबद्ध और प्रभावी प्रणाली स्थापित करता है।