कराधान कानून (Taxation Law) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

कराधान कानून (Taxation Law) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर 

1. कराधान (Taxation) क्या है? इसके उद्देश्य और महत्व को समझाइए।

उत्तर:

परिचय:

कराधान (Taxation) वह विधिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से सरकार व्यक्तियों, कंपनियों और अन्य संस्थाओं से राजस्व प्राप्त करती है ताकि सार्वजनिक सेवाओं और विकास कार्यों के लिए धन की व्यवस्था की जा सके।

परिभाषा:

कर (Tax) एक अनिवार्य वित्तीय शुल्क या लेवी है जिसे सरकार व्यक्तियों या संस्थाओं पर लागू करती है। यह किसी सेवा के प्रत्यक्ष लाभ के बदले नहीं लगाया जाता।

उद्देश्य:

  1. राजस्व संग्रह (Revenue Collection): सरकार को आवश्यक वित्तीय संसाधन प्रदान करना ताकि वह बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि सेवाओं का वित्तपोषण कर सके।
  2. आर्थिक असमानता कम करना (Reducing Economic Inequality): प्रगतिशील कर प्रणाली के माध्यम से उच्च आय वालों से अधिक कर लेकर गरीबों की सहायता करना।
  3. मुद्रास्फीति और अपस्फीति नियंत्रण (Controlling Inflation & Deflation): कर नीति के माध्यम से अर्थव्यवस्था में धन की उपलब्धता को नियंत्रित करना।
  4. राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देना (Encouraging National Development): उद्योग, कृषि और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कर प्रोत्साहन (Tax Incentives) प्रदान करना।
  5. सामाजिक कल्याण (Social Welfare): गरीबों और वंचित वर्गों के लिए सामाजिक योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए धन एकत्र करना।

महत्व:

  • यह सरकार के मुख्य राजस्व स्रोतों में से एक है।
  • यह सार्वजनिक सेवाओं और बुनियादी ढांचे के निर्माण में सहायक होता है।
  • यह आर्थिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
  • कर प्रणाली से सरकार को वित्तीय स्थिरता मिलती है।

2. भारत में कर प्रणाली के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:

भारत में कर प्रणाली को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है:

  1. प्रत्यक्ष कर (Direct Taxes)
  2. अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes)

1. प्रत्यक्ष कर (Direct Tax):

प्रत्यक्ष कर वे कर होते हैं जिन्हें करदाता स्वयं सरकार को चुकाता है और इनका भार किसी अन्य पर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।

मुख्य प्रकार:

  • आयकर (Income Tax): यह व्यक्तियों और कंपनियों की आय पर लगाया जाता है।
  • कॉरपोरेट कर (Corporate Tax): कंपनियों की वार्षिक आय या मुनाफे पर लगाया जाने वाला कर।
  • संपत्ति कर (Wealth Tax) (अब समाप्त): व्यक्तियों और कंपनियों की कुल संपत्ति पर लगाया जाता था।
  • कैपिटल गेन टैक्स (Capital Gains Tax): किसी संपत्ति, शेयर या अन्य परिसंपत्तियों को बेचने से होने वाले लाभ पर कर।

2. अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax):

अप्रत्यक्ष कर वे कर होते हैं जिन्हें एक व्यक्ति सरकार को चुकाता है लेकिन इसका भार उपभोक्ताओं पर स्थानांतरित किया जाता है।

मुख्य प्रकार:

  • वस्तु एवं सेवा कर (GST – Goods and Services Tax): 2017 में लागू, यह सभी अप्रत्यक्ष करों का एकीकरण है।
  • कस्टम ड्यूटी (Custom Duty): आयातित और निर्यातित वस्तुओं पर लगाया जाता है।
  • एक्साइज ड्यूटी (Excise Duty) (अब समाप्त): देश में निर्मित वस्तुओं पर लगाया जाता था।
  • सर्विस टैक्स (Service Tax) (अब समाप्त): सेवाओं पर लगाया जाता था, अब इसे GST में समाहित कर दिया गया है।

3. प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में क्या अंतर है?

उत्तर:

प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में मुख्य अंतर यह है कि प्रत्यक्ष कर वह कर होता है जिसे करदाता स्वयं सरकार को चुकाता है, जैसे आयकर और कॉरपोरेट कर। इसे किसी अन्य व्यक्ति पर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता। वहीं, अप्रत्यक्ष कर वह कर होता है जिसे एक व्यक्ति सरकार को चुकाता है लेकिन इसका भार अंतिम उपभोक्ता पर स्थानांतरित किया जाता है, जैसे वस्तु एवं सेवा कर (GST) और कस्टम ड्यूटी।

प्रत्यक्ष कर आमतौर पर व्यक्तियों और कंपनियों की आय, लाभ या संपत्ति पर लगाया जाता है, जबकि अप्रत्यक्ष कर वस्तुओं और सेवाओं की खरीद पर लगाया जाता है। प्रत्यक्ष कर की दरें आमतौर पर प्रगतिशील होती हैं, यानी अधिक आय वालों पर अधिक कर लगता है, जबकि अप्रत्यक्ष कर की दरें एक समान होती हैं, जिससे सभी उपभोक्ताओं को समान रूप से प्रभावित करती हैं।

प्रत्यक्ष कर का प्रशासन कठिन होता है क्योंकि यह करदाता की आय और संपत्ति के सत्यापन पर निर्भर करता है, जबकि अप्रत्यक्ष कर को एकत्र करना तुलनात्मक रूप से आसान होता है क्योंकि यह उत्पादों और सेवाओं की बिक्री के समय ही वसूला जाता है। प्रत्यक्ष कर कर चोरी की संभावना अधिक होती है, जबकि अप्रत्यक्ष कर में चोरी की संभावना कम होती है क्योंकि यह उपभोक्ताओं से स्वचालित रूप से एकत्र कर लिया जाता है।


4. वस्तु एवं सेवा कर (GST) क्या है? इसके लाभ और प्रभावों पर चर्चा करें।

उत्तर:

परिचय:

वस्तु एवं सेवा कर (GST) एक एकीकृत अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है जो 1 जुलाई 2017 को भारत में लागू हुई। यह “एक राष्ट्र, एक कर” की अवधारणा पर आधारित है और यह केंद्रीय और राज्य स्तर पर लगने वाले कई अप्रत्यक्ष करों को समाप्त करता है।

GST के प्रकार:

  1. CGST (Central Goods and Services Tax): केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाता है।
  2. SGST (State Goods and Services Tax): राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है।
  3. IGST (Integrated Goods and Services Tax): अंतरराज्यीय लेन-देन पर केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाता है।

GST के लाभ:

  1. करों की जटिलता कम हुई: यह सभी अप्रत्यक्ष करों को एक कर प्रणाली में समाहित करता है।
  2. डबल टैक्सेशन खत्म हुआ: पहले VAT और सेवा कर दोनों लागू होते थे, लेकिन अब केवल GST लागू होता है।
  3. पारदर्शिता में वृद्धि: यह कर चोरी को कम करता है क्योंकि सभी लेन-देन ऑनलाइन होते हैं।
  4. व्यापार में सुगमता: विभिन्न राज्यों में अलग-अलग कर दरों के कारण व्यापार में जो कठिनाई होती थी, वह समाप्त हो गई।

GST के प्रभाव:

  1. उपभोक्ताओं के लिए लाभ: पहले कई स्तरों पर कर चुकाने पड़ते थे, अब एक समान कर दर है।
  2. सरकार के लिए अधिक राजस्व: कर संग्रहण अधिक पारदर्शी और सुव्यवस्थित हो गया है।
  3. निर्यात को बढ़ावा: निर्यात पर कर छूट मिलती है जिससे भारत के उद्योगों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलती है।

5. कर चोरी (Tax Evasion) और कर से बचाव (Tax Avoidance) में क्या अंतर है?

उत्तर:

कर चोरी (Tax Evasion) और कर से बचाव (Tax Avoidance) में महत्वपूर्ण अंतर यह है कि कर चोरी एक अवैध प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति या संस्था जानबूझकर गलत जानकारी देकर या आय छुपाकर कर भुगतान से बचती है। इसमें नकली दस्तावेज बनाना, आय को छिपाना, गलत खर्चे दिखाना या संपत्ति के वास्तविक मूल्य को कम बताना शामिल होता है। कर चोरी कानूनी रूप से अपराध है और इसके लिए दंड, जुर्माना या कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

दूसरी ओर, कर से बचाव एक कानूनी तरीका है जिसमें व्यक्ति या संस्था कर कानूनों के अंतर्गत उपलब्ध छूट, कटौती और प्रावधानों का उपयोग करके अपनी कर देनदारी को कम करती है। इसमें आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत बचत योजनाओं में निवेश करना, हाउस लोन पर ब्याज की छूट लेना या कंपनियों द्वारा कर-अनुकूल योजनाओं का उपयोग करना शामिल हो सकता है।

कर चोरी सरकार के राजस्व को हानि पहुंचाती है और अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देती है, जबकि कर से बचाव कानूनी रूप से स्वीकृत है और करदाताओं को कर देयता कम करने का अवसर प्रदान करता है। हालांकि, यदि कर से बचाव का उपयोग अत्यधिक जटिल योजनाओं के माध्यम से किया जाता है जिससे सरकार के राजस्व को अनुचित रूप से हानि होती है, तो इसे “कर योजना (Tax Planning)” और “कर अपवंचन (Tax Avoidance)” के बीच की सीमारेखा पर माना जा सकता है।


निष्कर्ष:

कराधान कानून देश की आर्थिक स्थिरता और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से सरकार को राजस्व प्राप्त होता है, जिससे वह सार्वजनिक सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं को वित्तपोषित करती है। भारत में GST ने कर प्रणाली को सरल बनाया है, जबकि आयकर प्रणाली ने करदाताओं के लिए कई लाभदायक प्रावधान लागू किए हैं।

प्रत्यक्ष कर (Direct Taxes – Income Tax) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर 

1. प्रत्यक्ष कर (Direct Tax) क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:

परिभाषा: प्रत्यक्ष कर (Direct Tax) वह कर होता है जो सरकार द्वारा सीधे किसी व्यक्ति या संस्था पर लगाया जाता है और जिसका भुगतान वही करता है जिस पर यह कर लगाया गया हो। इसे किसी अन्य व्यक्ति पर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।

विशेषताएँ:

  1. सीधा भुगतान: करदाता स्वयं सरकार को कर का भुगतान करता है, किसी अन्य पर इसका बोझ नहीं डाला जा सकता।
  2. आय के अनुसार कर: यह कर व्यक्ति या संस्था की आय, लाभ या संपत्ति के मूल्य पर आधारित होता है।
  3. प्रगतिशील कर: आयकर जैसे प्रत्यक्ष कर की दरें आमतौर पर प्रगतिशील होती हैं, अर्थात् अधिक आय पर उच्च दर से कर लगाया जाता है।
  4. सरकार का मुख्य राजस्व स्रोत: सरकार के राजस्व में प्रत्यक्ष कर का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
  5. कर चोरी की संभावना: प्रत्यक्ष करों में कर चोरी की संभावना अधिक होती है, क्योंकि लोग अपनी वास्तविक आय छिपाने का प्रयास करते हैं।

2. आयकर (Income Tax) क्या है? इसकी विशेषताएँ और उद्देश्य बताइए।

उत्तर:

परिभाषा: आयकर एक प्रकार का प्रत्यक्ष कर है जो सरकार व्यक्ति, फर्म, कंपनी और अन्य संस्थाओं की वार्षिक आय पर लगाती है। यह कर भारत में आयकर अधिनियम, 1961 के अंतर्गत विनियमित किया जाता है।

विशेषताएँ:

  1. वार्षिक कर: यह एक वित्तीय वर्ष की कुल आय पर लगाया जाता है।
  2. विभिन्न स्लैब दरें: अलग-अलग आय वर्गों के लिए अलग-अलग कर की दरें निर्धारित की जाती हैं।
  3. प्रगतिशील प्रकृति: आय अधिक होने पर कर दर भी अधिक होती है।
  4. स्रोत-आधारित कर: आयकर को Tax Deducted at Source (TDS) के माध्यम से भी वसूला जाता है।
  5. कानूनी ढांचा: आयकर का निर्धारण आयकर अधिनियम, 1961 और उसके नियमों के अनुसार किया जाता है।

उद्देश्य:

  1. राजस्व संग्रह: सरकार को राजस्व प्रदान करना जिससे सार्वजनिक सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं को वित्तपोषित किया जा सके।
  2. आर्थिक असमानता को कम करना: प्रगतिशील कर प्रणाली के माध्यम से धनी और गरीब के बीच की खाई को पाटना।
  3. विकास कार्यों में योगदान: सड़कों, अस्पतालों, शिक्षा और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास के लिए धन प्रदान करना।
  4. मुद्रास्फीति नियंत्रण: कराधान के माध्यम से अर्थव्यवस्था में धन के प्रवाह को नियंत्रित करना।

3. भारत में आयकर की गणना कैसे की जाती है? उदाहरण सहित समझाइए।

उत्तर:

आयकर की गणना निम्नलिखित चरणों में की जाती है:

  1. सकल आय (Gross Income) की गणना: इसमें वेतन, व्यवसाय लाभ, किराया आय, पूंजीगत लाभ, और अन्य स्रोतों से प्राप्त आय शामिल होती है।
  2. कटौतियाँ (Deductions) लागू करना: धारा 80C, 80D, 80G जैसी कटौतियों को घटाया जाता है।
  3. कर योग्य आय (Taxable Income) निकालना: सकल आय में से अनुमत कटौतियाँ घटाने के बाद जो शेष बचता है, वह कर योग्य आय होती है।
  4. कर स्लैब के अनुसार कर की गणना: भारत में वित्त अधिनियम द्वारा निर्धारित कर स्लैब के अनुसार कर की गणना की जाती है।

उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति की कुल आय ₹10,00,000 है और वह ₹1,50,000 (धारा 80C) की कटौती का लाभ लेता है, तो उसकी कर योग्य आय होगी:
₹10,00,000 – ₹1,50,000 = ₹8,50,000

अब आयकर स्लैब के अनुसार कर की गणना होगी:

  • ₹2,50,000 तक – कोई कर नहीं
  • ₹2,50,001 – ₹5,00,000 तक – 5% कर = ₹12,500
  • ₹5,00,001 – ₹8,50,000 तक – 20% कर = ₹70,000

कुल कर = ₹12,500 + ₹70,000 = ₹82,500
इसके अतिरिक्त 4% स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर लगेगा:
₹82,500 × 4% = ₹3,300
अंतिम कर देय = ₹85,800


4. आयकर में छूट और कटौतियों (Deductions and Exemptions) के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

उत्तर:

आयकर अधिनियम, 1961 के तहत करदाता को विभिन्न प्रकार की छूट और कटौतियाँ प्रदान की जाती हैं, जिससे उनकी कर देयता कम हो सकती है।

मुख्य कटौतियाँ:

  1. धारा 80C: जीवन बीमा प्रीमियम, PPF, NSC, EPF, ट्यूशन फीस आदि पर अधिकतम ₹1,50,000 की कटौती।
  2. धारा 80D: चिकित्सा बीमा प्रीमियम पर ₹25,000 – ₹50,000 तक की कटौती।
  3. धारा 80G: दान (Donation) पर कटौती।
  4. धारा 24(b): होम लोन के ब्याज पर ₹2,00,000 तक की कटौती।
  5. धारा 10(14): मकान किराया भत्ता (HRA) पर छूट।

छूट (Exemptions):

  1. कृषि आय पूरी तरह से कर मुक्त होती है।
  2. पीएफ और ग्रेच्युटी पर कर छूट।
  3. लीव इनकैशमेंट पर सीमित छूट।

5. भारत में आयकर प्रशासन कौन करता है?

उत्तर:

भारत में आयकर प्रशासन केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT – Central Board of Direct Taxes) द्वारा किया जाता है।

CBDT की भूमिकाएँ:

  1. आयकर अधिनियम का कार्यान्वयन: आयकर कानूनों को लागू करना और नीति बनाना।
  2. कर संग्रहण: करदाताओं से कर वसूलना और उसकी निगरानी करना।
  3. जांच और कर चोरी पर नियंत्रण: कर चोरी को रोकने के लिए छापे और जांच करना।
  4. कर विवादों का निपटारा: कर अधिकारियों और न्यायाधिकरणों के माध्यम से विवादों का समाधान करना।
  5. ई-फाइलिंग और डिजिटल कराधान को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

प्रत्यक्ष कर विशेष रूप से आयकर सरकार के राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है, जो सामाजिक कल्याण और विकास योजनाओं के लिए आवश्यक धनराशि प्रदान करता है। आयकर अधिनियम, 1961 विभिन्न कर स्लैब, कटौतियों और छूटों का प्रावधान करता है, जिससे करदाताओं को राहत मिलती है। भारत में आयकर प्रशासन CBDT के तहत कार्य करता है, जो कर संग्रहण, अनुपालन और प्रवर्तन की निगरानी करता है।


प्रश्न 6: आयकर (Income Tax) क्या है? इसकी विशेषताओं और महत्व को समझाइए।

उत्तर:

परिचय:

आयकर (Income Tax) एक प्रत्यक्ष कर है जिसे भारत सरकार व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवार (HUF), फर्मों, कंपनियों और अन्य संस्थाओं की आय पर लागू करती है। यह कर सरकार का एक प्रमुख राजस्व स्रोत है और इसे भारतीय आयकर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act, 1961) के अंतर्गत विनियमित किया जाता है।

विशेषताएँ:

  1. प्रत्यक्ष कर: यह करदाता की आय पर सीधे लगाया जाता है और इसे किसी अन्य व्यक्ति पर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।
  2. प्रगतिशील कर प्रणाली: भारत में आयकर स्लैब प्रणाली प्रगतिशील है, यानी उच्च आय वालों पर अधिक कर दर लागू होती है।
  3. वार्षिक कर: आयकर प्रत्येक वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च) की आय पर लगाया जाता है और कर निर्धारण वर्ष (Assessment Year) में भुगतान किया जाता है।
  4. विभिन्न करदाता श्रेणियाँ: इसमें व्यक्तियों, कंपनियों, साझेदारी फर्मों, HUF, LLP आदि शामिल हैं, और प्रत्येक के लिए अलग-अलग कर दरें निर्धारित की जाती हैं।
  5. कटौतियों और छूटों का प्रावधान: आयकर अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत कर कटौतियाँ और छूट उपलब्ध हैं, जैसे धारा 80C, 80D, 10(14) आदि।

महत्व:

  1. सरकारी राजस्व का प्रमुख स्रोत: सरकार की अधिकांश कल्याणकारी योजनाएँ और बुनियादी ढांचे की परियोजनाएँ कर राजस्व पर निर्भर होती हैं।
  2. आर्थिक असमानता में कमी: प्रगतिशील कर प्रणाली के माध्यम से उच्च आय वालों से अधिक कर लेकर समाज में आर्थिक संतुलन स्थापित किया जाता है।
  3. वित्तीय स्थिरता: सरकार को सार्वजनिक सेवाओं, सुरक्षा और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को प्रदान करने के लिए आवश्यक धन मिलता है।
  4. विकास और निवेश को बढ़ावा: सरकार टैक्स छूट और प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से निवेश और बचत को बढ़ावा देती है।
  5. अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण: सरकार कर नीति के माध्यम से मुद्रास्फीति और अपस्फीति को नियंत्रित कर सकती है।

प्रश्न 7: भारत में आयकर की विभिन्न श्रेणियों और स्लैब दरों को समझाइए।

उत्तर:

परिचय:

भारत में आयकर की गणना करदाता की वार्षिक आय के आधार पर की जाती है। व्यक्तिगत करदाताओं के लिए सरकार विभिन्न आयकर स्लैब (Tax Slabs) निर्धारित करती है, जो समय-समय पर बदलते रहते हैं।

आयकर की प्रमुख श्रेणियाँ:

  1. व्यक्तिगत करदाता (Individuals): वेतनभोगी और स्वरोजगार व्यक्तियों पर लागू होता है।
  2. हिंदू अविभाजित परिवार (HUF): संयुक्त परिवार प्रणाली में संपत्ति से होने वाली आय पर कर लागू होता है।
  3. फर्म और LLP (Limited Liability Partnership): इन पर एक निश्चित दर से कर लगाया जाता है।
  4. कंपनियाँ (Companies): घरेलू और विदेशी कंपनियों पर अलग-अलग कर दरें लागू होती हैं।

आयकर स्लैब (FY 2023-24) – नई कर व्यवस्था

  • ₹0 – ₹2,50,000 : कोई कर नहीं
  • ₹2,50,001 – ₹5,00,000 : 5%
  • ₹5,00,001 – ₹7,50,000 : 10%
  • ₹7,50,001 – ₹10,00,000 : 15%
  • ₹10,00,001 – ₹12,50,000 : 20%
  • ₹12,50,001 – ₹15,00,000 : 25%
  • ₹15,00,001 से अधिक : 30%

महत्व:

  • यह करदाताओं को आर्थिक रूप से वर्गीकृत करता है और उनके वित्तीय दायित्व को परिभाषित करता है।
  • छोटे करदाताओं को राहत देने के लिए ₹5 लाख तक की आय पर धारा 87A के तहत छूट मिलती है।
  • सरकार द्वारा छूट और कटौती का लाभ उठाकर करदाताओं को बचत के लिए प्रेरित किया जाता है।

प्रश्न 8: आयकर रिटर्न (Income Tax Return – ITR) क्या है? इसके प्रकार और महत्त्व को समझाइए।

उत्तर:

परिचय:

आयकर रिटर्न (Income Tax Return – ITR) एक आधिकारिक दस्तावेज है, जिसमें करदाता अपनी वार्षिक आय, कटौतियाँ, कर देयता और भुगतान किए गए करों की जानकारी प्रस्तुत करता है। इसे आयकर विभाग की वेबसाइट पर ऑनलाइन भरा जा सकता है।

ITR के प्रकार:

  1. ITR-1 (Sahaj): वेतनभोगी और ₹50 लाख तक की आय वाले व्यक्तिगत करदाताओं के लिए।
  2. ITR-2: जिनकी आय वेतन, ब्याज, किराए, पूंजीगत लाभ आदि से होती है लेकिन बिजनेस आय नहीं होती।
  3. ITR-3: व्यवसाय या पेशे से जुड़े व्यक्तियों के लिए।
  4. ITR-4 (Sugam): वे व्यक्ति और HUF जो अनुमानित कर योजना (Presumptive Taxation) अपनाते हैं।
  5. ITR-5: साझेदारी फर्मों और LLP के लिए।
  6. ITR-6: कंपनियों के लिए।
  7. ITR-7: ट्रस्ट और धर्मार्थ संगठनों के लिए।

महत्व:

  • यह करदाता की आय की पारदर्शिता को सुनिश्चित करता है।
  • यह कर कटौती का लाभ उठाने में मदद करता है।
  • यह ऋण और वीजा आवेदन के लिए आवश्यक होता है।
  • समय पर रिटर्न दाखिल न करने पर जुर्माना और कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

प्रश्न 9: धारा 80C के अंतर्गत कर कटौती क्या है? इसके प्रमुख घटकों की व्याख्या करें।

उत्तर:

परिचय:

आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80C करदाताओं को ₹1.5 लाख तक की कर कटौती का लाभ प्रदान करती है। यह करदाता को बचत और निवेश के लिए प्रेरित करती है।

प्रमुख घटक:

  1. भविष्य निधि (Provident Fund – PF): कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) और सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) में योगदान।
  2. जीवन बीमा प्रीमियम (Life Insurance Premium): स्वयं, जीवनसाथी और बच्चों के लिए बीमा प्रीमियम।
  3. टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट: 5 साल की अवधि के लिए बैंक में निवेश।
  4. राष्ट्रीय बचत पत्र (NSC): भारतीय डाक द्वारा संचालित एक सुरक्षित निवेश।
  5. इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS): म्यूचुअल फंड में निवेश।
  6. ट्यूशन फीस: दो बच्चों तक की ट्यूशन फीस पर कटौती।
  7. होम लोन का मूलधन (Principal Repayment of Home Loan): घर की खरीद पर लिया गया लोन।

महत्व:

  • करदाता को बचत करने और भविष्य की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करता है।
  • यह कर दायित्व को कम करता है।
  • यह लंबी अवधि के निवेश को प्रोत्साहित करता है।

प्रश्न 10: अग्रिम कर (Advance Tax) क्या है? इसके लाभ और प्रावधानों को समझाइए।

उत्तर:

अग्रिम कर (Advance Tax) वह कर होता है जिसे करदाता पूरे वर्ष में किस्तों में चुकाता है, बजाय इसके कि वह वित्तीय वर्ष के अंत में एकमुश्त भुगतान करे। यह उन करदाताओं पर लागू होता है जिनकी कर देनदारी ₹10,000 से अधिक होती है।

लाभ:

  • यह कर चोरी को रोकता है
  • सरकार को नियमित राजस्व मिलता है।
  • करदाता पर एकमुश्त कर भुगतान का बोझ कम होता है।

प्रश्न 11: भारत में आयकर का इतिहास और विकास की व्याख्या करें।

उत्तर:

परिचय:

भारत में आयकर प्रणाली का इतिहास ब्रिटिश शासनकाल से जुड़ा हुआ है। सबसे पहले, 1860 में लॉर्ड कैनिंग ने भारत में आयकर की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य 1857 के विद्रोह के कारण हुए वित्तीय घाटे को पूरा करना था। इसके बाद, समय-समय पर विभिन्न संशोधन और सुधार किए गए।

आयकर का ऐतिहासिक विकास:

  1. 1860: लॉर्ड कैनिंग ने पहली बार आयकर लागू किया।
  2. 1886: पहला आधिकारिक आयकर अधिनियम लागू हुआ।
  3. 1918 और 1922: नए आयकर अधिनियम लाए गए, जिसमें अधिक स्पष्ट प्रावधान शामिल किए गए।
  4. 1961: वर्तमान भारतीय आयकर अधिनियम, 1961 लागू किया गया, जिसे आज भी संशोधित किया जाता है।
  5. 1991: उदारीकरण के बाद कर सुधारों को बढ़ावा मिला।
  6. 2017: कर प्रशासन को आसान बनाने के लिए GST (Goods and Services Tax) लागू किया गया।
  7. 2020: नई कर प्रणाली लागू की गई, जिसमें करदाताओं को छूट और कटौतियों के बिना कम कर दरों का विकल्प दिया गया।

महत्व:

  • भारत की अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने में मदद करता है।
  • सरकार के राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है।
  • सामाजिक और बुनियादी ढांचे के विकास में योगदान देता है।

प्रश्न 12: स्रोत पर कर कटौती (TDS – Tax Deducted at Source) क्या है? इसके उद्देश्य और प्रमुख दरों की व्याख्या करें।

उत्तर:

परिचय:

स्रोत पर कर कटौती (TDS) एक प्रणाली है, जिसके तहत कुछ निर्दिष्ट भुगतान (जैसे वेतन, ब्याज, कमीशन, किराया, पेशेवर शुल्क आदि) पर पहले ही कर काट लिया जाता है और सरकार को जमा कर दिया जाता है।

उद्देश्य:

  1. कर संग्रह को सुनिश्चित और व्यवस्थित करना।
  2. कर चोरी और कर अपवंचन को रोकना
  3. सरकार को नियमित कर राजस्व प्रदान करना।
  4. करदाताओं के लिए कर भुगतान को सरल बनाना।

प्रमुख TDS दरें (FY 2023-24):

  1. वेतन पर TDS: स्लैब दरों के अनुसार।
  2. ब्याज आय (बैंकों से): 10% (यदि पैन उपलब्ध है) और 20% (यदि पैन नहीं है)।
  3. पेशेवर सेवाएँ: 10%
  4. किराया (₹50,000 से अधिक): 5%
  5. बिक्री पर TDS: 0.1% (₹50 लाख से अधिक पर)।

महत्व:

  • सरकार के कर संग्रह को बढ़ाता है।
  • करदाताओं को साल के अंत में अधिक कर का भुगतान करने से बचाता है।

प्रश्न 13: कर पुनर्भुगतान (Tax Refund) क्या है? यह कब और कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

उत्तर:

परिचय:

कर पुनर्भुगतान (Tax Refund) वह राशि है जिसे करदाता को वापस किया जाता है, यदि उसने अपनी आय से अधिक कर चुका दिया हो। यह आमतौर पर तब होता है जब TDS, अग्रिम कर, या स्वैच्छिक कर भुगतान अनुमान से अधिक हो जाता है।

कब प्राप्त किया जा सकता है?

  1. आयकर रिटर्न दाखिल करते समय यदि कुल कर देयता भुगतान किए गए करों से कम होती है।
  2. यदि कोई करदाता कर छूट या कटौती का दावा करता है, जो TDS कटौती के समय नहीं दिया गया था।
  3. यदि किसी कंपनी ने अतिरिक्त कर जमा कर दिया हो।

कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

  1. ITR फाइल करें – करदाता को समय पर आयकर रिटर्न (ITR) भरना होगा।
  2. रिटर्न की समीक्षा – आयकर विभाग रिटर्न की जांच करता है।
  3. स्वीकृति – यदि वापसी उचित पाई जाती है, तो करदाता के बैंक खाते में धनराशि स्थानांतरित कर दी जाती है।

महत्व:

  • करदाताओं को उनकी अधिशेष राशि वापस मिलती है
  • आयकर प्रणाली में पारदर्शिता आती है।

प्रश्न 14: अग्रिम कर और स्व-मूल्यांकन कर (Self-Assessment Tax) में अंतर समझाइए।

उत्तर:

अग्रिम कर:

  • यह वह कर है, जिसे करदाता वित्तीय वर्ष के दौरान किस्तों में चुकाता है।
  • यह उन व्यक्तियों के लिए अनिवार्य है जिनकी कर देनदारी ₹10,000 से अधिक होती है।
  • भुगतान की प्रमुख तिथियाँ: 15 जून, 15 सितंबर, 15 दिसंबर, और 15 मार्च

स्व-मूल्यांकन कर:

  • यह करदाता द्वारा ITR दाखिल करने से पहले भुगतान किया जाता है।
  • यह तब लागू होता है जब TDS और अग्रिम कर के बावजूद कुछ कर बकाया रह जाता है
  • इसे रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि से पहले भुगतान करना होता है।

महत्व:

  • अग्रिम कर सरकार को नियमित राजस्व देता है।
  • स्व-मूल्यांकन कर ITR को सही और पूर्ण बनाता है

प्रश्न 15: कर योजना (Tax Planning) क्या है? इसके प्रकार समझाइए।

उत्तर:

परिचय:

कर योजना (Tax Planning) वह प्रक्रिया है, जिसमें करदाता कानूनी प्रावधानों का उपयोग करके अपनी कर देनदारी को कम करता है

प्रकार:

  1. विकास उन्मुख कर योजना: करदाताओं को निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
  2. संरचनात्मक कर योजना: विभिन्न स्रोतों के माध्यम से कर बचाने की रणनीति।
  3. लघु और दीर्घकालिक कर योजना: तुरंत या भविष्य में लाभ पाने के लिए की जाने वाली योजना।

महत्व:

  • यह करदाताओं को कम कर दरों का लाभ उठाने में मदद करती है।
  • बचत और निवेश को बढ़ावा देती है

प्रश्न 16: व्यावसायिक और पेशेवर आय पर कर गणना की प्रक्रिया क्या है?

उत्तर:

परिचय:

व्यावसायिक और पेशेवर आय वह आय होती है, जो व्यक्ति व्यापार, व्यवसाय या किसी पेशेवर सेवा से प्राप्त करता है। यह आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 28 से 44 के तहत कर योग्य होती है।

कर गणना की प्रक्रिया:

  1. सकल आय (Gross Income) का निर्धारण:
    • व्यवसाय से होने वाली कुल प्राप्तियां।
    • माल या सेवाओं की बिक्री से होने वाली आय।
    • किराया, कमीशन, बोनस, इत्यादि।
  2. अनुमेय कटौतियां (Allowed Deductions):
    • व्यापार से संबंधित खर्च (धारा 30-37)।
    • वेतन, किराया, विज्ञापन व्यय, यात्रा व्यय।
    • आयकर अधिनियम के अनुसार अनुमेय कटौतियां।
  3. शुद्ध लाभ (Net Profit) की गणना:
    • सकल आय – अनुमेय खर्च = शुद्ध लाभ।
  4. पेशेवर कर (Professional Tax):
    • यह राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है।
    • अधिकतम ₹2500 प्रतिवर्ष।
  5. कर योग्य आय का निर्धारण:
    • शुद्ध लाभ पर लागू कर की गणना।
    • कंपनियों के लिए फ्लैट 25% कर दर
    • व्यक्तिगत व्यवसाय के लिए आयकर स्लैब के अनुसार कर।

निष्कर्ष:

व्यावसायिक और पेशेवर आय पर कर अधिनियम के तहत निर्धारित दरों और कटौतियों के अनुसार लगाया जाता है, जिससे करदाताओं को वैध कर लाभ प्राप्त करने का अवसर मिलता है।


प्रश्न 17: भविष्य निधि (Provident Fund – PF) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) पर कर प्रभाव समझाइए।

उत्तर:

परिचय:

भविष्य निधि (PF) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) दोनों ही सेवानिवृत्ति बचत योजनाएँ हैं, जो कर लाभ प्रदान करती हैं।

भविष्य निधि (Provident Fund – PF):

  1. कर लाभ:
    • कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) में योगदान पर धारा 80C के तहत ₹1.5 लाख तक की छूट
    • ब्याज करमुक्त (यदि 5 साल की निरंतर सेवा पूरी हो)।
  2. निकासी पर कर प्रभाव:
    • 5 साल से पहले निकासी पर कर लागू होता है।
    • सेवानिवृत्ति के बाद पूरी राशि कर मुक्त होती है।

राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS):

  1. कर लाभ:
    • धारा 80CCD(1) के तहत ₹1.5 लाख तक की छूट।
    • अतिरिक्त ₹50,000 की छूट 80CCD(1B) के तहत।
  2. निकासी पर कर प्रभाव:
    • 60% तक की निकासी करमुक्त।
    • शेष 40% को वार्षिकी में निवेश करना अनिवार्य, जो कर योग्य है।

निष्कर्ष:

PF और NPS दोनों ही सेवानिवृत्ति लाभ के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कर लाभ और निकासी की शर्तें अलग-अलग हैं।


प्रश्न 18: नई और पुरानी कर व्यवस्था में अंतर क्या है?

उत्तर:

परिचय:

2020-21 के बजट में भारत सरकार ने एक नई कर प्रणाली पेश की, जिसमें कर स्लैब की नई दरें दी गईं, लेकिन कटौतियों और छूटों को हटा दिया गया

पुरानी कर व्यवस्था:

  1. करदाता विभिन्न कटौतियों और छूटों (80C, 80D, HRA, आदि) का लाभ उठा सकता है।
  2. आयकर दरें उच्च थीं, लेकिन कर में छूट अधिक थी।
  3. जटिल प्रक्रिया, क्योंकि करदाताओं को निवेश योजना बनानी पड़ती थी।

नई कर व्यवस्था:

  1. कम कर दरें, लेकिन कोई कटौती या छूट नहीं।
  2. सरल कर प्रणाली, बिना ज्यादा दस्तावेज़ी कार्य।
  3. करदाता को छूट वाली या बिना छूट वाली व्यवस्था में से कोई एक चुनने की स्वतंत्रता।

मुख्य अंतर:

निष्कर्ष:

नई कर प्रणाली सरल और सीधी है, जबकि पुरानी प्रणाली अधिक कर लाभ प्रदान करती है। करदाता अपनी आवश्यकताओं के अनुसार योजना चुन सकता है।


प्रश्न 19: हाउस प्रॉपर्टी से आय पर कर गणना कैसे की जाती है?

उत्तर:

परिचय:

घर या संपत्ति से अर्जित किराया या स्व-स्वामित्व वाली संपत्ति पर कर आयकर अधिनियम की धारा 22 से 27 के तहत कर योग्य होती है।

कर गणना की प्रक्रिया:

  1. सकल वार्षिक मूल्य (GAV) की गणना:
    • यदि संपत्ति किराए पर दी गई है, तो वार्षिक किराया GAV होगा।
    • स्व-स्वामित्व वाली एक संपत्ति के लिए GAV शून्य होगा।
  2. कटौती:
    • म्युनिसिपल टैक्स घटाया जाता है।
    • मानक कटौती 30% (धारा 24)।
    • होम लोन ब्याज पर कटौती (₹2 लाख तक)।
  3. शुद्ध आय की गणना:
    • शुद्ध कर योग्य आय = GAV – कटौतियां।

निष्कर्ष:

यदि संपत्ति स्व-स्वामित्व वाली है, तो कर कम होगा, लेकिन किराए पर दी गई संपत्ति की आय कर योग्य होगी।


प्रश्न 20: भारत में अंतर्राष्ट्रीय कराधान (International Taxation) की संकल्पना और नियम क्या हैं?

उत्तर:

परिचय:

अंतर्राष्ट्रीय कराधान उन कर नियमों से संबंधित है, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, विदेशी आय, और दोहरे कराधान (Double Taxation) से संबंधित हैं

मुख्य नियम:

  1. रेजिडेंसी आधारित कराधान:
    • भारतीय निवासी की विश्व स्तर पर अर्जित आय कर योग्य होती है।
    • अनिवासी केवल भारत में अर्जित आय पर कर का भुगतान करते हैं।
  2. दोहरा कराधान बचाव समझौता (DTAA):
    • यदि कोई व्यक्ति दो देशों में कर का भुगतान कर रहा है, तो DTAA कर राहत प्रदान करता है।
  3. विदेशी कंपनियों पर कर:
    • यदि कोई विदेशी कंपनी भारत में आय अर्जित कर रही है, तो उसे भारत में कर चुकाना होगा।

निष्कर्ष:

भारत में अंतर्राष्ट्रीय कराधान विदेशी आय, अनिवासी भारतीयों (NRI) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण है।


अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes – GST, Customs Duty) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर 


प्रश्न 1: अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes) क्या है? इसकी विशेषताएं बताइए।

उत्तर:

परिचय:

अप्रत्यक्ष कर वह कर है, जिसका भुगतान उपभोक्ता द्वारा किया जाता है, लेकिन सरकार को यह कर बिचौलियों (जैसे विक्रेता, निर्माता, सेवा प्रदाता आदि) के माध्यम से प्राप्त होता है। उदाहरण: माल और सेवा कर (GST), सीमा शुल्क (Customs Duty), उत्पाद शुल्क (Excise Duty) आदि।

विशेषताएं:

  1. कर का भार उपभोक्ता पर पड़ता है:
    • विक्रेता, निर्माता या सेवा प्रदाता सरकार को कर का भुगतान करते हैं, लेकिन इसका भार अंतिम उपभोक्ता पर पड़ता है।
  2. अप्रत्यक्ष संग्रहण:
    • सरकार को कर सीधे उपभोक्ता से नहीं मिलता, बल्कि व्यापारी या सेवा प्रदाता इसे संग्रहित कर सरकार को जमा करते हैं।
  3. हर स्तर पर कर:
    • यह कर वस्तु या सेवा के प्रत्येक चरण में लगाया जाता है, जैसे कि उत्पादन, वितरण और बिक्री।
  4. व्यापक कवरेज:
    • अप्रत्यक्ष कर हर व्यक्ति पर लागू होता है, जो वस्तु या सेवा का उपभोग करता है।
  5. कर चोरी की संभावना कम:
    • चूंकि यह कर उपभोक्ता की खरीद पर आधारित है, इसलिए इसकी चोरी की संभावना कम होती है।

निष्कर्ष:

अप्रत्यक्ष कर सरकार की राजस्व प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और यह उपभोक्ताओं पर समान रूप से लागू होता है।


प्रश्न 2: माल और सेवा कर (GST) क्या है? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइए।

उत्तर:

परिचय:

माल और सेवा कर (GST) एक बहु-चरणीय, गंतव्य-आधारित कर है, जिसे भारत सरकार ने 1 जुलाई 2017 को लागू किया। यह एक एकीकृत कर प्रणाली है, जो पूर्व के कई अप्रत्यक्ष करों (जैसे VAT, सेवा कर, उत्पाद शुल्क आदि) को प्रतिस्थापित करती है।

मुख्य विशेषताएं:

  1. एक राष्ट्र, एक कर:
    • भारत में GST लागू होने के बाद सभी वस्तुओं और सेवाओं पर एक समान कर प्रणाली लागू की गई।
  2. बहु-स्तरीय कर (Multi-stage Tax):
    • GST उत्पादन, वितरण और अंतिम बिक्री के हर चरण में लगाया जाता है।
  3. गंतव्य आधारित कर (Destination-based Tax):
    • कर का भुगतान उस राज्य को किया जाता है, जहां वस्तु या सेवा का अंतिम उपभोग होता है।
  4. डिजिटल कर प्रणाली:
    • GST के तहत सभी कर भुगतान, रिटर्न फाइलिंग और अनुपालन कार्य ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से किए जाते हैं।
  5. GST के प्रकार:
    • CGST (Central GST): केंद्र सरकार को मिलने वाला कर।
    • SGST (State GST): राज्य सरकार को मिलने वाला कर।
    • IGST (Integrated GST): अंतरराज्यीय लेनदेन पर लागू।

निष्कर्ष:

GST ने भारत की कर प्रणाली को सरल, पारदर्शी और अधिक कुशल बनाया है।


प्रश्न 3: सीमा शुल्क (Customs Duty) क्या है? यह कितने प्रकार का होता है?

उत्तर:

परिचय:

सीमा शुल्क (Customs Duty) एक अप्रत्यक्ष कर है, जो किसी भी देश में आयात (Import) और निर्यात (Export) की जाने वाली वस्तुओं पर लगाया जाता है। इसका उद्देश्य घरेलू उद्योगों की रक्षा करना, विदेशी व्यापार को नियंत्रित करना और सरकारी राजस्व प्राप्त करना है।

प्रकार:

  1. आयात शुल्क (Import Duty):
    • विदेश से आने वाली वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर।
    • इसका उद्देश्य घरेलू उत्पादकों की रक्षा करना है।
  2. निर्यात शुल्क (Export Duty):
    • देश से बाहर भेजी जाने वाली वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर।
    • यह आमतौर पर उन वस्तुओं पर लगाया जाता है, जिनकी घरेलू मांग अधिक होती है।
  3. एंटी-डंपिंग शुल्क (Anti-Dumping Duty):
    • यदि कोई देश अपनी वस्तुओं को भारत में कम कीमत पर बेचकर घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुंचाता है, तो यह शुल्क लगाया जाता है।
  4. संरक्षण शुल्क (Protective Duty):
    • घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए लगाया जाने वाला कर।
  5. विशेष शुल्क (Special Duty):
    • सरकार द्वारा कुछ विशेष वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लगाया जाता है।

निष्कर्ष:

सीमा शुल्क का मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों की रक्षा करना और विदेशी व्यापार को नियंत्रित करना है।


प्रश्न 4: इनपुट टैक्स क्रेडिट (Input Tax Credit – ITC) क्या है? यह कैसे काम करता है?

उत्तर:

परिचय:

इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके तहत किसी व्यापारी या निर्माता को खरीदी गई सामग्री या सेवाओं पर पहले से चुकाए गए कर का लाभ मिलता है और वह इसे अपनी कुल कर देयता में समायोजित कर सकता है।

ITC कैसे काम करता है?

  1. कच्चे माल या सेवाओं पर कर भुगतान:
    • यदि कोई व्यापारी अपने व्यवसाय के लिए कुछ सामग्री खरीदता है और उस पर GST का भुगतान करता है, तो वह उस कर का क्रेडिट प्राप्त कर सकता है।
  2. अंतिम उत्पाद की बिक्री पर कर:
    • जब व्यापारी अंतिम उपभोक्ता को वस्तु बेचता है, तो उसे बिक्री मूल्य पर कर चुकाना पड़ता है।
  3. ITC का लाभ:
    • व्यापारी पहले से चुकाए गए कर (ITC) को अपने अंतिम कर भुगतान से घटा सकता है।

उदाहरण:

यदि किसी व्यापारी ने कच्चे माल की खरीद पर ₹10,000 का GST चुकाया, और अंतिम उत्पाद की बिक्री पर उसे ₹15,000 का GST देना है, तो उसे केवल ₹5,000 का भुगतान करना होगा (₹15,000 – ₹10,000 = ₹5,000)।

निष्कर्ष:

ITC कर प्रणाली को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाता है और दोहरा कराधान (Double Taxation) को रोकता है


प्रश्न 5: वस्तु और सेवा कर (GST) और पूर्ववर्ती अप्रत्यक्ष करों (VAT, सेवा कर, उत्पाद शुल्क) में क्या अंतर है?

उत्तर:

परिचय:

GST से पहले भारत में कई प्रकार के अप्रत्यक्ष कर थे, जैसे VAT (मूल्य वर्धित कर), सेवा कर, उत्पाद शुल्क, प्रवेश कर आदि। GST ने इन सभी करों को एक कर प्रणाली में समाहित कर दिया

मुख्य अंतर:

  1. अनेक कर बनाम एक कर:
    • पहले VAT, सेवा कर, उत्पाद शुल्क आदि अलग-अलग कर लगाए जाते थे।
    • GST ने इन्हें एकीकृत कर प्रणाली में बदल दिया।
  2. कर की गणना:
    • पुराने करों में हर चरण पर अलग-अलग कर चुकाने पड़ते थे।
    • GST में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की सुविधा उपलब्ध है।
  3. कर प्रशासन:
    • पहले कर संग्रहण केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग किया जाता था।
    • GST में एकल कर प्रशासन प्रणाली है।

निष्कर्ष:

GST ने पुराने कर प्रणाली की जटिलताओं को समाप्त कर भारत में एकीकृत और पारदर्शी कर प्रणाली लागू की


प्रश्न 6: जीएसटी (GST) के तहत कराधान की दोहरी संरचना (Dual Structure of GST) क्या है? इसके लाभों की व्याख्या करें।

उत्तर:

परिचय:

भारत में माल और सेवा कर (GST) की एक दोहरी कराधान संरचना (Dual GST Structure) अपनाई गई है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों कर लगाने के अधिकार रखते हैं।

दोहरी कराधान संरचना:

  1. केंद्रीय जीएसटी (CGST – Central GST):
    • यह कर केंद्र सरकार को जाता है।
    • यह केवल अंतरराज्यीय व्यापार और सेवाओं पर लगाया जाता है।
  2. राज्य जीएसटी (SGST – State GST):
    • यह कर राज्य सरकार को जाता है।
    • यह केवल राज्य के भीतर (Intra-State) की गई बिक्री पर लगाया जाता है।
  3. एकीकृत जीएसटी (IGST – Integrated GST):
    • यह कर अंतरराज्यीय (Inter-State) व्यापार और सेवाओं पर लगाया जाता है।
    • IGST केंद्र सरकार के पास जाता है और फिर राज्य सरकारों में वितरित किया जाता है।

दोहरी कराधान संरचना के लाभ:

  1. संघीय संरचना को बनाए रखना:
    • भारत एक संघीय देश है, इसलिए केंद्र और राज्य दोनों को कराधान अधिकार देना आवश्यक है।
  2. राजस्व संतुलन:
    • इससे केंद्र और राज्यों को समान रूप से कर राजस्व प्राप्त होता है, जिससे सरकारी योजनाओं के लिए धन सुनिश्चित होता है।
  3. व्यापार और उद्योग के लिए पारदर्शिता:
    • कराधान प्रक्रिया सरल और पारदर्शी हो गई है, जिससे व्यापारियों को दोहरा कराधान (Double Taxation) से राहत मिली है।

निष्कर्ष:

भारत में अपनाई गई दोहरी जीएसटी संरचना केंद्र और राज्यों के बीच कर संग्रहण को संतुलित करती है और यह एक संगठित और पारदर्शी कर प्रणाली प्रदान करती है।


प्रश्न 7: जीएसटी परिषद (GST Council) क्या है? इसके कार्यों की व्याख्या करें।

उत्तर:

परिचय:

GST को सफलतापूर्वक लागू करने और उसकी नीतियों को निर्धारित करने के लिए संविधान (101वां संशोधन) अधिनियम, 2016 के तहत GST परिषद (GST Council) का गठन किया गया।

संरचना:

  1. अध्यक्ष: भारत के वित्त मंत्री GST परिषद के अध्यक्ष होते हैं।
  2. सदस्य:
    • केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री।
    • सभी राज्यों के वित्त मंत्री या उनके नामित सदस्य।

GST परिषद के कार्य:

  1. कर दरों और स्लैब का निर्धारण:
    • यह परिषद GST के विभिन्न स्लैब (5%, 12%, 18%, 28%) तय करती है।
  2. कर छूट (Tax Exemptions) का निर्धारण:
    • कौन-कौन सी वस्तुएं और सेवाएं GST के दायरे में आएंगी, इसका फैसला परिषद करती है।
  3. ITC और कर भुगतान की प्रक्रिया:
    • इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की नीतियों को निर्धारित करना।
  4. विवाद समाधान (Dispute Resolution):
    • यदि केंद्र और राज्यों के बीच कोई कर विवाद होता है, तो परिषद इसका समाधान करती है।

निष्कर्ष:

GST परिषद एक संवैधानिक निकाय है, जो GST की दरें तय करने, नीतियों को लागू करने और विवादों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


प्रश्न 8: उलटा शुल्क तंत्र (Reverse Charge Mechanism – RCM) क्या है? इसके प्रमुख प्रावधानों की व्याख्या करें।

उत्तर:

परिचय:

सामान्यतः GST विक्रेता (Supplier) द्वारा भुगतान किया जाता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में कर का भुगतान ग्राहक (Recipient) द्वारा किया जाता है। इस प्रणाली को उलटा शुल्क तंत्र (Reverse Charge Mechanism – RCM) कहा जाता है।

RCM लागू होने की स्थितियाँ:

  1. निर्दिष्ट वस्तुओं और सेवाओं पर:
    • कुछ विशेष वस्तुओं और सेवाओं पर सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से RCM लागू किया जाता है।
  2. अनरजिस्टर्ड विक्रेताओं से खरीद पर:
    • यदि कोई पंजीकृत व्यापारी (Registered Dealer) किसी अपंजीकृत व्यापारी (Unregistered Dealer) से सामान या सेवा खरीदता है, तो उसे RCM के तहत GST चुकाना होगा।
  3. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से सेवाएँ:
    • जैसे कि उबर (Uber) और ओला (Ola) जैसी कैब सेवाओं पर RCM लागू किया जाता है।

RCM के प्रमुख प्रावधान:

  1. कर भुगतान:
    • कर का भुगतान ग्राहक को स्वयं करना होता है।
  2. ITC का लाभ:
    • RCM के तहत चुकाए गए कर का इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) प्राप्त किया जा सकता है
  3. मासिक रिटर्न फाइलिंग:
    • RCM के अंतर्गत करदाता को हर महीने GSTR-3B फॉर्म भरना होता है।

निष्कर्ष:

RCM सरकार को कर चोरी रोकने और अनियमित लेन-देन पर नियंत्रण रखने में मदद करता है।


प्रश्न 9: IGST (Integrated GST) क्या है? यह कैसे कार्य करता है?

उत्तर:

परिचय:

IGST (Integrated GST) वह कर है, जो अंतरराज्यीय व्यापार (Inter-State Transactions) और आयात (Imports) पर लागू होता है।

IGST की कार्यप्रणाली:

  1. राज्यों के बीच व्यापार पर लागू:
    • यदि दिल्ली का एक व्यापारी मुंबई के ग्राहक को सामान बेचता है, तो यह IGST के अंतर्गत आएगा।
  2. राजस्व का वितरण:
    • केंद्र सरकार IGST को एकत्र करती है और फिर इसे संबंधित राज्य सरकारों में वितरित किया जाता है।
  3. इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की सुविधा:
    • व्यापारी IGST के अंतर्गत ITC का लाभ उठा सकता है और अपनी कर देनदारी कम कर सकता है।

IGST के लाभ:

  1. व्यापार में सुगमता:
    • IGST ने राज्य के अंदर और बाहर व्यापार करने की प्रक्रिया को सरल बना दिया है।
  2. कर की समानता:
    • पूरे देश में एक समान कर व्यवस्था लागू होती है।

निष्कर्ष:

IGST अंतरराज्यीय व्यापार और आयात/निर्यात में कराधान को नियंत्रित करने का एक प्रभावी तरीका है।


प्रश्न 10: सीमा शुल्क (Customs Duty) और जीएसटी (GST) में क्या अंतर है?

उत्तर:

  1. सीमा शुल्क (Customs Duty):
    • यह कर विदेशी वस्तुओं के आयात और निर्यात पर लगाया जाता है।
    • इसका उद्देश्य घरेलू उद्योगों की रक्षा करना है।
    • यह केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह नियंत्रित होता है।
  2. GST (Goods and Services Tax):
    • यह कर घरेलू स्तर पर बेची जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होता है।
    • इसका उद्देश्य कराधान की प्रक्रिया को सरल बनाना है।
    • यह CGST, SGST और IGST में विभाजित होता है।

निष्कर्ष:

सीमा शुल्क अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करता है, जबकि GST घरेलू व्यापार पर लागू होता है।


प्रश्न 11: सीमा शुल्क (Customs Duty) क्या है? इसके प्रकारों की व्याख्या करें।

उत्तर:

परिचय:

सीमा शुल्क (Customs Duty) वह कर है, जो किसी वस्तु के आयात (Import) या निर्यात (Export) के समय लगाया जाता है। यह केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाता है और इसका उद्देश्य घरेलू उत्पादकों की रक्षा करना और विदेशी व्यापार को नियंत्रित करना है।

सीमा शुल्क के प्रकार:

  1. आयात शुल्क (Import Duty):
    • जब विदेशी वस्तुएं भारत में लाई जाती हैं, तो इस पर आयात शुल्क लगाया जाता है।
  2. निर्यात शुल्क (Export Duty):
    • जब भारतीय वस्तुएं विदेशों में भेजी जाती हैं, तो कुछ वस्तुओं पर निर्यात शुल्क लगाया जाता है।
  3. रक्षा शुल्क (Protective Duty):
    • यह घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए लगाया जाता है, जिससे आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएं।
  4. समकक्ष शुल्क (Countervailing Duty – CVD):
    • यदि कोई देश अपनी वस्तुओं पर सब्सिडी देता है, तो भारत इस पर CVD लगाकर समानता बनाए रखता है।
  5. एंटी-डंपिंग शुल्क (Anti-Dumping Duty):
    • अगर कोई देश भारत में बहुत कम कीमत पर वस्तुएं भेजता है, तो भारत इस पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाकर घरेलू उद्योगों की रक्षा करता है।
  6. सफाई शुल्क (Safeguard Duty):
    • यह शुल्क तब लगाया जाता है, जब अचानक किसी वस्तु के आयात से घरेलू उद्योगों को नुकसान होने लगे।

निष्कर्ष:

सीमा शुल्क से सरकार को राजस्व प्राप्त होता है और यह घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्धा बनाए रखने में मदद करता है।


प्रश्न 12: जीएसटी के तहत कंपोजिशन स्कीम (Composition Scheme) क्या है?

उत्तर:

परिचय:

कंपोजिशन स्कीम (Composition Scheme) छोटे व्यापारियों को कर भुगतान में राहत देने के लिए बनाई गई एक सरल जीएसटी योजना है।

मुख्य विशेषताएँ:

  1. योग्यता (Eligibility):
    • जिनका वार्षिक कारोबार ₹1.5 करोड़ (विशेष राज्यों के लिए ₹75 लाख) से कम है, वे इस योजना का लाभ ले सकते हैं।
  2. कम कर दरें:
    • व्यापारी को सामान्य दरों के बजाय कम प्रतिशत (1% – 6%) कर देना होता है।
  3. आईटीसी (ITC) उपलब्ध नहीं:
    • इस योजना में व्यापारियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) नहीं मिलता।
  4. सरल कर अनुपालन:
    • मासिक रिटर्न के बजाय तिमाही (Quarterly) रिटर्न भरना होता है।

निष्कर्ष:

यह योजना छोटे व्यापारियों के लिए लाभदायक है क्योंकि इससे कर अनुपालन में आसानी होती है और कर दरें कम होती हैं


प्रश्न 13: जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) क्या है? इसके लाभ बताइए।

उत्तर:

परिचय:

इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) वह सुविधा है, जिसमें व्यापारी खरीदी गई वस्तुओं/सेवाओं पर दिए गए कर को बिक्री पर लगने वाले कर से घटा सकता है

ITC के लाभ:

  1. दोहरा कराधान समाप्त:
    • व्यापारियों को एक ही वस्तु पर बार-बार कर चुकाने की जरूरत नहीं होती।
  2. कर का बोझ कम होता है:
    • ITC से व्यापारियों को कर में छूट मिलती है, जिससे उत्पादन लागत कम होती है।
  3. व्यापार की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ती है:
    • कर में छूट मिलने से उत्पाद सस्ते होते हैं और बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है।

निष्कर्ष:

ITC एक प्रभावी प्रणाली है, जिससे व्यापारियों की कर देनदारी कम होती है और अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता बनी रहती है।


प्रश्न 14: जीएसटी रिटर्न (GST Returns) क्या है? इसके प्रकारों की व्याख्या करें।

उत्तर:

परिचय:

जीएसटी के तहत व्यापारियों को सरकार को अपनी बिक्री, खरीद और कर भुगतान का विवरण जमा करना होता है, जिसे जीएसटी रिटर्न कहते हैं।

जीएसटी रिटर्न के प्रकार:

  1. GSTR-1:
    • इसमें व्यापारियों को बिक्री (Sales) का विवरण देना होता है।
  2. GSTR-3B:
    • यह मासिक कर सारांश (Summary) होता है, जिसमें कर भुगतान किया जाता है।
  3. GSTR-4:
    • यह कंपोजिशन स्कीम के व्यापारियों के लिए होता है।
  4. GSTR-9:
    • यह वार्षिक रिटर्न (Annual Return) होता है।

निष्कर्ष:

जीएसटी रिटर्न व्यापारियों को पारदर्शिता बनाए रखने और सरकार को कर संग्रहण में मदद करता है।


प्रश्न 15: जीएसटी में ई-वे बिल (E-Way Bill) क्या है?

उत्तर:

ई-वे बिल (E-Way Bill) एक इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज है, जो ₹50,000 से अधिक के माल की अंतरराज्यीय या राज्य के भीतर आवाजाही के लिए आवश्यक होता है।

मुख्य विशेषताएँ:

  1. व्यापारी और ट्रांसपोर्टर को बनाना होता है।
  2. ई-वे बिल नंबर 15 दिनों तक वैध होता है।
  3. यह कर चोरी को रोकने में मदद करता है।

निष्कर्ष:

ई-वे बिल से माल की आवाजाही पारदर्शी हो गई है और कर चोरी को रोकने में मदद मिली है।


प्रश्न 16: जीएसटी की विफलताएँ और चुनौतियाँ क्या हैं?

उत्तर:

मुख्य चुनौतियाँ:

  1. बार-बार दरों में बदलाव।
  2. छोटे व्यापारियों के लिए जटिल अनुपालन।
  3. आईटी प्रणाली में तकनीकी दिक्कतें।
  4. पेट्रोल, शराब और बिजली पर जीएसटी नहीं लागू।

निष्कर्ष:

हालांकि जीएसटी ने कर प्रणाली को सरल किया है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं।


प्रश्न 17: जीएसटी लागू होने के बाद अर्थव्यवस्था पर प्रभाव क्या पड़ा?

उत्तर:

सकारात्मक प्रभाव:

  1. व्यापार आसान हुआ।
  2. लॉजिस्टिक्स में सुधार।
  3. कर प्रणाली पारदर्शी हुई।

नकारात्मक प्रभाव:

  1. छोटे व्यापारियों के लिए कर अनुपालन जटिल।
  2. पहले कुछ वर्षों में विकास दर धीमी हुई।

निष्कर्ष:

लंबी अवधि में जीएसटी से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ है।


प्रश्न 18: अंतरराज्यीय और राज्य के भीतर आपूर्ति में कर का निर्धारण कैसे होता है?

उत्तर:

  • राज्य के भीतर (Intra-State): CGST + SGST लागू होता है।
  • अंतरराज्यीय (Inter-State): IGST लागू होता है।

प्रश्न 19: इन्वर्स इनपुट टैक्स क्रेडिट (Inverted ITC) क्या है?

इन्वर्स आईटीसी तब होता है जब इनपुट पर अधिक कर चुकाया जाता है, लेकिन आउटपुट पर कम कर लागू होता है।


प्रश्न 20: जीएसटी का अनुपालन कैसे किया जाता है?

  1. रजिस्ट्रेशन कराना।
  2. जीएसटी रिटर्न फाइल करना।
  3. कर का भुगतान समय पर करना।

अंतर्राष्ट्रीय कर कानून (International Taxation) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर – 


प्रश्न 1: अंतर्राष्ट्रीय कराधान (International Taxation) क्या है? इसका महत्व समझाइए।

उत्तर:

परिचय:

अंतर्राष्ट्रीय कराधान (International Taxation) एक कानूनी ढांचा है, जो यह तय करता है कि दो या अधिक देशों में व्यापार करने वाले व्यक्तियों और कंपनियों को कर किस प्रकार देना होगा।

अंतर्राष्ट्रीय कराधान का महत्व:

  1. दोहरा कराधान से बचाव (Avoidance of Double Taxation):
    • जब एक ही आय पर दो देशों में कर लगाया जाता है, तो इसे रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कर संधियाँ बनाई जाती हैं।
  2. विदेशी निवेश को बढ़ावा (Encouragement of Foreign Investment):
    • उचित कर नीतियाँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करती हैं।
  3. वैश्विक कर अनुपालन (Global Tax Compliance):
    • यह सुनिश्चित करता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ और व्यक्ति कर नियमों का पालन करें।
  4. कर चोरी और कर अपवंचन पर रोक (Prevention of Tax Evasion & Avoidance):
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से टैक्स हेवन (Tax Havens) और अन्य कर बचाव तकनीकों को नियंत्रित किया जाता है।

निष्कर्ष:

अंतर्राष्ट्रीय कराधान वैश्विक अर्थव्यवस्था में न्यायसंगत कर प्रणाली सुनिश्चित करता है और कर अपवंचन को रोकता है।


प्रश्न 2: दोहरे कराधान से बचाव की संधि (DTAA) क्या है? इसके लाभ समझाइए।

उत्तर:

परिचय:

दोहरा कराधान बचाव संधि (Double Taxation Avoidance Agreement – DTAA) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो यह तय करता है कि व्यक्ति या कंपनी को दो देशों में एक ही आय पर दो बार कर न देना पड़े।

DTAA के लाभ:

  1. कर की बचत (Tax Savings):
    • व्यक्ति और कंपनियों को दो बार कर देने से बचाया जाता है।
  2. विदेशी निवेश को प्रोत्साहन (Encouragement of Foreign Investment):
    • व्यापारियों और कंपनियों के लिए कर में राहत होने से विदेशी निवेश बढ़ता है।
  3. कर अनुपालन में सुधार (Better Tax Compliance):
    • जब कर प्रणाली सरल होती है, तो लोग कर नियमों का पालन अधिक करते हैं।
  4. काले धन पर रोक (Prevention of Black Money):
    • पारदर्शिता से टैक्स हेवन का दुरुपयोग कम होता है।

निष्कर्ष:

DTAA दो देशों के बीच कर विवादों को कम करने और निवेश को बढ़ाने में मदद करता है।


प्रश्न 3: टैक्स हेवन (Tax Haven) क्या होता है? यह अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली को कैसे प्रभावित करता है?

उत्तर:

परिचय:

टैक्स हेवन (Tax Haven) वे देश होते हैं, जहाँ बहुत कम या शून्य कर दर होती है और गोपनीयता कड़े नियमों द्वारा सुरक्षित होती है।

टैक्स हेवन की विशेषताएँ:

  1. कम या कोई प्रत्यक्ष कर नहीं (Low or Zero Tax):
    • आयकर, पूँजीगत लाभ कर आदि नहीं लगाया जाता।
  2. गोपनीयता (Secrecy):
    • बैंकिंग और वित्तीय लेन-देन की उच्च गोपनीयता होती है।
  3. विदेशी निवेश की सुविधा (Ease of Foreign Investment):
    • कंपनियाँ वहाँ अपनी सहायक कंपनियाँ बनाकर कर बचाती हैं।

टैक्स हेवन का प्रभाव:

  1. वैश्विक कर राजस्व की हानि (Loss of Global Tax Revenue):
    • सरकारों को भारी कर हानि होती है।
  2. कर अपवंचन (Tax Avoidance) और कर चोरी (Tax Evasion):
    • बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ और धनी व्यक्ति अपनी संपत्ति छिपाते हैं।
  3. अवैध वित्तीय गतिविधियाँ:
    • कई बार टैक्स हेवन का उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग के लिए भी किया जाता है।

निष्कर्ष:

टैक्स हेवन वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बन गए हैं और इनके नियमन के लिए G20 तथा OECD जैसे संगठन प्रयासरत हैं।


प्रश्न 4: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) कर योजना (Tax Planning) कैसे करती हैं?

उत्तर:

परिचय:

बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) कर की देनदारी कम करने के लिए कई कर योजना तकनीकों का उपयोग करती हैं।

प्रमुख कर योजना तकनीकें:

  1. स्थानांतरण मूल्य निर्धारण (Transfer Pricing):
    • कंपनियाँ अपनी सहायक कंपनियों के बीच माल और सेवाओं के दाम इस तरह तय करती हैं कि कर बचत हो।
  2. टैक्स हेवन में सहायक कंपनियाँ खोलना:
    • कर दर कम करने के लिए टैक्स हेवन देशों में कंपनियाँ बनाई जाती हैं।
  3. रॉयल्टी और सेवा शुल्क का दुरुपयोग:
    • MNCs अपनी कंपनियों के बीच उच्च रॉयल्टी और सेवा शुल्क लगाकर मुनाफा स्थानांतरित करती हैं।

निष्कर्ष:

MNCs कर योजना के माध्यम से कम कर भुगतान करती हैं, जिसे नियंत्रित करने के लिए BEPS (Base Erosion and Profit Shifting) जैसी नीतियाँ बनाई गई हैं।


प्रश्न 5: OECD द्वारा प्रस्तावित BEPS (Base Erosion and Profit Shifting) पहल क्या है?

उत्तर:

परिचय:

BEPS (Base Erosion and Profit Shifting) OECD द्वारा प्रस्तावित एक वैश्विक पहल है, जिसका उद्देश्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कर अपवंचन को रोकना है।

BEPS के मुख्य लक्ष्य:

  1. टैक्स हेवन के दुरुपयोग पर रोक।
  2. स्थानांतरण मूल्य निर्धारण (Transfer Pricing) के नियमों को मजबूत बनाना।
  3. MNCs को पारदर्शी कर रिपोर्टिंग के लिए बाध्य करना।

निष्कर्ष:

BEPS वैश्विक कर प्रणाली को निष्पक्ष बनाने में मदद कर रहा है, जिससे सभी देशों को उचित कर राजस्व प्राप्त हो।


प्रश्न 6: भारत में अंतर्राष्ट्रीय कराधान को नियंत्रित करने के लिए क्या कानून और प्रावधान हैं?

उत्तर:

भारत में अंतर्राष्ट्रीय कराधान को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित प्रावधान हैं:

  1. आयकर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act, 1961):
    • अंतर्राष्ट्रीय कराधान से जुड़े कई प्रावधान इसमें शामिल हैं।
  2. मिनिमम अल्टरनेटिव टैक्स (MAT):
    • कंपनियों को न्यूनतम कर चुकाने के लिए बाध्य करता है।
  3. स्थानांतरण मूल्य निर्धारण (Transfer Pricing) नियम:
    • कंपनियों को अपनी लेन-देन रिपोर्टिंग करनी होती है।
  4. GAAR (General Anti-Avoidance Rules):
    • कर बचाव की योजनाओं की समीक्षा कर उन्हें रोकता है।

निष्कर्ष:

भारत अंतर्राष्ट्रीय कर कानूनों का पालन करता है और कर अपवंचन को रोकने के लिए मजबूत नियम लागू कर रहा है।


प्रश्न 7: स्थायी प्रतिष्ठान (Permanent Establishment – PE) क्या है? अंतर्राष्ट्रीय कराधान में इसका क्या महत्व है?

उत्तर:

परिचय:

स्थायी प्रतिष्ठान (Permanent Establishment – PE) एक अंतर्राष्ट्रीय कर अवधारणा है, जिसका अर्थ है कि यदि किसी विदेशी कंपनी की किसी अन्य देश में एक महत्वपूर्ण और स्थायी उपस्थिति (स्थायी व्यवसाय) है, तो उस देश में उसकी आय पर कर लगाया जाएगा।

PE के प्रकार:

  1. स्थायी कार्यालय (Fixed Place PE):
    • यदि कोई विदेशी कंपनी किसी देश में कार्यालय, शाखा, कारखाना, गोदाम या कार्यस्थल संचालित करती है, तो इसे PE माना जाएगा।
  2. एजेंट PE (Agency PE):
    • यदि किसी देश में कोई व्यक्ति किसी विदेशी कंपनी की ओर से अनुबंध करने का अधिकार रखता है, तो उसे भी PE माना जाएगा।
  3. निर्माण PE (Construction PE):
    • यदि किसी विदेशी कंपनी का कोई निर्माण कार्य, स्थापना या परियोजना किसी देश में एक निश्चित समय (जैसे 6 महीने) से अधिक चलता है, तो इसे PE माना जाएगा।
  4. सेवा PE (Service PE):
    • यदि कोई विदेशी कंपनी किसी देश में कर्मचारियों या एजेंट्स के माध्यम से सेवाएँ प्रदान करती है, तो इसे भी PE माना जा सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय कराधान में PE का महत्व:

  1. कर देनदारी निर्धारण:
    • यदि किसी विदेशी कंपनी की किसी देश में PE स्थापित होती है, तो उस देश को कंपनी की आय पर कर लगाने का अधिकार होता है।
  2. दोहरा कराधान बचाव संधि (DTAA) का प्रभाव:
    • कई देशों की DTAA में यह निर्धारित होता है कि किसी कंपनी की स्थायी प्रतिष्ठान है या नहीं, और इस आधार पर कर लगाया जाता है।
  3. टैक्स प्लानिंग और अनुपालन:
    • कंपनियाँ PE से बचने के लिए विभिन्न कर योजना तकनीकों का उपयोग करती हैं, लेकिन कर प्रशासन इसे नियंत्रित करने के लिए GAAR और BEPS जैसे उपाय लागू करता है।

निष्कर्ष:

स्थायी प्रतिष्ठान (PE) की परिभाषा अंतर्राष्ट्रीय कराधान में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह किसी विदेशी कंपनी के कर देनदारी को निर्धारित करता है।


प्रश्न 8: GAAR (General Anti-Avoidance Rules) क्या है? यह अंतर्राष्ट्रीय कराधान में क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर:

परिचय:

GAAR (General Anti-Avoidance Rules) एक कानूनी ढांचा है, जिसका उद्देश्य कर अपवंचन (Tax Avoidance) को रोकना है। यह नियम उन कंपनियों और व्यक्तियों पर लागू होता है, जो कर से बचने के लिए जटिल कर योजना का उपयोग करते हैं।

GAAR के प्रमुख प्रावधान:

  1. “मुख्य उद्देश्य” परीक्षण:
    • यदि किसी कर योजना का मुख्य उद्देश्य कर बचाना है और इसका कोई व्यावसायिक औचित्य नहीं है, तो इसे कर अपवंचन माना जाएगा।
  2. राउंड ट्रिपिंग पर रोक:
    • कंपनियाँ अपने पैसे को टैक्स हेवन में भेजकर फिर निवेश के रूप में वापस लाती हैं, जिससे वे कर से बचती हैं। GAAR इसे रोकता है।
  3. अनुचित कर लाभ को अस्वीकार करना:
    • यदि किसी करदाता को किसी कानूनी प्रावधान का अनुचित लाभ मिलता है, तो GAAR के तहत इसे अस्वीकार किया जा सकता है।
  4. BEPS और OECD मानकों के साथ तालमेल:
    • GAAR अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया गया है, ताकि कंपनियाँ कर चोरी न कर सकें।

GAAR का महत्व:

  1. कर अपवंचन पर रोक:
    • यह सुनिश्चित करता है कि कंपनियाँ कानूनी खामियों का दुरुपयोग न करें।
  2. वैश्विक कर अनुपालन में सुधार:
    • यह अंतर्राष्ट्रीय कर नियमों के पालन को सुनिश्चित करता है।
  3. सरकार के कर राजस्व में वृद्धि:
    • कर की हानि को रोककर सरकार के राजस्व में वृद्धि होती है।

निष्कर्ष:

GAAR एक प्रभावी कर प्रशासन उपकरण है, जो कर योजना के दुरुपयोग को रोकता है और कर प्रणाली की निष्पक्षता सुनिश्चित करता है।


प्रश्न 9: OECD का बहुपक्षीय कर संधि (Multilateral Instrument – MLI) क्या है?

उत्तर:

परिचय:

बहुपक्षीय कर संधि (Multilateral Instrument – MLI) एक अंतर्राष्ट्रीय कर समझौता है, जिसे OECD और G20 देशों द्वारा BEPS को रोकने के लिए विकसित किया गया है।

MLI के उद्देश्य:

  1. BEPS नियमों का प्रभावी कार्यान्वयन:
    • यह टैक्स हेवन, ट्रांसफर प्राइसिंग और अन्य कर अपवंचन उपायों पर रोक लगाता है।
  2. दोहरा कराधान संधियों में संशोधन:
    • यह विभिन्न देशों की मौजूदा DTAA संधियों में संशोधन कर BEPS नियमों को प्रभावी बनाता है।
  3. कर प्रशासन को मजबूत बनाना:
    • यह अंतर्राष्ट्रीय कर मामलों में पारदर्शिता और सहयोग को बढ़ाता है।

MLI का प्रभाव:

  1. 200 से अधिक दोहरे कर संधियों पर प्रभाव:
    • दुनिया के कई देशों ने MLI को स्वीकार किया है, जिससे वैश्विक कर प्रणाली मजबूत हुई है।
  2. कर संधियों के दुरुपयोग पर रोक:
    • MLI कर योजना के अनुचित उपयोग को रोकता है।
  3. निवेश की पारदर्शिता:
    • यह सुनिश्चित करता है कि निवेश केवल कर बचाने के उद्देश्य से न किया जाए।

निष्कर्ष:

MLI कर संधियों को अधिक प्रभावी और निष्पक्ष बनाता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली मजबूत होती है।


प्रश्न 10: डिजिटल अर्थव्यवस्था पर कराधान (Taxation of Digital Economy) से क्या आशय है?

उत्तर:

परिचय:

डिजिटल अर्थव्यवस्था पर कराधान (Taxation of Digital Economy) एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय कर विषय है, क्योंकि Google, Facebook, Amazon जैसी डिजिटल कंपनियाँ कई देशों में सेवाएँ प्रदान करती हैं, लेकिन वहाँ कर नहीं देतीं।

डिजिटल अर्थव्यवस्था पर कर लगाने की चुनौतियाँ:

  1. स्थायी प्रतिष्ठान (PE) की परिभाषा:
    • डिजिटल कंपनियाँ बिना किसी भौतिक उपस्थिति के सेवाएँ प्रदान करती हैं, जिससे उन पर कर लगाना कठिन हो जाता है।
  2. स्थानांतरण मूल्य निर्धारण (Transfer Pricing) के मुद्दे:
    • डिजिटल कंपनियाँ अपने मुनाफे को टैक्स हेवन देशों में स्थानांतरित कर लेती हैं।
  3. डेटा का मुद्रीकरण:
    • डिजिटल कंपनियाँ उपयोगकर्ताओं के डेटा से आय अर्जित करती हैं, लेकिन इसे पारंपरिक कर नियमों में शामिल नहीं किया गया है।

डिजिटल कर समाधान:

  1. समानिकरण कर (Equalisation Levy):
    • भारत जैसे देशों ने डिजिटल सेवाओं पर कर लगाने के लिए यह लागू किया है।
  2. OECD का वैश्विक न्यूनतम कर प्रस्ताव:
    • डिजिटल कंपनियों पर न्यूनतम वैश्विक कर लगाने की योजना बनाई गई है।

निष्कर्ष:

डिजिटल अर्थव्यवस्था पर कराधान आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है, ताकि डिजिटल कंपनियाँ भी उचित कर भुगतान करें।


प्रश्न 11: दोहरे कराधान से बचाव की संधि (Double Taxation Avoidance Agreement – DTAA) क्या है? यह कैसे काम करता है?

उत्तर:

परिचय:

दोहरा कराधान (Double Taxation) एक ऐसी स्थिति है, जहां एक ही आय पर दो देशों में कर लगाया जाता है। इसे रोकने के लिए देश आपस में दोहरा कराधान से बचाव की संधि (DTAA) करते हैं।

DTAA के प्रकार:

  1. छूट विधि (Exemption Method):
    • एक देश अपने नागरिक की आय पर कर नहीं लगाता, यदि उस पर पहले ही दूसरे देश में कर लगाया गया है।
  2. कर साख विधि (Tax Credit Method):
    • यदि कोई व्यक्ति दूसरे देश में कर चुका है, तो उसके अपने देश में उसे कर रियायत (Tax Credit) दी जाती है।

DTAA के लाभ:

  1. दोहरी कर देनदारी से बचाव:
    • यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति या कंपनियों को दो देशों में एक ही आय पर कर न देना पड़े।
  2. निवेश को बढ़ावा:
    • यह निवेशकों और व्यवसायों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में मदद करता है।
  3. कर चोरी पर रोक:
    • यह सुनिश्चित करता है कि करदाता अपनी आय को टैक्स हेवन देशों में छुपाकर कर चोरी न करें।

निष्कर्ष:

DTAA वैश्विक व्यापार और निवेश को सुगम बनाता है और दोहरे कराधान की समस्या को हल करता है।


प्रश्न 12: स्रोत पर कर कटौती (Withholding Tax) क्या है? यह अंतर्राष्ट्रीय कराधान में कैसे कार्य करता है?

उत्तर:

परिचय:

स्रोत पर कर कटौती (Withholding Tax) वह कर है, जो किसी देश में भुगतान किए जाने से पहले ही सरकार द्वारा काट लिया जाता है।

Withholding Tax के उदाहरण:

  1. विदेशी कंपनियों को भुगतान:
    • यदि कोई भारतीय कंपनी किसी विदेशी कंपनी को रॉयल्टी या सेवाओं के लिए भुगतान करती है, तो वह पहले ही कुछ प्रतिशत कर काटकर सरकार को जमा कर देगी।
  2. डिविडेंड पर कर:
    • जब कोई कंपनी अपने शेयरधारकों को डिविडेंड देती है, तो वह पहले ही कर काट सकती है।

अंतर्राष्ट्रीय कराधान में महत्व:

  1. सरकार को पहले से कर संग्रह करने में मदद:
    • यह सुनिश्चित करता है कि करदाता सरकार को कर भुगतान करने से बच न सकें।
  2. विदेशी कंपनियों पर कर नियंत्रण:
    • यदि कोई विदेशी कंपनी किसी देश से आय अर्जित कर रही है, तो उस पर पहले ही कर लगा दिया जाता है।

निष्कर्ष:

Withholding Tax सरकारों को कर संग्रह की गारंटी देता है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कर अनुपालन सुनिश्चित करता है।


प्रश्न 13: कर अपवंचन (Tax Evasion) और कर से बचाव (Tax Avoidance) में क्या अंतर है?

उत्तर:

परिचय:

कर अपवंचन (Tax Evasion) और कर से बचाव (Tax Avoidance) दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं, जिनका उपयोग कर देनदारी को कम करने के लिए किया जाता है।

मुख्य अंतर:

  1. कर अपवंचन (Tax Evasion) गैरकानूनी है:
    • इसमें गलत जानकारी देना, आय छुपाना, जाली बिल बनाना आदि शामिल हैं।
  2. कर से बचाव (Tax Avoidance) कानूनी है:
    • इसमें कर छूट (Tax Exemptions) और अन्य कर योजनाओं का उपयोग किया जाता है।
  3. Tax Evasion पर दंड लगता है:
    • यदि कोई व्यक्ति कर अपवंचन करता है, तो उसे जुर्माना या जेल हो सकती है।

निष्कर्ष:

Tax Evasion अवैध है, जबकि Tax Avoidance एक कानूनी तरीका है, जिसका उपयोग कंपनियाँ और व्यक्ति कर बचाने के लिए करते हैं।


प्रश्न 14: कर हेवन (Tax Haven) क्या है? अंतर्राष्ट्रीय कराधान में इसका क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर:

परिचय:

Tax Haven ऐसे देश होते हैं, जहां कर दरें बहुत कम होती हैं और वित्तीय गोपनीयता दी जाती है।

प्रमुख Tax Haven देश:

  1. केमैन आइलैंड्स
  2. स्विट्जरलैंड
  3. पनामा
  4. बहामास

Tax Haven का प्रभाव:

  1. कंपनियाँ कर बचाने के लिए यहाँ निवेश करती हैं:
    • बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने मुनाफे को Tax Haven देशों में ट्रांसफर कर देती हैं।
  2. BEPS को बढ़ावा मिलता है:
    • कर योजना का दुरुपयोग बढ़ जाता है।

निष्कर्ष:

Tax Haven देशों के कारण सरकारों को भारी कर हानि होती है, इसलिए कई अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के तहत इनपर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा है।


प्रश्न 15: OECD का BEPS (Base Erosion and Profit Shifting) क्या है?

उत्तर:

परिचय:

BEPS एक अंतर्राष्ट्रीय कर नीति है, जिसका उद्देश्य कंपनियों द्वारा कर चोरी को रोकना है।

BEPS के मुख्य उद्देश्य:

  1. Tax Haven के दुरुपयोग को रोकना।
  2. Transfer Pricing नियमों को सख्त बनाना।
  3. GAAR को मजबूत करना।

BEPS का प्रभाव:

  1. अंतर्राष्ट्रीय कर अनुपालन में सुधार हुआ।
  2. कई देशों ने डिजिटल कर लगाए।

निष्कर्ष:

BEPS कंपनियों की कर योजना पर अंकुश लगाकर सरकारों के राजस्व की सुरक्षा करता है।


प्रश्न 16 से 20:

16. ट्रांसफर प्राइसिंग (Transfer Pricing) क्या है? यह अंतर्राष्ट्रीय कराधान में क्यों महत्वपूर्ण है?

→ Transfer Pricing वह प्रक्रिया है, जिसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने विभिन्न शाखाओं के बीच माल और सेवाओं की कीमतें निर्धारित करती हैं।

17. इक्वलाइजेशन लेवी (Equalization Levy) क्या है?

→ Equalization Levy एक डिजिटल टैक्स है, जो भारत में Google, Facebook जैसी विदेशी डिजिटल कंपनियों की आय पर लगाया जाता है।

18. ग्लोबल मिनिमम टैक्स (Global Minimum Tax) क्या है?

→ यह OECD द्वारा प्रस्तावित 15% न्यूनतम कर दर है, जिससे कंपनियाँ Tax Haven का लाभ न उठा सकें।

19. Pillar 1 और Pillar 2 नियम क्या हैं?

→ Pillar 1 यह सुनिश्चित करता है कि डिजिटल कंपनियाँ उन देशों में कर दें, जहां वे सेवाएँ देती हैं। Pillar 2 15% न्यूनतम कर को लागू करता है।

20. अंतर्राष्ट्रीय कर प्रशासन (International Tax Administration) कैसे कार्य करता है?

→ यह विभिन्न देशों के कर विभागों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान, कर संधियों और नियमों के तहत कार्य करता है।


निष्कर्ष:

अंतर्राष्ट्रीय कराधान एक जटिल विषय है, लेकिन DTAA, BEPS, GAAR और Withholding Tax जैसे नियम इसे अधिक पारदर्शी बनाते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय कर कानून (International Taxation) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर (21 से 25) – लॉन्ग टाइप


प्रश्न 21: सामान्य कर चोरी विरोधी नियम (General Anti-Avoidance Rules – GAAR) क्या है? इसका अंतर्राष्ट्रीय कराधान में क्या महत्व है?

उत्तर:

परिचय:

GAAR (General Anti-Avoidance Rules) वे नियम हैं, जो आक्रामक कर योजना (Aggressive Tax Planning) को रोकने के लिए लागू किए जाते हैं।

GAAR के प्रमुख उद्देश्य:

  1. कर चोरी को रोकना:
    • GAAR करदाताओं द्वारा जटिल कर संरचनाओं के माध्यम से कर बचाने के प्रयासों को अवैध घोषित कर सकता है।
  2. BEPS पर नियंत्रण:
    • कंपनियाँ कृत्रिम रूप से मुनाफे को एक देश से दूसरे देश में ट्रांसफर न कर सकें।
  3. कर न्यायसंगत बनाना:
    • यह सुनिश्चित करता है कि सभी करदाता अपनी उचित कर देनदारी अदा करें।

GAAR का अंतर्राष्ट्रीय कराधान में प्रभाव:

  1. Multinational कंपनियों की कर चोरी पर रोक:
    • यह उन कंपनियों को रोकता है, जो कर बचाने के लिए फर्जी लेन-देन करते हैं।
  2. कर नियामकों को अधिक शक्ति:
    • सरकारें संदिग्ध कर योजनाओं की जांच कर सकती हैं।
  3. टैक्स हेवन पर प्रभाव:
    • कंपनियों द्वारा Tax Haven का दुरुपयोग करने पर नियंत्रण होता है।

निष्कर्ष:

GAAR अंतर्राष्ट्रीय कर कानून में एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो कर बचाव और कर अपवंचन के अंतर को स्पष्ट करता है और कर प्रणाली को निष्पक्ष बनाता है।


प्रश्न 22: डिजिटल सेवा कर (Digital Services Tax – DST) क्या है? यह अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली को कैसे प्रभावित करता है?

उत्तर:

परिचय:

Digital Services Tax (DST) एक विशेष कर है, जो डिजिटल कंपनियों की सेवाओं पर लगाया जाता है।

DST क्यों लागू किया गया?

  1. Google, Facebook, Amazon जैसी कंपनियाँ कई देशों में सेवाएँ देती हैं, लेकिन वे वहाँ कर नहीं चुकातीं।
  2. पारंपरिक कर प्रणाली केवल भौतिक उपस्थिति (Physical Presence) पर आधारित थी, जबकि डिजिटल कंपनियों की भौतिक उपस्थिति कई देशों में नहीं होती।

DST का प्रभाव:

  1. डिजिटल कंपनियों की कर देनदारी बढ़ी।
  2. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विवाद:
    • अमेरिका ने कई देशों पर व्यापार प्रतिबंध लगाने की धमकी दी, क्योंकि अमेरिकी कंपनियाँ इससे प्रभावित होती हैं।
  3. BEPS और GAAR को मजबूत किया।

निष्कर्ष:

DST ने अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली में डिजिटल इकॉनमी को शामिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।


प्रश्न 23: स्थायी प्रतिष्ठान (Permanent Establishment – PE) क्या है? यह अंतर्राष्ट्रीय कराधान में क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर:

परिचय:

Permanent Establishment (PE) का अर्थ है कि यदि किसी विदेशी कंपनी की किसी देश में पर्याप्त व्यावसायिक उपस्थिति है, तो उस देश को उस कंपनी की आय पर कर लगाने का अधिकार होगा।

PE के प्रकार:

  1. Fixed Place PE:
    • यदि कोई कंपनी किसी देश में एक स्थायी कार्यालय, शाखा, कारखाना आदि चलाती है।
  2. Agency PE:
    • यदि कोई स्थानीय एजेंट नियमित रूप से किसी विदेशी कंपनी की ओर से व्यापार करता है।
  3. Service PE:
    • यदि कोई विदेशी कंपनी किसी देश में 6 महीने से अधिक समय तक सेवाएँ प्रदान कर रही है।

PE का महत्व:

  1. अंतर्राष्ट्रीय कर संधियों में यह एक प्रमुख मानदंड है।
  2. यह कराधान को अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाता है।
  3. कर चोरी की संभावनाएँ कम होती हैं।

निष्कर्ष:

PE की अवधारणा अंतर्राष्ट्रीय कराधान में कंपनियों की कर देनदारी को निर्धारित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।


प्रश्न 24: आउटबाउंड और इनबाउंड कराधान (Outbound & Inbound Taxation) क्या होता है?

उत्तर:

परिचय:

Outbound Taxation और Inbound Taxation दो अलग-अलग तरीके हैं, जिनसे सरकारें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कर वसूलती हैं।

1. आउटबाउंड कराधान (Outbound Taxation):

  • जब एक देश की कंपनियाँ या व्यक्ति विदेशों में आय अर्जित करते हैं, तो उनके कराधान को Outbound Taxation कहते हैं।
  • उदाहरण: भारतीय कंपनी यदि अमेरिका में व्यापार करती है, तो भारत में उसके लाभ पर कर लगाया जा सकता है।

2. इनबाउंड कराधान (Inbound Taxation):

  • जब किसी विदेशी देश की कंपनियाँ या व्यक्ति किसी देश में आय अर्जित करते हैं, तो उनके कराधान को Inbound Taxation कहते हैं।
  • उदाहरण: यदि एक अमेरिकी कंपनी भारत में व्यवसाय कर रही है, तो भारत सरकार को कर लगाने का अधिकार होगा।

Outbound और Inbound Taxation का महत्व:

  1. सरकारें अंतर्राष्ट्रीय कर संधियों के आधार पर कर लगाती हैं।
  2. Transfer Pricing और BEPS जैसी समस्याओं को नियंत्रित किया जाता है।
  3. यह कंपनियों को कानूनी कर नियोजन (Tax Planning) में मदद करता है।

निष्कर्ष:

Outbound और Inbound Taxation कंपनियों और व्यक्तियों की वैश्विक आय पर कर लगाने की महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं।


प्रश्न 25: टैक्स इंफॉर्मेशन एक्सचेंज एग्रीमेंट (Tax Information Exchange Agreement – TIEA) क्या है?

उत्तर:

परिचय:

Tax Information Exchange Agreement (TIEA) एक समझौता है, जिसके तहत देश आपस में कर संबंधित जानकारी साझा करते हैं, ताकि कर चोरी और अपवंचन को रोका जा सके।

TIEA के प्रमुख उद्देश्य:

  1. कर चोरी पर नियंत्रण:
    • Tax Haven देशों में छिपाए गए धन का पता लगाया जा सकता है।
  2. अंतर्राष्ट्रीय कर पारदर्शिता:
    • विभिन्न देशों की सरकारें कंपनियों और व्यक्तियों की कर जानकारी आपस में साझा कर सकती हैं।
  3. BEPS और GAAR के अनुपालन को बढ़ावा:
    • यह कर नियमों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर सख्ती करता है।

TIEA के लाभ:

  1. अवैध धन को छुपाने पर रोक।
  2. सरकारों को अधिक कर संग्रह करने में मदद।
  3. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश में पारदर्शिता।

निष्कर्ष:

TIEA वैश्विक कर प्रशासन में सुधार लाने का एक प्रमुख साधन है और इसे G20 और OECD द्वारा समर्थन प्राप्त है।


अंतिम निष्कर्ष:

अंतर्राष्ट्रीय कराधान में DTAA, BEPS, GAAR, PE, TIEA और DST जैसी अवधारणाएँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनका मुख्य उद्देश्य वैश्विक कर प्रणाली को पारदर्शी, निष्पक्ष और प्रभावी बनाना है।

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