Law of trust से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

-: लघु उत्तरीय प्रश्न :-

 प्रश्न 1. साम्यिक अधिकार । Equitable Rights.

उत्तर- साम्यिक अधिकार (Equitable Rights)— साम्यिक अधिकार का प्रचलन अति प्राचीन है। आरम्भ से ही प्रायः प्रत्येक व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का आधिपत्य अपने विश्वासपात्र मित्रों को इस उद्देश्य से सौंपते थे कि उस सम्पत्ति को उनकी इच्छानुसार निर्दिष्ट व्यक्तियों तथा उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयोग करेंगे।

      स्ट्राहन के अनुसार – “साम्यिक अधिकारों का उद्भव तब होता है जब विधि द्वारा किसी व्यक्ति में निहित अधिकार का, साम्य की दृष्टि के अन्तःकरण के अनुसार किसी दूसरे व्यक्ति में निहित होना उचित हो। जहाँ ऐसी स्थिति होती है वहाँ साम्या उस विधिक अधिकार के, उस व्यक्ति को जो अन्तःकरण के अनुसार उसका अधिकारी हो, हस्तान्तरण का प्रयास नहीं करता, वरन् विधिक अधिकार के अधिकारी को यह निदेश करता है कि उसका उपयोग उस व्यक्ति के लाभ के लिये करे जो अन्तःकरण के अनुसार उसका अधिकारी हो।”

प्रश्न 2. साम्या की परिभाषा दीजिए। Define Equity.

उत्तर – साम्या की परिभाषा – ‘साम्या’ शब्द अंग्रेजी के “Equity” का हिन्दी रूपान्तरण है। Equity लैटिन शब्द ‘Acquits’ से लिया गया है। Acquits का अर्थ है- “समान अथवा समतल बनाना। शाब्दिक अर्थों में “साम्या वह है जो किसी मनमानी बात को अथवा न्याय के प्रत्याख्यान को छीलकर एक समान कर देता है।”

     “साम्या, कानून में समानता के कारण उत्पन्न दोषों का सुधार है”- अरस्तू “साम्या नियमों का वह समूह है, जिसका प्रशासन, यदि न्यायतन्त्र अधिनियमित या पारित नहीं होते, आंग्ल न्यायालयों द्वारा किया जाता है एवं जिन्हें साम्या के न्यायालय के नाम से जाना जाता है” – मेटलैण्ड

       निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि साम्या युक्ति अथवा औचित्य के समान है और इसका उद्देश्य समाज की बदलती हुई परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप बनाकर उसको उसकी कठोरता से मुक्त करना है।

प्रश्न 3. सामान्य विधि से आप क्या समझते हैं? What do you understand by Common Law?

उत्तर- सामान्य विधि (Common Law) – सामान्य विधि से अभिप्राय ऐसी विधि से है जो समस्त देश के लिए सामान्य है। यह इंग्लैण्ड की उस विधि का एक भाग मानी जाती है जिसका प्रशासन प्राचीन विधि के न्यायालयों द्वारा किया जाता था। मूलतः सामान्य विधि (Common Law) देश की रूढ़ि, प्रथा, रीति-रिवाजों एवं व्यवहार के नियमों पर आधारित थी। यह एक अलिखित विधि का रूप थी।

      सामान्य विधि (Common Law) की निम्नलिखित कमियों के कारण साम्या का जन्म हुआ – (1) उपचार का अभाव (2) अपर्याप्त अनुतोष, तथा (3) दोषपूर्ण प्रक्रिया।

प्रश्न 4. पुनः परिवर्तन क्या है? What is Reconversion?

उत्तर – पुनः परिवर्तन (Re-conversion)- ‘स्नेल’ के अनुसार पुनः परिवर्तन वह  काल्पनिक क्रिया है जिससे पूर्ववर्ती भावनात्मक परिवर्तन का लोप अथवा उन्मोचन कर दिया जाता है तथा भावनात्मक रूप में परिणिति सम्पत्ति साम्या के विचार में अपने प्रारम्भिक वास्तविक रूप को पुनः प्राप्त करती है। पुनः परिवर्तन की दो रीतियाँ हैं-

(1) पक्षों के क्रिया द्वारा, एवं

(2) विधि के प्रवर्तन द्वारा।

प्रश्न 5. विधिक हित एवं साम्यिक हित में अन्तर कीजिए।Distinguish between the Equitable interest and legal interest.

उत्तर—विधिक तथा साम्यिक हितों में अन्तर—विधिक तथा साम्यिक हितों में प्रमुख अन्तर निम्न हैं-

विधिक हित

(1) विधिक सम्पदा साम्यिक सम्पदा पर अभिभावी होती है। यह इन सूत्रों पर आधारित है कि जहाँ समान साम्या हो, वहाँ विधि अभिभावी होगी।

(2) विधिक हित धारणाधिकार के अधीन होते हैं जैसे- मेहर और राजगमन (escheat) विधिक हितों की प्रसंगतियाँ हैं ।

(3) सामान्य विधि के अन्तर्गत विवाहित स्त्रियों के सम्पत्ति धारण करने के अधिकार अत्यन्त सीमित थे।

(4) व्यक्तिगत सम्पदा में विधिक हित का इस प्रकार का विभाजन नहीं किया जा सकता जिससे विभिन्न स्वामी उत्तरोत्तर उसका उपभोग कर सकें।

साम्यिक हित

(1) जबकि साम्यिक सम्पदा को ऐसी कोई पूर्णता नहीं प्राप्त होती है।

(2) लेकिन साम्यिक हित धारणाधिकार के अधीन नहीं होते।

(3) साम्या विवाहित स्त्रियों को साम्यिक हित धारण करने की अनुमति देता था।

(4) व्यक्तिगत सम्पदा में साम्यिक हित का इस प्रकार विभाजन किया जा सकता है।

प्रश्न 6. मुजराई क्या है? What is set-off.

उत्तर- मुजराई (Set-off) – प्रतिसादन अथवा मुजराई विधि का वह सिद्धान्त है जो प्रतिवादी को किन्हीं परिस्थितियों के अन्तर्गत न्यायालय के समक्ष वादी के विरुद्ध अपना कथन प्रस्तुत करने की अनुमति देता है। यह ऋणों की एक पारस्परिक विमुक्ति (Reciprocal acquital of debts) है। एक प्रकार से धन के लिए प्रतिदावा है जो वादी के दावे को समाप्त भी कर सकता है।

यह दो प्रकार का होता है-

(1) वैध प्रतिसादन (Legal set off) एवं

(2) साम्यिक प्रतिसादन (Equitable set off) ।

प्रश्न 7. न्यास का महत्व क्या है? Importance of Trust.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 में ‘न्यास’ के प्रत्येक पहलुओं के बारे में विस्तृत वर्णन किया गया है जिसके अध्ययन से न्यास के महत्व के बारे में जाना जा सकता है। ‘न्यास’ (Trust) का शाब्दिक अर्थ ‘विश्वास’ से है। न्यास, साम्या का केन्द्रबिन्दु तथा सार है। भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा-3 में न्यास के बारे में यह कहा गया है कि “न्यास सम्पत्ति के स्वामित्व से संलग्न एक ऐसी बाध्यता है जिसका उद्भव स्वामी द्वारा किये गये और उसके द्वारा स्वीकृत अथवा दूसरे के लाभ के लिए या दूसरे और स्वामी के लाभ के लिए उसके द्वारा घोषित तथा स्वीकृत विश्वास से होता है। वह व्यक्ति जो विश्वास करता है या उसे घोषणा करता है ‘भ्यासकर्ता’ कहलाता है। यह व्यक्ति जो विश्वास प्रतिग्रहीत करता है, न्यासधारी कहलाता है, वह व्यक्ति जिसके फायदे के लिए विश्वास प्रतिग्रहीत किया जाता है, हितग्राही कहलाता है।

       न्यास का गठन सदैव विधिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

प्रश्न 8 अभिव्यक्त अथवा घोषित न्यासा Express or Declared Trust.

उत्तर- अभिव्यक्त न्यास (Express Trast)- अभिव्यक्त न्यास (Express Trust) एक ऐसा ज्यास है जो न्यासकर्त्ता द्वारा मौखिक या लिखित रूप से स्पष्ट रूप से सृजित होता है। उदाहरण के लिए- ‘शुभम’, ‘हर्ष’ को सम्पत्ति का हस्तान्तरण इस घोषणा के साथ करता है कि वह इसको आजीवन ‘सौम्यो’ के हित के लिए इसके बाद ‘सौम्या’ के बच्चों के हित के लिए धारण करे, यह एक अभिव्यक्त न्यास है।

प्रश्न 9. (क) खैराती न्यास। Charitable Trust.

(ख) क्या एक कॉलेज के भरम्मत व रख-रखाव के लिए खैराती न्यास का सृजन किया जा सकता है? Whether a charitable trust can be created for repair and maintenance of college?

उत्तर- (क) खैराती न्यास- सामान्यतः खैराती अथवा धर्मार्थ न्यास एक ऐसा न्यास है जो जन साधारण या जनता के किसी विशिष्ट वर्ग के एक बड़े भाग के लाभ के लिए होता है एवं जिसका उद्देश्य परोपकार होता है।

       कमिश्नर ऑफ इन्कम टैक्स बनाम पेमसैल 1891 ए० सो० 53 के मामले में लाई मैकनाटन ने खाती न्यास के महत्वपूर्ण उद्देश्यों के बारे में जो इस प्रकार है-

(1)नों की सहायता के लिए न्यास,

(2) शिक्षा की उन्नति के लिए न्यास्

(3) धर्म के प्रचार के लिए न्यास एवं

(4) जन-कल्याण के लिए न्यास।

      इन्हीं महत्वपूर्ण उद्देश्यों के लिए खैराती न्यास का गठन किया जाता है।

उत्तर (ख ) – सामान्यत: खैराती न्यास एक ऐसा न्यास है जो जनसाधारण या जनता के किसी विशिष्ट वर्ग के एक बड़े भाग के लाभ के लिए होता है एवं जिसका प्रयोजन परोपकार होता है।

शिक्षा की उन्नति के लिए जैसे विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं अन्य शैक्षणिक संस्थाओं को दिया जाने वाला दान भी खैरात माना जाता है। यह एक अत्यन्त व्यापक अर्थ रखने वाला शब्द है, जिसमें शैक्षणिक महत्व रखने वाले अनेक प्रकार के कार्य शामिल हैं।

     कीटन के अनुसार – न्यायालयों ने शब्द खैराती की अत्यन्त उदार व्याख्या करते हुए जनसाधारण के लाभ के लिए शैक्षणिक उद्देश्यों की पूर्ति एवं विकास हेतु किये जाने वाले दानों को भी इस श्रेणी में रखा है।

     इस प्रकार विद्यालयों एवं महाविद्यालयों तथा अन्य शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना तथा उनकी सहायता के लिए किया जाने वाला दान खैराती माना गया है।

    महाविद्यालयों में प्रवक्तागण की नियुक्ति, छात्रवृत्ति, निबन्धनों के लिए पुरस्कार तथा अन्य शैक्षणिक पुरस्कारों के लिए दिया जाने वाला दान भी इस श्रेणी में माना जायेगा।

      एक कालेज को मरम्मत व रख-रखाव आदि के लिए खरौती न्यास का सृजन किया जा सकता है।।

प्रश्न 10. न्यासधारी की नियुक्ति। Appointment of Trustee.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा-19 के अनुसार सामान्यतः सम्पत्ति धारण करने के लिए सक्षम प्रत्येक व्यक्ति न्यासधारी हो सकेगा। परन्तु यदि न्यासधारी को न्यास का निष्पादन अपने विवेक के आधार पर करना है तो उसके लिए आवश्यक है कि संविदा करने के लिए सक्षम हो। यद्यपि न्यास अधिनियम में, संविदा करने के लिए कौन व्यक्ति सक्षम होगा, इसके विषय में कोई उल्लेख नहीं किया गया है फिर भी भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा-11 के उपबंध इस पर लागू होंगे। इस धारा के अनुसार, जो व्यक्ति वयस्क एवं स्वस्थचित है, संविदा करने के लिए सक्षम माना गया है।

     लेविन महोदय के अनुसार न्यासधारी बनने वाले व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है। कि वह न्यास के लिए घोषित सम्पत्ति को धारण करने के लिए सक्षम हो, वह किसी भी विधिक या प्राकृतिक अयोग्यता के अधीन नहीं हो, वह व्यापार का ज्ञान एवं निर्णय लेने की क्षमता रखता हो। नरसिंह चरन बनाम राधाकान्त, (1850) LL.T Curt. 379 के बाद में अभिनिर्धारित किया गया कि एक ही व्यक्ति न्यासधारी एवं हितग्राही दोनों हो सकता है। विवाहित स्त्रियाँ, निगम आदि भी न्यासधारी हो सकते हैं लेकिन समुद्र के पार का अधिवासी, विदेशवासी शत्रु हितग्राही के प्रतिकूलहित धारण करने वाला व्यक्ति, दिवालिया एवं अवयस्क आदि न्यासधारी नहीं हो सकते।

प्रश्न 11. निष्पक्ष रहने का न्यासधारी का कर्तव्य । Duty of the trustee to be impartial.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा-17 के अनुसार जहाँ एक से अधिक हितग्राही हों, वहाँ न्यासधारी को निष्पक्ष रहते हुए सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना चाहिए। वह न्यास का निष्पादन इस रीति से नहीं कर सकता कि उससे किसी एक हितग्राही को लाभ हो तथा दूसरे को हानि हो।

      टैगोर लॉ लेक्चर्स में यह मह व्यक्त किया गया कि न्यासधारी न्यास के निष्पादन में निष्पक्ष होने के लिए आबद्ध है और उसके लिए यह आवश्यक है कि वह दूसरों को हानि पहुँचाकर एक हितग्राही को लाभ न पहुँचाए। इस प्रकार यह न्यासधारी के प्रमुख कर्तव्यों में से एक है कि उसे पूर्णत: निष्पक्ष रहते हुए न्यास का निष्पादन करना चाहिए।

प्रश्न 12. न्यासधारी को न्यायालय से निर्देश प्राप्त करने का अधिकार। Right of the trustee to seek direction from the Court.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा-34 न्यासधारी को न्यास सम्पत्ति के प्रबन्ध के बारे में न्यायालय से राय, मन्त्रणा या निर्देश प्राप्त करने के लिए आवेदन करने का अधिकार प्रदान करती है।

     न्यासधारी को ऐसा करने के लिए नियमित वाद दायर करने की आवश्यकता नहीं होती है और व्यवहार न्यायालय में याचिका द्वारा ऐसा आवेदन कर सकता है।

     परन्तु वहाँ न्यासंधारी को नियमित वाद दायर करना होगा जहाँ न्यास सम्पत्ति के प्रबन्धार्थं कठिन, विस्तृत या महत्वपूर्ण प्रश्न सम्बन्धित है। इन रि मो० हासिम गजधर, A. I. R. 1954 सिन्ध 81 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि न्यायालय न्यासधारी को वहाँ राय, मन्त्रणा या निर्देश प्रदान करेगा जहाँ उसने एक बार राय, मन्त्रणा या निर्देश लेने के बाद उनकी उपेक्षा करके दुबारा न्यायालय से राय, मन्त्रणा या निर्देश के लिए आवेदन किया हो।

      अशोक कुमार कपूर बनाम अशोक खन्ना, A. I. R., 2007N. O. C. 85 कलकत्ता के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि धारा-35 के अंतर्गत पक्षकारों के अधिकारों का अंतिम रूप से विनिश्चय नहीं किया जाता है, अपितु केवल न्यायालय द्वारा राय अथवा मन्त्रणा दी जाती है।

प्रश्न 13. हितग्राही का न्यास समाप्त करने का अधिकार। Right of the beneficiary to put an end to the trust.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा-56 में हितग्राही के न्यास समाप्त करने के अधिकार के बारे में बताया गया है। धारा-56 के अनुसार यदि केवल एक अथवा कई हितग्राही हैं, तथा वे सभी संविदा करने के लिए सक्षम हैं और किसी निर्योग्यता (जैसे- शिशु, पागल तथा विवाहित स्त्रियाँ) के अन्तर्गत नहीं हैं, तो न्यास लिखत के उपबन्धों के अनुसार न्यास-निष्पादन को अपवर्जित किया जा सकता है तथा न्यास को उपान्तरित अथवा निर्वार्पित (Extinguish) किया जा सकता है।

        इस प्रकार यदि न्यास के रूप में ‘अ’ 13,000 रुपया ‘ब’ के लिए वार्षिक क्रय करने के लिए रिक्थदान करता है और जब ‘ब’ संविदा करने के लिए सक्षम हो जाता है तो ‘ब’ 10,000/- रुपये उनसे माँग सकेगा।

      यदि ‘अ’ कुछ सम्पत्ति ‘ब’ को अन्तरित करता है, और यह निर्देश देता है कि वह ‘उसको ‘स’ के लाभ के लिए विनिहित करे। यदि और जब ‘स’ संविदा करने के लिए सक्षम हो जाता है, सम्पत्ति मौलिक रूप से लेने का निर्वाचन कर सकता है।

      “साम्या के अन्तर्गत हितग्राही एक मात्र और पूर्ण स्वामी होता है और न्यायालय एकमात्र और पूर्ण रूप से अधिकृत व्यक्ति को न्यासधारी के अभिरक्षण तथा व्यतिकरण के अध्यधीन नहीं कर सकता। वास्तव में न्यायालय, न्यासधारी को एक प्रकार का मध्यस्थ मानता है। जिसका पद सराजू को सन्तुलित रूप से धारण करना, और यह देखना है कि विभिन्न व्यक्तियों के अधिकार पारस्परिक रूप से सम्मानित होते हैं। परन्तु जहाँ केवल एक ही व्यक्ति हितग्राही है और वह विधि द्वारा सक्षम होता है, वहाँ न्यासधारी का मुख्य प्रयोजन समाप्त हो जाता है। परिणामस्वरूप हितग्राही स्वयं अन्य व्यक्ति की सम्पदा के विधिक कब्जे में रहने का एकमात्र व्यक्ति होता है।

     हितग्राही न्यास को समाप्त कर सकते हैं, परन्तु वे नया न्यासधारी नियुक्त करने की शक्ति नहीं रखते।

प्रश्न 14. न्यास के प्रतिसंहरण। Revocation of Trust.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा-78 में न्यास के प्रतिसंहरण के बारे में प्रावधान किया गया है। धारा-78 के अर्थों में न्यास निम्न अवस्थाओं में विखण्डित किया जा सकता है-

(1) इच्छापत्रकर्ता की इच्छा पर

(2) हितग्राहियों की सहमति से

(3) न्यासकर्त्ता द्वारा विखण्डन की शक्ति के प्रयोग द्वारा

(4) ऋणों के भुगतान के लिए सृजित न्यास का विखण्डन ।

(1) इच्छापत्रकर्त्ता की इच्छा पर – जहाँ न्यास का सृजन किसी इच्छा पत्र के द्वारा किया गया है, वहाँ न्यास, न्यासकर्त्ता अर्थात् इच्छापत्रकर्त्ता की इच्छा पर कभी भी विखण्डित किया जा सकता है।

(2) हितग्राहियों की सहमति से – जहाँ किसी न्यास का सृजन इच्छापत्र से किया गया है, वहाँ न्यास को सभी हितग्राहियों की पारस्परिक सहमति से विखण्डित किया जा सकता है।

(3) न्यासकर्त्ता द्वारा विखण्डन की शक्ति का प्रयोग – जहाँ न्यास का सृजन इच्छापत्र से अन्यथा किसी विलेख द्वारा किया गया है और न्यासकर्ता अभिव्यक्त रूप से न्यास को विखण्डित करने की शक्ति को अपने पास सुरक्षित रखता है, तो वह कभी भी इस शक्ति का प्रयोग करके न्यास को विखण्डित कर सकेगा।

(4) ऋणों के भुगतान के लिए सृजित न्यास का विखण्डन- जहाँ न्यास का सृजन न्यासकर्ता के ऋणों का भुगतान करने के लिए किया गया हो, वहाँ जब तक ऋणदाताओं को ऐसे न्यास की सूचना नहीं दे दी जाती, तब तक न्यासकर्त्ता उसे अपने इच्छा पर कभी भी विखण्डित कर सकता है।

प्रश्न 15. साम्या का सामान्य विधि से सम्बन्ध । Relation of equity with Common Law.

उत्तर- साम्या का सामान्य विधि से सम्बन्ध- साम्या का सामान्य विधि से सम्बन्ध के बारे में विधिशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न मत प्रकट किये हैं-

      मेटलैण्ड के अनुसार- “मूलतः साम्या, सामान्य विधि के अनुपूरक के रूप में कार्य करता था, प्रतिद्वन्द्वी के रूप में नहीं साम्या का प्रादुर्भाव विधि को नष्ट करने के लिए नहीं, अपितु इसकी पूर्ति के लिए हुआ था। विधि को छोटी से छोटी बात का भी पालन किया जाना आवश्यक था। साम्या केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप करता था, जहाँ सामान्य विधि उपचार प्रदान करने में असफल रहती थी

      लार्ड एल्समियर के अनुसार सामान्य विधि तथा साम्य दोनों का एक ही उद्देश्य है ऐसा कार्य करना जो उचित हो। अधिकांश मामलों में साम्या, विधि का अनुसरण करता है। जहाँ कहीं भी साम्या का सामान्य विधि से विरोध लगता था तो वह विधि की कठोरता को कम करने, उसके दोषों को दूर करने, उसकी कमियों को पूरा करने, वैधिक उपचारों की सहायता करने एवं वैध अधिकारों के दुरुपयोग को रोकने के लिए होता था। यह विभिन्न उपायों से सामान्य विधि की पूर्ति करता था।

      डडले बनाम डडले (1765) 45 E. R.118 के मामले में लार्ड टायबोल्ट ने साम्या एवं सामान्य विधि के बीच सम्बन्धों का उल्लेख करते हुए कहा है-

        “साम्या विधि का कोई भाग नहीं है, वह एक नैतिक गुण है जो विधि की अनम्यता, कठोरता एवं तीव्रता को सीमित करता है और उसमें सुधार करता है, वह एक सार्वभौम सत्य है। वह सामान्य विधि की दोषपूर्ण प्रकिया की अवस्था में सहायता करता है और सामान्य विधि को धोखा देने तथा उससे बचने के लिए निकाली गई नई-नई युक्तियों भ्रान्तियों एवं अपवंचना से उनकी रक्षा करता है जिनके फलस्वरूप सन्देहरहित अधिकार रखने वाले व्यक्ति उपचारविहीन बना दिये जाते हैं।

      साम्या का यही कार्य है कि वह सामान्य विधि का समर्थन करे एवं उसके विरुद्ध निकाली गई नई-नई युक्तियों एवं भ्रान्तियों से उसकी रक्षा करे।”

      इस प्रकार साम्या न तो सामान्य विधि को नष्ट करता है और न ही उसका सृजन करता है, अपितु वह केवल उसकी सहायता करता है।

प्रश्न 16. साम्या विधि का अनुसरण करती है। Equity follows the Law.

उत्तर- इस आधारसूत्र के उद्भव का सिद्धान्त मेटलैण्ड के कथन में निहित है कि साम्या सामान्य विधि के अनुपूरक के रूप में कार्य करता था, प्रतिद्वन्द्वी के रूप में नहीं। साम्या का प्रादुर्भाव विधि को नष्ट करने के लिए नहीं अपितु इसकी पूर्ति के लिए हुआ था। विधि की छोटी से छोटी बात का पालन किया जाना आवश्यक था। सामान्यतः साम्या केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप करता था जहाँ सामान्य विधि उपचार प्रदान करने में असफल रहती थी। मेटलैण्ड के अनुसार – “सामान्य विधि के प्रत्येक शब्द का पालन किया जाना आवश्यक था परन्तु ऐसा सब कुछ किये जाने पर भी कुछ शेष रह सकता है जिसकी साम्या को आवश्यकता हो। साम्या निम्न दो प्रकार से विधि का अनुसरण करती है-

(1) उन सभी मामलों में जिनमें विधि के नियम लागू होते थे, उनको अपना करके एवं पालन करके।

(2) साम्यिक अधिकारों एवं हितों के सम्बन्ध में साम्या विधि के सादृश्यों का अनुसरण करके, यदि ऐसे सादृश्य उपलब्ध हों, विधि के नियमों का अनुसरण करता है, यद्यपि वह ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं है।

प्रश्न 17. तुष्टि या निस्तारण का सिद्धान्त। Satisfaction or Doctrine of Satisfaction.

उत्तर- तुष्टि या निस्तारण का सिद्धान्त, पालन के सिद्धान्त से ही मिलता-जुलता एक साम्यिक सिद्धान्त है। यह सिद्धान्त भी इसी आधार सूत्र पर आधारित है कि- “साम्या दायित्व की पूर्ति का आशय अभ्यारोपित करता है।

      इस सिद्धान्त के अनुसार जहाँ कोई व्यक्ति किसी दायित्व की पूर्ति के लिए किसी कार्य को करने का आशय रखता हो और वह कोई दूसरा कार्य करे जिसे उस दायित्व की पूर्ति समझा जा सके तो उस कार्य को दायित्व की पूर्ति के लिए पर्याप्त समझा जायेगा।

       स्ट्राहन के अनुसार- निस्तारण या तुष्टि से अभिप्राय सम्पत्ति का ऐसा हस्तान्तरण है जो यदि दानग्रहीता द्वारा स्वीकार कर ली जाती है तो विधि की दृष्टि में इसे दावा के पूर्व विधिक दायित्वों का पूर्ण उन्मोचन मान लिया जाता है।

प्रश्न 18 तथ्य की भूल । Mistake of fact.

उत्तर- तथ्य की भूल- तथ्य की भूल क्षम्य होती है और यह बचाव का एक अच्छा आधार हो सकती है। यह निम्न सूत्र पर आधारित होता है-‘Ignoratia facti excusat’ अर्थात इस सूत्र के आधार पर सामान्यतः तथ्य को भूल के अन्तर्गत दिये गये धन को पुनः वसूल किया जा सकता है, लेकिन ऐसी दशा में अनुतोष तभी प्रदान किया जाता है, जब कि भूल सारवान होती है, फिर चाहे वह एकपक्षीय हो या पारस्परिक हो और ऐसी हो जिसकी जानकारी वह पक्षकार उचित सावधानी अथवा जाँच-पड़ताल द्वारा नहीं कर सका था और जिस पक्षकार को ऐसे तथ्य की जानकारी थी, उसका कर्त्तव्य था कि वह उसे बताये।

तथ्य को भूल दो प्रकार की होती है-

(a) मौलिक भूल, तथा

(b) प्रासंगिक अथवा आकस्मिक भूल ।

       उदाहरण के लिए ‘हर्पित ‘ऋषभ’ को एक घोड़ा विशेष के विक्रय करने का करार करता है लेकिन घोड़ा करार के कुछ ही समय पूर्व मर चुका है जिसकी सूचना दोनों पक्षकारों में से किसी को नहीं थी। यह करार शून्य है, क्योंकि यहाँ भूल करार के लिए अत्यन्त जरूरी तथ्य के सम्बन्ध में हुई है।

प्रश्न 19. दुर्घटना। Accident.

उत्तर- दुर्घटना- दुर्घटना का अर्थ संयोग द्वारा एक घटना नहीं है अपितु घटना अनाशयित और अप्रत्याशित होनी चाहिए। दुर्घटना का अर्थ है, सामान्य विवेक से परे कोई. अप्रत्याशित घटना जिसकी हम परिकल्पना न कर सकें या जिसके विरुद्ध हम अपनी सुरक्षा न कर सकें।

       स्टीफेन के अनुसार – “कोई प्रभाव दुर्घटना कहा जाता है जब कि कार्य जिसके द्वारा यह कारित होता है, इसे कारित न करने के आशय से किया जाता है और जब उस कार्य के निष्कर्ष स्वरूप इसका घटित होना इतना सम्भाव्य नहीं है कि एक सामान्य विवेक के व्यक्ति को उन परिस्थितियों जिसके अन्तर्गत इसे किया गया, इसके विरुद्ध उचित सतर्कता बरतनी चाहिए।

      उदाहरण के लिए ‘गोपाल’, एक स्कूल अध्यापक, एक विद्यार्थी को पूर्ण सतर्कता के साथ इस प्रकार सुधारता है ताकि विद्यार्थी को कोई क्षति न पहुँचे। विद्यार्थी की मृत्यु हो जाती है। यहाँ मृत्यु एक दुर्घटना है।

प्रश्न 20. क्या न्यास निर्माता न्यासी हो सकता है? Can a testator be a trustee?

उत्तर – एक न्यास निर्माता स्वयं न्यासी नहीं हो सकता क्योंकि न्यास के लिए न्यासधारी को न्यास – सम्पत्ति हस्तान्तरित किया जाता है। धारा 6 के अनुसार किसी वैध न्यास के सृजन में निम्न तत्वों का होना जरूरी है-

(1) न्यासकर्ता का न्यास निर्मित करने का आशय

(2) न्यास का उद्देश्य

(3) हितग्राही

(4) ज्यास सम्पति, एवं

(5) न्यास – सम्पत्ति का न्यासधारी को हस्तान्तरण ।

प्रश्न 21. न्यासी के न्यास भंग के लिए दायित्व की व्याख्या कीजिए। Discuss the liability of trustee for breach of trust.

उत्तर- न्यास भंग के लिए दायित्व (धारा 23) – न्यास अधिनियम की धारा 23 के अन्तर्गत न्यास भंग के लिए न्यासधारियों के दायित्व का उल्लेख किया गया है। न्यास-भंग से तात्पर्य न्यासधारी द्वारा तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन आरोपित कर्तव्यों की अवहेलना से है। प्रत्येक न्यासधारी न्यास सम्बन्धी अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए बद्ध होता है। यदि वह उसमें किसी प्रकार की असावधानी, चूक या अनुचित कार्य करता है तो वह न्यास-भंग का दोषी माना जायेगा एवं ऐसे न्यास भंग में हितग्राही को पहुँची क्षति के लिए वह क्षतिपूर्ति करने हेतु दायित्वाधीन होगा। न्यासधारी न्यास भंग के लिए सदा उत्तरदायी होता है। चाहे उसे कोई प्रतिफल नहीं दिया जाता हो और यहाँ तक कि न्यासधारी स्वयं न्यासकर्ता ही क्यों न हो।

प्रश्न 22. निर्वाचन कहाँ तक अभिप्राय पर आधारित है? How for Election is based on intention?

उत्तर- निर्वाचन अभिव्यक्त या उपलक्षित कैसे भी किया जा सकता है। यह आवश्यक नहीं कि निर्वाचन सुव्यक्त शब्दों के द्वारा ही किया जाय। यह आचरण के द्वारा भी किया जा सकता है। उदाहरणार्थ यदि निर्वाचन करने वाला कोई व्यक्ति निर्वाचन करने के अपने कर्तव्य की जानकारी रखते हुए, बहुत लम्बे समय से अनुदत्त सम्पत्ति का उपभोग करता चला आता हो, तो यह समझा जायेगा कि उसने विलेख के अनुकूल निर्वाचन कर लिया है।

प्रश्न 23. अभिव्यक्त एवं विवक्षित न्यास में अन्तर कीजिए।Distinguish between express and implied trust.

उत्तर- अभिव्यक्त एवं विवक्षित न्यास में अन्तर – अभिव्यक्त न्यास एक ऐसा न्याय है जो न्यायकर्ता द्वारा मौखिक या लिखित रूप से स्पष्ट रूप से सृजित होता है। जबकि अभिन्यास से भिन्न उपलक्षित न्यास एक ऐसा न्यास है जिसका सृजन सुस्पष्ट रूप से अभिव्यका द्वारा नहीं किया जाता। इसमें ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिनमें न्यासकर्ता के अनुमेय आशय के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से न्याय का अनुमान किया जाता है। सामान्यतः ऐसे न्यास का सृजन तब होता है जब एक व्यक्ति को सम्पति दूसरे व्यक्ति में ऐसी परिस्थितियों में निहित होती है, जिनसे न्यायालय यह निश्चित करता है कि इस प्रकार निहित सम्पत्ति वास्तविक स्वामी के हित के लिए न्यास रूप में आधारित है।

उदाहरण- ‘अ’ एक भूखण्ड क्रम करके उसे ‘ब’ के नाम हस्तान्दरित करता है। ‘ब’ ‘अ’ के लिए सम्पत्ति का न्यासधारी है। यह एक उपलक्षित न्यास है।

प्रश्न 24, विलम्ब साम्या को पराजित करता है। Delay defeats equity

उत्तर- इस आधार सूत्र का स्पष्ट एवं सीधा अभिप्राय यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपने अनुतोष की अध्यर्थना में अनावश्यक विलम्ब करता है तो उसके अनुतोष का साम्यिक अधिकार अवरुद्ध हो जाता है। यद्यपि विधिक अधिकारों को अध्यर्थना के लिए जो अवधि सीमा परिनियम द्वारा विहित की गई है, उससे कम अवधि बीत जाने पर वह अवरुद्ध नहीं हो जाती चाहे साम्या की दृष्टि से ऐसी अध्यर्थना विलम्बकारी हो क्यों न हो। लेकिन साम्या ऐसे विलम्ब को क्षमा नहीं करता। ऐसे मामलों में वह अनुतोष प्रदान करने से इंकार कर देता है।

       स्मिथ बनाम क्ले के मामले में लॉर्ड कैमडन ने यह कथन किया है कि-“साम्या के न्यायालयों ने सदैव ही ऐसे मामलों में अनुतोष प्रदान करने से इंकार किया है जिनमें कोई पक्षकार एक लम्बे समय तक अपने अधिकारों के प्रति उदासीन मुद्रा या मौन साधे रहा। इस न्यायालय को क्रियाशील बनाने के लिए तीन बातें आवश्यक हैं, अन्तःकरण, सद्भावना एवं उचित तत्परता।

       निम्न दशाओं में विलम्ब अनुतोष के लिए घातक होता है-

(i) ऐसे मामलों में जिनमें विलम्ब के कारण ऐसा साक्ष्य नष्ट हो गया है या खो गया है, जिसके द्वारा अध्यर्थना का खण्डन किया जा सकता था।

(ii) जब यह सिद्ध हो जाता है कि वादी ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपने अधिकारों का परित्याग कर दिया है।

(iii) यदि वादी के आचरण से प्रतिवादी को यह विश्वास हो गया हो कि उसने अपनी अध्यनका परकर दिया है या छोड़ दिया है और इस विश्वास में प्रतिवादी को अपनी स्थिति में परिवर्तन करने के लिए प्रेरित किया हो।

प्रश्न 25. (क) न्यास और शर्त। Trust and Condition.

(ख) न्यास और संविदाएं। Trust and Contract.

उत्तर (क) – न्यास  और शर्त- सामान्य विधि के अन्तर्गत यदि शर्त का खण्डन होता है तो केवल दाता तथा उसके उत्तराधिकारी ही उस शर्त के खण्डन का लाभ ले सकते हैं यदि यह विलेख में सन्निहित हो और यदि यह इच्छापत्र में संलग्न है तो वसीयकर्त्ता के उत्तराधिकारी। फिर भी साम्या के अंतर्गत यह धारित किया गया है कि वह उसको प्रवर्तित करा सकता है।

     सम्पत्ति का न्यासे सम्पत्ति के स्वामी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा सृजित नहीं किया जा सकता।

उत्तर (ख) – न्यास और संविदा (Trust and  Contract )— संविदा एक प्रकार का अनुबन्ध या करार है जिसके द्वारा दो पक्षकारों के मध्य विधिक दायित्व का सृजन होता है-    सामण्ड

संविदा

(1) संविदा के पक्षकारों के दायित्व  विधिक होते हैं।

(2) संविदा केवल उन पर लागू होती है जो संविदा के पक्षकार (Parties to contract) है।

(3) इसमें व्यक्तिलक्षी अधिकार (Right to personam) होता है।

(4) संविदा का एक प्रमुख तत्व वैध प्रतिफल (Lawful consideration) होता है।

(5) संविदा में प्रतिज्ञादाता और प्रतिज्ञाग्रहीता में वैश्वासिक सम्बन्ध नहीं होता है।

न्यास

(1) जबकि न्यासधारी के दायित्व साम्यिक होते हैं।

(2) न्यास के अन्तर्गत न्यास द्वारा लाभान्वित होने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा न्यास का आधार लागू होता है।

(3) इसके अन्तर्गत लोकलक्षी (Right in Rem) का सृजन होता है।

(4) न्यास के लिए किसी भी प्रकार के प्रतिफल की अपेक्षा नहीं होती है ।

(5) जबकि न्यासधारी और हितग्राही में वैश्वासिक सम्बन्ध स्थापित होता है।

प्रश्न 26. आन्वयिक न्यास । Constructive Trust.

उत्तर- आन्वयिक न्यास – अन्वयाश्रित न्यास का उद्भव वहाँ होता है जहाँ कोई व्यक्ति अपने में किये गये विश्वास में ऐसे दुरुपयोग द्वारा सम्पत्ति पर आधिपत्य प्राप्त कर ले जो न्यायालय को यह धारण करने के लिए अभिप्रेरित करे कि वह ईमानदारी की दृष्टि से उस व्यक्ति के लाभ के लिए सम्पत्ति धारण करने के लिए आबद्ध है।

      अन्वयाश्रित न्यास एक ऐसा न्यास है जिसका सृजन न्यास निर्मित करने के आशय को सन्दर्भित करने वाले शब्दों अथवा परिस्थितियों के द्वारा नहीं होता, अपितु दूसरे की सम्पत्ति के असाम्यिक अर्जन को रोकने के लिए साम्या के न्यायालयों द्वारा आरोपित किया जाता है।

प्रश्न 27. प्रार्थनात्मक न्यास। Precatory Trust.

उत्तर- प्रार्थनात्मक न्यास – प्रार्थनात्मक न्यास से अभिप्राय ऐसे न्यास से है, जिसकी घोषणा तथा सृष्टि स्पष्ट एवं निश्चित शब्दों के द्वारा नहीं, अपितु प्रार्थनात्मक शब्दों के द्वारा की जाती है, जैसे- ” मैं आशा करता हूँ” “मेरी इच्छा है”. “मैं अनुशंसा करता हूँ” आदि। ऐसे न्यासों के लिए किसी प्राविधिक भाषा का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं होती, अपितु ऐसी किसी भी भाषा का प्रयोग किया जा सकता है, जिससे न्यास निर्मित करने का आशय प्रकट होता हो।

       ऐसे न्यास मुख्यतः इच्छापत्रों के अन्तर्गत उत्पन्न होते हैं। इस सम्बन्ध में मसूरी बैंक बनाम अल्बर्ट चार्ल्स रैनूर, (1882) LL.R. All 500 के मामले में इच्छापत्रकर्त्ता ने अपनी विधवा को, अपने इच्छापत्र के द्वारा अपनी समस्त चल एवं अचल सम्पत्ति “यह विश्वास करते हुए कि वह हम दोनों के बच्चों के प्रति, जब उसे सम्पत्ति की आवश्यकता न रह जाय, उसका विभाजन करने में न्यायोचित व्यवहार करेगी” दे दी। प्रिवी कौंसिल ने यह अभिनिर्धारित किया कि इन शब्दों की प्रकृति पत्नी के अन्तःकरण से आवेदन के रूप में की है, इसलिए उसने निरपेक्ष रूप में ग्रहण किया और किसी न्यास का उद्भव नहीं हुआ।

      उपर्युक्त वाद में न्यास का सृजन नहीं माना गया. इसलिए कि-

(1) इसमें प्रयुक्त किए गये शब्द आज्ञापक नहीं थे,

(2) इसमें न्यास की विषय-वस्तु सुपरिभाषित एवं निश्चित नहीं थी।

प्रश्न 28. न्यासधारी की पदच्युति । Removal of Trustee.

उत्तर – सामान्य नियम यह है कि एक बार न्यास का पद स्वीकार कर लेने के बाद न्यासधारी अपने पद का त्याग नहीं कर सकता। पर यह एक निरपेक्ष नियम नहीं है। धारा 70 एवं 71 में उन अवस्थाओं का उल्लेख किया गया है, जिनके अन्तर्गत कोई न्यासधारी अपने पद से उन्मुक्त हो सकता है या उन्मोचित किया जा सकता है। भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 70 के अनुसार न्यासधारी का पद, उसकी मृत्यु हो जाने पर रिक्त हो जाता है। एवं न्यासधारी को उसके पद से उन्मोचित कर दिये जाने पर उसका पद रिक्त हो जाता है।”

     धारा-71 के अनुसार न्यासधारी पद से केवल निम्नलिखित अवस्थाओं में उन्मोचित किया जा सकता है-

(अ) न्यास के अवसान द्वारा,

(ब) न्यास के अन्तर्गत उसके कर्तव्यों के पूरा हो जाने के द्वारा,

(स) ऐसे साधनों में जैसे कि न्यास विलेख द्वारा विहित किये गये हों,

(द) इस अधिनियम के अंतर्गत उसके स्थान पर एक नये न्यासधारी की नियुक्ति द्वारा,

(थ) उसके स्वयं की तथा हितग्राही की अनुमति के द्वारा अथवा जहाँ एक से अधिक हितग्राही हो, यहाँ जब सभी हितग्राही संविदा करने के लिए सक्षम हों, या

(र) ऐसे न्यायालय द्वारा जिसके समक्ष उसकी उन्मुक्ति के लिए इस अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन प्रस्तुत किया गया हो।

प्रश्न 29. न्यासधारी के दायित्व । Liabilities of a trustee.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 11 से 30 तक में न्यासधारी के कर्तव्यों एवं दायित्वों का उल्लेख किया गया है। न्यासधारी के दायित्व के संदर्भ में धारा-23 में न्यासधारी का न्यास- भंग के लिए दायित्व के बारे में बताया गया है। धारा-23 के अनुसार न्यास भंग से तात्पर्य न्यासधारी द्वारा तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन आरोपित कर्त्तव्यों की अवहेलना से है। प्रत्येक न्यासधारी न्यास सम्बन्धी, अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए बद्ध होता है। यदि वह उसमें किसी प्रकार की असावधानी, चूक या अनुचित कार्य करता है तो वह न्यास-भंग का दोषी माना जायेगा एवं ऐसे न्यास-भंग में हितग्राही को पहुंची क्षति के लिए वह क्षतिपूर्ति करने हेतु दायित्वाधीन होगा। न्यासधारी, न्यास-भंग के लिए सदा उत्तरदायी होता है चाहे उसे कोई प्रतिफल नहीं दिया जाता हो और यहाँ तक कि न्यासधारी स्वयं न्यासकर्ता ही क्यों न हो।

     अपवाद- धारा-23 के कतिपय अपवाद है, अर्थात् निम्नलिखित अवस्थाओं में न्यासधारी न्यास भंग के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता-

(1) जहाँ स्वयं हितग्राही न्यास भंग में सम्मिलित हो गया हो,

(2) जहाँ स्वयं हितग्राही ने न्यासधारी को न्यास-भंग के लिए उत्प्रेरित किया हो.

(3) जहाँ हितग्राही न्यास भंग की परिस्थितियों से अवगत होते हुए भी उससे सहमत हो गया हो।

      ब्याज के लिए न्यासधारी का दायित्व – सामान्यतः निम्नलिखित अवस्थाओं को छोड़कर न्यास-भंग करने वाला न्यासधारी ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं होता-

(i) जहाँ वास्तव में उसने ब्याज प्राप्त किया हो,

(ii) जहाँ न्यास-भंग हितग्राही को न्यास धन को विलम्ब से भुगतान करने के कारण हुआ हो,

(iii) जहाँ न्यासधारी को ब्याज प्राप्त करना चाहिए था, पर उसने ऐसा नहीं किया हो ।

प्रश्न 30. हितग्राही का किराया तथा लाभ प्राप्त करने का अधिकार। Right of the beneficiary to receive rents and profits.

उत्तर- भारतीय व्यास अधिनियम, 1882 की धारा-55 के अन्तर्गत हितग्राही न्यास सम्पत्ति के किराये तथा लाभ अर्थात् उससे होने वाली आय को प्राप्त करने का अधिकारी है। उक्त धारा स्मिथ बनाम ह्वीलर, IM.O.D. 17 के मामले में प्रतिपादित सिद्धान्त पर आधारित है।

      काये बनाम पावेल, 1 Ves. 408 के मामले में कहा गया कि यदि न्यासधारी हितग्राही को ऐसे किराये का भुगतान नहीं करता है तो हितग्राही को सिर्फ अपने को प्राप्त होने वाले किराये का ही नहीं, अपितु किरायेदार द्वारा बाध्य रूप से देय समस्त किराये के हिसाब की माँग करने का अधिकार होगा।

प्रश्न 31. हितग्राही का दायित्व। Liabilities of the beneficiary.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम 1882 की धारा-68 एवं 69 में हितग्राहियों के दायित्व के बारे में बताया गया है। हितग्राहियों के निम्न दायित्व हैं-

(1) न्यास-भंग में सम्मिलित होने वाले हितग्राही का दायित्व [ धारा- 68] – जहाँ कि कई हितग्राहियों में से एक-

(i) न्यास- भंग करने में सम्मिलित होता है, अथवा

(ii) उससे कोई प्रलाभ अन्य हितग्राहियों की सम्मति के बिना जानकर अभिप्राप्त करता है, अथवा

(iii) किये गये या किये जाने के लिए आशयित किसी न्यास भंग की जानकारी पा लेता है और या तो उसे वास्तव में छुपा लेता है था अन्य हितग्राहियों के हितों की संरक्षा के लिए उचित कदम युक्तियुक्त समय के भीतर नहीं उठाता है, अथवा

(iv) न्यासधारी को धोखा देता है वहाँ, जहाँ तक कि उसका और उन सबका, जो उसके अधीन दावा करते हैं, सम्बन्ध है उसके पूरे हितग्राही हित को अन्य हितग्राही तब तक के लिए परिबद्ध करा लेने के लिए अधिकृत है जब तक कि भग्नता से हुई हानि के लिए प्रतिकर न मिल गया हो।

(2) हितग्राही के हस्तान्तरिती के अधिकार और दायित्व [ धारा-69]- ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जिसे हितग्राही अपना हित हस्तान्तरित करता है। हस्तान्तरण की तारीख को -उस हितग्राही के ऐसे हित विषयक अधिकारों से युक्त और दायित्वों के अधीन हो जाता है।

प्रश्न 32. न्यास का अवसान। Extinction of trust.

उत्तर- न्यास का अवसान – भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 77 से 79 – तक में न्यास के अवसान के बारे में बताया गया है।

      धारा-77 के अनुसार न्यास का अवसान निम्न दशाओं में होता है-

(क) जबकि उसका उद्देश्य पूर्णतः पूरा हो जाय, या

(ख) जबकि उसका उद्देश्य अवैध हो जाय या

(ग) जबकि उसके उद्देश्य की पूर्ति न्यास की सम्पत्ति के नष्ट हो जाने के कारण या अन्यथा असम्भव हो जाय, या

(घ) जबकि न्यास के विखण्डनीय होने की अवस्था में यह अभिव्यक्त रूप से जा विखण्डित कर दिया जाय। [ धारा-78]

     न्यास का विखण्डन धारा 78 के अर्थों में निम्न अवस्थाओं में विखण्डित किया सकता है-

(i) इच्छापत्रकर्ता को इच्छा पर

(ii) हितग्राहियों की सहमति से

(iii) न्यासकर्त्ता द्वारा विखण्डन की शक्ति के प्रयोग द्वारा,

(iv) ऋणों के भुगतान के लिए सृजित न्यास का विखण्डन ।

      जबकि धारा 79 में यह बताया गया है कि न्यासधारियों ने जो कुछ उचित रूप से किया मैं उसे विखण्डन निष्फल नहीं कर सकता।

प्रश्न 33. न्यास का वर्गीकरण कीजिए। Give the classification of trust.

उत्तर- न्यास का वर्गीकरण – न्यास कई प्रकार के होते हैं जिनको विभिन्न वर्गों में बाँटा गया है, जिनके नाम कलात्मक न होकर साधारण ही हैं, जिनके बारे में सामान्यतः ऐसी कल्पना की जा सकती है। फिर यह वर्गीकरण अधिक विस्तृत भी नहीं है, कई न्यास तो ऐसे। हैं जो एकाधिकार वर्गों में सम्मिलित हो गये हैं।

     हैनवरी ने न्यास को मुख्यतः निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया है-

(1) लोक न्यास एवं व्यक्तिगत न्यास (Public Trust and Private Trust),

(2) साधारण न्यास एवं विशिष्ट न्यास (Simple Trust and Special Trust);

(3) अभिव्यक्त न्यास एवं अन्वयाश्रित न्यास (Express Trust and Constructive Trust),

(4) निष्पादित न्यास एवं निष्पाद्य न्यास (Executed Trust and Unexecuted Trust);

(5) उपलक्षित न्यास एवं परिणामी न्यास ( Implied Trust and Resulting Trust) तथा

(6) पूर्ण गठित एवं अपूर्ण गठित न्यास (Complete Trust and Uncompleted Trust) ।

प्रश्न 34. साम्या की अपेक्षा करने वालों को स्वयं भी साम्या का व्यवहार करना चाहिए। He who seeks equity must do equity.

उत्तर- साम्या का न्यायालय एक अन्त:करण का न्यायालय है। साम्यिक उपचार प्रदान कराना उसके विवेक पर निर्भर है। अतः कोई भी उपचार प्रदान करने के पूर्व साम्या का न्यायालय इस बात की जाँच करेगा कि वाद में दोनों पक्षकारों का व्यवहार साम्यापूर्ण है या नहीं।

       इस आधारसूत्र के अन्तर्गत साम्या को यह धारणा है कि साम्या के न्यायालय से अनुतोष चाहने वाले व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह स्वयं साम्या बरते अर्थात् न्यायोचित कार्य करे।

      इस प्रकार साम्या न्यायालय वादी से यह अपेक्षा करता है कि कुछ अनुतोष पाने के लिए वह साम्या न्यायालय से अध्यर्थना करता है, उसके लिए यह आवश्यक है कि वह साम्या के अनुसार, जो कुछ प्रतिवादी को देने के लिए उत्तरदायी है, उसे प्रदान करने के लिए तत्पर रहे। वह साम्या के न्यायालय के सम्मुख यह तर्क नहीं प्रस्तुत करेगा कि,

      ” जो साम्यिक उपचार मैं चाहता हूँ, वह मुझे प्रदान कर दिया जाय लेकिन में दूसरे पक्षकार के अध्यर्थना का पालन करने के लिए तैयार नहीं हूँ। यह अपनी अध्यर्थना का पालन पृथक् वाद संस्थित करके कर सकता है।” साम्या का न्यायालय ऐसे तर्क को नहीं स्वीकार करेगा, क्योंकि यदि वादी के एकपक्षीय तर्क को स्वीकार कर लिया जाता है तो प्रतिवादी के लिए अन्यायोचित व्यवस्था होगी।

     इस प्रकार यह आधारसूत्र पारस्परिकता के सिद्धान्त (Doctrine of Reciprocity) पर आधारित है।

प्रश्न 35. वास्तविक कपट। Actual Fraud.

उत्तर- वास्तविक कपट- वास्तविक कपट से अभिप्राय किसी बात का इस अभिप्राय से कहा जाना, किया जाना या करने दिया जाना है, जिसके बारे में वह पक्षकार जानता है कि वह एक सुनिश्चित कपट है अर्थात् वास्तविक कपट कोई किया गया कार्य या किये जाने से विरत रह गया कार्य है, जिसे जानबूझकर निश्चयात्मक कपट करने के आशय से किया गया है।

       सामान्य विधि के अन्तर्गत कपट के मामलों में केवल वास्तविक कपट पर ही अनुतीष प्रदान किया जाता था और यह अनुतोष भी क्षतिपूर्ति तक ही सीमित होता था। वास्तविक कपट को भी दो भागों में बाँटा गया है-

(i) कपटपूर्ण मिथ्या व्यपदेशन, एवं

(ii) कपटपूर्ण छिपाव।

     डेरी बनाम पीक के बाद में कपट के मिथ्याव्यपदेशन के लिए कुछ आवश्यक शर्तों का प्रतिपादन किया गया अर्थात् कोई मिथ्याव्यपदेशन तभी कपट का रूप धारण करता है, जबकि –

(i) वह जान-बूझकर किया गया हो,

(ii) उसकी सच्चाई में विश्वास किये बिना किया गया हो, अथवा

(iii) उसकी सत्यता या असत्यता की परवाह किये बिना किया गया हो।

प्रश्न 36. वैध न्यास के आवश्यक तत्त्व । Essentials of a Valid Trust.

उत्तर- वैध न्यास के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं-

(1) न्यास की स्थापना करने वाला व्यक्ति या न्यासकर्त्ता (Settler or donor)— वह व्यक्ति जो विश्वास करता है या उसे घोषित करता है ‘न्यासकर्त्ता’ कहलाता है।

(2) न्यासधारी (Trustee)- वह व्यक्ति जो विश्वास को (न्यासकर्ता के) प्रतिग्रहीत करता है ‘न्यासधारी’ कहलाता है।

(3) हितग्राही (Beneficiary) — जिस व्यक्ति के फायदे के लिए विश्वास को प्रतिग्रहीत किया जाता है, हितग्राही कहलाता है।

(4) न्यास की विषय-वस्तु (Subject matter)— न्यास की विषय-वस्तु को न्यास सम्पत्ति कहा जाता है।

      नरसिंह चरन बनाम राधाकान्त महापात्र, ए० आई० आर० (1951) उड़ीसा 132 के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि एक ही व्यक्ति न्यासधारी एवं एकल हितग्राही (Sole beneficiary) नहीं हो सकता है।

प्रश्न 37. सार्वजनिक न्यास। Public Trust.

उत्तर- सार्वजनिक न्यास (Public Trust) निजी न्यास से भिन्न सार्वजनिक न्यास एक ऐसा न्यास है जिसका सृजन सर्वसाधारण के हित के लिए अथवा किसी विशेष श्रेणी के लोगों में से अधिकांश के लिए किया जाता है। इसका उद्देश्य सामान्य जन के एक बड़े भाग को लाभ पहुँचाना होता है। जहाँ कोई न्यास किसी धर्म या सम्प्रदाय की के लिए अथवा खैराती उद्देश्यों के लिए सृजित किया जाता है तो वह सार्वजनिक न्यास होगा।

प्रश्न 38. न्यासधारियों के अधिकार । Rights of Trustees.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 31 से 35 तक न्यासधारियों को “निम्नलिखित अधिकार प्रदान करती हैं-

(1) स्वत्व विलेख का अधिकार [धारा-31]

(2) खचों की प्रतिपूर्ति का अधिकार [ धारा-32]

      धारा-32 न्यासधारी को निम्नलिखित कार्यों में से किसी कार्य पर खर्च किया गया कोई धन वसूल करने का अधिकार प्रदान करती है जो उसने-

(1) न्यास के निष्पादन, या

(2) न्यास की सम्पत्ति की वसूली में, या

(3) न्यास की धन सुरक्षा में, या

(4) न्यास सम्पत्ति के लाभ के लिए, या

(5) हितग्राही की रक्षा या सहायता करने में खर्च किया हो।

(3) न्यासभंग से लाभ उठाने वाले व्यक्ति से क्षतिपूर्ति का अधिकार [धारा-33]

(4) न्यास सम्पत्ति के प्रबन्धार्थ न्यायालय से परामर्श लेने के लिए आवेदन करने का अधिकार [धारा-34]

(5) लेखाओं के निस्तारण का अधिकार [धारा-35]

प्रश्न 39. हितग्राहियों के अधिकार। Rights of beneficiaries.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा-55 से धारा-67 तक हितग्राहियों के अधिकार के बारे में बताया गया है जो इस प्रकार हैं-

(1) भाटक एवं लाभ प्राप्त करने का अधिकार,

(2) विशिष्ट निष्पादन का अधिकार,

(3) कब्जे के हस्तान्तरण का अधिकार,

(4) न्यास लेखाओं आदि का निरीक्षण करने और उनको प्रतिलिपियाँ लेने का अधिकार,

(5) लाभप्रद हित के हस्तान्तरण का अधिकार,

(6) न्यास के निष्पादन के लिए बाद लाने का अधिकार,

(7) उचित न्यासधारियों का अधिकार,

(8) कर्तव्य के किसी कार्य के लिए विवश करने का अधिकार,

(9) न्यासधारी द्वारा दोषपूर्ण क्रय सम्बन्धी अधिकार।

प्रश्न 40 न्यासंधारी के कर्तव्य Duties of a trustee.

उत्तर- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा-11 से 30 तक में न्यासधारी के कर्तव्यों एवं दायित्वों का उल्लेख किया गया है जो इस प्रकार हैं-

(1) न्यासधारी द्वारा न्यास का निष्पादन किया जाना,

(2) न्यासधारी व्यास सम्पत्ति की दशा से स्वयं को परिचित रखेगा।

(3) न्यासधारी न्यास सम्पत्ति के स्वत्व की रक्षा करेगा।

(4) न्यासधारी ऐसा स्वत्व न खड़ा करेगा जो हितग्राही के विपक्ष में है।

(5) न्यासधारी से अपेक्षित सावधानी

(6) नश्वर सम्पत्ति का सम्परिवर्तन।

(7) न्यासधारी का निष्पक्ष होना।

(8) न्यासधारी अपव्यय का निवारण करेगा।

(9) लेखा और जानकारी अद्यतन रखेगा।

प्रश्न 41. निष्पादित न्यास तथा निष्पाद्य न्यास । Executed Trust And Executory Trust.

उत्तर- निष्पादित न्यास (Executed Trust) — निष्पादित न्यास उसको सृष्ट करने वाले लिखत के द्वारा पूर्णतया तथा अन्तिम रूप से घोषित होता है, अथवा जहाँ पर व्यवस्थापक स्वयं अपना हस्तान्तरणकर्त्ता होता है। यहाँ पर न्यासधारी और हितग्राहियों के अधिकार की परिसीमा व्यवस्थापक द्वारा पूर्णतया घोषित की हुई होती है और न्यास को पूर्ण करने अथवा प्रभाव देने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहता।

      एगन्यू महोदय के शब्दों में, “यह ऐसा न्यास है जो स्वतः पूर्ण हो और न्यासकर्त्ता ने अन्तिम रूप से यह घोषित कर दिया हो कि हितग्राही क्या हित ग्रहण करेगा और के विवेक के लिए कोई स्थान न छोड़ दे।

     निष्पाद्य न्यास (Executory Trust ) निष्पादित न्यास से भिन्न निष्पाद्य न्यास एक व्यवस्थापक द्वारा पूर्ण तथा अन्तिम रूप से घोषित न किया गया हो और इसलिए कार्यान्वित करने के लिए न्यास विलेख के अतिरिक्त किसी और वस्तु की आवश्यकता हो अर्थात् उसे पूर्ण करने के लिए कुछ करना शेष रह गया हो। उदाहरण के लिए ‘अ’ लिखित प्रतिज्ञा करता है कि वह अपने अधिवक्ता के परामर्श के अनुसार ‘ब’ के हित के लिए 10,000 रुपये का न्यास निर्मित करेगा तो यह निष्पाद्य न्यास होगा।

प्रश्न 42. साम्या व्यक्तिबंधी में कार्य करती हैं। Equity acts in Personam.

उत्तर- साम्या व्यक्तिबंधी में कार्य करती है, यह इसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके अन्तर्गत साम्या अपने आदेशों का प्रवर्तन आरोपित व्यक्ति के अन्तःकरण पर प्रभाव उत्पन्न करके करता है अर्थात् दूसरे शब्दों में, साम्या का न्यायालय अपनी आज्ञप्ति के निष्पादन अथवा पूर्ति के लिए प्रतिवादी के शरीर पर आधारित रहता है। साम्या प्रतिवादी की सम्पत्ति में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता है, वरन् अपने आदेशों का उल्लंघन होने पर प्रतिवादी को कारावास अथवा अर्ध-दण्ड से दण्डित करता है। साम्या व्यक्तिबंधी में कार्य करती है, में व्यक्तिवेधी से तात्पर्य एक व्यक्तिगत अधिकार है जो किसी निश्चित व्यक्ति या व्यक्तियों के विरुद्ध ही प्राप्त होता है।

प्रश्न 43. विवक्षित न्यास। Implied trust.

उत्तर- उपलक्षित अथवा उपधारित न्यास (Implied Trust)— अभिव्यक्त न्यास से भिन्न उपलक्षित न्यास एक ऐसा न्यास है जिसका सृजन सुस्पष्ट रूप से अभिव्यक्त द्वारा नहीं किया जाता। इसमें ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिनमें न्यासकर्ता के अनुमेय आशय के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से न्यास का अनुमान किया जाता है। सामान्यतः ऐसे न्यास का सृजन तब होता है जब एक व्यक्ति की सम्पति दूसरे व्यक्ति में ऐसी परिस्थितियों में निहित होती है जिनमें न्यायालय यह निश्चित करता है कि इस प्रकार निहित सम्पत्ति वास्तविक स्वामी के हित के लिए न्यास रूप में आधारित है। उदाहरण- ‘अ’ एक भूखण्ड क्रय करके उसे ‘ब’ के नाम हस्तान्तरित करता है। ‘ब’, ‘अ’ के लिए सम्पत्ति का न्यासधारी है। यह एक उपलक्षित न्यास है।

प्रश्न 44. (क) ज्यास के उद्देश्य । Objects of trust.

(ख) साधारण व विशिष्ट न्यास। Simple and Special trust.

उत्तर (क) — न्यास का उद्देश्य (Purpose of Trust) — न्यास अधिनियम की धारा 4 वैध न्यास के सृजन के लिए विधिपूर्ण उद्देश्यों का प्रावधान करती है। न्यास के उद्देश्यों का विधिपूर्ण होना आवश्यक है। यदि उद्देश्य विधिपूर्ण नहीं है तो न्यास शून्य होगा। ऐसे उद्देश्यों को वैध उद्देश्य माना गया, जिसका वर्णन इस अधिनियम की धारा 4 एवं भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 23 में दिया गया है जो निम्नलिखित हैं-

(i) जो विधिद्वारा निषिद्ध नहीं है; या

(ii) जो इसे प्रकृति का नहीं है कि यदि उसे अनुज्ञात किया गया तो वह विधि के उपबन्धों को निष्फल कर देगा या

(iii) जो कपटपूर्ण नहीं है; या.

(iv) जो किसी अन्य व्यक्ति के शरीर या सम्पत्ति को क्षति पहुँचाने वाला नहीं है; या

(v) जो न्यायालय की दृष्टि में अनैतिक या लोक नीति के विपरीत न हो।

ट्रस्ट (Trust) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

1. ट्रस्ट (Trust) क्या होता है?

उत्तर: ट्रस्ट एक कानूनी व्यवस्था है, जिसमें एक व्यक्ति (Settlor) अपनी संपत्ति को एक विश्वसनीय व्यक्ति या संस्था (Trustee) के नियंत्रण में देता है, ताकि वह इसे किसी निर्दिष्ट उद्देश्य (Beneficiary) के लिए प्रबंधित कर सके। ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य संपत्ति का संरक्षण और उचित उपयोग सुनिश्चित करना होता है।

2. भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 क्या है?

उत्तर: भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 (Indian Trusts Act, 1882) वह कानून है, जो निजी ट्रस्टों (Private Trusts) से संबंधित नियमों और प्रावधानों को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम ट्रस्ट के निर्माण, ट्रस्टी (Trustee) के कर्तव्यों, अधिकारों और लाभार्थियों (Beneficiaries) के हितों को परिभाषित करता है।

3. ट्रस्ट के प्रमुख तत्व कौन-कौन से हैं?

उत्तर: एक वैध ट्रस्ट के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक होते हैं:

  1. सेटलर (Settlor) – जो ट्रस्ट की स्थापना करता है।
  2. ट्रस्टी (Trustee) – जो संपत्ति का प्रबंधन करता है।
  3. बेनिफिशियरी (Beneficiary) – जिसे ट्रस्ट से लाभ प्राप्त होता है।
  4. ट्रस्ट प्रॉपर्टी (Trust Property) – जिसे ट्रस्ट के अधीन रखा जाता है।
  5. उद्देश्य (Purpose) – ट्रस्ट का एक निश्चित उद्देश्य होना चाहिए।

4. ट्रस्ट कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर: ट्रस्ट मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:

  1. निजी ट्रस्ट (Private Trust) – यह किसी विशेष व्यक्ति या समूह के लाभ के लिए बनाया जाता है।
  2. सार्वजनिक ट्रस्ट (Public Trust) – यह समाज के व्यापक हित के लिए कार्य करता है, जैसे कि धर्मार्थ संस्थान, शैक्षिक संस्थान, अस्पताल आदि।

5. ट्रस्टी (Trustee) के क्या अधिकार और कर्तव्य होते हैं?

उत्तर:
अधिकार:

  • ट्रस्ट की संपत्ति का प्रबंधन करना।
  • लाभार्थियों के हितों की रक्षा करना।
  • ट्रस्ट के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उचित निर्णय लेना।

कर्तव्य:

  • ट्रस्ट की संपत्ति का दुरुपयोग न करना।
  • निष्पक्षता और ईमानदारी से कार्य करना।
  • ट्रस्ट की संपत्ति को लाभार्थियों के लिए संरक्षित रखना।
  • ट्रस्ट के वित्तीय रिकॉर्ड को सही तरीके से रखना।

6. ट्रस्ट को कैसे समाप्त किया जा सकता है?

उत्तर: ट्रस्ट को निम्नलिखित परिस्थितियों में समाप्त किया जा सकता है:

  1. जब ट्रस्ट का उद्देश्य पूरा हो जाता है।
  2. जब ट्रस्ट की संपत्ति समाप्त हो जाती है।
  3. सेटलर और सभी लाभार्थियों की सहमति से।
  4. न्यायालय द्वारा यदि ट्रस्ट का उद्देश्य अवैध या असंभव हो जाए।

7. ट्रस्ट और विल (Will) में क्या अंतर है?

ट्रस्ट (Trust) और वसीयत (Will) में मुख्य अंतर इस प्रकार हैं:

  1. प्रभावी होने का समय: ट्रस्ट सेटलर के जीवनकाल में प्रभावी होता है, जबकि वसीयत व्यक्ति की मृत्यु के बाद लागू होती है।
  2. संपत्ति का नियंत्रण: ट्रस्ट में संपत्ति का नियंत्रण ट्रस्टी के पास होता है, जबकि वसीयत में संपत्ति का स्वामित्व कानूनी उत्तराधिकारियों को मिलता है।
  3. बेनिफिशियरी को लाभ: ट्रस्ट में लाभार्थी (Beneficiary) को तुरंत लाभ मिल सकता है, जबकि वसीयत में उत्तराधिकारियों को संपत्ति व्यक्ति की मृत्यु के बाद मिलती है।
  4. विधिक प्रक्रिया: ट्रस्ट की स्थापना के लिए एक ट्रस्ट डीड (Trust Deed) आवश्यक होती है, जबकि वसीयत के लिए वसीयत पत्र (Will Document) बनाया जाता है।
  5. संशोधन (Modification): ट्रस्ट को एक बार स्थापित करने के बाद बदलना कठिन होता है, जबकि वसीयत को व्यक्ति अपनी मृत्यु से पहले कई बार संशोधित कर सकता है।
  6. न्यायालय की प्रक्रिया: वसीयत को आमतौर पर मृत्युपरांत प्रोबेट (Probate) की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जबकि ट्रस्ट को ऐसी प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती।
  7. गोपनीयता: ट्रस्ट अधिक गोपनीय होता है क्योंकि यह न्यायालयी प्रक्रिया से नहीं गुजरता, जबकि वसीयत सार्वजनिक रूप से दर्ज हो सकती है।

संक्षेप में, ट्रस्ट संपत्ति के जीवनकाल में प्रबंधन और वितरण के लिए होता है, जबकि वसीयत संपत्ति के उत्तराधिकार को नियंत्रित करने का दस्तावेज है।

8. ट्रस्ट की पंजीकरण प्रक्रिया क्या है?

उत्तर: ट्रस्ट पंजीकरण की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं:

  1. ट्रस्ट डीड (Trust Deed) तैयार करना।
  2. ट्रस्ट का उद्देश्य स्पष्ट करना।
  3. ट्रस्टी और लाभार्थियों के नाम निर्दिष्ट करना।
  4. स्टांप शुल्क का भुगतान करना।
  5. निबंधक कार्यालय (Registrar Office) में ट्रस्ट को पंजीकृत कराना।

9. क्या ट्रस्ट कर मुक्त होते हैं?

उत्तर: हां, यदि कोई ट्रस्ट धर्मार्थ, शैक्षिक, या सामाजिक कार्यों के लिए बनाया गया है, तो उसे इनकम टैक्स अधिनियम, 1961 के तहत कर छूट मिल सकती है।

10. सार्वजनिक ट्रस्ट और निजी ट्रस्ट में क्या अंतर है?

सार्वजनिक ट्रस्ट वह ट्रस्ट होता है, जिसे समाज के व्यापक हित के लिए स्थापित किया जाता है। इसका उद्देश्य धर्मार्थ, शैक्षिक, सामाजिक सेवा, चिकित्सा सहायता, पर्यावरण संरक्षण आदि से संबंधित होता है। इस प्रकार के ट्रस्ट का लाभ संपूर्ण समाज या किसी विशेष वर्ग को मिलता है। सार्वजनिक ट्रस्ट सरकार द्वारा विनियमित होते हैं और कई बार इन्हें कर में छूट भी प्राप्त होती है।

निजी ट्रस्ट विशेष रूप से किसी व्यक्ति या सीमित समूह के लाभ के लिए बनाया जाता है। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत संपत्ति की सुरक्षा, उत्तराधिकार की योजना, या किसी विशेष परिवार या समूह के सदस्यों को वित्तीय लाभ प्रदान करना होता है। निजी ट्रस्ट केवल उन व्यक्तियों तक सीमित रहता है, जिनके नाम ट्रस्ट डीड में निर्दिष्ट होते हैं। इसे आमतौर पर सरकार द्वारा सख्ती से विनियमित नहीं किया जाता, लेकिन यह ट्रस्ट डीड द्वारा नियंत्रित होता है।

निष्कर्ष:

ट्रस्ट कानून संपत्ति के संरक्षण और समाज के कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण विधिक साधन है। भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 ट्रस्ट की स्थापना, प्रबंधन, और समाप्ति के कानूनी ढांचे को निर्धारित करता है। यह न केवल व्यक्तिगत हितों की रक्षा करता है बल्कि धर्मार्थ और सार्वजनिक कल्याण के उद्देश्यों की पूर्ति में भी सहायक होता है।

यहाँ ट्रस्ट (Trust) और वसीयत (Will) से जुड़े 11 से 50 महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर दिए गए हैं:

ट्रस्ट (Trust) से जुड़े प्रश्न-उत्तर

11. ट्रस्ट का निर्माण कौन कर सकता है?
उत्तर: कोई भी व्यक्ति जो वयस्क है और वैध मानसिक स्थिति में है, ट्रस्ट का निर्माण कर सकता है।

12. ट्रस्ट डीड (Trust Deed) क्या होती है?
उत्तर: ट्रस्ट डीड वह कानूनी दस्तावेज है, जो ट्रस्ट की स्थापना, उद्देश्य, ट्रस्टी और लाभार्थियों के अधिकारों और कर्तव्यों को निर्दिष्ट करता है।

13. क्या ट्रस्ट संपत्ति बेची जा सकती है?
उत्तर: ट्रस्टी को ट्रस्ट डीड के अनुसार संपत्ति बेचने का अधिकार हो सकता है, लेकिन वह इसे केवल ट्रस्ट के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही बेच सकता है।

14. ट्रस्ट में न्यूनतम और अधिकतम ट्रस्टी कितने हो सकते हैं?
उत्तर: ट्रस्टी की न्यूनतम संख्या एक हो सकती है, जबकि अधिकतम संख्या ट्रस्ट डीड के अनुसार तय की जाती है।

15. ट्रस्ट में लाभार्थी कौन हो सकता है?
उत्तर: कोई भी व्यक्ति, समूह या समाज, जो ट्रस्ट डीड में निर्दिष्ट हो, लाभार्थी हो सकता है।

16. क्या ट्रस्ट कर-मुक्त होते हैं?
उत्तर: हाँ, यदि ट्रस्ट धर्मार्थ, शैक्षिक, या सार्वजनिक सेवा के उद्देश्य से स्थापित है, तो उसे आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर छूट मिल सकती है।

17. ट्रस्टी को हटाने की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर: ट्रस्टी को हटाने की प्रक्रिया ट्रस्ट डीड में उल्लिखित होती है, या यदि कोई अनियमितता होती है, तो न्यायालय ट्रस्टी को हटा सकता है।

18. क्या एक ही व्यक्ति ट्रस्टी और लाभार्थी हो सकता है?
उत्तर: नहीं, क्योंकि इससे हितों का टकराव होगा और ट्रस्ट का उद्देश्य निष्पक्ष रूप से पूरा नहीं होगा।

19. क्या ट्रस्ट अचल संपत्ति रख सकता है?
उत्तर: हाँ, ट्रस्ट के पास अचल संपत्ति हो सकती है और इसका उपयोग ट्रस्ट के उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

20. क्या एक ट्रस्ट को समाप्त किया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, यदि ट्रस्ट का उद्देश्य पूरा हो गया है, संपत्ति समाप्त हो गई है, या न्यायालय द्वारा आवश्यक समझा जाए, तो इसे समाप्त किया जा सकता है।


वसीयत (Will) से जुड़े प्रश्न-उत्तर

21. वसीयत क्या होती है?
उत्तर: वसीयत वह कानूनी दस्तावेज है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी संपत्ति की मृत्यु के बाद के वितरण की योजना बनाता है।

22. वसीयत बनाने के लिए न्यूनतम आयु क्या होनी चाहिए?
उत्तर: वसीयत बनाने के लिए व्यक्ति की आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए।

23. क्या वसीयत हाथ से लिखी जा सकती है?
उत्तर: हाँ, वसीयत हाथ से लिखी जा सकती है, लेकिन इसे कानूनी रूप से वैध बनाने के लिए साक्षियों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं।

24. वसीयत में कितने गवाहों की आवश्यकता होती है?
उत्तर: भारतीय कानून के अनुसार, वसीयत के लिए कम से कम दो गवाहों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं।

25. क्या वसीयत को पंजीकृत कराना आवश्यक है?
उत्तर: नहीं, वसीयत का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन इसे कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिए पंजीकृत कराना लाभदायक हो सकता है।

26. वसीयत में संपत्ति के उत्तराधिकारी कौन हो सकते हैं?
उत्तर: वसीयत में कोई भी व्यक्ति, परिवार के सदस्य, दोस्त, धर्मार्थ संस्थाएं आदि उत्तराधिकारी बनाए जा सकते हैं।

27. क्या वसीयत को बदला जा सकता है?
उत्तर: हाँ, वसीयत को व्यक्ति अपने जीवनकाल में कभी भी संशोधित या रद्द कर सकता है।

28. यदि कोई व्यक्ति वसीयत के बिना मर जाता है तो संपत्ति का क्या होता है?
उत्तर: यदि व्यक्ति वसीयत के बिना मर जाता है, तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकार कानून (Succession Law) के अनुसार कानूनी वारिसों में वितरित की जाती है।

29. क्या कोई व्यक्ति अपनी संपूर्ण संपत्ति एक ही व्यक्ति को दे सकता है?
उत्तर: हाँ, व्यक्ति अपनी संपूर्ण संपत्ति किसी एक व्यक्ति को वसीयत के माध्यम से दे सकता है।

30. वसीयत को चुनौती कब दी जा सकती है?
उत्तर: वसीयत को चुनौती दी जा सकती है यदि यह धोखाधड़ी, दबाव, अयोग्यता, या अनुचित प्रभाव के कारण बनाई गई हो।


ट्रस्ट और वसीयत से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

31. ट्रस्ट और वसीयत में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर: ट्रस्ट व्यक्ति के जीवनकाल में प्रभावी होता है, जबकि वसीयत मृत्यु के बाद प्रभावी होती है।

32. क्या वसीयत को सार्वजनिक किया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, मृत्यु के बाद वसीयत को प्रोबेट प्रक्रिया के दौरान सार्वजनिक किया जा सकता है।

33. ट्रस्ट डीड और वसीयत में कानूनी मान्यता किसे अधिक मिलती है?
उत्तर: दोनों को कानूनी मान्यता प्राप्त होती है, लेकिन ट्रस्ट को अधिक सुरक्षा और स्थायित्व प्रदान किया जाता है।

34. क्या कोई ट्रस्टी लाभार्थी भी हो सकता है?
उत्तर: हाँ, लेकिन ट्रस्ट का उद्देश्य और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए इसे उचित रूप से प्रबंधित किया जाना चाहिए।

35. ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर: संपत्ति की सुरक्षा और इसे निर्दिष्ट उद्देश्यों के अनुसार प्रबंधित करना।

36. वसीयत कितनी बार बदली जा सकती है?
उत्तर: व्यक्ति अपने जीवनकाल में कितनी भी बार वसीयत को संशोधित कर सकता है।

37. क्या ट्रस्ट को अदालत की मंजूरी की आवश्यकता होती है?
उत्तर: आमतौर पर नहीं, लेकिन यदि ट्रस्ट में विवाद होता है, तो न्यायालय इसमें हस्तक्षेप कर सकता है।

38. ट्रस्ट का लाभ किसे मिलता है?
उत्तर: लाभार्थियों (Beneficiaries) को, जो ट्रस्ट डीड में निर्दिष्ट होते हैं।

39. क्या वसीयत मौखिक रूप से बनाई जा सकती है?
उत्तर: भारतीय कानून के अनुसार, सामान्य परिस्थितियों में वसीयत लिखित होनी चाहिए, लेकिन कुछ विशेष मामलों में मौखिक वसीयत मान्य हो सकती है।

40. ट्रस्ट संपत्ति का उत्तराधिकार कैसे तय करता है?
उत्तर: ट्रस्ट डीड के अनुसार ट्रस्टी संपत्ति का प्रबंधन करता है और इसे लाभार्थियों में वितरित करता है।


निष्कर्ष:

ट्रस्ट और वसीयत दोनों संपत्ति प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण विधिक साधन हैं। ट्रस्ट संपत्ति की सुरक्षा और दीर्घकालिक प्रबंधन के लिए उपयोगी है, जबकि वसीयत व्यक्ति की मृत्यु के बाद संपत्ति के वितरण को सुनिश्चित करती है। दोनों के सही उपयोग से संपत्ति के विवादों को रोका जा सकता है।

ट्रस्ट (Trust) और वसीयत (Will) से जुड़े 41 से 50 महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर

41. ट्रस्ट के लिए न्यूनतम पूंजी कितनी होनी चाहिए?
उत्तर: भारतीय कानून में ट्रस्ट स्थापित करने के लिए न्यूनतम पूंजी की कोई अनिवार्यता नहीं है, लेकिन ट्रस्ट के उद्देश्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त संपत्ति होनी चाहिए।

42. क्या ट्रस्ट को एक व्यक्ति द्वारा चलाया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, लेकिन आमतौर पर ट्रस्ट में न्यूनतम दो ट्रस्टी होने चाहिए ताकि निष्पक्षता बनी रहे।

43. क्या ट्रस्ट डीड में संशोधन किया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, यदि ट्रस्ट डीड में संशोधन की अनुमति दी गई हो, तो ट्रस्ट को संशोधित किया जा सकता है।

44. क्या ट्रस्ट की संपत्ति ट्रस्टी की व्यक्तिगत संपत्ति हो सकती है?
उत्तर: नहीं, ट्रस्ट की संपत्ति ट्रस्टी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं होती, बल्कि इसे ट्रस्ट के उद्देश्यों के अनुसार उपयोग किया जाना चाहिए।

45. क्या वसीयत में कोई शर्त जोड़ी जा सकती है?
उत्तर: हाँ, वसीयत में संपत्ति वितरण से संबंधित कुछ शर्तें जोड़ी जा सकती हैं, लेकिन वे कानून के खिलाफ नहीं होनी चाहिए।

46. यदि वसीयत में सभी संपत्तियों का उल्लेख नहीं किया गया हो तो क्या होगा?
उत्तर: ऐसी स्थिति में, बिना उल्लेखित संपत्ति उत्तराधिकार कानून (Succession Law) के अनुसार कानूनी उत्तराधिकारियों में वितरित की जाती है।

47. क्या एक ट्रस्ट को दूसरे ट्रस्ट में बदला जा सकता है?
उत्तर: हाँ, यदि ट्रस्ट डीड इसकी अनुमति देता है और न्यायालय आवश्यक समझता है, तो एक ट्रस्ट को दूसरे ट्रस्ट में बदला जा सकता है।

48. क्या ट्रस्ट या वसीयत को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?
उत्तर: हाँ, यदि ट्रस्ट या वसीयत में धोखाधड़ी, दबाव, अनुचित प्रभाव या कानूनी त्रुटियां पाई जाती हैं, तो इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

49. क्या ट्रस्टी अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर सकता है?
उत्तर: नहीं, यदि कोई ट्रस्टी अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है, तो उसे अदालत द्वारा हटाया जा सकता है और कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है।

50. वसीयत और ट्रस्ट में से कौन अधिक सुरक्षित होता है?
उत्तर: ट्रस्ट अधिक सुरक्षित होता है क्योंकि यह व्यक्ति के जीवनकाल में प्रभावी होता है, अदालत की प्रक्रिया से नहीं गुजरता, और संपत्ति की दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है।