संविदा विधि-I (Law of Contract-I) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

  1. संविदा की परिभाषा: एक संविदा एक वैध समझौता है, जो दो या दो से अधिक पक्षों के बीच एक निश्चित उद्देश्य के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी होता है। यह समझौता स्वीकृति, प्रस्ताव, और वादे पर आधारित होता है।

  2. संविदा विधि की परिभाषा: संविदा विधि वह विधि है जो समझौतों, उनके तत्वों, और पक्षों के अधिकारों और कर्तव्यों को नियंत्रित करती है। यह समझौतों की वैधता, लागू होने, उल्लंघन और कानूनी निवारण से संबंधित होती है।
  3. संविदा के आवश्यक तत्व:
    • प्रस्ताव (Offer)
    • स्वीकृति (Acceptance)
    • विचार (Consideration)
    • क्षमता (Capacity)
    • कानूनी उद्देश्य (Legal Purpose)
    • स्वतंत्र इच्छा (Free Consent)
  4. प्रस्थापना की परिभाषा: प्रस्ताव वह अभिव्यक्ति है जिसके द्वारा एक पक्ष दूसरे को संविदा करने का इरादा दिखाता है। यह एक पक्ष द्वारा दूसरे को एक प्रस्ताव देना है, जिसे स्वीकार किया जा सकता है।
  5. करार की परिभाषा: करार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच एक समझौता है, जिसमें प्रत्येक पक्ष कुछ वादा करता है, और वे एक-दूसरे के प्रति कानूनी दायित्व बनाते हैं। इसे एक संविदा भी कहा जा सकता है।
  6. अभिव्यक्त प्रस्ताव और विवक्षित प्रस्ताव:
    • अभिव्यक्त प्रस्ताव वह प्रस्ताव है, जो स्पष्ट रूप से शब्दों या अन्य संकेतों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
    • विवक्षित प्रस्ताव वह प्रस्ताव है, जो मौन में या इशारों से व्यक्त किया जाता है, लेकिन उसकी स्वीकृति की स्थिति स्पष्ट होती है।
  7. सामान्य प्रस्ताव: सामान्य प्रस्ताव एक ऐसा प्रस्ताव होता है, जो किसी विशेष व्यक्ति के बजाय सामान्य रूप से सभी को प्रस्तुत किया जाता है। इसे सार्वजनिक प्रस्ताव भी कहा जाता है, जैसे किसी वस्तु का विज्ञापन करना।
  8. प्रति प्रस्ताव या क्रॉस प्रस्ताव: क्रॉस प्रस्ताव दो विपरीत प्रस्तावों का आदान-प्रदान होता है, जिसमें एक पक्ष द्वारा किया गया प्रस्ताव दूसरे पक्ष द्वारा प्रतिपादित या विरोध किया जाता है।
  9. स्वीकृति की परिभाषा: स्वीकृति वह अभिव्यक्ति है, जिसके माध्यम से प्रस्तावक का प्रस्ताव दूसरे पक्ष द्वारा स्वीकार किया जाता है, जिससे संविदा की स्थापना होती है।
  10. प्रस्ताव का आमंत्रण: प्रस्ताव का आमंत्रण वह कार्रवाई है, जो किसी को प्रस्ताव करने का अवसर देती है, लेकिन यह स्वीकृति की स्थिति नहीं होती। जैसे व्यापार में मूल्य सूची देना।
  11. प्रस्ताव वापस कब लिया जा सकता है: प्रस्ताव तब तक वापस लिया जा सकता है जब तक दूसरा पक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर लेता है। एक बार स्वीकृति मिल जाने के बाद प्रस्ताव वापसी नहीं हो सकती।
  12. प्रतिग्रहण का प्रतिसंहरण: प्रतिग्रहण का प्रतिसंहरण तब होता है जब किसी पक्ष ने पहले की गई स्वीकृति को वापस ले लिया हो, और यह कानूनी रूप से मान्य नहीं होता है।
  13. टेलीफोन द्वारा स्वीकृति: टेलीफोन द्वारा स्वीकृति वह स्थिति है, जिसमें एक व्यक्ति प्रस्ताव को स्वीकार करने का इरादा व्यक्त करता है, जब वह दूसरे पक्ष से फोन के माध्यम से बातचीत करता है।
  14. मानक संविदा: मानक संविदा एक पूर्वनिर्धारित या जनरल फार्म होती है, जो एक पक्ष द्वारा दूसरे को पेश की जाती है, और इसमें कोई संशोधन या वार्ता नहीं होती।
  15. प्रतिफल से क्या तात्पर्य है: प्रतिफल (Consideration) वह मूल्य है जो एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को दिया जाता है, ताकि संविदा वैध और कानूनी बन सके। यह किसी प्रकार की संपत्ति, सेवा या वादा हो सकता है।
  1. किन परिस्थितियों में विप्रतिफल के बिना संविदा मान्य होती है: कुछ परिस्थितियाँ हैं, जिनमें बिना प्रतिफल के भी संविदा वैध होती है। जैसे कि
  • मनोबल (Natural Love and Affection): जब कोई व्यक्ति अपने परिवार के सदस्य को बिना प्रतिफल के कोई वादा करता है।
  • बोली पर आधारित संविदा: सरकारी नीलामी या बोली में, एकतरफा वादा बिना प्रतिफल के हो सकता है।
  • अधिकार को निभाने का वादा: किसी पक्ष द्वारा अधिकारों का पालन करने के लिए वादा करना बिना प्रतिफल के हो सकता है।
  1. अवयस्क कौन है? क्या अवयस्क की संविदा शून्य होती है: अवयस्क वह व्यक्ति होता है जिसकी आयु 18 वर्ष से कम होती है। अवयस्क की संविदा सामान्यत: शून्य मानी जाती है, सिवाय उन संविदाओं के जो उसकी ज़रूरतों से जुड़ी हों, जैसे कि वस्तुएं या सेवाएँ जो उसके दैनिक जीवन के लिए आवश्यक हों।
  2. सुस्थिर चित से क्या समझते हैं: सुस्थिर चित का मतलब है वह मानसिक स्थिति जिसमें व्यक्ति पूरी तरह से अपने फैसले को समझने और उसे लागू करने में सक्षम हो। इसमें व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सामान्य होना चाहिए।
  3. सम्मति या मतैक्य की परिभाषा: सम्मति या मतैक्य का मतलब है दोनों पक्षों के बीच सहमति, जो स्वीकृति और प्रस्ताव के मेल से उत्पन्न होती है। यह एक समझौते का आधार है, जब दोनों पक्ष एक ही समझौते पर सहमत होते हैं।
  4. स्वतंत्र सहमति क्या है: स्वतंत्र सहमति का मतलब है कि पक्षों ने किसी दबाव, धोखाधड़ी या अनुचित प्रभाव के बिना स्वेच्छा से किसी समझौते पर सहमति व्यक्त की हो। यह पूरी तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष होनी चाहिए।
  5. सक्षम पक्षकार: सक्षम पक्षकार वह व्यक्ति होता है जो संविदा करने के लिए कानूनी रूप से सक्षम हो, यानी जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक हो, मानसिक स्थिति ठीक हो और वह किसी अन्य कानूनी कारण से प्रतिबंधित न हो।
  6. शून्य संविदा: शून्य संविदा वह संविदा होती है जिसे कानूनी दृष्टि से कभी भी वैध नहीं माना जा सकता। उदाहरण के लिए, जब संविदा का उद्देश्य अवैध होता है या जब इसमें किसी पक्ष का कोई प्रस्ताव नहीं होता।
  7. शून्यकरणीय संविदा: शून्यकरणीय संविदा वह होती है जो शुरुआत में वैध होती है, लेकिन बाद में किसी कारण से एक पक्ष द्वारा उसे शून्य कर लिया जा सकता है। यह संविदा किसी विवाद के बाद एक पक्ष द्वारा रद्द की जा सकती है।
  8. सरकारी संविदा: सरकारी संविदा वह संविदाएँ होती हैं जो सरकारी संस्थाओं द्वारा या उनके लिए की जाती हैं। इसमें सरकार किसी व्यक्ति या संस्था से कोई सेवा, वस्तु या कार्य करती है, और इसके लिए कानूनी प्रक्रिया और शर्तों का पालन किया जाता है।
  9. संविदा से असंबद्ध व्यक्ति: संविदा से असंबद्ध व्यक्ति वह होता है जो किसी समझौते का हिस्सा नहीं है और उसका इस संविदा से कोई कानूनी अधिकार या दायित्व नहीं जुड़ा है।
  10. प्रपीड़न क्या है: प्रपीड़न (Coercion) वह मानसिक दबाव है, जब किसी को किसी अपराध या भय के द्वारा किसी समझौते को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाता है। यह दबाव किसी अवैध कार्य के द्वारा उत्पन्न होता है।
  11. असम्यक असर क्या है: असम्यक असर (Undue Influence) तब होता है जब एक पक्ष दूसरे पक्ष पर अत्यधिक प्रभाव डालता है, जिससे दूसरे पक्ष की स्वतंत्र इच्छा प्रभावित होती है और वह अपने निर्णय को उचित तरीके से नहीं ले पाता।
  12. उत्पीड़न और अनुचित दबाव में अन्तर: उत्पीड़न (Coercion) में दबाव अवैध होता है, जैसे कि किसी को धमकाना या डराना, जबकि अनुचित दबाव (Undue Influence) में एक पक्ष दूसरे पर मानसिक दबाव डालता है, जो उसके फैसले को प्रभावित करता है, लेकिन यह अवैध नहीं होता।
  13. कपट की परिभाषा: कपट (Fraud) वह धोखाधड़ी होती है जिसमें किसी पक्ष ने जानबूझकर किसी तथ्य को गलत तरीके से प्रस्तुत किया हो, ताकि दूसरा पक्ष उसे स्वीकार कर ले और उस पर समझौता कर सके।
  14. मिथ्या व्यपदेशन से आप क्या समझते हैं: मिथ्या व्यपदेशन (Misrepresentation) वह स्थिति होती है जब कोई पक्ष जानबूझकर किसी तथ्य को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है, लेकिन इसका उद्देश्य धोखा देना नहीं होता।
  15. कपट और मिथ्या व्यपदेशन में अन्तर: कपट में जानबूझकर गलत जानकारी दी जाती है, जबकि मिथ्या व्यपदेशन में गलत जानकारी दी जाती है, लेकिन इसके पीछे धोखाधड़ी का उद्देश्य नहीं होता।
  16. तथ्य की भूल से आप क्या समझते हैं: तथ्य की भूल (Mistake of Fact) तब होती है जब कोई पक्ष किसी संविदा में प्रवेश करते समय किसी वास्तविक तथ्यों को गलत समझता है।
  17. विधि की भूल: विधि की भूल (Mistake of Law) तब होती है जब कोई पक्ष कानूनी तथ्य या कानूनी स्थिति को गलत समझता है, जैसे कि किसी कानून के बारे में अवगत नहीं होना।
  1. अविधिपूर्ण प्रतिफल: अविधिपूर्ण प्रतिफल (Illegal Consideration) वह प्रतिफल है जो अवैध, अनैतिक, या कानूनी रूप से अस्वीकार्य हो। यदि किसी संविदा में प्रतिफल अवैध है, तो यह संविदा भी अवैध मानी जाती है।
  2. प्रतिफल का पर्याप्त होना आवश्यक नहीं है: इसका मतलब है कि किसी संविदा में प्रतिफल (Consideration) का मूल्य बराबर या समान होना जरूरी नहीं है। एक पक्ष दूसरे पक्ष को कुछ कम मूल्य की वस्तु दे सकता है, लेकिन फिर भी यह वैध संविदा हो सकती है, बशर्ते यह निष्कलंक इच्छा से की गई हो और कोई अन्य शर्त पूरी की गई हो।
  3. विवाह के अवरोधक करार की प्रकृति: विवाह के अवरोधक करार वह संविदा होती है जो किसी व्यक्ति को विवाह करने से रोकने के उद्देश्य से की जाती है। यह आमतौर पर अवैध होती है, क्योंकि किसी व्यक्ति के विवाह के अधिकार पर किसी अन्य को रोकने का प्रयास कानूनी रूप से सही नहीं माना जाता।
  4. अवैध संविदा: अवैध संविदा वह संविदा होती है जिसका उद्देश्य या विषय कानूनी रूप से निषिद्ध होता है। इसमें आमतौर पर अवैध क्रियाएं या काम शामिल होते हैं, जैसे कि नशीली दवाओं का व्यापार या चोरी।
  5. व्यापार के अवरोधार्थ करार: व्यापार के अवरोधार्थ करार वह संविदा होती है जो किसी व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता से व्यापार करने से रोकती है। हालांकि, कुछ शर्तों के तहत यह संविदा वैध हो सकती है, जैसे कि यह एक सीमित समय के लिए हो और किसी विशेष क्षेत्र में हो।
  6. विधिक कार्यवाहियों में अवरोध डालने वाला करार: यह वह संविदा होती है जिसमें किसी पक्ष को किसी कानूनी कार्यवाही (जैसे मुकदमा करना) से रोकने की शर्त होती है। यह संविदा सामान्य रूप से मान्य नहीं होती क्योंकि यह किसी व्यक्ति के कानूनी अधिकारों का उल्लंघन करती है।
  7. संविदा तथा करार में अन्तर:
  • संविदा (Agreement): यह एक सामान्य समझौता है, जिसमें दो या दो से अधिक पक्षों के बीच एक विचार (mutual consideration) होता है, लेकिन यह कानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं हो सकता।
  • करार (Contract): यह एक संविदा होती है, जिसे कानूनी रूप से बाध्यकारी और लागू किया जा सकता है, जिसमें विचार, प्रस्ताव और स्वीकृति होती है।
  1. बो बाजी की संविदा: बो बाजी की संविदा (Wagering Contract) वह संविदा होती है जिसमें एक पक्ष किसी भविष्य की घटना के बारे में दूसरे पक्ष से शर्त लगाता है। इसमें दोनों पक्षों का जोखिम बराबरी से होता है और यह आमतौर पर अवैध मानी जाती है।
  2. समाश्रित संविदा: समाश्रित संविदा (Contingent Contract) वह संविदा होती है, जिसका क्रियान्वयन किसी अनिश्चित घटना या भविष्य की शर्त पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति की जीत पर धनराशि का भुगतान करना।
  3. संविदा के उन्मोचन: संविदा का उन्मोचन (Discharge of Contract) वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से एक संविदा अपने सभी दायित्वों से मुक्त होती है। यह विभिन्न तरीकों से हो सकता है, जैसे कि समझौते से, निष्क्रियता से, उल्लंघन से, या कानूनी कारणों से।
  4. विफलता या भग्नता का सिद्धान्त: विधि में विफलता या भग्नता (Doctrine of Frustration) उस स्थिति को दर्शाता है जब कोई संविदा अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण असंभव हो जाती है। जब कोई कार्य असंभव हो जाता है या संविदा के उद्देश्य को प्राप्त करना असंभव हो जाता है, तो इसे विफल माना जाता है।
  5. निविदा क्या है?: निविदा (Tender) एक प्रकार का प्रस्ताव है, जिसमें कोई पार्टी किसी वस्तु या सेवा की आपूर्ति के लिए अपनी बोली प्रस्तुत करती है। यह आमतौर पर सरकारी या बड़ी कंपनियों द्वारा किया जाता है।
  6. लोकनीति के विरुद्ध करार: लोकनीति के विरुद्ध करार (Agreement against public policy) वह संविदा होती है जो समाज के हित या सार्वजनिक नीति के खिलाफ होती है। जैसे कि अवैध कार्यों को बढ़ावा देना या किसी को कानूनी अधिकारों से वंचित करना।
  7. समय संविदा का सार है: “समय संविदा का सार है” का मतलब है कि संविदा में समय एक महत्वपूर्ण तत्व होता है। अगर किसी संविदा में समय का निर्धारण किया गया है, तो उसे समय पर पूरा करना आवश्यक होता है, क्योंकि समय की देरी से संविदा का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता।
  8. संविदा का नवीनीकरण: संविदा का नवीनीकरण (Novation of Contract) तब होता है जब एक पुरानी संविदा को एक नई संविदा से बदल दिया जाता है, जिसमें पुराने दायित्वों को समाप्त करके नए दायित्व तय किए जाते हैं।
  9. संविदा का पूर्वकालिक भंग: पूर्वकालिक भंग (Anticipatory Breach of Contract) वह स्थिति होती है जब एक पक्ष अपनी संविदा को पूरा करने का इरादा पहले ही व्यक्त कर देता है, यह दर्शाता है कि वह भविष्य में अपने दायित्वों को नहीं निभाएगा।
  10. असम्भवता: असम्भवता (Impossibility) तब होती है जब किसी संविदा के तहत किए गए कार्य को किसी कारणवश संभव नहीं बनाया जा सकता। यदि संविदा का उद्देश्य असंभव है, तो वह कानूनी रूप से अमान्य होती है।
  11. संविदा-कल्प की परिभाषा: संविदा-कल्प (Contractual Condition) वह शर्त होती है जिसे किसी संविदा के तहत पूरा करना जरूरी होता है। यह शर्त एक पक्ष की जिम्मेदारी होती है और यदि यह पूरी नहीं होती, तो संविदा को रद्द किया जा सकता है।
  1. संविदा एवं संविदा-कल्प में क्या अन्तर है?
  • संविदा (Contract): यह एक कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है, जिसमें एक पक्ष द्वारा प्रस्ताव और दूसरे पक्ष द्वारा स्वीकृति होती है, और इसके परिणामस्वरूप कानूनी दायित्व उत्पन्न होते हैं।
  • संविदा-कल्प (Quasi-Contract): यह उस स्थिति को कहते हैं जब कानूनी दायित्व उस समय उत्पन्न होता है, जब दो पक्षों के बीच कोई संविदा नहीं होती, लेकिन कानून किसी पक्ष को दूसरे पक्ष से लाभ प्राप्त करने के कारण दायित्व सौंपता है। यह वास्तविक संविदा नहीं है, बल्कि न्याय के सिद्धांत पर आधारित होता है।
  1. खोये हुये माल के पाने वाले के क्या कर्तव्य होते हैं?
    खोये हुए माल के पाने वाले के कुछ मुख्य कर्तव्य होते हैं:
  • वह माल को नष्ट करने या हानि पहुँचाने से बचाने के लिए उचित देखभाल करेगा।
  • उसे खोये हुए माल को कानून के तहत उसके मालिक तक पहुँचाना चाहिए, और यदि वह माल किसी अन्य व्यक्ति को सौंपता है, तो उसे माल के मालिक से प्राप्त किए गए किसी भी लाभ की रिपोर्ट करनी चाहिए।
  1. ‘परिनिर्धारित नुकसानी’ को समझाइये।
    परिनिर्धारित नुकसानी (Liquidated Damages) वह राशि होती है, जिसे दोनों पक्षों ने पहले से निर्धारित किया होता है, जिसे एक पक्ष दूसरे पक्ष से संविदा के उल्लंघन की स्थिति में वसूल सकता है। यह राशि तब लागू होती है जब नुकसानी का अनुमान पहले से किया गया हो।
  2. ‘नाम मात्र की नुकसानी’ क्या होती है?
    नाम मात्र की नुकसानी (Nominal Damages) वह क्षतिपूर्ति होती है, जो कानूनी रूप से किसी संविदा का उल्लंघन होने पर दी जाती है, लेकिन इसका उद्देश्य किसी प्रकार की वास्तविक वित्तीय हानि की भरपाई नहीं करना होता। यह केवल कानूनी अधिकार की पुष्टि करने के लिए होती है, जब कोई वास्तविक हानि नहीं हुई हो।
  3. विशेष क्षतिपूर्ति:
    विशेष क्षतिपूर्ति (Special Damages) वह हानि होती है जो संविदा उल्लंघन के कारण विशिष्ट रूप से हुई हो, और यह हानि एक सामान्य परिस्थिति से अधिक होती है। इसमें विशेष परिस्थितियों के कारण हुई हानि का ध्यान रखा जाता है, जैसे कि किसी व्यापारिक अवसर का नुकसान।
  4. संविदा भंग पर क्या उपचार उपलब्ध है?
    संविदा भंग पर उपलब्ध उपचार निम्नलिखित हो सकते हैं:
  • संज्ञानात्मक राहत (Monetary Damages): उल्लंघन करने वाले से भुगतान की मांग।
  • विशिष्ट पालन (Specific Performance): संविदा को विशिष्ट रूप से पूरा करने का आदेश।
  • व्यादेश (Injunction): कार्य को रोकने या जारी रखने का आदेश।
  • संकलन और अन्य उपाय: अन्य कानूनी राहत के उपाय जैसे कि संविदा से संबंधित नुकसानी की रिवर्सल।
  1. विनिर्दिष्ट अनुतोष से आप क्या समझते हैं?
    विनिर्दिष्ट अनुतोष (Specific Relief) एक कानूनी उपाय है जिसमें व्यक्ति को एक विशेष काम को करने का आदेश दिया जाता है, जैसे कि विशिष्ट संविदा के पालन का आदेश। यह सामान्य क्षतिपूर्ति से भिन्न है क्योंकि इसमें व्यक्ति को पैसे के बदले वास्तविक कार्य करने का आदेश दिया जाता है।
  2. “संविदा के विशिष्ट अनुपालन” से आप क्या समझते हैं?
    “संविदा के विशिष्ट अनुपालन” (Specific Performance of Contract) का मतलब है कि जब एक पक्ष संविदा के शर्तों का पालन नहीं करता, तो दूसरे पक्ष को यह अधिकार होता है कि वह न्यायालय से उस संविदा के विशिष्ट पालन का आदेश प्राप्त करे।
  3. व्यादेश क्या है?
    व्यादेश (Injunction) एक न्यायिक आदेश है, जिसके द्वारा किसी पक्ष को किसी कार्य को करने से रोकने या किसी कार्य को करने का आदेश दिया जाता है। यह तब जारी किया जाता है जब न्यायालय मानता है कि बिना इस आदेश के कोई बड़ा नुकसान हो सकता है।
  4. व्यादेश के प्रकार बतलाइये
    व्यादेश के प्रकार निम्नलिखित हैं:
  • अस्थायी व्यादेश (Temporary Injunction): यह एक अस्थायी आदेश होता है, जो अदालत के अंतिम निर्णय से पहले जारी किया जाता है।
  • स्थायी व्यादेश (Perpetual Injunction): यह स्थायी आदेश होता है, जो अदालत के अंतिम निर्णय के बाद जारी किया जाता है और जो किसी पक्ष को स्थायी रूप से किसी कार्य को करने से रोकता है।
  • अस्थायी व्यादेश के आदेश (Interim Injunction): यह विशेष रूप से तुरंत और अंतरिम राहत देने के लिए जारी किया जाता है।
  1. किन संविदाओं का यथावत् पालन नहीं कराया जा सकता है?
    कुछ संविदाओं का यथावत पालन नहीं कराया जा सकता, जैसे:
  • अवैध संविदाएँ: जिनका उद्देश्य अवैध कार्य या व्यापार हो।
  • व्यापार में अवरोध उत्पन्न करने वाली संविदाएँ: जो किसी के व्यापार करने की स्वतंत्रता को रोकती हैं।
  • समाज के विरुद्ध संविदाएँ: जिनका उद्देश्य लोकनीति के खिलाफ हो।
  1. विशिष्ट अनुतोष अधिनियम में वर्णित उन उपबन्धों को बताइये जिसके लिए व्यक्ति विशिष्ट पालन अभिप्राप्त कर सकता है।
    विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 में व्यक्ति को विशिष्ट पालन प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उपबन्धों की अनुमति है:
  • उपलब्ध संपत्ति का विशिष्ट पालन
  • बिना किसी अन्य उपाय के विशिष्ट पालन की आवश्यकता
  • समानता में विषमता के मामले में अनुकूली व्यवस्था
  1. शाश्वत व्यादेश:
    शाश्वत व्यादेश (Perpetual Injunction) वह आदेश है जो अदालत द्वारा दिया जाता है और यह स्थायी होता है, जिसका उद्देश्य किसी को किसी विशेष कार्य को करने से या रोकने से स्थायी रूप से रोकना होता है।
  2. अस्थायी व्यादेश से आप क्या समझते हैं?
    अस्थायी व्यादेश (Temporary Injunction) वह आदेश है जो न्यायालय द्वारा दिया जाता है ताकि किसी कार्य को अस्थायी रूप से रोका जा सके या जारी रखने का आदेश दिया जा सके, जब तक कि अदालत में मामला सुलझ नहीं जाता।
  3. घोषणात्मक आज्ञप्ति का उद्देश्य क्या है?
    घोषणात्मक आज्ञप्ति का उद्देश्य किसी कानूनी स्थिति या अधिकार को प्रमाणित करना है। यह एक प्रकार का अदालत का आदेश होता है जिसमें अदालत किसी कानूनी स्थिति, अधिकार या कर्तव्य की पुष्टि करती है।
  4. समस्याएँ:
    यह संविदा और कानूनी सिद्धांतों से संबंधित समस्याएँ हो सकती हैं, जो न्यायालय में निर्णय के लिए प्रस्तुत की जाती हैं।