Taxation Law Question Part-2

प्रश्न 47. करदाता पहचान संख्या क्या है?

What is Tax Identification Number (TIN)?

उत्तर- ग्यारह (11) अंकों की करदाता पहचान संख्या होगी जो प्रत्येक डीलर के लिये अनुपम है। प्रथम दो अंक राज्य कोड होंगे जिसे केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा प्रयुक्त किया जाता है। अगले 9 अंक यद्यपि भिन्न राज्य में भिन्न होंगे। TIN कम्प्यूटर एप्लीकेशन राज्य वैर डीलर की बिक्री तथा क्रय से सम्बन्धित सूचना की जाँच के लिये वैट विभाग के लिये उपयोगी होगी।

प्रश्न 48. ई-कामर्स क्या है?

What is E-Commerce?

उत्तर-ई-कामर्स- ई-कामर्स अर्थात् इलेक्ट्रानिक कामर्स से आशय कम्प्यूटरों तथा दूरसंचार का उपयोग करते हुए किसी नेटवर्क के ऊपर सम्पन्न किये गये उपभोक्ता तथा व्यवसायिक लेनदेन से होता है अर्थात् ई-कामर्स का अर्थ इन्टरनेट पर सेवाओं अथवा सामग्रियों का किसौ मूल्य के साथ विनिमय किया जाना होता है। अन्य बातों के साथ-साथ इसमें ऑन-लाइन खरीददारी, वस्तुओं तथा सेवाओं का ऑन-लाइन व्यापार, इलेक्ट्रॉनिक फण्ड हस्तान्तरण, इलेक्ट्रॉनिक डेटा आदान-प्रदान तथा वित्तीय विलेखों का ऑन-लाइन व्यापार शामिल होता है।

       आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन ई-कामर्स को कुछ और सीमित तरीके से व्यक्तियों एवं संगठनों के बीच किये गये व्यावसायिक लेन-देन के रूप में परिभाषित करता है, जो डिजिटाण्ड डेटा यूनिटों, ध्वनि तथा दृश्य छवियों के प्रसंस्करण अथवा संचरण पर आधारित होते हैं, जिन्हें मुक्त नेटवकों के साथ एक प्रवेशमार्ग के साथ मुक्त नेटवकों (जैसे इन्टरनेट) अथवा अत्यन्त सीमित नेटवकों (जैसे मिनीटेल) आदि पर संचालित किया जाता है। अतः यह अधिक विशिष्ट परिभाषा सीमित नेटवर्कों पर संचालित इलेक्ट्रॉनिक डेटा इन्टरचेंज (EDI) को शामिल नहीं करेगी, यदि ऐसी EDI का उपयोग स्वयं उन्हीं के द्वारा मुक्त नेटवर्क (उदाहरणार्थ, किसी सीमित नेटवर्क पर प्रयुक्त क्रेडिट कार्ड, जो किसी कार्ड संगठन के साथ विनिर्दिष्ट व्यापारियों से जुड़े हों) तक पहुँच के बिना ही किया जा रहा हो।

       परिभाषा चाहे कुछ भी हो, व्यापार संचालन किये जाने की यह विधि व्यापार की पारम्परिक विधि से बहुत अधिक भिन्न है। जहाँ पारम्परिक व्यापार पूरी तरह से भौतिक उपस्थिति तथा माल की सुपुर्दगी पर निर्भर रहे हैं, वहीं इन्टरनेट के माध्यम से व्यापार किये जाने से, जैसा कि ई-कामर्स लेनदेनों के मामले में होता है, माल की भौतिक उपस्थिति की जरा भी आवश्यकता नहीं होती। परिणामस्वरूप, राष्ट्रों के बीच की भौगोलिक सीमाओं का कोई महत्व नहीं रह जाता। दूसरे, इस प्रकार के लेनदेनों में माल की भौतिक सुपुर्दगी आवश्यक नहीं होती। जहाँ माल एवं सेवायें डिजिटल स्वरूष में उपलब्ध हों, जैसे, कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर, संगीत, पत्रिकायें, चित्र इत्यादि, वहाँ भौतिक लेनदेनों को बाइट्स के स्थानान्तरण से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। तीसरे, ई-कामर्स लेनदेन को सम्पूर्ण विश्व में लगभग तुरन्त पूरा किया जा सकता है जिसमें दिन के किसी भी समय से कोई अन्तर नहीं पड़ता। 

प्रश्न 49. केन्द्रीय माल एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के अन्तर्गत ‘इनपुट कर ‘से क्या तात्पर्य है?

What do you mean by ‘Input Tax’ under the Central Goods and Services Tax Act, 2017?

उत्तर- इनपुट कर (Input Tax) – केन्द्रीय माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 2(62) के अनुसार किसी रजिस्ट्रीकृत व्यक्ति के सम्बन्ध में इनपुट कर (Input tax) से अभिप्राय माल या सेवा या दोनों के किसी प्रदाय पर प्रभारित-

(i) केन्द्रीय कर,

(ii) राज्य कर,

(iii) एकीकृत कर, या

(iv) संघ राज्य क्षेत्र सम्बन्धी कर से है। इसमें निम्नांक्ति को भी सम्मिलित किया गया है-

(क) माल के आयात पर प्रभारित एकीकृत माल एवं सेवा कर,

(ख) धारा 9(3) एवं (4) के अधीन संदेय कर,

(ग) एकीकृत माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 5(3) एवं (4) के अधीन संक्ष्य करः

(घ) सम्बन्धित राज्य माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 9(2) एवं (4) के अधीन संदेय कर, तथा

(ङ) संघ राज्य क्षेत्र माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 7(3) एवं (4) के अधीन संदेय कर।

लेकिन इसमें उद्‌ग्रहण के प्रशमन के अधीन संदेय कर सम्मिलित नहीं है।

प्रश्न 50. केन्द्रीय साल एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के अन्तर्गत ‘इनपुट सेवा वितरकै’ से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by ‘Input Service Distributor’ ander the CGST Act, 2017?

उत्तर- इनपुट सेवा वितरक (Input Service Distributor) – केन्द्रीय माल एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 2(61) के अनुसार इनपुट सेवा वितरक से माल या सेवाभों या दोनों के ऐसे प्रदायकर्ता का कार्यालय अभिप्रेत हैं, जो-

(i) इनपुट सेवाओं की प्राप्ति के मद्दे धारा 31 के अन्तर्गत जारी किये गये ‘बोजक’ (Invoices) प्राप्त करता है, तथा

(ii) ऐने कार्यालय के समान स्थायी खाता संख्यांक वालें कराधेय माल या सेवाओं या दोनों के ऐसे, प्रदाश्कर्ता को उक्त सेवाओं पर संदत्त-

(क) केन्द्रीय कर,

(ख) राज्य कार,

(ग) एकीकृत कर, या

(घ) संघ राज्य क्षेत्र सम्बन्धी कर,

के प्रत्यय का वितरण करने के प्रयोजनों के लिए कोई विहित दस्तावेंज जारी करता है।

प्रश्न 51. जी० एस० टी० अधिनियम, 2017 के ‘अन्तर्गत नियुक्त अधिकारियों की शक्तियों का उल्लेख करें।

Describe the powers of officer appointed under GST Act, 2017.

उत्तर – केंम्द्रीय माल और सेवा, कर अधिनियम, 2017 की धारा 5 में नियुक्त अधिकारियों की शक्तियों का ‘उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार-

(1) सभी केन्द्रीय कर अधिकारी, विहित शर्तों एवं परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो बोर्ड द्वारा अधिरोपित की जायें. इस अधिनियम के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग एवं कर्तव्यों का निर्वहन कर सकेंगे।

(2) सभी केन्द्रीय कर अधिकारी अपने अधीनस्थ अधिकारियों की, इस अधिनियम के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग एवं कर्तव्यों का निर्वहन कर सकेंगे।

(3) आयुक्त द्वारा अपनी शक्तियों का, विहित शर्तों एवं परिसीमाओं के अधीन रहते हुए अपने अधीनस्थ अधिकारियों को ‘प्रत्यायोजन’ किया जा सकेगा।

(4) अपील प्राधिकारी द्वारा किसी अन्य केन्द्रीय कर अधिकारी की शक्तियों का प्रयोग एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन नहीं किया जायेगा।

प्रश्न 52. ‘जमा एवं नाये पत्र’ से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by ‘credit and debit notes’?

उत्तर- जमा एवं नामे पत्र (Credit and debit notes) केन्द्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 34 में ‘जमा एवं नामे पत्र’ के बारे में प्रावधान किया गया है। इसकी उपधारा (1) के अनुसार- जहाँ किसी माल या सेवाओं या दोनों की पूर्ति के लिए कोई कर बीजक जारी किया जाता है एवं उस कर बीजक में प्रभारित कर योग्य मूल्य या ऐसी पूर्ति के सम्बन्ध में कर योग्य मूल्य या संदेय कर से अधिक पाया जाता है या जहाँ प्रदायकर्ता द्वारा पूर्ति किये गये माल को वापस किया जाता है या जहाँ पूर्ति किये गये माल या सेवाओं या दोनों में कमी पाई जाती है, वहाँ रजिस्ट्रीकृत व्यक्ति, जिसने ऐसा माल या सेवाओं या दोनों की पूर्ति की है, प्रदायकर्ता को विहित विशिष्टियों को दशति हुए ‘जमा पत्र’ (credit note) जारी कर सकेगा।

उपधारा (3) में यह कहा गया है कि जहाँ किसी माल या सेवाओं की पूर्ति के लिए कोई कर बीजक जारी किया गया है एवं उस पर कर बीजक में कर-योग्य मूल्य या प्रभारित कर-योग्य मूल्य या ऐसी मूर्ति के सम्बन्ध में संदेय कर से कम पाया जाता है, वहाँ रजिस्ट्रीकृत व्यक्ति जिसने ऐसे माल या सेवाओं या दोनों की पूर्ति की है, प्राप्तिकर्ता को विहित विशिष्टियों को दर्शाते हुए ‘नामे पत्र’ (Debit note) जारी करेगा।

प्रश्न 53. ‘उपभोक्ता कल्याण निधि’ से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by ‘Consumer Welfare Fand”?

उत्तर- केन्द्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 57 में उपभोक्ता कल्याण निधि के बारे में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार-सरकार उपभोक्ता कल्याण निधि नामक एक निधि का गठन करेगी एवं उस निधि में निम्नलिखित का प्रत्यय किया जायेगा-

(क) धारा 54(5) में निर्दिष्ट रकम,

(ख) निधि में प्रत्यय की गई रकम के विनिधान से कोई आय, एवं

(ग) उसके द्वारा प्राप्त ऐसी अन्य धनराशियाँ।

इस अधिनियम की धारा 58 में ‘उपभोक्ता कल्याण निधि’ के उपयोग के बारे में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार-

(1) निधि में प्रत्यय की गई राशियों का सरकार द्वारा उपयोग ‘उपभोक्ताओं के कल्याण’ (Welfare of the consumers) के लिए विहित रीति में किया जायेगा।

(2) सरकार या उसके द्वारा विनिर्दिष्ट प्राधिकारी निधि के सम्बन्ध में उचित एवं पृथक् लेखे तथा पृथक् अभिलेख रखेगा और लेखाओं का एक वार्षिक विवरण भारत के ‘नियंत्रक महालेखापरीक्षक’ के परामर्श से विहित प्ररूप में तैयार करेगा।

प्रश्न 54. परिसमापक कौन होता है?

उत्तर-परिसमापक (Liquidator) – कम्पनी के संदर्भ में ‘परिसमापक’ परिसमापन वाली कम्पनी का प्रापक होता है। आवश्यक होने पर अन्तरिम परिसमापक की नियुक्ति भी की जा सकती है। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 40 में ‘प्रापक’ के बारे में प्रावधान किया गया है।

        प्रापक की नियुक्ति न्यायालय द्वारा वादग्रस्त सम्पत्ति की सुरक्षा व देख-रेख के लिए की जाती है। वह न्यायालय का पदाधिकारी माना जाता है।

     कम्पनी के संदर्भ में ‘परिसमापक’ परिसमापन वाली कम्पनी का प्रापक होता है। आवश्यक होने पर अनन्तिम परिसमापक की नियुक्ति भी की जा सकती है। मे० बेकमेन्स इण्डस्ट्रीज प्रा० लि० बनाम मे० न्यू कानपुर फ्लोर मिल्स लि०, ए० आई० आर० 2008 एस० सी० 2699

एक परिसमापक-

(i) कम्पनी की सम्पत्ति को अपनी अभिरक्षा में लेता है।

(ii) सम्पत्ति की व्यवस्था एवं वितरण पर उचित नियंत्रण रखता है।

(iii) आय-व्यय के लेखों का अंकेक्षण करता है।

(iv) कम्पनी की सम्पत्ति से अनुचित लाभ उठाने वाले व्यक्तियों से ऐसे लाभ की वसूली कर सकता है।

प्रश्न 55. केन्द्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 के अन्तर्गत अग्रिम विनिर्णय से क्या अभिप्रेत है?

What is the signification of the ‘advance ruling’ under Central Goods and Services Tax Act, 20172

उत्तर- अग्निम विनिर्णय (Advance Ruling)- केन्द्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 95 के अनुसार,अग्निम विनिर्णय से किसी प्राधिकरण या अपील प्राधिकरण द्वारा किसी आवेदक को धारा 97 (2) या धारा 100 (1) में माल या सेवाओं या दोनों की आपूर्ति, जो आवेदक द्वारा की गई है या किये जाने का आशय है, पर विनिर्दिष्ट विषयों या प्रश्नों पर दिया गया ‘अग्रिम विनिश्चय’ अभिप्रेत है।

         अधिनियम की धारा 96 में अग्रिम विनिर्णय प्राधिकरण के बारे में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार-

         इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए राज्य माल और सेवा कर अधिनियम या संघ राज्य क्षेत्र माल और सेवा कर अधिनियम के उपबंधों के अधीन गठित ‘अग्रिम विनिर्णय प्राधिकरण’ को उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के सम्बन्ध में ‘अग्रिम विभिर्णय प्राधिकरण समझा जायेगा।

प्रश्न 56. पुनरीक्षण से आप क्या समझते हैं?

Write do you understand by Revision?

उत्तर – पुनरीक्षण (Revision) – पुनरीक्षण अवर न्यायालय की अधिकारिता सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करने का उपक्रम है। जब अवर न्यायालय का निर्णय न्याय के सारभूत उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रहता है, तब अपर न्यायालय द्वारा पुनरीक्षण के माध्यम से उसमें हस्तक्षेप किया जाता है।

       मेजर माइकल मेकरेन्हास बनाम मेजर जोन्स मेकरेन्हास, ए० आई० आर० (1996) कर्नाटक के मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि किसी मामले में पुनरीक्षण तब किया जाता है, जब-

(i) उस विनिश्चय के विरुद्ध अपील संधारंण- योग्य नहीं हो; तुथा

(ii) अधीनस्थ न्यायालय द्वारा अधिकारिता सम्बन्धी कोई त्रुटि की गई हो।

      आर० वी० टी० सम्बन्दम बनाम के० के० आई० मोहम्मद अली, ए० आई० आर० (2009) एन० ओ० सी० 461 के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पुनरीक्षण क्रे निम्नांकित आधार बताये गये हैं जहाँ अधीनस्थ न्यायालय द्वारा-

(1) अधिकारिता से, बाहर कार्य किया गया हो,

(ii) अधिकारिता का प्रयोग नहीं किया गया हो,

(iii) विनिश्चय में अनियमितता, अवैधानिकता अथवा विपर्यस्तता रही हो, तथा

(iv) इनसे पक्षकारों के साथ न्याय नहीं हो पाया हो।

पुनरीक्षण का मुख्य उद्देश्य-

(क) अधिकारिता सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करना, तथा

(ख) न्याय के उद्देश्यों को प्राप्त करना है।