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Uttar Pradesh Rajwa 2006 Question Part-2

प्रश्न 6. उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम की मुख्य विशेषताओं का विवरण दें। इसके मुख्य उद्देश्य क्या थे? किस सीमा तक उन उद्देश्यों की प्राप्ति हुई ? Describe briefly the sallent features of the U.P.ZALR. Act. What were the main objects of the U.P.Z.A.L.R. Act? To what extent have they been achieved?

उत्तर- उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ (Snilent features to U.P.ZA. & L.R. Act)- इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) जमींदारी प्रथा की समाप्ति (Abolition of Zamindari System) – इस अधिनियम के द्वारा निहित होने के दिनांक अर्थात् 1 जुलाई, 1952 से जमींदारों के सब अधिकार आगम एवं हित जो भूमि में, भूमि के निचले भाग में, अकृषित भूमि में, बंजर आदि में थे, समाप्त होकर राज्य सरकार में निहित हो गये और इस प्रकार जमींदारी प्रथा सदा के लिए प्रदेश में समाप्त हो गयी।

(2) मुआवजा का भुगतान (Payment of compensation)- अधिनियम में उन व्यक्तियों को, जिनकी जमींदारी राज्य सरकार में निहित हुई है, मुआवजा का भुगतान करने की उचित व्यवस्था की गयी है। यह मुआवजा उनकी शुद्ध वार्षिक आय के आठ गुने के. बराबर देय होगा। जमींदार छोटा हो या बड़ा हो, वह किसी जमींदारी का ठेकेदार हो, मुआवजा पाने का हकदार है।

(3) पुनर्वास अनुदान का भुगतान (Payment of Rehabilitation Grant)- इस अधिनियम ने उन जमींदारों को जिनकी सालाना देय मालगुजारी दस हजार रुपये तक है, पुनर्वास अनुदान प्राप्त करने के लिए हकदार घोषित किया है। यह अनुदान मुआवजा के अतिरिक्त है।

(4) खेती करने के सबके अधिकार सुरक्षित रखे गये (Right of all to: cultivate kept secured) – अधिनियम में भूमि विधि को इस नीति को सुरक्षित रखा गया है कि जो व्यक्ति भूमि पर खेती करता है वह उसे धारित करे; इसलिए ऐसे व्यक्तियों को भूमि का स्वामी बना दिया गया है। इसलिए जमींदार भी, जमींदारी चली जाने के बाद भी, उस भूमि का भूमिधर बन गया है जो उसकी खुदकाश्त भूमि थी या ऐसी सीर भूमि थी जिसे उसने पट्टे पर नहीं उठाया था। इसी प्रकार शिकमी काश्तकार भी उस भूमि के अधिवासी बन गये जो उनके कब्जे में थी।

(5) नई जोतदारी व्यवस्था (New tenure arrangement )– इस अधिनियम के पहले 14 प्रकार की भ्रामक क्लिष्ट जोतदारी व्यवस्था लागू थी, जिसे जमींदारी प्रथा के साथ- साथ समाप्त करके उनके स्थान पर केवल चार प्रकार की जोतदारी प्रारम्भ में कायम की गयी थी — (1) भूमिधर (2) सीरदार, (3) अधिवासी एवं (4) असामी अब सीरदार और अधिवासी भी नहीं रहे और भूमिधर के दो वर्ग हो जाने से निम्म तीन प्रकार के जोतदार मौजूद हैं- (1) अन्तरणीय अधिकार वाला भूमिधर, (2) बिना अन्तरणीय अधिकार वाला भूमिधर, और (3) आसामी।

(6) पट्टे पर भूमि को उठाने पर प्रतिबन्ध (Restriction on leasing out the land) – अक्षम व्यक्तियों को छोड़कर, जिनका विवरण इस अधिनियम की धारा 157 (1) में दिया गया है, कोई भी व्यक्ति अपनी कृषि भूमि के पट्टे पर नहीं उठा सकता है। जिन व्यक्तियों को भूमि उठाने का अधिकार दिया गया है वे शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित है या उन्हें कानूनी क्षमता नहीं है, या वे इस परिस्थिति में हैं कि स्वयं खेती-बारी नहीं कर सकते। जैसे अवयस्क, पागल, मूर्ख या शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित हैं जैसे अन्धा व्यक्ति, जेल में निरुद्ध व्यक्ति, वृद्ध व्यक्ति, अविवाहित या विधवा या तलाकशुदा या पत्ति से अलग हुई या ऐसी स्त्रियों जिनके पति अन्धे या किसी शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित हों या 25 वर्ष से कम उम्र के विद्यार्थी, जो किसी मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्था में शिक्षा ग्रहण कर रहे हों और जिनके पिता मर गये हों, या पागल या जड़ हों या अन्य शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित हों, या प्रतिरक्षा कर्मचारी हो।

(7) ग्रामीण जनतंत्र (Rural Democracy) — गाँव सभा और गाँव पंचायत की स्थापना करके तथा जमींदारों से ली गई भूमि को गाँव सभाओं में निहित करके राज्य सरकार ने ग्रामीण जनतंत्र की स्थापना की है। इस अधिनियम के द्वारा गाँव सभा की ओर से सभी भूमि का प्रबन्ध करने के लिए एक समिति भूमि प्रबन्धक समिति की स्थापना की गई है। इस प्रकार सारे प्रदेश में ये गाँव छोटे-छोटे गणतन्त्र के रूप में स्वायत्तशासी हैं।

(8) निजी कुओं, इमारतों, इमारतों में संलग्न भूमि, आबादी के वृक्षों का उनके मालिकों के साथ बन्दोबस्त – इस अधिनियम के द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने निजी कुओं, इमारतों, इमारतों से संलग्न भूमि और आबादी के वृक्षों का स्वामी होगा, मानो राज्य सरकार ने उनके साथ उनका बन्दोबस्त कर दिया है। (धारा 9)

(9) अलाभकर जोतों के निर्माण पर रोक- अधिनियम के अन्तर्गत 3-1/8 एकड़ (पक्का 5 बीघा) तक की जोतों का विभाजन नहीं हो सकता। यदि बंटवारे की भूमि 3-1/8 एकड़ या उससे कम है तो न्यायालय इस भूमि के विक्रय की अनुमति देगा और प्राप्त विक्रय धनराशि का बंटवारा हक के अनुसार किया जायेगा।

राज्य सरकार ने धारा 168 (क) द्वारा लगाये गये चक के टुकड़े करने पर प्रतिबन्ध की शर्त को उ० प्र० जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार (संशोधन) अधिनियम, 2004 द्वारा निरस्त कर दिया है। परिणामतः अब छोटे काश्तकार अपने चर्को को छोटे-छोटे टुकड़े में विक्रय करने में स्वतन्त्र हैं।

(10) अधिक भूमि के जमाव पर रोक भविष्य में कोई भी कुटुम्ब दान या विक्रय – द्वारा ऐसी जोत नहीं प्राप्त करेगा जो उसकी अपनी जोत मिलाकर उत्तर प्रदेश में कुल 12-1/2 एकड़ से अधिक हो। जिसके पास 12-1/2 एकड़ भूमि है ऐसे लोग कोई और भूमि दान या विक्रय द्वारा प्राप्त नहीं कर सकेंगे।

(11) समान उत्तराधिकार – इस अधिनियम के पूर्व के कुछ जोतदार अपनी वैयक्तिक विधि (Personal Law) द्वारा शासित होते थे और कुछ काश्तकारी अधिनियम में वर्णित विधि द्वारा किन्तु इस अधिनियम ने भूमि विधि से न केवल जमींदारी का सफाया कर दिया वरन् धर्म (मजहब) को भी समाप्त कर दिया। किसी जोतदार के मरने पर उसकी भूमि का न्यागमन धारा 171 से 175 तक में वर्णित उसके उत्तराधिकारियों को जायेगा न कि उसके वैयक्तिक विधि उत्तराधिकारियों को उत्तराधिकार की विधि भूमिधर, सीरदार (असंक्राम्य अधिकार वाला भूमिधर) और असामी तीनों पर समान रूप से लागू होगी।

       उक्त अधिनियम में असंक्राम्य अधिकार वाले भूमिधर को लगातार दस वर्ष तक कब्जे में बने रहने पर उसके अधिकार परिपक्व होकर संक्राम्य अधिकार प्राप्त कर लेता था। इसी प्रकार असामी के अधिकार निश्चित समय तक के लिए था।

         सार्वजनिक उपयोगिता (Public utility) की भूमि पर किसी भी व्यक्ति को हक या अधिकार प्राप्त नहीं हो सकता था भले ही ऐसी भूमि पट्टे पर खेती करने के लिए निश्चित समय के लिए दे दी जाती थी। आवासीय पट्टे की व्यवस्था कर गरीब जोतदार या कृषि मजदूरों को भूमि आवंटित करके उनकी आजीविका से वंचित नहीं किया गया था।

       परन्तु अभ्यन्तर काल में शासन द्वारा ऐसा समझा गया कि उक्त अधिनियम के अलावा अनेक ऐसे पुराने अधिनियम बेकार चल रहे हैं जिनकी विधिक दृष्टि से कोई महता नहीं रह गई है अत: शासन ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 को निरस्त कर नया प्राविधान बनाने की मंशा व्यक्त की तथा सम्यक् विचारोपरान्त उ० प्र० जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 के स्थान पर “उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 (उ० प्र० अधिनियम संख्या 8 वर्ष 2012 ) ” को विधानमण्डल ने दिनांक 12 दिसम्बर 2012 को पारित कर दिया, जिसे अधिसूचना द्वारा उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 1 की उपधारा (3) के अधीन शक्ति का प्रयोग करके महामहिम राज्यपाल ने संहिता की धाराएं 1, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 233 एवं 234 को दिनांक 18 दिसम्बर, 2015 से लागू कर दिया गया तथा शेष धाराओं को दिनांक 11 फरवरी, 2016 से प्रभावी कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप प्रदेश से अब उ० प्र० जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 पूर्णतः समाप्त हो चुका है तथा वर्तमान उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 भूमि अधिकारों, राजस्व आदि के सम्बन्ध में लागू हो चुकी है।

         अधिनियम के उद्देश्य (Object of the Act)- किसी अधिनियम के उद्देश्य का पता उसकी प्रस्तावना से, उद्देश्यों और कारणों का विवरण से और पूरे अधिनियम को एक साथ पढ़ने से चलता है। इस अधिनियम की प्रस्तावना इस प्रकार है।

      “चूँकि उत्तर प्रदेश में कृषक और राज्य के बीच मध्यवर्तियों के अस्तित्व से युक्त जमींदारी प्रथा का उन्मूलन करने, उक्त मध्यवर्तियों के अधिकार, आयम और हित को अर्जित करने तथा उक्त उन्मूलन एवं अर्जन के फलस्वरूप भौमिक अधिकार सम्बन्धी विधि में सुधार करने एवं उससे सम्बन्धित अन्य बातों की व्यवस्था करने के लिए प्रावधान करना इष्टकर है इसलिए निम्नलिखित बातें अधिनियमित की जाती हैं-

(1) कृषकों और राज्य के बीच मौजूद जमींदारों को हटाकर जमींदारी प्रथा का अन्त करना;

(2) जमीदारों के अधिकार, आगम और हित का राज्य सरकार द्वारा अर्जित किया जाना;

(3) जमींदारी उन्मूलन के फलस्वरूप भौमिक अधिकारों से सम्बन्धित कानून में सुधार करना;

(4) जमींदारी उम्मूलन के फलस्वरूप उससे सम्बन्धित अन्य बातों के लिए व्यवस्था करना;

(5) जैसे-भूमि का आवंटन, अर्जित की गई भू-सम्पत्ति का पर्यवेक्षण, सुरक्षा एवं मालगुजारी की वसूली आदि।

अधिनियम के उद्देश्यों और कारणों का विवरण (Statement of Object and reasons of the Act) – 10 जून, 1949 को सरकारी गजट में इस विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों का विवरण जो प्रकाशित हुआ था उसका सारांश निम्नलिखित हैं-

(1) जमींदारी प्रथा का उन्मूलन,

(2) मुआवजा का भुगतान करके जमींदारों के अधिकार, आगम और हित का अर्जन

(3) एक समान सरल जोतदारी व्यवस्था स्थापित करना और पुरानी भ्रामक कठिन जोतदारी व्यवस्था को समाप्त करना:

(4) शिकमी पर भूमि उठाने पर रोक लगाना:

(5) ग्रामीण स्वायत्त शासन का विकास

(6) अलाभकर जोतों के निर्माण पर रोक लगाना:

(7) अधिक भूमि के जमाव पर रोक लगाना;

(8) सहकारी खेती को प्रोत्साहित करना; और

(9) सामान्य उपयोगिता की सभी भूमियों को गाँव सभा में निहित करना और उनका प्रबन्ध करने के लिए उसे व्यापक शक्तियाँ साँपना।

        उद्देश्यों की सफलता (Achievement of Objects)- जमींदारी उन्मूलन हुए लगभग 60 वर्ष से ऊपर हो गये यह अधिनियम अपने अधिकांश उद्देश्य के लक्ष्य को प्राप्त करने में अब तक सफल रहा है। उदाहरण के लिए-

(1) कृषकों और राज्य के बीच मौजूद मध्यवर्ती (जमींदार) हट गये और जोतदारों तथा सरकारों के बीच सीधा सम्बन्ध स्थापित हो गया है।

(2) पुरानी भ्रामक कठिन 14 प्रकार की जोतदारी प्रथा समाप्त हो गयी और उसके स्थान पर सरल जोतदारी व्यवस्था स्थापित हो गयी है जिसके अन्तर्गत अब केवल तीन प्रकार के जोतदार हैं- (1) अन्तरणीय अधिकार वाले भूमिधर (11) बिना अन्तरणीय अधिकार वाले भूमिधर और (iii) असामी।

(3) पट्टे पर भूमि उठाने पर रोक लगी हुई है। केवल इस अधिनियम में वर्णित अक्षम व्यक्ति ही अपनी भूमि पट्टे पर उठा सकते हैं।

(4) अधिक भूमि के जमाव पर इस प्रकार रोक लगा दी गई है कि कोई भी परिवार प्रदेश में कहीं भी अपनी जोत मिलाकर कुल 122 एकड़ से अधिक भूमि प्राप्त नहीं कर सकता है।

(5) अलाभकर जोतों के निर्माण पर इस प्रकार रोक लगा दी गई है कि 3 एकड़ या उससे कम भूमि का बँटवारा नहीं किया जा सकता है बल्कि न्यायालय के आदेश से उसकी बिक्री की जायेगी और विक्रय-धन को हिस्सेदारों में बाँट दिया जायेगा।

(6) ग्रामीण स्वायत्त शासन के विकास में यह अधिनियम सफल रहा। गाँवों के प्रशासन के लिए अब तीन स्वायत्तशासी संस्थायें (1) गाँव सभा, (2) गाँव पंचायत और (3) भूमि प्रबन्धक समिति सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं।

(7) सहकारी कृषि को प्रोत्साहन यह अधिनियम सहकारी कृषि की स्थापना और विकास में अवश्य ही असफल रहा है। यद्यपि इस अधिनियम ने सहकारी कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए बहुत सी सुविधाओं की व्यवस्था की थी, फिर भी बहुत कम संख्या में सहकारी कृषि फार्म स्थापित हुए। तब सहकारी कृषि फार्म सम्बन्धी प्रावधानों को सन् 1965 में इस अधिनियम से निकालकर उत्तर-प्रदेश सहकारी समितियाँ अधिनियम, 1965 में रख दिया गया।

      उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर यह आसानी से कहा जा सकता है कि अधिनियम अपने उद्देश्य के अधिकांश भाग को प्राप्त करने में सफल रहा। वर्तमान में इस अधिनियम को निरसित कर अब उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 लाकर के इसके प्रावधानों को और भी सरलीकरण कर दिया गया है।

प्रश्न 7. उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 किन क्षेत्रों में लागू होगा और किन क्षेत्रों में नहीं? स्पष्ट करें। Which areas enforced U.P. Revenue Code, 2006 and which Pareas are not enforced? Explain.

उत्तर- उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 1 (2) के अनुसार इस संहिता का विस्तार सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में होगा। उत्तर प्रदेश राज्य में भू-खातेदारी और भू-राजस्व से सम्बन्धित विधियों का समेकन एवं संशोधन करने और उससे सम्बन्धित एवं आनुषंगिक विषयों की व्यवस्था करने के लिए उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 बनाया गया है इसका विस्तार सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में होगा।

        इस संहिता के उपबन्ध, अध्याय 8 एवं 9 को छोड़कर, सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में लागू होंगे और अध्याय 8 एवं 9 ऐसे क्षेत्रों में लागू होंगे जिन पर प्रथम अनुसूची के क्रम संख्या 19 और 25 पर विनिर्दिष्ट कोई अधिनियम इस संहिता द्वारा उनके निरसन के ठीक पूर्ववर्ती दिनांक को लागू था।

      इस संहिता की धारा 3 (1) के अनुसार, जहां इस संहिता के प्रारम्भ होने के पश्चात् उत्तर प्रदेश के राज्य क्षेत्र में कोई क्षेत्र सम्मिलित किया जाय, वहाँ राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा ऐसे क्षेत्र में इस संहिता का सम्पूर्ण या कोई उपबन्ध विस्तारित कर सकती है।

       जहाँ उपधारा (1) के अधीन कोई अधिसूचना जारी की जाय यहाँ उक्त उपधारा में विनिर्दिष्ट क्षेत्र में प्रवृत्त किसी अधिनियम, नियम या विनियम के उपबन्ध, जो इस प्रकार लागू किये गये उपबन्धों से असंगत हो, निरसित हुए समझे जायेंगे। [ धारा 3 (2) ]

     राज्य सरकार किसी पश्चात्वर्ती अधिसूचना द्वारा उपधारा (1) के अधीन जारी किसी अधिसूचना में संशोधन, उपान्तरण या परिवर्तन कर सकती है [धारा 3(3)]

प्रश्न 8. उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के अन्तर्गत निम्नलिखित पदों को परिभाषित कीजिए-

(1) कृषि

(2) कृषि श्रमिक

(3) आबादी

(4) भूमि प्रबन्धक समिति

Define the following terms under the U.P. Revenue Code, 2006-

(I) Agriculture

(2) Agriculture labourer

(3) Abadl

(4) Land Management Committee.

उत्तर- (1) कृषि (Agriculture)-उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 4 (2) कृषि को परिभाषित करती है। कृषि का तात्पर्य, कृषि कार्य या खेती करना, बागवानी, फूलों की खेती, पशुपालन मछली पालन, मधुमक्खी पालन, मुर्गीपालन या इनसे सम्बन्धित सभी कार्य सम्मिलित हैं, जो कृषि पर निर्भर व्यक्ति एवं उसके परिवार की आजीविका का स्त्रोत हो। “कृषि” एवं “कृषि उद्देश्य” को उत्तर प्रदेश कृषि एवं कृषि उद्देश्य अधिनियम, 1973 की धारा 2 (क) में इस प्रकार से परिभाषित किया गया है :

       “कृषि” और “कृषित उद्देश्य” के अन्तर्गत भूमि को खेती योग्य बनाना, भूमि पर खेती करना, भूमि सुधार (सिचाई के साधन लगाना), फसलें उगाना तथा पकने के पश्चात् कटाई करना, वानिकी, पशु-पालन, बागवानी, दुग्धशाला, कुक्कुट पालन, मछली पालन, सुअर पालन, पशु उत्पादन, मछलियों का प्रजनन कराना तथा उनके जीरे (बच्चे). उत्पन्न कराना, साथ ही समस्त उत्पादों को संरक्षण एवं बाजार में विक्रय हेतु उपलब्ध कराना कृषि में सम्मिलित किया गया है।

(2) कृषि श्रमिक (Agriculture labourer) कृषि श्रमिक को राजस्व संहिता की धारा 4 (3) में परिभाषित किया गया है। कृषि श्रमिक से अभिप्राय है कि ऐसे व्यक्ति जिनकी आजीविका का साधन कृषि में लगने वाला शारीरिक श्रम हो। ऐसे श्रमिक को खेतिहर मजदूर कहा जा सकता है, जिन्हें सामान्य उद्योगों में कार्य करने वाले श्रमिकों से भिन्न माना जाता है क्योंकि वे अकुशल मजदूर की श्रेणी में रखे जाते हैं जिनका मुख्य कार्य भूमि की जुताई करना, खड़ी फसलों को निराई-गुड़ाई, सिचाई एवं कटाई से सम्बन्धित होता है। खेतिहर मजदूर (कृषि श्रमिक) को उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम – की धारा 126 (ग) (घ) में पारिभाषित किया एवं उपरोक्त व्याख्या सम्मिलित की गई है।

(3) आबादी (Abadi) उ० प्र० राजस्व संहिता, 2006 की धारा 4 (1) में आबादी के विषय में प्रावधान किया गया है “आबादी” या “ग्रामीण आबादी” से अभिप्राय है कि वह स्थानीय क्षेत्र जो “ग्राम” या “गाँव” के रूप में राजस्व अभिलेख में दर्ज किया गया हो तथा उस गाँव में निवास करने वाले निवासी (जिनका मुख्य रूप से जीविकोपार्जन का साधन कृषि या कृषि पर आधारित उत्पाद या शारीरिक श्रम पर निर्भर हों) साथ ही ग्रामीण आबादी (जनसंख्या) उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1947 के अन्तर्गत तैयार की जाने वाली निर्वाचक नामावली में मतदाता (voter) के रूप में नाम अंकित किया – गया हो।

(4) भूमि प्रबन्धक समिति (Land Management Committee) भूमि प्रबन्धक समिति का उल्लेख उ० प्र० राजस्व संहिता, 2006 की धारा 4 (5) में किया गया है-इस समिति की स्थापना यू० पी० पंचायत राज अधिनियम, 1947 की धारा 28 (क) के अन्तर्गत की गई है। भूमि प्रबन्धक समिति गाँव पंचायत द्वारा निर्वाचित सदस्यों द्वारा ग्राम प्रधान के अधीन गठित समिति है जिसका मुख्य कार्य गाँव सभा के अधिकार क्षेत्र में आने वाली समस्त भूमि पर नियन्त्रण, पर्यवेक्षण, प्रबन्धन, एवं सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया है। ग्राम सभा का प्रधान सभापति तथा उपप्रधान-उपसभापति होता है तथा प्रत्येक गाँव सभा का कार्यरत लेखपाल पदेन मंत्री (Secretary) होता है। गाँव सभा के निर्वाचित सदस्य भूमि प्रबन्धक समिति के सदस्य होते हैं। उपरोक्त समिति अधिनियम में दिये गये समस्त कार्यों एवं दायित्वों का निर्वहन के लिए अपने अधिकारों एवं शक्तियों का प्रयोग कर सकती है। वर्तमान में गाँव सभा को समाप्त कर गाँव पंचायत कर दिया गया है।

प्रश्न 9. उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के अन्तर्गत ‘परिवार’ शब्द की व्याख्या कीजिए। Explain the term ‘Family’ under the U.P. Revenue Code, 2006.

उत्तर- परिवार (Family) उ० प्र० राजस्व संहिता 2006 को धारा 4 को उपधारा 10 में परिवार का उल्लेख किया गया है। परिवार का अभिप्राय पति-पत्नी या थर्ड जेण्डर पति या पत्नी (परन्तु न्यायिक रूप से पृथक पत्नी या पति या थर्ड जेण्डर पति या पत्नी इसके अन्तर्गत नहीं आते) विवाहित पुत्रियों और थर्ड जेण्डर अवयस्क संतानों से भिन्न अवयस्क पुत्रों तथा अवयस्क पुत्रियों से है। यहाँ यह बताना उचित होगा कि वर्तमान संहिता के लागू किये जाने के पूर्व प्रदेश में, उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमिसुधार अधिनियम 1950 दिनांक 1 जुलाई, 1952 से लागू की गई थी जिसकी धारा 154 के अन्तर्गत 7 दिसम्बर, 1974 के पूर्व “परिवार” शब्द में शामिल थे- संक्रमणी पति या पत्नी (जैसी भी दशा हो) और उनके अवयस्क बच्चे। परिवार में पिता और माता सम्मिलित नहीं थे। अंतएव जब अन्तरण किसी अवयस्क बच्चे को किया जाता था तो उसके माता-पिता की भूमि 12-1/2 एकड़ की सीमा के लिए जोड़ी नहीं जाती थी। इस प्रकार अवयस्क अपने माता-पिता के परिवार में शामिल था, किन्तु माता-पिता अवयस्क के परिवार में नहीं आते थे। होशियार लोग भूमि अपने अवयस्क बच्चे के नाम लेते थे और धारा 154 के प्रतिबन्धों से बच जाते थे। विधान मण्डल ने उ० प्र० भूमि विधि (संशोधन) अधिनियम, 1974 पास करके इस दोष को भी हटा दिया। अधिनियम, 1950 के निरसित हो जाने के पश्चात ।

        अब ‘परिवार’ शब्द में शामिल है संक्रमणी, पति या पत्नी (जैसी भी दशा हो) और उनके अवयस्क बच्चे और यदि संक्रमणी अवयस्क है तो उसके माता-पिता भी अवयस्क बच्चे के “परिवार” में शामिल माने जाएँगे, चाहे वे अविभक्त हों या विभक्त।

       जैसे कि- एक भूमिधारक या खातेदार अपनी 3 एकड़ भूमि एक अवयस्क के को अन्तरित कर देता है। क के पिता के पास 12-1/2 एकड़ भूमि है। यह अन्तरण चूंकि निर्धारित सीमा 5.0586 हेक्टेयर या 12-1/2 एकड़ से अधिक हो जाती है। इस कारण पिता के पास की 12-1/2 एकड़ भूमि धारा 89 के प्रयोजनार्थ जोड़ ली जायेगी। इस प्रकार से परिवार के पास अन्तरण के परिणामस्वरूप 15-1/2 एकड़ भूमि हो जायेगी। चूँकि यह अन्तरण धारा 89 के प्रतिबन्धों के उल्लंघन में है, अतएव यह शून्य है।

       वर्तमान में उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2020 के बाद उ० प्र० राजस्व संहिता, 2006 की धारा 4 (10) के अनुसार किसी भू-खातेदार के सम्बन्ध में ‘परिवार’ का तात्पर्य यथास्थिति स्वयं पुरुष या स्त्री और उसकी पत्नी या उसका पति या धई जेण्डर पत्नी या पति (न्यायिक रूप से पृथक् पत्नी या पति या थर्ड जेण्डर पति या पत्नी से भिन्न), विवाहित पुत्रियों और थर्ड जेण्डर अवयस्क संतानों से भिन्न अवयस्क पुत्रों तथा अवयस्क पुत्रियों से है।

       थर्ड जेण्डर का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो पुरुष अथवा स्त्री लिंग से भिन्न लिंग का हो।