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केवल ‘समानता (Parity)’ के आधार पर जमानत नहीं: आरोपी की विशिष्ट भूमिका का आकलन अनिवार्य — सागर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट का निर्णायक फैसला

केवल ‘समानता (Parity)’ के आधार पर जमानत नहीं: आरोपी की विशिष्ट भूमिका का आकलन अनिवार्य — सागर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट का निर्णायक फैसला


प्रस्तावना

      भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में जमानत (Bail) एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो एक ओर अभियुक्त की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और दूसरी ओर समाज एवं न्याय के हितों के बीच संतुलन स्थापित करती है। यह स्थापित सिद्धांत है कि “बेल इज़ द रूल, जेल इज़ द एक्सेप्शन”, परंतु यह सिद्धांत यांत्रिक (Mechanical) रूप से लागू नहीं किया जा सकता। जमानत पर विचार करते समय न्यायालय का दायित्व है कि वह अपराध की प्रकृति, साक्ष्यों की गंभीरता और अभियुक्त की विशिष्ट भूमिका (Specific Role) का गहन मूल्यांकन करे।

       इसी संदर्भ में सागर बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश को निरस्त करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि केवल सह-आरोपियों को मिली जमानत के आधार पर ‘समानता (Parity)’ का सिद्धांत लागू करना पर्याप्त नहीं है, यदि अभियुक्त की भूमिका अन्य से भिन्न और अधिक गंभीर हो। यह निर्णय जमानत कानून के क्षेत्र में एक मार्गदर्शक मिसाल के रूप में उभरा है।


मामले की पृष्ठभूमि

      इस प्रकरण में अभियुक्त सागर पर एक गंभीर आपराधिक घटना में सक्रिय और प्रत्यक्ष भूमिका निभाने का आरोप था। प्राथमिकी और अभियोजन सामग्री के अनुसार, अभियुक्त पर ऐसे विशिष्ट कृत्य आरोपित थे, जो घटना की गंभीरता और परिणाम से सीधे जुड़े हुए थे।

       इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए कि कुछ सह-आरोपियों को पहले ही जमानत दी जा चुकी है, समानता के आधार पर अभियुक्त सागर को भी जमानत प्रदान कर दी। हालांकि, उच्च न्यायालय के आदेश में यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित नहीं हुआ कि उसने अभियुक्त की व्यक्तिगत भूमिका, आरोपों की प्रकृति और उपलब्ध साक्ष्यों पर कोई स्वतंत्र विचार किया हो।

     इसी आदेश को चुनौती देते हुए मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आया।


सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष केंद्रीय प्रश्न यह था—

क्या किसी अभियुक्त को केवल इस आधार पर जमानत दी जा सकती है कि सह-आरोपियों को जमानत मिल चुकी है, जबकि उसके विरुद्ध विशिष्ट और गंभीर भूमिका आरोपित हो?


जमानत में ‘Parity’ का सिद्धांत: दायरा और सीमाएं

       ‘Parity’ का सिद्धांत यह कहता है कि यदि समान परिस्थितियों वाले सह-आरोपियों को जमानत मिल चुकी हो, तो अन्य अभियुक्तों के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

परंतु सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि—

  • Parity स्वतंत्र और पूर्ण आधार नहीं है,
  • यह तभी लागू होता है जब अभियुक्तों की भूमिका, आरोप, परिस्थितियाँ और साक्ष्य समान हों।

यदि किसी अभियुक्त की भूमिका—

  • अधिक सक्रिय,
  • अधिक हिंसक,
  • या मुख्य अपराध से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हो,
    तो उसे केवल समानता के नाम पर जमानत नहीं दी जा सकती।

सुप्रीम कोर्ट का विस्तृत विश्लेषण

1. विशिष्ट भूमिका की अनदेखी — गंभीर त्रुटि

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि—

  • अभियुक्त सागर के विरुद्ध विशिष्ट आरोप थे,
  • उसकी भूमिका अन्य सह-आरोपियों से भिन्न और अधिक गंभीर बताई गई थी।

इसके बावजूद उच्च न्यायालय ने—

  • इस पहलू पर कोई ठोस विचार नहीं किया,
  • और केवल parity के आधार पर जमानत दे दी।

न्यायालय ने इसे गंभीर न्यायिक त्रुटि करार दिया।


2. जमानत आदेश में कारणों का अभाव

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि—

“जमानत का आदेश एक विवेकाधीन आदेश होता है, जिसे कारणों सहित पारित किया जाना चाहिए।”

यदि आदेश में यह स्पष्ट न हो कि—

  • अपराध की प्रकृति,
  • अभियुक्त की भूमिका,
  • साक्ष्यों की प्रथम दृष्टया मजबूती
    पर विचार किया गया है,
    तो ऐसा आदेश न्यायिक समीक्षा में टिक नहीं सकता।

3. व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम सामाजिक हित

न्यायालय ने यह भी कहा कि—

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है,
  • लेकिन गंभीर अपराधों में सामाजिक हित और पीड़ितों के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती।

यदि अभियुक्त की भूमिका अपराध में केंद्रीय हो, तो—

  • उसकी रिहाई से न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है,
  • और समाज में गलत संदेश जा सकता है।

4. यांत्रिक दृष्टिकोण अस्वीकार्य

सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण को यांत्रिक (Mechanical) बताते हुए कहा कि—

  • जमानत मामलों में प्रत्येक अभियुक्त के तथ्यों का स्वतंत्र मूल्यांकन आवश्यक है,
  • समानता का सिद्धांत विवेक का स्थान नहीं ले सकता।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

इन सभी तथ्यों और कानूनी सिद्धांतों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने—

  1. इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अभियुक्त सागर को दी गई जमानत को निरस्त (Set Aside) कर दिया।
  2. यह स्पष्ट किया कि—
    • High Court ने अभियुक्त की विशिष्ट भूमिका पर विचार किए बिना जमानत दी,
    • जो कानूनन अस्वीकार्य है।
  3. यह भी कहा कि—
    • भविष्य में जमानत पर विचार करते समय
    • न्यायालयों को parity के साथ-साथ व्यक्तिगत भूमिका और साक्ष्यों का संतुलित मूल्यांकन करना होगा।

निर्णय का व्यापक प्रभाव

1. जमानत कानून में स्पष्ट दिशा-निर्देश

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि—

  • Parity केवल एक सहायक कारक है,
  • निर्णायक आधार नहीं।

2. निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों के लिए मार्गदर्शन

यह फैसला न्यायालयों को यह स्मरण कराता है कि—

  • जमानत आदेश कारणयुक्त और संतुलित होने चाहिए,
  • और उनमें अभियुक्त की भूमिका का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।

3. पीड़ितों और समाज के हितों की रक्षा

इस निर्णय से यह संदेश जाता है कि—

  • गंभीर अपराधों में केवल तकनीकी आधार पर
  • अभियुक्त को रिहा नहीं किया जा सकता।

पूर्ववर्ती निर्णयों से सामंजस्य

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उसके पूर्व के अनेक निर्णयों के अनुरूप है, जिनमें कहा गया है कि—

  • “Parity cannot be applied in a blanket manner.”
  • प्रत्येक अभियुक्त की भूमिका अलग-अलग जांची जानी चाहिए।

निष्कर्ष

        सागर बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य का यह निर्णय जमानत न्यायशास्त्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह स्पष्ट करता है कि—

समानता का सिद्धांत सुविधा का मार्ग है, न्याय का विकल्प नहीं।

       यदि अभियुक्त की भूमिका अपराध में विशिष्ट और गंभीर हो, तो उसे केवल इस आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती कि सह-आरोपियों को राहत मिल चुकी है।

       यह फैसला न्यायालयों को विवेकपूर्ण, कारणयुक्त और न्याय-सम्मत दृष्टिकोण अपनाने की याद दिलाता है तथा भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में संतुलन और विश्वास को सुदृढ़ करता है।