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“जब उकसावा ही अपराध बन जाए: धारा 50 BNS का अध्ययन”

“जब उकसावा ही अपराध बन जाए: धारा 50 BNS का अध्ययन”


BNS धारा 50 – दुष्प्रेरण के दंड का सिद्धांत

(Punishment for Abetment when Act is done with Different Intention or Knowledge)

भूमिका (Introduction)

      भारतीय आपराधिक कानून में केवल वही व्यक्ति अपराधी नहीं माना जाता जो स्वयं अपराध करता है, बल्कि वह व्यक्ति भी उतना ही दोषी हो सकता है जो किसी अन्य को अपराध करने के लिए उकसाता, प्रेरित करता या सहायता करता है। इसी सिद्धांत को “दुष्प्रेरण” (Abetment) कहा जाता है।

       भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) ने पुराने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के कई प्रावधानों को आधुनिक संदर्भ में पुनर्गठित किया है। BNS की धारा 50 दुष्प्रेरण से संबंधित एक अत्यंत महत्वपूर्ण धारा है, जो यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी व्यक्ति केवल यह कहकर दंड से न बच सके कि “मैंने तो सीधे अपराध नहीं किया”


BNS धारा 50 का विधिक पाठ (सरल शब्दों में)

धारा 50 का सार यह है कि

यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए किसी अन्य को उकसाता है (दुष्प्रेरण करता है), और उकसाया गया व्यक्ति उस अपराध को दुष्प्रेरक के इरादे या जानकारी से भिन्न इरादे या जानकारी से करता है,

तब भी दुष्प्रेरक को उसी अपराध के लिए दंडित किया जाएगा, मानो वह अपराध उसी इरादे या जानकारी से किया गया हो जो दुष्प्रेरक के मन में थी।

अर्थात्, कानून दुष्प्रेरक की “मंशा” (Intention) को केंद्र में रखता है, न कि केवल अंतिम परिणाम को।


दुष्प्रेरण (Abetment) की अवधारणा

दुष्प्रेरण सामान्यतः तीन प्रकार से होता है—

  1. उकसाना (Instigation)
  2. षड्यंत्र (Conspiracy)
  3. सहायता देना (Intentional Aid)

BNS धारा 50 विशेष रूप से उस स्थिति से संबंधित है जहाँ उकसाया गया व्यक्ति अपराध तो करता है, लेकिन अपने अलग इरादे या जानकारी के साथ।


धारा 50 की आवश्यकता क्यों पड़ी?

यदि यह धारा न होती, तो दुष्प्रेरक यह तर्क दे सकता था—

  • “मेरा इरादा तो कुछ और था”
  • “जिसे मैंने उकसाया, उसने मेरी मंशा से अलग काम किया”

इससे अपराध की जड़ में मौजूद व्यक्ति आसानी से बच सकता था।
धारा 50 इसी loophole को बंद करती है।


धारा 50 का मुख्य उद्देश्य

  1. आपराधिक जवाबदेही सुनिश्चित करना
  2. मंशा (Mens Rea) को प्रधानता देना
  3. सामाजिक सुरक्षा और न्याय को मजबूत करना
  4. अपराध के पीछे के मास्टरमाइंड को दंडित करना

धारा 50 के आवश्यक तत्व (Essential Ingredients)

धारा 50 लागू होने के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है—

  1. दुष्प्रेरण किया गया हो
  2. कोई अपराध किया गया हो
  3. अपराध दुष्प्रेरक की मंशा से भिन्न इरादे या जानकारी से किया गया हो
  4. दुष्प्रेरण और अपराध के बीच संबंध (Nexus) हो

उदाहरण द्वारा स्पष्टता

उदाहरण 1: चोरी से हत्या तक

A ने B को कहा—

“उस घर में घुसकर चोरी कर लेना।”

B चोरी के दौरान गृहस्वामी को पहचान लिए जाने के डर से उसकी हत्या कर देता है।

कानूनी परिणाम:
A को यह नहीं कहा जा सकता कि वह निर्दोष है।
धारा 50 के अनुसार, A को उस अपराध के लिए दंडित किया जाएगा, जैसा कि उसकी मंशा से संबंधित हो, और परिस्थितियों के अनुसार हत्या तक की जवाबदेही बन सकती है


उदाहरण 2: साधारण मारपीट से गंभीर चोट

A, B को C को “सबक सिखाने” के लिए उकसाता है।
B जाकर C पर घातक हथियार से हमला कर देता है।

यहाँ भी A यह नहीं कह सकता कि “मैंने केवल डराने को कहा था”
उसकी मंशा और दुष्प्रेरण उसे उत्तरदायी बनाते हैं।


धारा 50 और Mens Rea (आपराधिक मंशा)

धारा 50 यह स्थापित करती है कि—

आपराधिक कानून केवल कृत्य (Actus Reus) नहीं, बल्कि मंशा (Mens Rea) को भी दंडित करता है।

यदि किसी अपराध की जड़ में किसी व्यक्ति की आपराधिक सोच है, तो कानून उसे नज़रअंदाज़ नहीं करेगा।


IPC से BNS तक – विकासात्मक दृष्टिकोण

IPC में भी दुष्प्रेरण से संबंधित प्रावधान थे, लेकिन—

  • BNS ने भाषा को अधिक स्पष्ट और समकालीन बनाया
  • तकनीकी बचाव (technical defences) को सीमित किया
  • न्यायालयों को व्यापक विवेकाधिकार प्रदान किया

इससे दुष्प्रेरण के मामलों में न्यायिक भ्रम कम होगा।


धारा 50 और “मैं तो सिर्फ उकसा रहा था” का बचाव

धारा 50 स्पष्ट रूप से यह कहती है कि—

उकसाना स्वयं में एक गंभीर अपराध है।

कोई भी व्यक्ति केवल परोक्ष भूमिका निभाकर अपराध से अलग नहीं हो सकता।


व्यवहारिक महत्व (Practical Significance)

1. गैंग क्राइम

गैंग लीडर अक्सर स्वयं अपराध नहीं करता, केवल निर्देश देता है।
धारा 50 ऐसे मामलों में अत्यंत प्रभावी है।

2. आर्थिक अपराध

फ्रॉड, घोटाले, मनी लॉन्ड्रिंग—जहाँ योजनाकार अलग और निष्पादक अलग होते हैं।

3. घरेलू अपराध

कई बार परिवार के सदस्य उकसाने का काम करते हैं।


न्यायालयों के लिए मार्गदर्शन

धारा 50 न्यायालयों को यह देखने की अनुमति देती है कि—

  • अपराध के पीछे वास्तविक मंशा किसकी थी
  • किसका मानसिक योगदान अधिक था

आलोचनात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)

सकारात्मक पक्ष

  • अपराध की जड़ पर प्रहार
  • मास्टरमाइंड को दंड
  • सामाजिक न्याय को मजबूती

संभावित चिंताएँ

  • मंशा सिद्ध करना चुनौतीपूर्ण
  • झूठे आरोप की संभावना
  • साक्ष्य पर अत्यधिक निर्भरता

हालाँकि, न्यायिक विवेक और साक्ष्य मूल्यांकन इन समस्याओं का समाधान कर सकता है।


निष्कर्ष (Conclusion)

BNS की धारा 50 भारतीय आपराधिक कानून का एक सशक्त और दूरदर्शी प्रावधान है। यह स्पष्ट संदेश देती है कि—

अपराध केवल हाथों से नहीं, दिमाग से भी किया जाता है—और कानून दोनों को दंडित करेगा।

यह धारा सुनिश्चित करती है कि कोई भी व्यक्ति अपनी आपराधिक मंशा के बावजूद दंड से न बच सके, चाहे उसने अपराध स्वयं किया हो या किसी और से करवाया हो।


संक्षेप में

  • धारा 50 दुष्प्रेरक को उसकी मंशा के आधार पर दोषी ठहराती है
  • अंतिम कार्य अलग इरादे से हुआ हो, फिर भी दुष्प्रेरक जिम्मेदार होगा
  • यह प्रावधान आधुनिक, प्रभावी और न्यायोचित है