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“केवल अनिवार्य निषेधाज्ञा का दावा पर्याप्त नहीं: रिकवरी का प्रभावी उपाय उपलब्ध होने पर आदेश 7 नियम 11 CPC के तहत वाद अस्वीकार

“केवल अनिवार्य निषेधाज्ञा का दावा पर्याप्त नहीं: रिकवरी का प्रभावी उपाय उपलब्ध होने पर आदेश 7 नियम 11 CPC के तहत वाद अस्वीकार — पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय (RAJEN CHANDRAKANT बनाम DIVYA INVESTMENT CONSULTANTS, 2025)”

           नीचे दिए गए निर्णय में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत को दोहराया कि जब कानून किसी वादी को अधिक प्रभावी, उपयुक्त और प्रत्यक्ष उपाय उपलब्ध कराता है, तो केवल अनिवार्य निषेधाज्ञा (Mandatory Injunction) की मांग करते हुए दायर किया गया वाद सुनवाई योग्य नहीं होता। यह निर्णय RAJEN CHANDRAKANT बनाम DIVYA INVESTMENT CONSULTANTS & ANOTHER, CR-1531/2017 (O&M), वर्ष 2025 का है। मामला शेयर, डिबेंचर्स और बोनस से संबंधित निवेश विवाद का था, जिसमें प्रतिवादी एक पंजीकृत स्टॉकब्रोकर था। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस प्रकार के मामलों में केवल Mandatory Injunction का दावा करना न तो न्यायसंगत है और न ही Specific Relief Act की योजना के अनुरूप।


मामले की पृष्ठभूमि

         वादी (Plaintiff) का मामला यह था कि उन्होंने अपने निवेश प्रतिवादी—जो कि एक Registered Stockbroker था—के माध्यम से किया था। वादी का आरोप था कि प्रतिवादी ने निवेश राशि का दुरुपयोग किया, आवश्यक शेयर और डिबेंचर्स डिलीवर नहीं किए, और बोनस एवं डिविडेंड भी रोक कर अन्यायपूर्ण लाभ कमाया। वादी का कहना था कि उन्होंने जो-जो निवेश प्रतिवादी को सौंपे थे, उनके समुचित लाभ, बोनस, राइट्स और अन्य कॉरपोरेट बेनिफिट्स वादी को मिलने चाहिए थे, किंतु प्रतिवादी ने विश्वासघात किया।

      इस स्थिति में वादी ने प्रतिवादी के विरुद्ध Mandatory Injunction के लिए दीवानी वाद दायर किया जिसमें प्रार्थना की गई कि—
प्रतिवादी को निर्देशित किया जाए कि वह वादी को वह सभी शेयर, डिबेंचर्स, डिविडेंड और बोनस डिलीवर करे जिनका वादी हकदार है।

        यह ध्यान देने योग्य है कि वादी ने न तो धन-वसूली (Recovery of Money) का वाद दायर किया, न ही कोई डिक्लेरेटरी रिलीफ मांगा, अर्थात् न्यायालय से यह घोषित करने का आदेश भी नहीं मांगा कि वह वास्तव में इन परिसंपत्तियों का स्वामी है। उन्होंने केवल Mandatory Injunction की मांग करते हुए कहा कि अदालत प्रतिवादी को डिलीवरी के लिए बाध्य करे।


प्रतिवादी का तर्क

प्रतिवादी ने Order 7 Rule 11 CPC के अंतर्गत याचिका दायर कर कहा कि:

  1. वाद प्रथम दृष्टया ही अवैध एवं गैर-समर्थनीय है, क्योंकि वादी ने अपनी अपेक्षित राहत (Recovery) को छिपाते हुए માત્ર Mandatory Injunction के रूप में वाद प्रस्तुत किया है।
  2. वादी को उपलब्ध, प्रभावी और उपयुक्त उपाय (Efficacious Remedy) Recovery Suit है, क्योंकि मामला स्पष्ट रूप से निवेश राशि की वसूली या शेयरों के मूल्य की वसूली से संबंधित है।
  3. Specific Relief Act की धारा 41(h) के अनुसार, जब किसी व्यक्ति के पास कोई अन्य प्रभावी उपाय उपलब्ध हो, तो Mandatory Injunction नहीं दी जा सकती।
  4. वादी ने अधिवल वाजिब कोर्ट फीस नहीं लगाई, क्योंकि Mandatory Injunction को Recovery Suit की तरह Ad Valorem Court Fee से बचने के लिए दायर किया गया था।

कानूनी प्रावधान: विश्लेषण

1. Order 7 Rule 11 CPC

इस प्रावधान के अनुसार, यदि वाद-पत्र (Plaint) में ऐसा कुछ नहीं कहा गया जिससे कोई कारण-ए-दावा (Cause of Action) बनता हो, या वाद विधिसम्मत न हो, या कोर्ट फीस अपर्याप्त हो, तो वाद प्रारंभिक अवस्था में ही अस्वीकार किया जा सकता है।

2. Specific Relief Act की धारा 41(h)

धारा 41(h) के अनुसार—
यदि वादी किसी अधिक प्रभावी और समुचित उपाय की मांग कर सकता है और वह उसके लिए उपलब्ध है, तो Mandatory Injunction नहीं दी जाएगी।

इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वादी कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग न करे, और वास्तविक रिकवरी की जिम्मेदारी से बचने के लिए Mandatory Injunction जैसा छोटा, केवल आदेशात्मक उपाय न चुन ले।

3. निवेश विवादों में वास्तविक उपाय: Recovery Suit

शेयर और डिबेंचर की डिलीवरी न होने पर दो स्थितियां बनती हैं:

  • या तो वादी वास्तविक खिलाड़ियों की डिलीवरी चाहता है,
  • या फिर, शेयर न मिलने के कारण उनकी बाजार कीमत की वसूली चाहता है।

दोनों ही स्थितियों में अदालत को तथ्य-जांच और मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया अपनानी पड़ती है, जो केवल Mandatory Injunction वाले वाद में नहीं की जा सकती। इसलिए Recovery Suit आवश्यक और अधिक उपयुक्त माना जाता है।


हाई कोर्ट की विस्तृत टिप्पणियाँ और निर्णय

हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कई महत्वपूर्ण बिंदु स्थापित किए:

(1) वादी ने गलत प्रकृति का वाद दायर किया

अदालत ने कहा कि वादी ने जानबूझकर Mandatory Injunction का वाद दायर किया ताकि Recovery Suit की तरह अधिक Court Fee न देनी पड़े। यह एक तरह की ज्यूरिडिशनल शॉपिंग थी, जिसे कानून संरक्षण नहीं देता।

(2) निवेश से जुड़े विवादों में केवल Mandatory Injunction उपयुक्त नहीं

Mandatory Injunction तभी दिया जाता है जब:

  • स्थिति अत्यंत आपातकालीन हो,
  • कोई अन्य प्रभावी उपाय उपलब्ध न हो,
  • और अदालत को केवल निर्देशात्मक आदेश देना हो।

लेकिन इस मामले में:

  • निवेश के रिकॉर्ड की जांच,
  • मूल्य निर्धारण,
  • प्रतिवादी की देनदारियों की गणना,
  • एवं कई जटिल तथ्यात्मक प्रश्न मौजूद थे।

इसलिए अदालत ने कहा कि यह मामला साधारण Mandatory Injunction का नहीं, बल्कि Recovery and Declaration Suit का था।

(3) धारा 41(h) SRA पूर्ण रूप से लागू

जब वादी के लिए Recovery Suit जैसे प्रभावी उपाय उपलब्ध हैं, तो Mandatory Injunction मांगना कानून के प्रतिकूल है।

(4) अदालत शुल्क (Court Fee)

अदालत ने कहा कि यदि वादी Recovery Suit दायर करता, तो उसे शेयरों और बोनस के मूल्य के अनुसार Ad Valorem Court Fee लगानी पड़ती। इस जिम्मेदारी से बचने के लिए Mandatory Injunction का वाद दायर किया गया जो कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग माना गया।

(5) वाद अस्वीकार—Order 7 Rule 11 CPC के तहत

अंततः अदालत ने कहा:

  • वाद सुनवाई योग्य नहीं है,
  • यह Specific Relief Act के प्रावधानों के विपरीत है,
  • और इस कारण इसे Order 7 Rule 11 CPC के तहत अस्वीकार किया जाता है।

निर्णय का महत्व

1. निवेश और शेयर विवादों में नया मार्गदर्शन

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि यदि कोई निवेशक किसी स्टॉकब्रोकर पर शेयर अथवा लाभ न देने का आरोप लगाता है, तो उसे उपयुक्त और वास्तविक उपाय (Recovery Suit) ही अपनाना चाहिए।

2. Mandatory Injunction का दुरुपयोग रोका

अदालत ने यह सिद्धांत मजबूत किया कि Mandatory Injunction का वाद केवल निर्देशात्मक आदेश प्राप्त करने हेतु दायर किया जा सकता है, न कि Recovery की वास्तविक जिम्मेदारी से बचने के लिए।

3. अदालत शुल्क से बचने का प्रयास अस्वीकार्य

वादी द्वारा Court Fee बचाने के उद्देश्य से गलत प्रकृति का वाद दायर करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

4. स्टॉकब्रोकर विवादों में कानूनी स्थिति स्पष्ट

यदि कोई Registered Stockbroker निवेशक के शेयर, बोनस या लाभ रोकता है, तो उपयुक्त उपाय Recovery Suit है, Mandatory Injunction नहीं।


निष्कर्ष

       पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का यह निर्णय निवेशकों तथा वकीलों दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह स्पष्ट करता है कि:

  • जब कानून स्पष्ट रूप से अधिक प्रभावी उपाय — Recovery Suit — उपलब्ध कराता है,
  • तब केवल Mandatory Injunction दायर कर देना न तो अनुमेय है और न ही न्यायसंगत।

वाद का मूल स्वरूप और उद्देश्य न्यायालय के सामने सत्य होना चाहिए। किसी भी वादी को वास्तविक राहत से बचने या कोर्ट फीस से बचने के लिए गलत प्रकार का वाद दायर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस प्रकार, अदालत ने सुविचारित तरीके से वाद को Order 7 Rule 11 CPC के तहत अस्वीकार किया और Specific Relief Act, विशेषकर धारा 41(h), का प्रयोग करते हुए साफ संदेश दिया—
कानूनी उपाय की प्रभावशीलता और उपयुक्तता सर्वोपरि है, और उसी के आधार पर वाद की प्रकृति तय होगी।