केरल के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप गवर्नर–मुख्यमंत्री गतिरोध के बीच जस्टिस धूलिया समिति को दो VC पदों के लिए एक-एक नाम सुझाने का निर्देश
भूमिका : शिक्षा प्रशासन में टकराव का एक और अध्याय
केरल के उच्च शिक्षा क्षेत्र में कुलपतियों (Vice Chancellors – VCs) की नियुक्ति को लेकर लंबे समय से जारी विवाद एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच इस मुद्दे पर लगातार बढ़ते तनाव ने प्रशासनिक कामकाज को प्रभावित किया है। इसी बीच, सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है, जिसके अनुसार जस्टिस उदय उमेेश ललित धूलिया समिति—जिसे पहले ही इन विवादों के समाधान के लिए नियुक्त किया गया था—अब दो प्रमुख विश्वविद्यालयों के VC पदों के लिए एक-एक नाम की अनुशंसा करेगी।
यह आदेश ऐसे समय में आया है जब गवर्नर अरिफ मोहम्मद खान (जो राज्य के चांसलर भी हैं) और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के बीच विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति एवं उनके अधिकारों को लेकर गंभीर मतभेद चल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप न केवल प्रशासनिक गतिरोध को तोड़ने की कोशिश है, बल्कि उच्च शिक्षा की स्वायत्तता, वैधता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
यह लेख इस आदेश की पृष्ठभूमि, कानूनी पहलुओं, विवाद के मूल कारणों, समिति की भूमिका और भविष्य पर इसके प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
1. विवाद की पृष्ठभूमि : केरल में उच्च शिक्षा संरचना पर खींचतान
केरल राज्य में विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर पिछले दो वर्षों में कई विवाद सामने आए हैं। मुख्य कारण निम्न हैं—
(1) कुलपतियों की नियुक्ति में कथित अनियमितताएँ
कई विश्वविद्यालयों में नियुक्त कुलपतियों के चयन में UGC Regulations, 2018 का पालन नहीं करने के आरोप लगे।
विशेष रूप से, सर्च-कम-सेलेक्शन कमेटी की संरचना, योग्यताओं की अनदेखी, और चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर कई याचिकाएँ दायर हुईं।
(2) गवर्नर बनाम राज्य सरकार : अधिकार क्षेत्र का विवाद
केरल में गवर्नर विश्वविद्यालयों के चांसलर होते हैं, और VC की नियुक्ति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। राज्य सरकार चाहती है कि विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में उसका प्रभाव रहे, जबकि गवर्नर UGC नियमों और अपनी स्वतंत्र भूमिका पर जोर देते हैं।
इसी कारण कई बार गवर्नर ने राज्य सरकार द्वारा सुझाए गए नामों को ठुकरा दिया।
(3) केरल हाईकोर्ट के फैसलों की श्रृंखला
हाईकोर्ट ने कई बार नियुक्तियों को अवैध घोषित करते हुए VC के पदों को रिक्त कर दिया।
ये फैसले विवाद को और तेज करते गए, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा।
2. सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप : तटस्थ समाधान की तलाश
लगातार बढ़ते विवाद को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस धर्मेश सिंह धूलिया (पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज) की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी।
समिति का उद्देश्य था—
- विवाद की जाँच करना
- नियुक्तियों की वैधता पर राय देना
- समाधान तैयार करना
- पारदर्शिता सुनिश्चित करना
अब सुप्रीम कोर्ट ने समिति को दो विश्वविद्यालयों के VC पदों—जिनके नाम गोपनीय रखे गए हैं—पर प्रत्येक के लिए एक-एक नाम सुझाने का आदेश दिया।
यह आदेश क्यों महत्वपूर्ण है?
- क्योंकि इससे चयन प्रक्रिया में राजनीतिक दखल और विवाद की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है।
- समिति न्यायपालिका के अधीन कार्य कर रही है, इसलिए उसके सुझाव तटस्थ और विश्वसनीय माने जाते हैं।
- इससे गवर्नर–सरकार के टकराव में संतुलन स्थापित किया जा सकेगा।
3. सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण बातें कही—
(1) शिक्षा प्रशासन को लंबा राजनीतिक विवाद प्रभावित नहीं कर सकता
कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालयों में लंबा प्रशासनिक गतिरोध छात्रों, शोधकर्ताओं और संकाय को सीधे नुकसान पहुँचाता है, इसलिए समाधान तत्काल आवश्यक है।
(2) नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी और UGC मानकों के अनुरूप होनी चाहिए
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि UGC Regulations 2018 का पालन अनिवार्य है और राज्य कानून इन्हें ओवरराइड नहीं कर सकते।
(3) समिति की भूमिका को सम्मान देना आवश्यक है
कोर्ट ने कहा कि समिति एक स्वतंत्र निकाय की तरह काम करेगी और उसके सुझाव को सभी पक्ष सम्मानपूर्वक स्वीकार करें।
4. जस्टिस धूलिया समिति का कार्य-क्षेत्र और जिम्मेदारियां
समिति को निम्न कार्य करने हैं—
(1) VC पदों के लिए पात्र नामों की जाँच
- शैक्षणिक योग्यता
- प्रशासनिक अनुभव
- UGC मानकों का अनुपालन
- विवादों से मुक्त प्रोफ़ाइल
(2) गवर्नर और राज्य सरकार से प्राप्त सूचनाओं का मूल्यांकन
(3) पारदर्शिता आधारित चयन मॉडल तैयार करना
जिसे आगे भी लागू किया जा सके।
(4) अनुशंसित नामों की सूची सुप्रीम कोर्ट को सौंपना
कमिटी केवल एक-एक नाम सुझाएगी, ताकि चयन में विवाद की गुंजाइश कम हो।
5. गवर्नर–सरकार गतिरोध : टकराव के मुख्य बिंदु
(1) विश्वविद्यालय सुधार विधेयक
राज्य सरकार ने एक नया विधेयक तैयार किया, जिसमें गवर्नर की भूमिका कम की गई थी, लेकिन गवर्नर ने इसे मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया।
(2) VC पदों को रिक्त करने की मांग
गवर्नर ने कई VC की नियुक्तियों को अवैध बताते हुए उनके इस्तीफ़े की मांग की।
(3) सरकार की प्रतिक्रिया
राज्य सरकार ने आरोप लगाया कि गवर्नर राजनीतिक दबाव में काम कर रहे हैं और उच्च शिक्षा को अस्थिर कर रहे हैं।
यह गतिरोध इतना गहरा गया कि लगभग 11 विश्वविद्यालयों पर असर पड़ा।
6. मामला सुप्रीम कोर्ट में क्यों पहुँचा?
- नियुक्तियों की वैधता पर कई विरोधाभासी फैसले
- राज्यपाल के आदेशों को चुनौती
- सरकार और गवर्नर के बीच स्पष्ट असहमति
- छात्रों और शिक्षकों की समस्याएँ
- शिक्षा की गुणवत्ता पर व्यापक असर
इसलिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा।
7. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का प्रभाव : क्या बदलेगा?
(1) नियुक्ति प्रक्रिया अधिक साफ़-सुथरी होगी
अब राजनीतिक हस्तक्षेप कम होगा और Merit आधारित चयन संभव होगा।
(2) केरल के उच्च शिक्षा तंत्र में स्थिरता आएगी
लगातार हो रहे विवाद से शिक्षण और शोध कार्य पर दबाव बढ़ रहा था। यह कदम उसे कम करेगा।
(3) भविष्य में ऐसा विवाद न हो, इसके लिए संरचनात्मक सुधार की दिशा बनेगी
यदि समिति कोई दीर्घकालिक मॉडल सुझाती है, तो यह पूरे राज्य में लागू हो सकता है।
(4) केंद्र–राज्य संबंधों पर असर
इस विवाद ने केंद्र-राज्य संबंधों, संवैधानिक भूमिकाओं और संघीय ढांचे पर भी चर्चा शुरू कर दी है।
8. आलोचनाएँ और चिंताएँ
कुछ विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप को सकारात्मक बताया, लेकिन कुछ चिंताएँ भी उठाई—
(1) क्या न्यायपालिका शासन के क्षेत्र में प्रवेश कर रही है?
कुलपति नियुक्ति आमतौर पर राज्य सरकार और गवर्नर का विषय है। न्यायपालिका की सीधी भागीदारी को कुछ लोग संघीय हस्तक्षेप मानते हैं।
(2) समिति के सुझाव को लेकर संभावित राजनीतिक मतभेद
यदि समिति किसी ऐसे व्यक्ति का नाम सुझाती है जो किसी पक्ष को स्वीकार्य न हो, तो विवाद पुनः पैदा हो सकता है।
(3) प्रशासनिक विलंब
नई प्रक्रिया के कारण पद लंबे समय तक रिक्त रह सकते हैं, जिससे विश्वविद्यालय प्रभावित होंगे।
9. शिक्षा विशेषज्ञों की राय
(1) पारदर्शिता सर्वोच्च प्राथमिकता
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम उच्च शिक्षा में पारदर्शिता बढ़ाएगा।
(2) राजनीतिक दबाव कम होगा
कुलपति जैसे संवैधानिक पदों पर गुणवत्ता आधारित नियुक्ति के लिए यह जरूरी है।
(3) UGC नियमों का समान अनुपालन
कई राज्यों में नियुक्तियां UGC नियमों के अनुसार नहीं होतीं। यह केस मिसाल बनेगा।
10. आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित समिति जल्द अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। इसके बाद कोर्ट अंतिम निर्णय देगी।
संभावना है कि—
- उन दो VC पदों पर नए कुलपति नियुक्त होंगे
- समिति विश्वविद्यालय सुधार मॉडल भी पेश कर सकती है
- दोनों पक्षों के बीच संतुलित व्यवस्था बन सकती है
यह फैसला न केवल केरल बल्कि देशभर की विश्वविद्यालय शासन प्रणालियों पर असर डाल सकता है।
निष्कर्ष : विवाद से समाधान की ओर एक महत्वपूर्ण कदम
गवर्नर और मुख्यमंत्री के बीच लंबे समय से चली आ रही तनातनी ने केरल के उच्च शिक्षा क्षेत्र को गहराई से प्रभावित किया है। कुलपतियों की नियुक्ति जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर दो संवैधानिक प्राधिकरणों के बीच सार्वजनिक विवाद लोकतांत्रिक ढांचे के लिए भी चिंता का कारण बना। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप अत्यंत आवश्यक और समयोचित था।
जस्टिस धूलिया समिति को दो विश्वविद्यालयों के VC पदों के लिए एक-एक नाम सुझाने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस जटिल विवाद के समाधान की दिशा में निर्णायक कदम है।
यह आदेश न केवल तटस्थता सुनिश्चित करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता और गुणवत्ता से कोई समझौता स्वीकार नहीं है।
उम्मीद है कि इस कदम से—
- उच्च शिक्षा में स्थिरता आएगी
- पारदर्शिता बढ़ेगी
- विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं का शैक्षणिक माहौल बेहतर होगा
- और यह विवाद भविष्य में दोहराया नहीं जाएगा
यह पूरा प्रकरण बताता है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक और संघीय देश में संवैधानिक संस्थाओं के बीच संवाद, सहयोग और संतुलन कितना महत्वपूर्ण है।