POSH Act: किसी अन्य कार्यस्थल के कर्मचारी द्वारा उत्पीड़न पर भी महिला अपनी ही विभागीय ICC में शिकायत दर्ज करा सकती है — सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
यौन उत्पीड़न के मामलों में महिलाओं को सुरक्षित वातावरण प्रदान करने हेतु भारत में ‘कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितथ्य) अधिनियम, 2013’ (POSH Act) लागू किया गया। जबकि यह कानून स्पष्ट रूप से कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करता है, लेकिन कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं जहाँ किसी महिला को उसके स्वयं के कार्यस्थल से बाहर, किसी अन्य संस्था या संगठन के कर्मचारी द्वारा उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जो देश भर की महिला कर्मचारियों के लिए व्यापक सुरक्षा और न्याय का दायरा बढ़ाता है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि—
“यदि किसी महिला का यौन उत्पीड़न किसी अन्य संगठन के कर्मचारी द्वारा किया जाता है, तो भी वह अपनी ही संस्था के Internal Complaints Committee (ICC) के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकती है।”
यह निर्णय POSH Act की व्याख्या को और अधिक उदार, संवेदनशील और महिला-अनुकूल बनाता है। यह उन स्थितियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जहाँ महिलाएँ संयुक्त प्रोजेक्ट, इंटर-ऑफिस मीटिंग, प्रशिक्षण कार्यक्रम, यात्रा या किसी साझे कार्य में शामिल हो सकती हैं।
यह लेख इस निर्णय की पृष्ठभूमि, कानूनी तर्क, POSH अधिनियम के प्रावधानों, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों, इस फैसले के प्रभाव और भविष्य की दिशा का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
1. मामला क्या था? (Case Background)
इस मामले की याचिकाकर्ता एक महिला कर्मचारी थी जो अपने विभाग में कार्यरत थी। उसके साथ यौन उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति का कार्यस्थल पूरी तरह अलग विभाग में था — अर्थात न शिकायतकर्ता और न आरोपित एक ही संस्था/विभाग में काम करते थे।
महिला ने POSH Act के तहत अपने विभाग के Internal Complaints Committee (ICC) के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। लेकिन सवाल यह उठा कि:
क्या ICC उस व्यक्ति के खिलाफ शिकायत सुन सकती है जो उसी संस्था/संगठन का कर्मचारी नहीं था?
विरोध पक्ष ने तर्क दिया कि:
- POSH Act केवल “अपनी संस्था” के कर्मचारियों पर लागू होता है।
- ICC किसी बाहरी कर्मचारी के खिलाफ जांच नहीं कर सकती।
- क्रॉस-डिपार्टमेंट या क्रॉस-ऑर्गनाइजेशन मामलों में अधिकार क्षेत्र सीमित होता है।
यह विवाद अंततः सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा।
2. सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? (Supreme Court’s Ruling)
सुप्रीम कोर्ट ने POSH Act की व्याख्या करते हुए कहा कि कानून का उद्देश्य महिला की सुरक्षा है, न कि तकनीकी बाधाएँ खड़ी करना। इसलिए—
“यौन उत्पीड़न जहां भी हुआ हो, और आरोपित किसी भी विभाग का कर्मचारी हो — महिला अपनी संस्था के ICC में शिकायत दर्ज करा सकती है।”
न्यायालय ने जोर दिया कि:
✔ POSH Act पीड़िता-केंद्रित (victim-centric) कानून है।
✔ इस कानून की व्याख्या restrictive नहीं बल्कि expansive होनी चाहिए।
✔ ‘Workplace’ की परिभाषा व्यापक है — यह केवल कार्यालय परिसर तक सीमित नहीं।
✔ यदि उत्पीड़न किसी अन्य संस्था या कर्मचारी द्वारा भी हुआ है, तो ICC जांच कर सकती है और आवश्यकता होने पर कमीशन या सरकारी एजेंसी को मामले भेज सकती है।
3. POSH Act में कार्यस्थल की विस्तृत परिभाषा (Expanded Definition of Workplace)
POSH Act की धारा 2(o) के अनुसार ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा बेहद व्यापक है:
- कार्यालय भवन, शाखा, डिपार्टमेंट
- किसी भी संगठन द्वारा नियंत्रित स्थान
- फील्ड वर्क
- ऑफ-साइट मीटिंग
- यात्रा के दौरान आधिकारिक स्थान
- प्रशिक्षण कार्यक्रम
- इवेंट्स, सम्मेलन, सेमिनार
- घर से काम (Work From Home) भी अब शामिल
यदि उत्पीड़न इन किसी भी स्थानों पर हुआ है, तो POSH Act लागू होगा — भले ही आरोपी किसी अन्य विभाग से संबंधित क्यों न हो।
4. ICC के अधिकार और दायित्व: सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या
सुप्रीम कोर्ट ने ICC के अधिकारों पर विस्तृत निर्देश दिए:
A. ICC पीड़िता की शिकायत पर जांच शुरू करेगी
चाहे आरोपी किसी भी संस्था का हो।
B. ICC प्रमाण एकत्र कर सकता है
ईमेल, चैट, कॉल रिकॉर्ड, सीसीटीवी, गवाह आदि।
C. ICC अपनी रिपोर्ट में जांच कर निष्कर्ष दे सकता है
और आवश्यक होने पर संबंधित आरोपी संगठन के प्रबंधन को कार्रवाई हेतु भेज सकता है।
D. ICC अन्य संस्था से सहयोग मांग सकता है
POSH Act की धारा 11 ICC को व्यापक जांच शक्तियाँ देती है।
E. आरोपी संस्था को सहयोग करना कानूनी दायित्व
POSH Act की धारा 19(b) के अंतर्गत।
5. महिलाओं के अधिकारों को विस्तार देने वाला फैसला
यह निर्णय उन कई स्थितियों को ध्यान में रखता है जहाँ:
- प्रोजेक्ट inter-departmental होते हैं
- कई कंपनियाँ साथ मिलकर प्रोजेक्ट करती हैं
- सरकारी विभाग आपस में सहयोग करते हैं
- आउटसोर्स स्टाफ, कॉन्ट्रैक्ट वर्कर, कंसल्टेंट साथ काम करते हैं
- मीटिंग, ट्रेनिंग, सेमिनार में विभिन्न संस्थाओं के लोग उपस्थित होते हैं
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि:
“महिला कर्मचारी को इस वजह से न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता कि आरोपी अन्य संगठन का कर्मचारी है।”
6. सुप्रीम कोर्ट का मानवीय दृष्टिकोण: ‘अधिकार क्षेत्र’ से ऊपर ‘सुरक्षा’
कोर्ट ने कहा कि:
- POSH Act तकनीकी या प्रक्रिया-आधारित नहीं है।
- इसका उद्देश्य ‘महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा’ है।
- यदि कोई महिला यह महसूस करती है कि वह खतरे में है या उसके साथ गलत हुआ है, तो उसकी शिकायत सुनना प्राथमिक उद्देश्य है।
न्यायालय ने साफ कहा:
“किसी भी technicality द्वारा POSH Act के लाभों को कम नहीं किया जाना चाहिए।”
7. आरोपी अन्य संस्था में होने पर ICC कैसे कार्रवाई करेगा?
सुप्रीम कोर्ट ने प्रावधान स्पष्ट किए:
1. ICC जांच करेगा और रिपोर्ट तैयार करेगा
रिपोर्ट में आरोप सिद्ध/असिद्ध होने का निर्णय होगा।
2. यदि आरोपी दूसरी संस्था में कार्यरत है
रिपोर्ट उसकी संस्था के Presiding Officer या HR Head को भेजी जाएगी।
3. आरोपी संस्था → अनिवार्य रूप से कार्रवाई करेगी
जैसे:
- चेतावनी
- निलंबन
- बर्खास्तगी
- वेतन कटौती
- मुआवजा भुगतान
4. यदि आरोपी संस्था सहयोग नहीं करती
तो अदालत या संबंधित सरकारी निकाय हस्तक्षेप कर सकता है।
8. POSH Act के तहत नियोक्ता की जिम्मेदारियाँ: सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाया
धारा 19 POSH Act के तहत नियोक्ता के दायित्व बहुत स्पष्ट हैं:
- ICC का गठन
- शिकायत को संवेदनशीलता से लेना
- समयबद्ध जांच
- पीड़िता को सुरक्षित वातावरण
- आरोपी पर त्वरित कार्रवाई
- अन्य संगठनों के साथ सहयोग
- संरक्षण आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज भी देश के कई स्थानों पर:
- ICC ठीक से बना नहीं
- प्रशिक्षण नहीं
- POSH awareness की कमी
- कर्मचारियों को अधिकारों का पता नहीं
यह निर्णय नियोक्ताओं पर दबाव बढ़ाता है कि वे POSH कानून का पूरी तरह पालन करें।
9. फैसले का व्यापक प्रभाव (Significance of the Judgment)
1. महिलाओं की सुरक्षा और अधिक मजबूत होगी
अब महिला किसी भी स्थिति में न्याय से वंचित नहीं होगी।
2. ICC की भूमिका और अधिकार व्यापक हुए
ICC अब cross-organization मामलों में भी जांच कर सकता है।
3. नियोक्ताओं पर अधिक कड़ी जिम्मेदारी
किसी भी विभाग/कंपनी को शिकायत पर चुप बैठने की अनुमति नहीं।
4. आउटसोर्सिंग, कॉन्ट्रैक्ट वर्क और मल्टी-ऑर्गनाइजेशन कार्य शैली में सुधार
आज के हाइब्रिड और सहयोगी कार्य परिवेश में यह आवश्यक कदम है।
5. POSH Act की उदार और सामाजिक व्याख्या
यह कानून महिला-अनुकूल होने के मकसद से ही बनाया गया था।
10. सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों और संस्थानों को क्या संदेश दिया?
न्यायालय ने स्पष्ट किया:
- POSH Act केवल कागजों में दिखने वाला कानून न बने।
- हर संस्था को ICC अनिवार्य रूप से बनानी चाहिए।
- ICC को प्रशिक्षित, संवेदनशील और निष्पक्ष होना चाहिए।
- महिला सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए।
- शिकायत को technical grounds पर खारिज न किया जाए।
11. निष्कर्ष: महिला कर्मचारियों के लिए ऐतिहासिक और दूरगामी फैसला
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय POSH Act की आत्मा को मजबूत करता है और इसे वास्तविक रूप में लागू करने का मार्ग प्रशस्त करता है। अब कोई महिला इस डर से शिकायत दर्ज कराने से वंचित नहीं होगी कि आरोपी उसके विभाग का कर्मचारी नहीं है।
यह फैसला स्पष्ट करता है कि—
- न्याय तकनीकी सीमाओं में बंधा नहीं होता।
- महिलाओं की सुरक्षा सर्वोपरि है।
- POSH Act को व्यापक, उदार और पीड़िता-केंद्रित तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
- ICC का अधिकार क्षेत्र महिलाओं के हित में व्यापक रूप से लागू होगा।
यह निर्णय भारत में कार्यस्थल सुरक्षा और महिलाओं की गरिमा के संरक्षण की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है।