“धारा 29A, मध्यस्थता अधिनियम: समयावधि समाप्त होते ही पंच की नियुक्ति स्वतः समाप्त—विस्तार के बाद प्रतिस्थापित पंच वहीं से कार्य शुरू करेगा: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”
प्रस्तावना
भारत में मध्यस्थता (Arbitration) को तेज, प्रभावी और पारदर्शी विवाद समाधान प्रणाली बनाने के लिए समय-सीमा का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है। Arbitration and Conciliation Act, 1996 की धारा 29A इस उद्देश्य को मजबूत करती है, क्योंकि यह मध्यस्थता पुरस्कार (Arbitral Award) पारित करने के लिए निर्धारित समय-सीमा प्रदान करती है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह घोषित किया कि—
“धारा 29A के अनुसार निर्धारित समय समाप्त होते ही पंच (Arbitrator) का अधिकार स्वतः समाप्त हो जाता है। यदि अदालत द्वारा समय बढ़ाया जाता है, तो प्रतिस्थापित (substituted) पंच वहीं से प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा, जहाँ पहले पंच ने छोड़ दिया था।”
इस निर्णय ने मध्यस्थता प्रक्रिया में स्पष्टता, अनुशासन और समयबद्धता को नई दिशा दी है। इस लेख में हम इस निर्णय का विस्तृत अध्ययन करेंगे—मामले की पृष्ठभूमि, धारा 29A की कानूनी स्थिति, सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या, मध्यस्थता प्रक्रिया पर प्रभाव और इसके व्यापक परिणाम।
1. धारा 29A क्या है? – कानूनी ढाँचे की समझ
धारा 29A, 2015 एवं 2019 के संशोधनों के बाद एक मजबूत प्रावधान बन चुकी है। इसके प्रमुख बिंदु हैं—
(1) समय-सीमा (Time Limit)
- मध्यस्थ नियुक्ति (Arbitrator entering reference) के बाद 12 महीनों में Award पारित होना चाहिए।
- पक्षकार आपसी सहमति से 6 महीने और जोड़ सकते हैं (कुल 18 महीने)।
- इसके आगे समय बढ़ाना हो तो केवल अदालत (Court) कर सकती है।
(2) समय सीमा ख़त्म होने पर क्या होता है?
धारा 29A(4) कहती है कि—
समय समाप्त होते ही पंच का Mandate (अधिकार) स्वतः समाप्त हो जाता है।
(3) अदालत की भूमिका
अदालत—
- समय बढ़ा सकती है,
- पंच को हटाकर दूसरा पंच नियुक्त कर सकती है,
- आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर सकती है।
2. मामला क्या था? — पृष्ठभूमि
विवाद एक व्यावसायिक अनुबंध से उपजा था। पक्षकारों ने मध्यस्थ नियुक्त किया, जिसने सुनवाई शुरू कर दी।
लेकिन—
- मध्यस्थ ने समय पर Award नहीं दिया
- 12 महीने + 6 महीने की अवधि पार हो गई
- पक्षकार अदालत पहुँचे और समय विस्तार माँगा
मुद्दा यह उठा कि:
- क्या समय समाप्त होने के बाद भी मध्यस्थ का Mandate बचा रहता है?
- समय बढ़ने पर कार्यवाही कहाँ से शुरू होगी?
- यदि नया मध्यस्थ आए, तो क्या वह पहली से पूरी सुनवाई दोबारा करेगा?
इन्हीं प्रश्नों पर सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत और भविष्य-निर्धारक निर्णय दिया।
3. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय — मुख्य बिंदु
(1) समय समाप्त होते ही Arbitrator का Mandate स्वतः समाप्त
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि—
धारा 29A “automatic termination clause” है।
न कोई आदेश चाहिए, न कोई औपचारिकता।
समय सीमा समाप्त = अधिकार समाप्त।
(2) Court द्वारा समय बढ़ाना “ex-post facto” भी हो सकता है
यदि समय पहले ही समाप्त हो चुका है,
तो भी कोर्ट बाद में समय विस्तार दे सकती है।
लेकिन विस्तार का अर्थ यह नहीं कि पूर्व पंच पुनः नियुक्त हो गया।
(3) कोर्ट नया/प्रतिस्थापित Arbitrator नियुक्त कर सकती है
कोर्ट ने कहा कि—
समय विस्तार के साथ नया पंच नियुक्त करना अदालत की शक्तियों में शामिल है।
यह एक supervisory power है।
(4) नया Arbitrator वहीं से कार्य शुरू करेगा, जहाँ पुराने ने छोड़ा था
यही इस निर्णय का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है।
कोर्ट ने कहा—
“Substituted arbitrator shall resume the proceedings from the stage where they were left by the previous arbitrator, unless the Court directs otherwise.”
अर्थात:
दोबारा सुनवाई (de novo trial) नहीं होगी।
(5) Arbitrator की देरी, कोर्ट को Arbitrator पर लागत (cost) डालने का अधिकार देती है
यदि Arbitrator समय पर Award न देकर देरी करता है,
तो कोर्ट उसे जिम्मेदार ठहराते हुए fees में कटौती या लागत (cost) लगा सकती है।
4. अदालत ने किन सिद्धांतों के आधार पर यह निर्णय दिया?
(क) Arbitration एक तेज़ व प्रभावी प्रणाली है
कानून का उद्देश्य Arbitration को न्यायालयों की तरह लंबा खींचने से रोकना है।
समय-सीमा का पालन अनिवार्य है।
(ख) Arbitrator का Mandate अनुबंध की तरह होता है
और अनुबंध की अवधि समाप्त होने पर
Arbitrator के अधिकार का अंत भी स्वाभाविक है।
(ग) Substitution का उद्देश्य है—समय की बचत
यदि पूरा मामला दोबारा सुना जाए,
तो समय-सीमा रखने का अर्थ ही समाप्त हो जाएगा।
(घ) न्यायालय की supervisory jurisdiction व्यापक है
29A अदालत को मजबूत “administrative-cum-judicial” शक्ति देती है।
5. पुराने Arbitrator को हटाने की प्रक्रिया क्यों जरूरी थी?
पूर्व Arbitrator:
- समय पर Award नहीं दे पाया
- सुनवाई में देरी हुई
- मामले लंबा खिंचता जा रहा था
यह माना गया कि देरी के लिए Arbitrator स्वयं ज़िम्मेदार था।
इससे पक्षकारों के अधिकार प्रभावित हो रहे थे।
अतः अदालत ने उसकी नियुक्ति समाप्त कर दी।
6. नया Arbitrator कैसे कार्य शुरू करेगा?
(1) पूर्व सामग्री (Evidence, Documents, Pleadings) वैध मानी जाएगी
सभी रिकॉर्ड का उपयोग नया Arbitrator कर सकता है।
(2) पक्षकारों को दलीलें दोहराने की आवश्यकता नहीं
केवल अंतिम चरणों की सुनवाई की जा सकती है।
(3) Arbitrator को समय-सारिणी देकर कार्य शीघ्र पूरा करना होगा
कोर्ट ने Arbitration को समयबद्ध रखने पर ज़ोर दिया।
7. Arbitrator के लिए सुप्रीम कोर्ट का संदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा—
- Arbitrator समय-सीमा का उल्लंघन न करें
- देरी के लिए वे व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हो सकते हैं
- फीस में कटौती का अधिकार अदालत के पास है
- The role of arbitrator is quasi-judicial—
उसे न्यायिक अनुशासन और समय-सीमा दोनों का पालन करना होगा।
8. पक्षकारों के लिए यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?
(1) Arbitration में देरी कम होगी
अब Arbitrators समय-सीमा को गंभीरता से लेंगे।
(2) पक्षकारों को तेज़ न्याय मिलेगा
देरी से मुकदमे का खर्च बढ़ता है, व्यवसाय बाधित होता है।
(3) Arbitrator बदलने पर डर नहीं कि सब फिर से शुरू होगा
सभी पूर्व रिकॉर्ड मान्य रहेंगे।
(4) न्यायालय का हस्तक्षेप सीमित लेकिन प्रभावी
जवाबदेही बढ़ेगी।
9. धारा 29A के व्यावहारिक प्रभाव
(क) Arbitration प्रक्रिया अधिक अनुशासित होगी
Arbitrators को कैलेंडर बनाना होगा, सख्त समय-सारिणी रखनी होगी।
(ख) De novo hearings लगभग समाप्त
यह Arbitration की लागत व समय दोनों कम करेगा।
(ग) सरकारी अनुबंधों पर बड़ा प्रभाव
सरकारी ठेके/पब्लिक प्रोजेक्ट में Arbitration सबसे अधिक होते हैं।
निर्णय से ऐसे मामलों की गति बढ़ेगी।
(घ) Parties Time-Extension के लिए अधिक सावधान रहेंगी
अब केवल वास्तविक कारणों पर ही विस्तार मिलेगा।
10. अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से तुलना
अधिकांश अंतरराष्ट्रीय Arbitration नियम—
जैसे ICC, SIAC, LCIA—
भी Arbitrators के लिए समय-सीमा और supervision का प्रावधान रखते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय Arbitration को
अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाने में मदद करेगा।
11. क्या Court अपनी इच्छा से दोबारा सुनवाई का आदेश दे सकता है?
हाँ, लेकिन यह अपवाद होगा।
सामान्य नियम:
नया Arbitrator पुरानी स्थिति से आगे बढ़ेगा
अपवाद:
- यदि पूर्व Arbitrator के कार्य में गंभीर त्रुटियाँ हों
- रिकॉर्ड अधूरा हो
- प्रक्रिया में पक्षपात दिखे
- दोनों पक्ष de novo सुनवाई मांगें
लेकिन कोर्ट ने दोबारा सुनवाई को हतोत्साहित किया है।
12. क्या पक्षकार Arbitrator को बदलने से रोका जा सकता है?
नहीं।
धारा 29A अदालत को पूर्ण अधिकार देती है कि—
- Arbitrator बदले
- नया Arbitrator नियुक्त करे
- समय बढ़ाए
पक्षकार केवल अपील कर सकते हैं, veto नहीं।
13. निष्कर्ष — मध्यस्थता में अनुशासन और गति की नई दिशा
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल धारा 29A की पूर्ण व्याख्या करता है,
बल्कि भारत के Arbitration ढाँचे को मजबूत और विश्वासयोग्य बनाता है।
इस निर्णय के मुख्य संदेश हैं—
- समय-सीमा पवित्र है।
- Arbitrator का Mandate स्वचालित रूप से समाप्त होता है।
- नया Arbitrator वहीं से कार्य शुरू करेगा, जहाँ पुराना छोड़ गया था।
- कोर्ट Arbitrator की देरी पर दंड लगा सकती है।
- Arbitration प्रक्रिया अब अधिक तेज़, पारदर्शी और कुशल होगी।
यह फैसला Arbitration को न्यायिक प्रक्रिया से अलग उसके मूल उद्देश्य—
तेज़, किफायती और प्रभावी विवाद समाधान—की ओर वापस ले जाने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।