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“राष्ट्रीय राजमार्गों में टेलीकॉम व अन्य सेवाओं के लिए कॉमन यूटिलिटी डक्ट पर राष्ट्रीय नीति बनाने पर विचार करे केंद्र: सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी”

“राष्ट्रीय राजमार्गों में टेलीकॉम व अन्य सेवाओं के लिए कॉमन यूटिलिटी डक्ट पर राष्ट्रीय नीति बनाने पर विचार करे केंद्र: सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी”


प्रस्तावना

        भारत आज डिजिटलाइजेशन, कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के तीव्र दौर से गुजर रहा है। मोबाइल नेटवर्क, फाइबर ऑप्टिक केबल, गैस पाइपलाइन, बिजली की लाइनें, इंटरनेट के केबल और वॉटर सप्लाई जैसे आधुनिक उपयोगिताएँ मूलभूत जरूरत बन चुकी हैं। इन सभी सेवाओं के केबल और पाइपलाइन ज़मीन के नीचे बिछाए जाते हैं, जो अक्सर राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways) के किनारे या नीचे गुज़रते हैं। कई बार विभिन्न संस्थाओं द्वारा बार-बार खुदाई, केबल बदलने या पाइपलाइन डालने से सड़कों को नुकसान, दुर्घटनाओं का खतरा और सार्वजनिक धन की बर्बादी होती है।

        इन्हीं समस्याओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार (Union of India) से कहा है कि वह एक राष्ट्रीय स्तर की नीति (National Policy) बनाने पर विचार करे, जिसमें कॉमन यूटिलिटी डक्ट (Common Utility Duct) की व्यवस्था हो— ताकि सभी प्रकार की उपयोगिताएँ एक ही सुरक्षित, संरक्षित और वैज्ञानिक ढंग से निर्मित भूमिगत मार्ग से गुजर सकें।


1. कॉमन यूटिलिटी डक्ट क्या होता है?

कॉमन यूटिलिटी डक्ट एक ऐसी भूमिगत सुरंग (Underground Tunnel/Trench) या साझा पाइपलाइन संरचना होती है, जिसमें—

  • फाइबर ऑप्टिक केबल,
  • टेलीकॉम लाइनें,
  • बिजली की केबल,
  • गैस पाइपलाइन,
  • पानी की पाइपलाइन,
  • सीवर लाइनें,
  • इंटरनेट के केबल,
  • और अन्य आवश्यक उपयोगिताएँ

एक संगठित ढंग से, सुरक्षित तरीके से और बिना सड़क खुदाई के स्थापित की जा सकती हैं।

कॉमन यूटिलिटी डक्ट का उपयोग—

  • अमेरिका,
  • जापान,
  • सिंगापुर,
  • दुबई,
  • और यूरोप के कई देशों में
    काफी समय से किया जा रहा है।

2. सुप्रीम कोर्ट के सामने मामला क्या था?

याचिका में मुख्यतः यह मुद्दा उठाया गया कि—

  • सड़क किनारे बार-बार खुदाई से राष्ट्रीय राजमार्गों को नुकसान होता है,
  • इससे सड़क दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ती है,
  • सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ पड़ता है,
  • यातायात प्रभावित होता है,
  • और केबल/पाइपलाइन बिछाने का कार्य अव्यवस्थित एवं असंगठित है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि यदि भारत में कॉमन यूटिलिटी डक्ट प्रणाली लागू की जाए, तो इन सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है।


3. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी : “राष्ट्र के हित में एक राष्ट्रीय नीति आवश्यक”

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा—

“भारत जैसे बड़े देश में जहां इन्फ्रास्ट्रक्चर तेजी से विस्तार कर रहा है, वहाँ कॉमन यूटिलिटी डक्ट पर एक राष्ट्रीय नीति बनाना समय की मांग है।”

न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा:

  • एक विस्तृत राष्ट्रीय नीति पर गंभीरता से विचार करें,
  • इसके लिए विशेषज्ञ समितियों की मदद लें,
  • और यह अध्ययन करें कि विश्व के विकसित देश इसे कैसे लागू कर रहे हैं।

कोर्ट ने यह भी कहा कि—

  • राष्ट्रीय राजमार्गों में बार-बार खुदाई एक बड़ी समस्या है,
  • यह सड़क सुरक्षा, यातायात और धन की बर्बादी को प्रभावित करता है,
  • इसलिए एक समन्वित नीति बनाना आवश्यक है।

4. यह मुद्दा इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

भारत में तेजी से बढ़ती टेलीकॉम और इंटरनेट आवश्यकताओं को देखते हुए—

  1. फाइबर केबल बार-बार बिछाए जाते हैं,
  2. अलग-अलग कंपनियाँ अलग-अलग समय पर सड़कें खोदती हैं,
  3. सड़कें टूटने से मरम्मत पर हजारों करोड़ रुपये खर्च होते हैं,
  4. पानी और गैस पाइपलाइन के लिए भी अलग खुदाई करनी पड़ती है,
  5. बिजली कंपनियाँ भी धरातल के नीचे या ऊपर केबल बदलती रहती हैं।

यदि कॉमन यूटिलिटी डक्ट बना दिया जाए, तो—

  • एक बार किया गया निवेश लंबे समय तक लाभ देगा,
  • उपयोगिताएँ बिना सड़क क्षति के बदली जा सकेंगी,
  • दुर्घटनाओं में कमी आएगी,
  • और भारत की स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर योजना को गति मिलेगी।

5. वर्तमान स्थिति : अव्यवस्थित व्यवस्था

आज भारत में कोई केन्द्रीय नीति मौजूद नहीं है
जो यूटिलिटी डक्ट को अनिवार्य बनाए।

कभी-कभी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और कुछ मेट्रो शहरों में सीमित रूप से ऐसे डक्ट बनाए गए हैं, किंतु—

  • ये राष्ट्रीय स्तर पर लागू नहीं,
  • सड़क निर्माण एजेंसियों के बीच समन्वय का अभाव,
  • टेलीकॉम कंपनियाँ अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार केबल डालती हैं,
  • राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के साथ तालमेल कमजोर है।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इसी कमी की ओर इंगित करता है।


6. कॉमन यूटिलिटी डक्ट के लाभ

(1) सड़कें बार-बार नहीं टूटेंगी

यातायात बाधित नहीं होगा और सड़क की गुणवत्ता बनी रहेगी।

(2) सरकारी खर्च में भारी कमी

हर साल सड़क मरम्मत पर हजारों करोड़ रुपए खर्च होते हैं।
डक्ट प्रणाली इस खर्च को कम कर देगी।

(3) दुर्घटनाओं में कमी

अक्सर रात में खुले खुदाई स्थल हादसा उत्पन्न करते हैं।

(4) टेलीकॉम सेवाओं में तेजी

5G/6G जैसी सेवाएँ तेजी से उपलब्ध होंगी।

(5) स्मार्ट सिटी और डिजिटल इंडिया का समर्थन

इंटरनेट और गैस/पानी की सेवाएँ अधिक विश्वसनीय बनेंगी।

(6) पर्यावरणीय लाभ

सड़क मरम्मत में धूल और प्रदूषण कम होगा।


7. सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण : “केवल नीति नहीं, एकीकृत ढांचा भी चाहिए”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय नीति के साथ-साथ—

  • इंजीनियरिंग मानक,
  • निर्माण नियम,
  • इंटर-एजेंसी कोऑर्डिनेशन,
  • और प्रबंधन तंत्र भी आवश्यक है।

इसके लिए एक सेंट्रल अथॉरिटी या टास्क फोर्स बनाई जानी चाहिए जो—

  • मानकों को तय करे,
  • एनएचएआई, राज्य सरकार, नगर निगम और टेलीकॉम विभाग के बीच तालमेल बनाए,
  • और डक्ट प्रबंधन के लिए एकल खिड़की प्रणाली विकसित करे।

8. सरकार का पक्ष : “मामले पर सकारात्मक विचार करेंगे”

सुनवाई में केंद्र सरकार ने कहा—

  • यह विचार सही और महत्वपूर्ण है,
  • कई अंतरराष्ट्रीय उदाहरण हैं जहां यह मॉडल सफल रहा है,
  • भारत में भी कुछ शहरों में पायलट प्रोजेक्ट चल रहे हैं।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि वह—

  • इस पर विस्तृत अध्ययन करेगी,
  • तकनीकी विशेषज्ञों से सलाह लेगी,
  • और यदि आवश्यक हुआ तो नीति का मसौदा तैयार करेगी।

9. अंतरराष्ट्रीय मॉडल जिनका भारत अनुसरण कर सकता है

1. सिंगापुर का Common Services Tunnel (CST) मॉडल

  • लगभग पूरा शहर एक भूमिगत केबल नेटवर्क से जुड़ा है।
  • रखरखाव बिना खुदाई के संभव।

2. जापान का Utility Tunnel System

  • भूकंपीय सुरक्षा और तकनीकी मजबूती के साथ विकसित।

3. दुबई का Utility Corridor

  • विकास का व्यवस्थित और आधुनिक दृष्टिकोण।

भारत इन मॉडलों का अध्ययन कर एक उपयुक्त नीति बना सकता है।


10. भविष्य में क्या हो सकता है?

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद—

(1) केंद्र सरकार एक समिति गठित कर सकती है

जिसमें NHAI, टेलीकॉम मंत्रालय, शहरी मंत्रालय, सड़क परिवहन मंत्रालय शामिल होंगे।

(2) राष्ट्रीय राजमार्गों के नए निर्माण में डक्ट अनिवार्य किया जा सकता है

पूरी तरह से भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए।

(3) चरणबद्ध तरीके से पुराने राजमार्गों में डक्ट बनाए जा सकते हैं

विशेषकर हाई-ट्रैफिक रूट्स पर।

(4) टेलीकॉम कंपनियों और गैस/पानी बोर्डों को एक समान शुल्क देकर डक्ट का उपयोग करने की अनुमति दी जा सकती है।

(5) नगर निगमों और विकास प्राधिकरणों के लिए दिशा-निर्देश तैयार होंगे।


11. चुनौतियाँ जो नीति निर्माण में सामने आएँगी

(1) उच्च लागत

डक्ट बनाने में प्रारंभिक निवेश बड़ा होगा।

(2) भूमि अधिग्रहण की समस्या

जहां जमीन कम है, वहां डक्ट बिछाना कठिन होगा।

(3) कई एजेंसियों के बीच समन्वय

भारत में इस समस्या को हल करना सामान्यतः चुनौतीपूर्ण होता है।

(4) तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव

उन्नत देशों जैसी तकनीक विकसित करनी होगी।


12. निष्कर्ष : सुप्रीम कोर्ट की पहल सही दिशा में बड़ा कदम

कॉमन यूटिलिटी डक्ट न केवल तकनीकी रूप से आवश्यक हैं बल्कि—

  • आर्थिक रूप से लाभकारी,
  • सड़क सुरक्षा के लिए अनिवार्य,
  • और डिजिटल इंडिया के लिए रणनीतिक आवश्यकता हैं।

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारत को एक ऐसे मॉडल की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जहां—

  • सड़कें बार-बार नहीं टूटेंगी,
  • यातायात में व्यवधान कम होगा,
  • टेलीकॉम और इंटरनेट सेवाएँ अधिक विश्वसनीय और तेज़ होंगी,
  • और सार्वजनिक धन की बर्बादी रुकेगी।

यह निर्णय दूरगामी प्रभाव डाल सकता है और भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को नया स्वरूप दे सकता है।