सुप्रीम कोर्ट : बिजली चोरी के मामले में मीटर टैंपरिंग साबित न होने पर आरोपी बरी — विभाग द्वारा व्यावहारिक जाँच न करने पर कड़ी टिप्पणी | विस्तृत विश्लेषण
प्रस्तावना
बिजली चोरी (Theft of Electricity) आज देशभर की बिजली कंपनियों के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। अक्सर विभाग उपभोक्ता पर मीटर टैंपरिंग, तारों से छेड़छाड़, बायपास कनेक्शन या सील तोड़ने का आरोप लगाकर भारी पेनल्टी लगाता है।
कई बार ये मामले आपराधिक मुकदमों का रूप ले लेते हैं, जिसमें उपभोक्ता को भारतीय विद्युत अधिनियम के तहत सजा तक दी जा सकती है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि—
यदि बिजली विभाग मीटर की सही और वैज्ञानिक जांच नहीं करता,
छेड़छाड़ (tampering) के वास्तविक प्रमाण नहीं देता,
मीटर के होल, तार, सील या सिस्टम की तकनीकी जाँच व्यावहारिक रूप से नहीं करता,
तो उपभोक्ता पर बिजली चोरी का दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता।
और इसी आधार पर अदालत ने उपभोक्ता को पूरी तरह बरी (Acquittal) कर दिया।
यह निर्णय बिजली चोरी मामलों में सबसे महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है क्योंकि कोर्ट ने विभागीय लापरवाही, मनमानी और बिना वैज्ञानिक आधार के आरोप लगाने को कड़ी नसीहत दी है।
केस की पृष्ठभूमि
मामला एक ऐसे उपभोक्ता से संबंधित था जिसके खिलाफ बिजली विभाग ने आरोप लगाया कि:
- उसके बिजली मीटर के अंदर छेड़छाड़ (tampering) है,
- होल बनाकर तारों को बायपास किया गया है,
- मीटर धीमा चल रहा है जिससे बिजली की चोरी हो रही है।
विभाग ने भारी पेनल्टी लगाई और उसके खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज कर दी।
लेकिन उपभोक्ता का कहना था:
- उसने कोई छेड़छाड़ नहीं की,
- मीटर पुराना था और कई बार दिक्कत देता था,
- विभाग ने कोई वैज्ञानिक निरीक्षण नहीं किया,
- ना मीटर का फोरेंसिक परीक्षण कराया गया,
- ना ही परीक्षण के दौरान उसे बुलाया गया।
मामले में निचली अदालत और हाई कोर्ट में बहस चली, लेकिन अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय : “वैज्ञानिक जाँच के बिना बिजली चोरी का आरोप अस्थिर”
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा:
“मीटर टैंपरिंग और बिजली चोरी का आरोप तभी सिद्ध माना जाएगा
जब विभाग वास्तविक, व्यावहारिक और तकनीकी जाँच करे।”
और यहां विभाग ऐसा करने में असफल रहा।
इसलिए:
“केवल अनुमान या सिर्फ मीटर की बाहरी स्थिति देखकर उपभोक्ता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”
अदालत ने कहा कि:
- विभाग ने होल और तारों की फिजिकल टेस्टिंग नहीं की,
- यह नहीं देखा कि अंदर छेड़छाड़ वास्तव में काम कर रही थी या नहीं,
- न मीटर लाइट टेस्ट, डिस्क टेस्ट, लोड टेस्ट या फोरेंसिक विश्लेषण किया गया,
- न ही मीटर विशेषज्ञ (Meter Engineer / Expert Witness) की रिपोर्ट दी गई,
- न ही छेड़छाड़ की विधि का स्पष्ट वैज्ञानिक विवरण दिया गया।
इस प्रकार आरोप केवल शक और धारणाओं पर आधारित था।
कोर्ट का प्रमुख अवलोकन (Key Observations)
संदेह (Suspicion) और प्रमाण (Proof) में अंतर
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा:
“संदेह कितना भी मजबूत क्यों न हो,
वह अपराध सिद्ध करने का आधार नहीं हो सकता।”
यदि मीटर पर खरोंच, रंग में बदलाव या ढीली सील मिली हो,
तो यह टैंपरिंग का प्रमाण नहीं है
जब तक कि यह न दिखाया जाए कि—
- इससे बिजली की आपूर्ति प्रभावित हुई,
- मीटर रजिस्ट्रेशन कम होने लगा,
- किसी बाहरी कनेक्शन से बिजली ली जा रही थी।
बिजली विभाग द्वारा ‘प्रैक्टिकल टेस्टिंग’ अनिवार्य है
कोर्ट ने विभाग से पूछा:
- आपने तार हटाकर टेस्ट क्यों नहीं किया?
- आपने यह क्यों नहीं दिखाया कि मीटर वास्तव में धीमा चल रहा था?
- क्यों मीटर को प्रयोगशाला में ले जाकर परीक्षण नहीं हुआ?
- क्या उपभोक्ता को परीक्षण के समय मौजूद रहने का मौका दिया गया?
जब इनका कोई जवाब नहीं मिला, तो कोर्ट ने मान लिया कि विभाग की जाँच मात्र ‘कागज़ी’ थी।
उपभोक्ता को दोषी साबित करना विभाग का दायित्व (Burden of Proof)
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार:
- विभाग आरोप लगाएगा,
- विभाग को ही साबित करना होगा।
उपभोक्ता पर यह बोझ नहीं डाला जा सकता कि वह यह सिद्ध करे कि उसने चोरी नहीं की।
बिजली चोरी एक ‘गंभीर आरोप,’ पर सबूत भी उतने ही गंभीर चाहिए
चूंकि इसमें—
- भारी पेनल्टी,
- इमprisonment,
- और संपत्ति जब्ती (Attachment)
जैसी कार्यवाही होती है, इसलिए प्रमाण भी वैज्ञानिक और ठोस होना चाहिए।
अदालत की विभाग को कड़ी नसीहत
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की:
“बिजली विभाग ऐसे मामलों में केवल ‘थ्योरी’ या ‘अनुमानों’ पर काम न करे।”
और आगे कहा:
“मीटर निरीक्षण को तकनीकी, पारदर्शी और उपभोक्ता की उपस्थिति में किया जाए।”
साथ ही यह भी कहा कि विभाग:
- पुराने मीटरों को बदलने में देरी न करे,
- तकनीकी रिपोर्ट को विशेषज्ञों से सत्यापित कराए,
- निरीक्षण टीमों की जवाबदेही तय करे।
इस केस में अभियोजन क्यों फेल हुआ?
अदालत ने विस्तार से बताया कि विभाग निम्नलिखित विफलताओं के कारण मामला हार गया:
1. मीटर के अंदर के होल और तारों की फिजिकल जांच नहीं की गई
ना तार निकाले गए, ना मीटर खोला गया।
2. कोई वैज्ञानिक टेस्ट नहीं किया गया
जैसे—
- RPM Test
- Static Load Test
- Phantom Load Test
- Meter Calibration Test
- Consumption Graph Analysis
इनमें कोई भी टेस्ट नहीं किया गया।
3. प्रयोगशाला रिपोर्ट नहीं दी गई
4. उपभोक्ता को परीक्षण के समय नहीं बुलाया गया
5. स्वतंत्र तकनीकी विशेषज्ञ की राय नहीं
6. मीटर के टैंपर होने और चोरी के कारण बिजली कम रजिस्टर होने का कोई सबूत नहीं
7. विभाग के अधिकारी साक्ष्य में विरोधाभास
इन सभी कारणों के आधार पर अदालत ने कहा:
“प्रॉसिक्यूशन अपने आरोप साबित करने में पूरी तरह विफल रहा।”
आदेश : आरोपी बरी (Acquittal)
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और हाई कोर्ट दोनों के फैसले को पलटते हुए कहा:
“उपभोक्ता के खिलाफ बिजली चोरी का अपराध सिद्ध नहीं हुआ।
उसे तुरंत बरी किया जाता है।”
साथ ही विभागीय पेनल्टी और बकाया बिल भी रद्द कर दिए गए।
निर्णय का व्यापक प्रभाव
यह फैसला पूरे देश में बिजली चोरी मामलों पर गहरा प्रभाव डालेगा:
1. विभाग अब बिना वैज्ञानिक सबूत के कार्यवाही नहीं कर पाएगा
कोई भी ‘अनुमान’ से बनाई गई रिपोर्ट अदालत में टिक नहीं पाएगी।
2. उपभोक्ता अधिकार (Consumer Rights) मजबूत होंगे
उन्हें परीक्षण के समय बुलाना अनिवार्य होगा।
3. विभागीय टीमें अधिक प्रशिक्षित और जवाबदेह होंगी
4. फर्जी आरोपों, जबरन वसूली और पेनल्टी से राहत
अक्सर विभाग उपभोक्ताओं पर गलत पेनल्टी लगाता है।
यह निर्णय ऐसे मामलों पर रोक लगाएगा।
5. बिजली कंपनियों को प्रोफेशनल और पारदर्शी जांच करनी होगी
निर्णय का कानूनी महत्व (Legal Significance)
यह फैसला निम्नलिखित सिद्धांत स्थापित करता है:
✔ केवल मीटर पर खरोंच = चोरी का सबूत नहीं
✔ बिना परीक्षण = कोई अपराध सिद्ध नहीं
✔ विभाग पर उच्च प्रमाण का बोझ
✔ उपभोक्ता को परीक्षण की प्रक्रिया में शामिल करना अनिवार्य
✔ वैज्ञानिक तरीकों के बिना दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बिजली विभाग की मनमानी पर सख्त प्रहार है।
विभाग को अब हर मीटर निरीक्षण को—
- वैज्ञानिक,
- निष्पक्ष,
- पारदर्शी,
- तकनीकी,
- और प्रक्रिया अनुसार
करना होगा।
यह फैसला न केवल उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करता है,
बल्कि बिजली विभाग को भी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने का स्पष्ट संदेश देता है।