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“किसान के बिना तुम कुछ नहीं”—इथेनॉल, चीनी उद्योग और लाभ बाँटने की बहस पर गहन विश्लेषण

“किसान के बिना तुम कुछ नहीं”—इथेनॉल, चीनी उद्योग और लाभ बाँटने की बहस पर गहन विश्लेषण


भूमिका : किसान—भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़

       भारत में कृषि केवल एक पेशा नहीं है; यह करोड़ों लोगों की आजीविका, देश की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी है। लेकिन विडंबना यह है कि जिस किसान की मेहनत पर चीनी मिलें, उद्योग, इथेनॉल उत्पादन और बिजली संयंत्र निर्भर करते हैं, वही किसान अपनी फसल का उचित मूल्य पाने के लिए संघर्ष करता रहता है।

       हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान चर्चा में रहा—

“किसान के बिना तुम कुछ नहीं।
तुम किसानों को कुछ देना नहीं चाहते, लेकिन चीनी बनाना चाहते हो, इथेनॉल बनाना चाहते हो, सब करना चाहते हो। पैसा सारा तुम कमाओगे और उसे बाँटना नहीं चाहते?”

        यह बयान केवल एक भावुक टिप्पणी नहीं, बल्कि भारत की कृषि नीतियों, चीनी उद्योग के आर्थिक ढाँचे और किसानों के अधिकारों पर गंभीर सवाल उठाता है।

 प्रस्तुत करता है—
✔ किसान की भूमिका
✔ चीनी उद्योग की कमाई
✔ इथेनॉल नीति
✔ लाभ-साझेदारी का संकट
✔ सरकार और उद्योगों की जिम्मेदारी
✔ किसानों की पीड़ा
✔ समाधान और आगे का रास्ता


1. किसान के बिना उद्योग का अस्तित्व असंभव

भारत में गन्ना सबसे अधिक नकदी फसल (cash crop) है। 2024 तक भारत—

  • विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक,
  • पहला सबसे बड़ा चीनी उत्पादक,
  • और सबसे तेजी से बढ़ते इथेनॉल उत्पादक देशों में से एक बन चुका है।

लेकिन इतनी विशाल अर्थव्यवस्था का मूल स्तंभ कौन है?—किसान।

किसानों के बिना क्या संभव है?

  • चीनी मिलें बंद
  • इथेनॉल प्लांट रुक जाएंगे
  • बिजली संयंत्रों का बायोफ्यूल खत्म
  • एक्सपोर्ट ठप
  • हजारों करोड़ की इंडस्ट्री ढह जाएगी

फिर भी, विडंबना यह है कि इस विशाल उद्योग की चमक किसानों की मेहनत पर टिकी होने के बावजूद, उन्हें अक्सर सही मूल्य नसीब नहीं होता।


2. चीनी उद्योग—लाभ अरबों में, पर किसान परेशान

भारत का चीनी उद्योग लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये का है।
चीनी मिलें और इथेनॉल प्लांट हर साल केंद्र व राज्य सरकारों से—

  • टैक्स में राहत,
  • सब्सिडी,
  • ब्याज में रियायत,
  • इथेनॉल खरीद की गारंटी
    पाते हैं।

लेकिन किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है—

“बकाया भुगतान” (Sugarcane Dues)

कई राज्यों में किसानों को महीनों भुगतान नहीं मिलता।

उद्योग की आय कहाँ से आ रही है?

  1. चीनी बिक्री
  2. इथेनॉल उत्पादन
  3. पावर प्लांट को बायोफ्यूल
  4. बगास और शीरा (molasses) की बिक्री
  5. सरकारी गारंटी पर बैंक से आसान ऋण

उद्योग हर दिशा से कमाई कर रहा है, लेकिन किसान की आय बढ़ती नहीं।


3. इथेनॉल नीति—किसके लिए फायदेमंद, किसान या उद्योग?

सरकार ने 2025 तक 20% इथेनॉल मिश्रण (E20 blending) का लक्ष्य रखा है।
इससे इथेनॉल की मांग तेजी से बढ़ी।

उद्योग को फायदा:

  • इथेनॉल का MSP बढ़ा
  • OMCs (IOC, HPCL, BPCL) लगातार खरीद कर रही हैं
  • मिलों को उत्पादन बढ़ाने का बड़ा मौका

लेकिन किसान को क्या मिला?

  • वही पुरानी MSP
  • देरी से भुगतान
  • गन्ने की लागत बढ़ने के बाद भी मूल्य नहीं बढ़ा

इसलिए किसानों का कहना सही है—

“जब इथेनॉल से अरबों कमा रहे हो, तो हमें सही दाम क्यों नहीं देते?”


4. विवादित प्रणाली: FRP या लाभ-साझेदारी?

भारत में किसान को गन्ने का जो मूल्य मिलता है उसे कहते हैं—

FRP (Fair and Remunerative Price)

लेकिन सवाल यह है कि—

क्या FRP सच में ‘fair’ है?

किसान कहते हैं—नहीं।
क्योंकि:

  • लागत लगातार बढ़ रही
  • डीजल-मजदूरी महंगी
  • उर्वरक की कीमतें बढ़ती जा रही

लेकिन FRP बढ़ने की गति धीमी।

लाभ-साझेदारी (Profit Sharing) क्या है?

किसानों की पुरानी मांग है—
“जब चीनी मिलें इथेनॉल, बिजली और शीरा बेचकर अरबों कमा रही हैं, तो हमें भी उसका हिस्सा मिले।”

ब्राज़ील और थाईलैंड जैसे देशों में किसानों को—
✔ उपज लागत
+
✔ मिल के लाभ में हिस्सा

दोनों मिलते हैं।

भारत में ऐसा नहीं है।


5. “सारा पैसा तुम कमाओगे… और बाँटना नहीं चाहते”—यह सवाल क्यों बड़ा है?

बयान की गहराई में जाएँ तो यह केवल एक भावनात्मक आरोप नहीं बल्कि तीन बड़े आर्थिक प्रश्नों को उजागर करता है:


पहला प्रश्न: क्या किसान की मेहनत को उद्योग बराबरी से महत्व देता है?

किसान का आरोप है कि—

  • उद्योग उन्हें सिर्फ कच्चा माल समझता है
  • लेकिन खुद को “wealth creator” बताता है
  • जबकि असली wealth creator किसान ही है

दूसरा प्रश्न: क्या उद्योग ‘super profit’ कमा रहा है?

इथेनॉल नीति आने के बाद—

  • मिलों की आय दुगुनी–तिगुनी हुई
  • कई मिलों ने नए प्लांट खोले
  • समूह कंपनियों ने विस्तार किया

लेकिन किसानों को इसका सीधा फायदा नहीं मिला।


तीसरा प्रश्न: क्या सरकार उद्योग पक्षपाती नीतियाँ बना रही है?

किसान कहते हैं—
“सरकार मिलों की मदद करती है, लेकिन हमें नहीं।”

इथेनॉल blending लक्ष्य बढ़ने पर:

  • मिलों को सब्सिडी
  • बैंक गारंटी
  • प्रॉजेक्ट अप्रूवल
  • खरीद की गारंटी

लेकिन किसान को:

  • समय पर भुगतान नहीं
  • MSP नहीं बढ़ता
  • बकाया महीनों लटका रहता

इसलिए नाराज़गी स्वाभाविक है।


6. किसानों की मुख्य शिकायतें:

 भुगतान देरी

 FRP और लागत में अंतर

 लाभ-साझेदारी नहीं

 मिलों का एकाधिकार

 राजनीतिक दबाव

 मनमानी कटाई तिथि

 तौल में गड़बड़ी

 ट्रांसपोर्ट चार्ज किसानों पर थोपना


7. क्या उद्योग की दलीलें भी वैध हैं?

इंडस्ट्री के कुछ तर्क—

  • चीनी कीमतें नियंत्रित हैं
  • इथेनॉल blending हमेशा 100% खरीदी नहीं होती
  • बिजली खरीद का टैरिफ कम है
  • निर्यात पर अनिश्चितता
  • भारी बैंक ऋण

इन तर्कों में सत्य है, लेकिन किसानों की चोट इससे कम नहीं हो जाती।


8. सरकार की भूमिका: संतुलन या विफलता?

सरकार को दो मोर्चों पर स्थिति संभालनी है:

A. किसानों को लाभ मिले

B. चीनी उद्योग भी चल सके

लेकिन व्यावहारिक स्थिति यह है—

सरकार उद्योग की तरफ ज्यादा झुक जाती है।
क्योंकि उद्योग:

  • संगठित
  • संसाधन संपन्न
  • राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है

जबकि किसान बिखरे हुए हैं।


9. समाधान: कृषि व उद्योग दोनों को संतुलित करने वाला मॉडल

1. ब्राज़ील मॉडल

किसानों को प्रत्येक उत्पाद (चीनी, इथेनॉल, बिजली) की बिक्री का हिस्सा मिलता है।

2. लाभ-साझेदारी कानून

सुप्रीम कोर्ट भी कई बार सुझाव दे चुका है कि किसानों को real-time market benefit मिलना चाहिए।

3. समय पर भुगतान का कड़ा प्रावधान

90 दिन की जगह 30 दिन का नियम हो।

4. FRP को लागत से जोड़ना

हर वर्ष स्वचालित बढ़ोतरी हो।

5. किसान–मिल संयुक्त समिति

तौल, कटाई और भुगतान की निगरानी हो।

6. इथेनॉल लाभ का निश्चित हिस्सा

जैसे
10–15% हिस्सा किसानों के लिए अनिवार्य हो।


10. निष्कर्ष : किसान के बिना उद्योग शून्य है

यह सत्य है—

“किसान के बिना आप कुछ नहीं।”

क्योंकि:

  • उद्योग किसान पर निर्भर है
  • गन्ना किसानों के बिना इथेनॉल नीति ढह जाएगी
  • चीनी और बिजली उद्योग रुक जाएगा
  • लाखों मजदूर प्रभावित होंगे

इसलिए किसानों का यह कहना उचित है कि—
जब उद्योग और सरकार गन्ने से अरबों कमा रहे हैं, तो उन्हें भी उनकी मेहनत का न्यायसंगत हिस्सा मिलना चाहिए।


अंतिम संदेश

किसान की आवाज़ केवल एक शिकायत नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि—

भारत की आर्थिक वृद्धि तभी संभव है जब कृषि और उद्योग एक-दूसरे के साझेदार बनकर आगे बढ़ें, न कि मालिक–नौकर के रिश्ते में।