सुप्रीम कोर्ट ने असम को मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया से छूट देने के खिलाफ याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया: मताधिकार, पारदर्शिता और निर्वाचन प्रक्रिया पर बड़ा सवाल
भारत का चुनावी ढांचा दुनिया में सबसे विशाल और जटिल माना जाता है। ऐसे में मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ होती है।
इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए चुनाव आयोग (ECI) को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस उस याचिका पर आधारित है जिसमें असम राज्य को “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR)” यानी विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया से छूट दिए जाने को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि असम को इस प्रक्रिया से बाहर करने का निर्णय संविधान द्वारा संरक्षित समानता के अधिकार और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा का उल्लंघन है।
चुनाव आयोग की ओर से लिए गए इस निर्णय के पीछे क्या तर्क हैं, इसका लोकतंत्र पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, और सुप्रीम कोर्ट में अब आगे क्या होगा—इन सभी पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण इस लेख में प्रस्तुत है।
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision) क्या है?
सामान्य परिस्थितियों में भारत में मतदाता सूची का वार्षिक पुनरीक्षण किया जाता है। लेकिन कुछ राज्यों या क्षेत्रों में—
- जनसंख्या में व्यापक बदलाव,
- बड़ी मात्रा में विस्थापन,
- कानूनी विवाद,
- अथवा गंभीर अनियमितताओं
देखने पर चुनाव आयोग “Special Intensive Revision” करवाता है।
इस प्रक्रिया में—
- घर-घर सत्यापन
- नए मतदाताओं का जोड़
- मृत/स्थानांतरित/गलत प्रविष्टियों का हटाना
- फर्जी पंजीकरण को चिन्हित करना
जैसे कदम शामिल होते हैं।
यह प्रक्रिया अत्यंत संवेदनशील और महत्त्वपूर्ण होती है और इसका उद्देश्य होता है—
“एक पूर्ण, शुद्ध, अद्यतन और त्रुटिरहित मतदाता सूची तैयार करना।”
असम को SIR से क्यों छूट दी गई? चुनाव आयोग का निर्णय
2024 में चुनाव आयोग ने अधिसूचना जारी करते हुए असम राज्य को Special Intensive Revision से छूट दे दी।
आयोग का तर्क मुख्य रूप से यह था कि—
राज्य में NRC समेत अन्य जनसांख्यिकीय प्रक्रियाएँ पहले ही चल चुकी हैं
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की लंबी और विवादित प्रक्रिया बीते वर्षों में चली है।
ECI का मानना था कि—
“NRC के दौरान जनसांख्यिकीय सत्यापन अभूतपूर्व स्तर पर किया गया है।”
सुरक्षा और विधि-व्यवस्था की परिस्थिति
कुछ जिलों में कानून-व्यवस्था की स्थिति, अवैध घुसपैठ और सीमा क्षेत्रों की संवेदनशीलता के कारण व्यापक पुनरीक्षण कठिन बताया गया।
प्रशासनिक बोझ
राज्य पहले से कई बड़ी प्रक्रियाओं में व्यस्त है, ऐसे में एक और भारी पुनरीक्षण संभव नहीं था।
आयोग का दावा: सामान्य पुनरीक्षण पर्याप्त
चुनाव आयोग का कहना है कि “Annual Summary Revision”—सामान्य प्रक्रिया—असम के लिए पर्याप्त है।
लेकिन याचिकाकर्ता इस तर्क को अस्वीकार करते हैं।
याचिका में क्या कहा गया है?
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में निम्न प्रमुख बिंदु उठाए गए:
असम जनसांख्यिकीय रूप से अत्यंत संवेदनशील राज्य है
पूर्वोत्तर सीमा से लगे जिलों में लंबे समय से—
- अवैध प्रवास,
- गैर-पंजीकृत जनसंख्या,
- फर्जी दस्तावेजों की समस्या,
- राजनीतिक ध्रुवीकरण
जैसे मुद्दे उठते रहे हैं।
ऐसे में सबसे अधिक आवश्यक था कि वास्तविक जनसंख्या के अनुरूप मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित की जाए।
SIR से छूट देना पारदर्शिता और निष्पक्षता के खिलाफ
याचिकाकर्ताओं का आरोप:
“जब अन्य राज्यों में SIR लागू किया जा सकता है तो असम को इससे बाहर क्यों रखा गया?”
इससे मतदाता सूची में—
- अवैध नामों का बने रहना,
- या वास्तविक मतदाताओं के नाम हट जाना
जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं।
यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है
अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) कहता है कि राज्य किसी के साथ भेदभाव नहीं कर सकता।
जब देश के अन्य राज्यों में यह प्रक्रिया हो रही है, तो असम को छूट देना बिना उचित कारण असमानता पैदा करता है।
असम में वास्तविक मतदाता डेटा NRC से अलग है
NRC प्रक्रिया में बड़ी संख्या में लोग शामिल नहीं हो पाए, कई वास्तविक निवासियों के नाम छूट गए।
याचिकाकर्ताओं ने कहा:
“NRC को मतदाता सूची का आधार नहीं बनाया जा सकता। दोनों अलग प्रक्रियाएँ हैं।”
राजनीतिक हितों को लाभ देने के लिए निर्णय लिया गया—ऐसा गंभीर आरोप
कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का आरोप है कि इस निर्णय से विशेष रूप से लाभ एक निश्चित वर्ग या राजनीतिक दल को मिल सकता है।
हालांकि ECI ने सभी आरोपों को पूरी तरह खारिज किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए:
- चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया
- आयोग से चार सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब मांगा
- यह भी पूछा कि असम को SIR प्रक्रिया से बाहर रखने का ठोस आधार क्या है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा—
“मतदाता सूची किसी भी लोकतंत्र का मूल स्तंभ है। यदि इस पर कोई प्रश्न उठता है, तो उसे गंभीरता से देखना आवश्यक है।”
यह टिप्पणी संकेत देती है कि कोर्ट इस मामले को हल्के में नहीं ले रहा।
कानूनी दृष्टिकोण: क्या ECI का फैसला न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है?
संविधान के अनुसार:
- चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है।
- उसके निर्णयों में न्यायालय केवल सीमित हस्तक्षेप कर सकता है।
- लेकिन यदि निर्णय मालूम हो कि मनमाना, भेदभावपूर्ण, या संविधान के विपरीत है, तो कोर्ट दखल दे सकता है।
यह मामला इसी सीमा की परीक्षा ले रहा है।
क्यों असम पर विशेष ध्यान दिया जाता है?
असम भारत का एक अत्यंत संवेदनशील राज्य है क्योंकि—
बांग्लादेश सीमा से अवैध प्रवास का मुद्दा
यह लंबे समय से राजनीतिक विवाद और सामाजिक तनाव का कारण है।
NRC की विवादित प्रक्रिया
लगभग 19 लाख लोगों के नाम सूची से बाहर होने के बाद स्थिति और जटिल हो गई।
भाषा और संस्कृति का सवाल
स्थानीय समुदायों का कहना है कि जनसांख्यिकीय बदलाव उनकी संस्कृति को प्रभावित कर रहे हैं।
चुनावी प्रभाव
असम में प्रत्येक छोटे जनसांख्यिकीय बदलाव का सीधा असर विधानसभा और लोकसभा चुनावों पर होता है।
इसी वजह से याचिकाकर्ताओं का कहना है कि—
“असम में मतदाता सूची का पुनरीक्षण छोड़ना देश की चुनावी अखंडता पर बड़ा खतरा है।”
विशेषज्ञों की राय: मामला क्यों महत्वपूर्ण है?
यह चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है
यदि सुप्रीम कोर्ट इस छूट को असंवैधानिक मानता है, तो यह चुनाव आयोग की नीतियों की समीक्षा का बड़ा मुद्दा बन जाएगा।
मतदाता सूची की गुणवत्ता पर राष्ट्रीय प्रभाव
असम के अलावा अन्य राज्यों में भी लोग SIR की मांग करते हैं।
भारत में मताधिकार और नागरिकता पर बहस को दिशा देगा
NRC, CAA, मतदाता सूची—ये सभी आपस में गहरे जुड़े विषय हैं।
आगे क्या हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट के संभावित विकल्प
सुप्रीम कोर्ट के पास कई रास्ते हैं—
ECI के फैसले को बरकरार रखना
अगर कोर्ट मानता है कि चुनाव आयोग की दलीलें उचित हैं।
आयोग से कारण बताओ नोटिस के बाद प्रक्रिया संशोधित करने का निर्देश
कोर्ट कह सकता है कि SIR आंशिक रूप से लागू किया जाए।
असम में SIR लागू करने का आदेश
यह सबसे कठोर कदम होगा लेकिन संभव है।
मामले को संवैधानिक पीठ को भेजना
यदि मामला अनुच्छेद 14, 19 और 21 से गहराई से जुड़ा पाया जाता है।
निष्कर्ष: लोकतंत्र की विश्वसनीयता दांव पर
मतदाता सूची किसी भी लोकतंत्र का आधार होती है।
भारत जैसे विशाल और विविध देश में यह आवश्यक है कि—
- सूची पूरी
- सही
- और त्रुटिरहित
हो।
असम जैसे संवेदनशील राज्य को SIR से छूट देना कई गंभीर सवाल खड़े करता है:
- क्या यह चुनावी पारदर्शिता के खिलाफ है?
- क्या यह संविधान के खिलाफ भेदभावपूर्ण निर्णय है?
- क्या इससे मतदाता सूची की वैधता पर संदेह पैदा होता है?
अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं, जो यह तय करेगा कि—
“क्या चुनाव आयोग का यह निर्णय उचित था या लोकतांत्रिक सिद्धांतों की अवहेलना?”