तलाक के मुकदमे के दौरान दूसरी शादी न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय
भारत में विवाह केवल एक सामाजिक संस्था नहीं, बल्कि एक कानूनी संबंध भी है जो कई अधिकारों, कर्तव्यों तथा दायित्वों को जन्म देता है। जब वैवाहिक संबंध टूटने की स्थिति आती है, तब कानून तलाक की प्रक्रिया को स्पष्ट नियमों में बांधता है। तलाक की कार्यवाही न्यायालय की निगरानी में चलती है और जब तक तलाक अंतिम और वैध रूप से अदालत के आदेश द्वारा प्रमाणित न हो जाए, तब तक विवाह कायम माना जाता है। भारत का वैवाहिक कानून स्पष्ट करता है कि यदि किसी व्यक्ति ने तलाक की डिक्री के विरुद्ध अपील का अधिकार उपयोग किया है और वह अपील विचाराधीन है, तब विवाह अभी भी कानूनी रूप से जीवित माना जाता है। इस स्थिति में दूसरी शादी करना न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन तथा अवमानना की श्रेणी में आता है।
हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा कि —
“तलाक के मुकदमे या अपील लंबित रहने के दौरान दूसरी शादी करना अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 12 के अंतर्गत न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन है।”
इस निर्णय में अदालत ने पति को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराते हुए 3 महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई।
विवाद की पृष्ठभूमि
एक व्यक्ति ने पारिवारिक अदालत से तलाक की डिक्री प्राप्त कर ली थी, किंतु उसकी पत्नी ने इस डिक्री को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। अपील विचाराधीन थी और मामला न्यायिक प्रक्रिया में लंबित था। इसी दौरान पति ने दूसरी शादी कर ली और पुनः वैवाहिक जीवन आरंभ कर दिया।
पत्नी ने इस कृत्य को न्यायिक प्रक्रिया के प्रति असम्मान बताते हुए अवमानना याचिका दाखिल की। उनका तर्क था कि जब तक उच्च न्यायालय में अपील लंबित है तब तक तलाक की डिक्री अंतिम रूप से निष्पादित नहीं मानी जा सकती, इसलिए पति का दूसरी शादी करना कानूनी रूप से अवैध तथा न्यायालय को धोखा देने जैसा कार्य है।
अदालत ने इस तर्क को स्वीकारते हुए पति के कार्य को Contempt of Court माना और निर्णय सुनाया कि यह कार्य न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार करने के उद्देश्य से किया गया।
तलाक को अंतिम मानने का कानूनी आधार
कब तलाक अंतिम माना जाता है?
तलाक का मामला दो चरणों में समाप्त होता है—
1️⃣ निचली अदालत (Family Court) का निर्णय
2️⃣ अपील का अवसर — High Court और Supreme Court तक
यदि किसी पक्ष ने अपील दायर कर दी है, तो पहली डिक्री अंतिम नहीं मानी जाती।
सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्णयों में कहा है:
➡ “Final decree तभी होती है जब अपील का अवसर समाप्त हो जाए अथवा अपील में निर्णय हो जाए।”
इस सिद्धांत को Doctrine of Merger कहा जाता है —
अर्थात निचली अदालत का निर्णय उच्च अदालत की निगरानी एवं समीक्षा के अधीन आ जाता है।
दूसरी शादी क्यों अवैध मानी जाती है?
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 15 में स्पष्ट लिखा है:
➡ “जब तक अपील की अवधि समाप्त नहीं हो जाती और अपील दायर नहीं की जाती, तब तक कोई भी पक्ष नया विवाह नहीं कर सकता।”
यदि अपील दायर हो चुकी है तो तब तक विवाह निषिद्ध है।
इसका उद्देश्य यह है कि:
- न्यायिक प्रक्रिया पर प्रभाव न पड़े,
- अपील व्यर्थ न हो,
- उच्च अदालत के अधिकार का सम्मान बना रहे,
- पक्षकार गलत लाभ न उठाएं।
यदि एक पक्ष तलाक की लंबित कार्यवाही के दौरान शादी कर लेता है, तो अपील निरर्थक हो जाती है, और यही न्यायालय की प्रक्रियाओं की अवमानना है।
Contempt of Court Act, 1971 — धारा 12 का प्रावधान
अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 12 कहती है—
➡ यदि कोई व्यक्ति न्यायिक आदेश, प्रक्रिया अथवा निर्देश का उल्लंघन करता है तो उसे कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
इस कानून का उद्देश्य:
- न्यायालय की गरिमा,
- आदेशों का सम्मान,
- न्यायिक व्यवस्था की संरक्षा करना है।
उच्च न्यायालय ने माना कि — जब तलाक की अपील लंबित है, तब दूसरी शादी करना न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करना है और यह अदालत के प्रति अनादर है।
उच्च न्यायालय का निर्णय — मुख्य बिंदु
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा—
1️⃣ पति ने जानबूझकर अदालत को नजरअंदाज किया
2️⃣ यह कार्य कानूनी प्रक्रिया से बचने का प्रयास है
3️⃣ दूसरी शादी करना नैतिक और कानूनी दोनों रूप में गलत
4️⃣ अदालत ने 3 माह की साधारण कारावास और जुर्माना लगाया
5️⃣ यह आदेश भविष्य के मामलों के लिए एक चेतावनी के रूप में कार्य करेगा
अदालत ने टिप्पणी की:
➡ “न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास और सम्मान बनाए रखना आवश्यक है। यह केवल पक्षकारों के अधिकारों का विषय नहीं, बल्कि न्यायिक व्यवस्था की गरिमा का प्रश्न है।”
ऐसे मामलों का सामाजिक प्रभाव
इस निर्णय का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ेगा—
✔ तलाक की प्रक्रिया को गंभीरता से लेने की चेतावनी
✔ गलत इरादे से विवाह करने वालों पर अंकुश
✔ महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा
✔ विवाह संस्था की गरिमा की रक्षा
अक्सर देखा जाता है कि कई बार पक्षकार प्रथम अदालत का फैसला मिलते ही समझ लेते हैं कि उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता मिल गई है। लेकिन कानून केवल एक न्यायालय के आदेश से समाप्त नहीं हो जाता।
दूसरी शादी के दुष्परिणाम
यदि पति या पत्नी दूसरा विवाह कर लेते हैं, तब:
🔹 दूसरी शादी बिगैमी (Bigamy) की श्रेणी में आ सकती है
🔹 पत्नी भारतीय दंड संहिता के तहत शिकायत कर सकती है
🔹 वैवाहिक अधिकार प्रभावित होते हैं
🔹 बच्चों के अधिकार प्रभावित होते हैं
🔹 संपत्ति अधिकार जटिल हो जाते हैं
🔹 और अब — Contempt of Court का जोखिम भी है
महिलाओं को मिलने वाली सुरक्षा
भारत के कानून में महिलाएं इस स्थिति में:
✔ अवमानना याचिका दायर कर सकती हैं
✔ बिगैमी और धोखाधड़ी का मामला दर्ज करा सकती हैं
✔ भरण-पोषण (Maintenance) मांग सकती हैं
✔ संपत्ति दावा कर सकती हैं
✔ दहेज या Cruelty के मामलों में शिकायत कर सकती हैं
यह फैसला स्पष्ट करता है कि न्यायालय महिला के अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
क्या पति/पत्नी माफी मांगकर बच सकते हैं?
कई बार पक्षकार कहते हैं कि–
- उन्हें कानून की जानकारी नहीं थी
- उन्होंने किसी के कहने पर विवाह किया
लेकिन अदालत का मानना है: ➡ कानून की अनभिज्ञता अपराध मुक्त नहीं करती।
और यदि ऐसा करने की अनुमति दी जाए तो न्यायिक प्रक्रिया का कोई महत्व नहीं बचेगा।
निष्कर्ष
यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था, विवाह संस्था और सामाजिक मूल्यों के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। तलाक, केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, बल्कि यह कानूनी सीमाओं के साथ बंधा हुआ है। जब तक तलाक का मामला अंतिम रूप से समाप्त नहीं हो जाता, तब तक दूसरी शादी करना कानूनी रूप से गलत ही नहीं बल्कि न्यायालय की अवमानना भी है।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का यह निर्णय स्पष्ट संदेश देता है कि — ➡ कोई भी पक्ष न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार कर अपने हित में कदम नहीं उठा सकता।
यह फैसला महिलाओं के अधिकार, न्यायिक गरिमा और कानून के सम्मान की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण, प्रासंगिक और भविष्य-केंद्रित है।