‘उमीद पोर्टल’ में खामियों का आरोप: वक़्फ़ मुतवल्ली सुप्रीम कोर्ट पहुँचे; तकनीकी त्रुटियों को दूर करने के निर्देश की मांग
भूमिका
भारत में वक़्फ़ संपत्तियों का प्रबंधन लंबे समय से एक जटिल कानूनी और प्रशासनिक विषय रहा है। वक़्फ़ बोर्डों की पारदर्शिता, रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण, प्रशासनिक जवाबदेही और भ्रष्टाचार-मुक्त प्रबंधन सुनिश्चित करने के प्रयासों के तहत केंद्र सरकार ने “उमीद पोर्टल (Umeed Portal)” शुरू किया था। इस पोर्टल का उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर वक़्फ़ संपत्तियों की डिजिटल निगरानी करना, मुतवल्लियों (Mutawallis) की नियुक्ति, वित्तीय लेन-देन, और वक़्फ़ संपत्ति के उपयोग को पारदर्शी बनाना था।
लेकिन हाल ही में एक वक़्फ़ मुतवल्ली ने इस पोर्टल में गंभीर तकनीकी त्रुटियों और व्यावहारिक खामियों का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि पोर्टल की खामियाँ न केवल मुतवल्लियों के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, बल्कि वक़्फ़ संपत्तियों के वास्तविक डेटा को गलत तरीके से प्रदर्शित कर रही हैं, जिससे संपत्ति प्रबंधन प्रभावित हो रहा है।
उमीद पोर्टल: उद्देश्य और महत्व
उमीद पोर्टल को वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और एकरूपता लाने के उद्देश्य से विकसित किया गया था। केंद्र सरकार और केंद्रीय वक़्फ़ परिषद (Central Waqf Council) द्वारा इसे “डिजिटल वक़्फ़ बोर्ड” के रूप में प्रचारित किया गया।
मुख्य उद्देश्य थे—
- वक़्फ़ संपत्तियों का केंद्रीयकृत डिजिटल रिकॉर्ड
- मुतवल्लियों की ऑनलाइन पंजीकरण और सत्यापन प्रक्रिया
- आय और व्यय का डिजिटल लेखा-जोखा
- संपत्तियों की ई-निगरानी (e-surveillance)
- भू-अधिकार और टाइटल विवादों में पारदर्शिता
- भू-नक्शों और GIS रिपोर्ट का एकीकरण
पोर्टल के माध्यम से सरकार का दावा था कि वक़्फ़ बोर्डों में प्रचलित अव्यवस्था, कागज़ी रिकॉर्ड की कमी, अवैध कब्ज़ों और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
याचिकाकर्ता यानी मुतवल्ली की शिकायतें
याचिका में मुतवल्ली ने कहा कि—
उमीद पोर्टल अपने उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहा है, क्योंकि इसमें कई ऐसी तकनीकी और प्रशासनिक खामियाँ हैं, जो वक़्फ़ संपत्तियों के सुचारु प्रबंधन को कठिन बनाती हैं।
1. संपत्ति विवरण में गंभीर त्रुटियाँ
- कई वक़्फ़ संपत्तियों को पोर्टल पर गलत लोकेशन के साथ दिखाया गया है।
- कुछ संपत्तियाँ ऐसी भूमि पर दिख रही हैं जिनका वक़्फ़ से कोई संबंध ही नहीं है।
- वास्तविक मुतवल्ली का नाम गलत दर्शाया गया है।
- कुछ मामलों में संपत्ति “गैर-मौजूद” (non-existent) के रूप में दर्ज है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि ये त्रुटियाँ भविष्य में संपत्ति विवादों को जन्म दे सकती हैं।
2. गलत अपडेट और अपलोडिंग न होने की समस्या
- नए दस्तावेज़ अपलोड नहीं हो पा रहे।
- पुरानी एंट्री संशोधित नहीं की जा सकती।
- पोर्टल बार-बार क्रैश हो जाता है।
- डिजिटल हस्ताक्षर स्वीकार नहीं किए जाते।
3. व्यक्तिगत जानकारी का गलत प्रकाशन
पोर्टल पर मुतवल्लियों की व्यक्तिगत जानकारी गलत रूप से सार्वजनिक कर दी गई है, जिससे—
- निजता का उल्लंघन,
- पहचान संबंधी जोखिम,
- और सुरक्षा संबंधी खतरे
उपस्थित हो गए हैं।
4. पोर्टल की प्रक्रिया जटिल और अव्यावहारिक
याचिकाकर्ता के अनुसार—
- आवेदन प्रक्रिया अत्यधिक जटिल,
- OTP और ईमेल सत्यापन विफल,
- डैशबोर्ड में पर्याप्त जानकारी नहीं,
- तकनीकी सहायता “लगभग न के बराबर” है।
5. पोर्टल से मुतवल्ली के संवैधानिक अधिकार प्रभावित
याचिका में कहा गया है कि—
“तकनीकी खामियों के कारण मुतवल्ली की स्थिति असुरक्षित हो गई है और वक़्फ़ संपत्ति के संबंध में निर्णय लेने की क्षमता बाधित हो रही है, जिससे Article 14, Article 19 और Article 21 का उल्लंघन हो रहा है।”
सुप्रीम कोर्ट से की गई प्रमुख मांगें
मुतवल्ली ने सुप्रीम कोर्ट से निम्न निर्देशों की मांग की:
1. उमीद पोर्टल की तकनीकी खराबियों की स्वतंत्र जाँच
कोर्ट एक स्वतंत्र एजेंसी बनाए जो—
- पोर्टल के सर्वर,
- आर्किटेक्चर,
- डेटा इंटिग्रिटी,
- और सुरक्षा प्रणाली
की व्यापक जाँच करे।
2. डेटा सुधार (Rectification) के लिए नई व्यवस्था
पोर्टल पर गलत नाम, पता, दस्तावेज़, संपत्ति का विवरण सुधारने के लिए—
- एक “Rectification Window”
- या मैनुअल सुधार प्रणाली
की मांग की गई।
3. पोर्टल के संचालन में पारदर्शिता
- वक़्फ़ बोर्ड और CWC की भूमिका स्पष्ट की जाए।
- पोर्टल पर किए गए डेटा एंट्री के स्रोत बताए जाएँ।
- गलत जानकारी के लिए जवाबदेही तय हो।
4. निजता और डेटा सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
याचिका के अनुसार—
“मुतवल्ली का निजी डेटा बिना सहमति सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए।”
5. पोर्टल को उपयोगकर्ता-अनुकूल बनाया जाए
जैसे—
- मोबाइल फ्रेंडली इंटरफेस,
- बहुभाषी विकल्प,
- 24×7 तकनीकी सहायता लाइन,
- समय पर OTP और वैध लॉगिन प्रणाली।
सरकार और वक़्फ़ बोर्ड की ओर से संभावित आपत्तियाँ
अब तक के रुझानों और दस्तावेज़ों के आधार पर सरकार निम्न तर्क प्रस्तुत कर सकती है—
1. “पोर्टल एक राष्ट्रीय सुधार की दिशा में कदम”
सरकार का कहना होगा कि—
- लंबे समय से वक़्फ़ संपत्तियों का रिकॉर्ड अव्यवस्थित था,
- भ्रष्टाचार और अवैध कब्ज़े आम थे,
- इसलिए डिजिटल सिस्टम समय की आवश्यकता थी।
2. त्रुटियाँ प्रारंभिक चरण में सामान्य
सरकार यह भी तर्क दे सकती है कि—
- बड़े डिजिटल प्रोजेक्ट्स में शुरुआती खामियाँ आती हैं,
- इन्हें समय के साथ ठीक कर दिया जाता है।
3. पोर्टल सभी मुतवल्लियों के हित में
- पारदर्शिता बढ़ेगी
- विवाद कम होंगे
- रिकॉर्ड सुरक्षित होंगे
4. डेटा अपडेट की जिम्मेदारी स्थानीय वक़्फ़ बोर्ड की
सरकार कह सकती है—
“कई एंट्री राज्यों द्वारा कराई गई हैं, केंद्र नहीं। त्रुटियों की जिम्मेदारी राज्य बोर्डों की है।”
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष संभावित कानूनी प्रश्न
यह मामला कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है:
1. क्या तकनीकी खामियाँ मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की श्रेणी में आती हैं?
विशेषकर Article 14 (बराबरी), Article 19 (अभिव्यक्ति का अधिकार) और Article 21 (निजता व जीवन) के संदर्भ में।
2. क्या सरकार मुतवल्लियों पर डिजिटल पोर्टल का अनिवार्य उपयोग थोप सकती है?
यदि पोर्टल व्यावहारिक रूप से कार्य नहीं कर रहा, तो यह प्रश्न महत्वपूर्ण है।
3. डेटा सुरक्षा और निजता का प्रश्न
यह मामला “Right to Privacy” (Puttaswamy Verdict) से जुड़ा हो सकता है।
4. प्रशासनिक मनमानी का परीक्षण
क्या वक़्फ़ बोर्ड और CWC पोर्टल को लागू करने में उचित प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं?
5. डिजिटल गवर्नेंस में जवाबदेही का प्रश्न
यदि डेटा गलत है, तो ज़िम्मेदार कौन—सॉफ्टवेयर डेवलपर, वक़्फ़ बोर्ड या सरकार?
मामले का सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव
1. देशभर के मुतवल्लियों के लिए महत्वपूर्ण मिसाल
यदि सुप्रीम कोर्ट पोर्टल की समीक्षा का आदेश देता है, तो इसका असर—
- 4.9 लाख से अधिक वक़्फ़ संपत्तियों,
- हजारों मुतवल्लियों,
- और राज्य वक़्फ़ बोर्डों
पर पड़ेगा।
2. डिजिटल वक़्फ़ प्रबंधन की विश्वसनीयता पर सवाल
यह मामला दिखाता है कि—
- तकनीकी परियोजनाओं में जल्दबाजी,
- अपर्याप्त प्रशिक्षण,
- और गलत डेटा एंट्री
कितनी बड़ी समस्या बन सकती है।
3. गलत डिजिटल रिकॉर्ड = भविष्य के विवाद
यदि रिकॉर्ड गलत है, तो भविष्य में—
- भूमि दावों,
- कब्ज़ विवादों,
- दस्तावेज़ी विवादों
में जटिलता बढ़ेगी।
क्या हो सकता है आगे? – संभावित परिणाम
सुप्रीम कोर्ट निम्न आदेश दे सकता है:
1. तकनीकी ऑडिट का आदेश
एक विशेषज्ञ समिति पोर्टल की समीक्षा करे।
2. पोर्टल में सुधार के लिए दिशानिर्देश
सुधार की समय-सीमा तय की जा सकती है।
3. गलत डेटा सुधारने की सुविधा
राज्य बोर्डों को सुधार प्रक्रिया शुरू करने को कहा जा सकता है।
4. पोर्टल संचालन में पारदर्शिता बढ़ाने का निर्देश
डेटा एंट्री के स्रोत स्पष्ट करने होंगे।
5. निजता सुरक्षा उपाय
व्यक्तिगत जानकारी छिपाने या सीमित करने का आदेश आ सकता है।
निष्कर्ष
वक़्फ़ संपत्तियों का प्रशासन भारत में दशकों से विवादों और अनियमितताओं से घिरा रहा है। उमीद पोर्टल को इन समस्याओं का आधुनिक समाधान माना गया था, लेकिन अभी इसकी सफलता संदेह के घेरे में है। एक मुतवल्ली का सुप्रीम कोर्ट पहुँचना बताता है कि—
“डिजिटल सुधार तभी सार्थक हैं जब वे उपयोगकर्ता के अनुकूल, पारदर्शी और त्रुटिरहित हों।”
सुप्रीम कोर्ट का आगामी निर्णय न केवल इस मामले का समाधान करेगा, बल्कि वक़्फ़ प्रबंधन के भविष्य को भी दिशा देगा। यह मामला डिजिटल इंडिया की विश्वसनीयता, डेटा सुरक्षा, प्रशासनिक जवाबदेही और धार्मिक संपत्तियों के संरक्षण से गहराई से जुड़ा है।