पायलट प्रोजेक्ट से सुप्रीम कोर्ट में लिस्टिंग होगी और सुव्यवस्थित: CJI सूर्यकांत ji ने कहा—अन्य मुद्दे चरणबद्ध तरीके से सुलझाए जाएंगे
भूमिका: न्यायिक कार्यप्रणाली के आधुनिकीकरण की ओर एक बड़ा कदम
सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस CJI सूर्यकांत ने पदभार संभालते ही न्यायिक प्रशासन और कोर्ट प्रक्रियाओं में व्यापक सुधारों की दिशा में ठोस कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। इसी श्रृंखला में “पायलट प्रोजेक्ट टू स्ट्रीमलाइन लिस्टिंग” को लागू करने की घोषणा की गई है, जो सोमवार से शुरू होगा। यह प्रोजेक्ट मुकदमों की लिस्टिंग, उल्लेख (mentioning), रजिस्ट्री के कार्य, केस अलॉटमेंट और सुनवाई प्रक्रिया को तेज, पारदर्शी और तकनीक-सक्षम बनाने पर केंद्रित है।
CJI ने यह भी स्पष्ट किया है कि अन्य जटिल और दीर्घकालिक मुद्दों को चरणबद्ध तरीके से हल किया जाएगा, जिससे न्यायिक प्रशासन में स्थिरता और दक्षता दोनों सुनिश्चित हों।
क्या है ‘स्ट्रीमलाइन लिस्टिंग पायलट प्रोजेक्ट’?
सुप्रीम कोर्ट में रोजाना हजारों मामलों की सुनवाई होती है और उतनी ही संख्या में नए मामलों की फाइलिंग भी। वर्षों से यह समस्या रही है कि केस लिस्टिंग में अस्पष्टता, अनिश्चितता और अनावश्यक देरी होती है। कई बार याचिकाकर्ताओं को mentioning के लिए कोर्ट में बार-बार आना पड़ता है।
CJI सूर्यकांत द्वारा शुरू किया गया यह पायलट प्रोजेक्ट इस स्थिति को सुधारने के लिए लाया गया है।
मुख्य उद्देश्य—
- लिस्टिंग में पारदर्शिता लाना
- तुरंत और समयबद्ध लिस्टिंग सुनिश्चित करना
- अनावश्यक mentioning को कम करना
- रजिस्ट्री की प्रक्रियाओं में तकनीक का अधिक उपयोग
- बेंच आवंटन और सुनवाई व्यवस्थाओं को सुव्यवस्थित करना
लिस्टिंग प्रक्रिया में क्या बदलाव होंगे?
पायलट प्रोजेक्ट के तहत कई महत्वपूर्ण बदलाव लागू किए जा रहे हैं:
1. ढांचागत सुधार— केस लिस्टिंग का नया मॉडल
अब तक केस किस बेंच को जाएगा, यह रजिस्ट्री की आंतरिक प्रक्रिया पर निर्भर था। कई बार इसमें देरी या भ्रम रहता था। नया मॉडल पूरी तरह timestamp-based, automated और category-driven होगा।
इससे—
- याचिकाकर्ता यह जान सकेगा कि फाइलिंग के बाद उसका केस कब और कैसे लिस्ट होगा।
- वकीलों को बार-बार mentioning की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
- Bench roster में लचीलापन और संगतता बढ़ेगी।
2. ‘ई-मेंशनिंग’ और त्वरित आपात लिस्टिंग
CJI ने स्पष्ट किया कि आपात मामलों के लिए ई-मेंशनिंग को और सुगम बनाया जाएगा।
अब—
- आपात राहत वाले मामलों की hearing सुनिश्चित समय के भीतर होगी।
- देर से दाखिल याचिकाओं के लिए भी स्पष्ट समयसीमा तय होगी।
3. रजिस्ट्री की भूमिका को परिभाषित और मजबूत किया जाएगा
अक्सर रजिस्ट्री द्वारा की गई ‘डिफेक्ट नोटिंग’ के कारण केस महीनों तक लंबित रहते हैं। पायलट प्रोजेक्ट में—
- डिफेक्ट पहचानने की प्रक्रिया डिजिटल होगी।
- 48 घंटे के भीतर डिफेक्ट सुधारने की सुविधा मिलेगी।
- फाइलिंग → स्क्रूटनी → लिस्टिंग टाइमलाइन तय होगी।
CJI सूर्यकांत की दृष्टि: सुनवाई को सहज और न्याय-सुलभ बनाना
CJI सूर्यकांत ने अपनी दृष्टि स्पष्ट करते हुए कहा कि न्यायिक प्रक्रियाएं जनता के लिए हैं, न कि जनता को प्रक्रियाओं के लिए परेशान होने दिया जाएगा।
उनके अनुसार सुधार तीन स्तर पर होंगे:
- ढांचागत सुधार – कोर्ट में तकनीक और प्रबंधन का बेहतर उपयोग
- प्रक्रियागत सुधार – लिस्टिंग, mentioning और सुनवाई की प्रक्रियाएं पारदर्शी बनाना
- व्यवहारगत सुधार – न्यायिक अधिकारियों और रजिस्ट्री कर्मचारियों को नई प्रणाली के लिए प्रशिक्षित करना
अन्य मुद्दे चरणबद्ध तरीके से सुलझाए जाएंगे: मुख्य क्षेत्रों की पहचान
CJI ने कहा, “एक साथ सब बदलने की कोशिश अव्यवस्था पैदा कर सकती है। इसलिए चरणबद्ध और सिस्टेमैटिक सुधार की रणनीति अपनाई जा रही है।”
आगे उन प्रमुख मुद्दों की सूची दी जा रही है जिन्हें आगामी चरणों में सुधारा जाएगा:
1. केस मैनेजमेंट सिस्टम का आधुनिकीकरण
- पुराने मामलों के डिजिटाइजेशन
- Bench-wise case load balancing
- AI-assisted case categorization
- Pendency reduction strategy
2. अवकाश बेंच और urgent matters की सुनवाई व्यवस्था
- छुट्टियों में भी जरूरी मामलों के लिए स्टैंडर्ड सिस्टम
- vacation benches की पारदर्शी नियुक्ति
3. e-Court Room और Virtual Hearing
- हाइब्रिड सुनवाई को स्थायी रूप देना
- तकनीकी खामियों का उन्मूलन
- वकीलों के लिए training modules
4. जजों की रिक्तियों और बॉयलर रूम कार्यप्रणाली में सुधार
- समयबद्ध नियुक्तियाँ
- न्यायिक अवसंरचना में विस्तार
- Staff augmentation
5. केस बैकलॉग कम करने के लिए National Judicial Data Grid (NJDG) का विस्तार
- सुप्रीम कोर्ट के मामलों का पूर्ण आंकड़ा
- उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों से realtime connectivity
इस प्रोजेक्ट की आवश्यकता क्यों पड़ी?
भारत का सुप्रीम कोर्ट दुनिया की सबसे व्यस्त न्यायालयों में से एक है।
- हर दिन 70,000 से अधिक मामलों की लिस्टिंग
- लगभग 80,000+ लंबित मामले
- Bench roster में बार-बार बदलाव
- Mentioning पर अत्यधिक निर्भरता
- Litigants का अप्रत्याशित प्रतीक्षा समय
ऐसे में एक वैज्ञानिक, पारदर्शी और तकनीकी रूप से समर्थ लिस्टिंग प्रणाली की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी।
संभावित लाभ: न्याय व्यवस्था में क्रांति जैसे बदलाव
1. वकीलों पर बोझ कम होगा
Mentioning की भीड़ कम होगी और वकीलों को रोस्टर के अनुसार स्पष्ट जानकारी मिल जाएगी।
2. Litigants को समयबद्ध न्याय मिलेगा
उन्हें यह मालूम रहेगा कि—
- केस कब लगेगा
- किस बेंच में लगेगा
- कितना समय लगेगा
3. Bench के समय का बेहतर उपयोग
जज अब procedural देरी से मुक्त होकर substantive सुनवाई पर ध्यान दे पाएंगे।
4. Transparency और Accountability बढ़ेगी
लिस्टिंग में मानव हस्तक्षेप कम होने से system अधिक निष्पक्ष होगा।
5. Pendency में कमी आएगी
सुनवाई का समय बचने से अधिक मामलों का निपटारा संभव होगा।
सुप्रीम कोर्ट की नई कार्यसंस्कृति: न्यायपालिका में ‘Ease of Doing Justice’
CJI सूर्यकांत का लक्ष्य न्यायपालिका में ऐसा वातावरण बनाना है जिसमें litigants, वकील और आम नागरिक सभी को न्याय तक पहुँच आसान लगे।
Ease of Doing Justice की इस नीति में शामिल है:
- केस की digital tracking
- automated listing
- त्वरित hearing
- paperless court
- user-friendly interfaces
ये सुधार भारत की न्यायिक प्रणाली को 21वीं सदी के अनुरूप बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे।
बार के सहयोग और सुझावों का स्वागत
CJI ने साफ कहा कि बार और Bench दोनों न्यायिक सुधारों की पूरक इकाइयाँ हैं। इसलिए—
- SCBA और SCAORA के सुझाव
- वकीलों की व्यावहारिक समस्याएँ
- तकनीकी बाधाओं पर इनपुट
इन सभी को ध्यान में रखते हुए पायलट प्रोजेक्ट को आकार दिया गया है।
आगे की राह: क्या उम्मीद की जा सकती है?
पायलट प्रोजेक्ट के परिणामों के आधार पर—
- इसके दायरे को और बढ़ाया जाएगा
- हाई कोर्टों में भी ऐसे मॉडल लागू होंगे
- Long-term judicial reforms का मार्ग प्रशस्त होगा
यह प्रोजेक्ट एक तरह से Judicial Reform 2.0 की घोषणा है, जो आने वाले वर्षों में न्यायिक प्रणाली को आमूलचूल रूप से बदल सकता है।
निष्कर्ष: न्यायिक दक्षता और पारदर्शिता की नई शुरुआत
CJI सूर्यकांत ji द्वारा शुरू किया गया स्ट्रीमलाइन लिस्टिंग पायलट प्रोजेक्ट भारतीय न्यायपालिका में एक ऐतिहासिक सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
यह सिर्फ एक तकनीकी या प्रशासनिक बदलाव नहीं बल्कि न्याय प्राप्ति के अधिकार को अधिक प्रभावी और व्यावहारिक बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।
जब लिस्टिंग साफ, समयबद्ध और निष्पक्ष होगी, तब न्यायिक प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ेगी और सुप्रीम कोर्ट जनता के लिए और अधिक सुलभ हो जाएगा।