IndianLawNotes.com

“पुलिस स्टेशनों में CCTV अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को अंतिम चेतावनी दी, डिफॉल्ट पर सचिव को पेश होने का आदेश”

“पुलिस स्टेशनों में CCTV अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को अंतिम चेतावनी दी, डिफॉल्ट पर सचिव को पेश होने का आदेश”


भूमिका : पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख

       भारत में पुलिस थानों में पूछताछ के दौरान यातना, गैरकानूनी हिरासत और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएँ लंबे समय से चिंता का विषय रही हैं। इन शिकायतों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अतीत में कई बार पुलिस स्टेशनों में व्यापक CCTV निगरानी व्यवस्था लागू करने का आदेश दिया था। लेकिन वर्षों बीतने के बावजूद कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने अनुपालन में गंभीर देरी दिखाई।
इसी पृष्ठभूमि में सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अंतिम समय-सीमा प्रदान की है और स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि इस बार भी अनुपालन नहीं किया गया, तो संबंधित राज्य/UT के गृह सचिव या सक्षम सचिव को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट के सामने उपस्थित होना पड़ेगा।

        यह आदेश न केवल न्यायपालिका की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि पुलिस सुधारों की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम भी है।


मामले की पृष्ठभूमि: CCTV स्थापना के आदेश की यात्रा

        सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2020 के अपने ऐतिहासिक फैसले में निर्देश दिया था कि देश के सभी पुलिस स्टेशनों में—

  • पूछताछ कक्ष (Interrogation Rooms)
  • लॉक-अप
  • प्रवेश-द्वार
  • बैरक
  • हॉलवे
  • वेटिंग एरिया
  • सभी महत्वपूर्ण स्थान

पर 24×7 CCTV कैमरे लगाना अनिवार्य होगा।

यह आदेश People’s Union for Civil Liberties (PUCL) की याचिका में पारित हुआ था। न्यायालय का मुख्य उद्देश्य था—

किसी भी प्रकार की पुलिस बर्बरता, गैरकानूनी हिरासत या चोट पहुंचाने के आरोप से जुड़े मामलों में साक्ष्य सुरक्षित रह सकें।

       लेकिन सुप्रीम कोर्ट की यह आशा तब धूमिल होती दिखी जब कई राज्यों ने फंडिंग, तकनीकी संरचना, वायरिंग, स्टोरेज क्षमता और निगरानी तंत्र को आधार बनाकर लगातार देरी की।


ताज़ा सुनवाई: न्यायालय की नाराज़गी साफ झलकी

         ताज़ा सुनवाई के दौरान CJI के नेतृत्व वाली पीठ ने पाया कि कई राज्यों/UTs ने न तो समय पर कम्प्लायंस रिपोर्ट दाखिल की, और न ही न्यायालय के पुराने निर्देशों का पूरी तरह पालन किया।

        न्यायालय ने जब पूछा कि आखिर इतनी देरी क्यों हो रही है, कुछ राज्यों ने बजट और तकनीकी बाधाओं का हवाला दिया। इस पर पीठ ने तीखी टिप्पणी की—

“जनता की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। CCTV लगाने में देरी, मानवाधिकारों की रक्षा में ढिलाई के बराबर है। अब और बहाने स्वीकार नहीं होंगे।”

न्यायालय ने आगे कहा कि यह “आखिरी अवसर” है और यदि राज्यों ने इस बार भी अनदेखी की, तो उन्हें न्यायालय के आदेशों की अवमानना का सामना करना पड़ेगा।


सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: अंतिम समय सीमा + कठोर चेतावनी

न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट निर्देश दिए—

1. सभी राज्यों/UTs को अंतिम समय-सीमा में विस्तृत शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश (Compliance Affidavit)

यह शपथपत्र निम्न बिंदुओं पर आधारित होगा:

  • कितने पुलिस स्टेशनों में CCTV कैमरे स्थापित किए गए?
  • कितने स्थानों पर अभी भी इंस्टॉलेशन बाकी है?
  • DVR/स्टोरेज क्षमता 18 महीने के लिए पर्याप्त है या नहीं?
  • मेंटेनेंस और मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी किसे सौंपी गई है?
  • बजट आवंटन कब और कितना किया गया?

2. समय सीमा पूरी न करने पर कड़ा कदम

यदि कोई राज्य या UT निर्धारित समय सीमा तक कम्प्लायंस फाइल करने में विफल रहता है, तो संबंधित गृह सचिव/अतिरिक्त सचिव को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होना पड़ेगा

यह अपने आप में एक कठोर आदेश है— जो इस बात की गवाही देता है कि अब न्यायालय ढिलाई को सहन नहीं करेगा।

3. केंद्र सरकार के लिए भी निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि—

  • राज्यों को फंड उपलब्ध कराने
  • तकनीकी सहायता देने
  • मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित करने

के लिए समयबद्ध योजना प्रस्तुत करे।


क्यों आवश्यक हैं पुलिस स्टेशनों में CCTV कैमरे?

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मूल उद्देश्य पुलिस प्रणाली में जवाबदेही (Accountability) और पारदर्शिता (Transparency) सुनिश्चित करना है। इसके प्रमुख लाभ हैं:

1. हिरासत में उत्पीड़न रोकने का प्रभावी तरीका

अक्सर बंद कमरों और लॉकअप में पुलिस के व्यवहार पर सवाल उठते हैं। CCTV फुटेज इन आरोपों की जांच में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

2. झूठे आरोपों से पुलिस की भी रक्षा

कई मामलों में पुलिस पर झूठे आरोप लगाए जाते हैं। CCTV फुटेज पुलिस को भी बचाव के ठोस प्रमाण देता है।

3. न्यायिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण साक्ष्य

CCTV फुटेज FIR, मजिस्ट्रेट जांच, अदालतों में मुकदमों आदि में एक तटस्थ साक्ष्य बन जाता है।

4. जनता का सिस्टम पर विश्वास बढ़ता है

पुलिस स्टेशनों में कैमरे लगे होने से जनता में विश्वास और सुरक्षा की भावना बढ़ती है।

5. संविधान के अनुच्छेद 21 का संरक्षण

जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में कस्टोडियल सुरक्षा शामिल है। CCTV निगरानी इससे जुड़े कई मूलभूत अधिकारों को सुरक्षित बनाती है।


पुलिस सुधारों के संदर्भ में यह आदेश क्यों महत्वपूर्ण?

भारत में पुलिस सुधार लंबे समय से लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट के Prakash Singh vs Union of India फैसले में कई महत्वपूर्ण सुधारों की बात कही गई थी, लेकिन अधिकतर लागू नहीं हो पाए।

इस परिप्रेक्ष्य में CCTV स्थापना का आदेश एक व्यावहारिक पुलिस सुधार है जो तुरंत लागू होकर परिणाम दे सकता है।
यह आदेश पुलिस थानों को—

  • अधिक प्रोफेशनल
  • अधिक जवाबदेह
  • अधिक आधुनिक

बनाने की दिशा में मजबूत कदम है।


राज्यों की दलीलें: बजट, तकनीकी मुद्दे और व्यवहारिक कठिनाइयाँ

कई राज्यों ने जब कोर्ट के सामने अपनी देरी का स्पष्टीकरण दिया, तो उन्होंने बताया—

  • कई ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली और इंटरनेट की समस्या
  • पुराने पुलिस भवनों में इंस्टॉलेशन की कठिनाइयाँ
  • DVR स्टोरेज महंगा
  • बजट की कमी
  • मेंटेनेंस स्टाफ की उपलब्धता

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को स्वीकार नहीं किया। कोर्ट ने कहा—

“यदि सरकार स्मार्ट सिटी और हाई-टेक प्रोजेक्ट्स पर हजारों करोड़ खर्च कर सकती है, तो पुलिस स्टेशनों में CCTV लगाने में वित्तीय समस्या कैसे हो सकती है?”


CCTV की तकनीकी आवश्यकताएँ और न्यायालय के निर्देश

न्यायालय ने पिछले आदेशों में स्पष्ट किया था कि—

  1. कैमरे में हाई-क्वालिटी नाइट विजन हो
  2. 24×7 रिकॉर्डिंग सक्षम हो
  3. डाटा कम से कम 18 महीने तक सुरक्षित रखे जाएं
  4. फुटेज का बैकअप सुरक्षित हो
  5. हर जिले में डिस्ट्रिक्ट लेवल ओवरसाइट कमेटी हो
  6. हर पुलिस स्टेशन में इंस्टॉल्ड कैमरों की सूची और स्थिति रिपोर्ट हो

इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकांश राज्यों ने इन निर्देशों का पालन “आंशिक” या “बहुत कमजोर” तरीके से किया है।


सुप्रीम कोर्ट का संदेश: कानून के शासन में कोई समझौता नहीं

न्यायालय ने अपने निर्देश में दोहराया कि—

“कस्टोडियल टॉर्चर लोकतंत्र के लिए अभिशाप है। CCTV केवल तकनीक नहीं, यह नागरिक अधिकारों की रक्षा का हथियार है।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि कोई राज्य इन निर्देशों का पालन नहीं करता, तो यह अदालती आदेश की अवमानना होगी।


फैसले के व्यापक प्रभाव

1. पुलिस थानों में अधिक अनुशासन और निगरानी

कर्मचारियों को पता होगा कि हर गतिविधि रिकॉर्ड हो रही है।

2. कस्टोडियल डेथ और यातना मामलों में कमी

यह आदेश मानवाधिकार संरक्षण का मजबूत साधन बन सकता है।

3. पुलिस और जनता के बीच विश्वास में बढ़ोतरी

एक पारदर्शी माहौल तनाव कम करता है।

4. न्यायालयों में निर्णय तेजी से

फुटेज वस्तुनिष्ठ साक्ष्य के रूप में मुकदमों में मदद करेगा।

5. राज्यों को पुलिस सुधारों पर सक्रियता से कार्य करना होगा

न्यायालय की चेतावनी ने राज्यों को दबाव में ला दिया है।


आलोचनात्मक दृष्टि: केवल कैमरे ही पर्याप्त नहीं

कुछ विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि CCTV व्यवस्था तभी प्रभावी होगी जब:

  • फुटेज को छेड़छाड़-मुक्त रखा जाए
  • स्वतंत्र निकाय निगरानी करे
  • फुटेज की मांग पर पुलिस गोल-मोल जवाब न दे
  • मेंटेनेंस और निरीक्षण नियमित हो

अर्थात यह प्रणाली तभी सफल होगी जब कैमरों के साथ मजबूत प्रशासनिक संरचना भी बने।


निष्कर्ष : पुलिस सुधारों की दिशा में ऐतिहासिक कदम

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्याय-व्यवस्था में पारदर्शिता, मानवाधिकार संरक्षण और पुलिस जवाबदेही स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर है।
इससे ये स्पष्ट संदेश जाता है कि—

  • आदेशों की अवहेलना बर्दाश्त नहीं होगी
  • मानवाधिकार सर्वोपरि हैं
  • आधुनिक निगरानी तंत्र लोकतंत्र की मजबूती के लिए अनिवार्य है

       राज्यों को अब किसी भी स्थिति में CCTV स्थापना और विस्तृत कम्प्लायंस रिपोर्ट दाखिल करनी ही होगी।
अन्यथा उन्हें न्यायालय के कठोर रुख का सामना करना पड़ेगा।