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भारत के सबसे बड़े बैंक फ्रॉड मामलों में महत्वपूर्ण मोड़ : संदेसरा समूह के ₹5,100 करोड़ चुकाने की पेशकश पर सुप्रीम कोर्ट ने बंद किए केस

भारत के सबसे बड़े बैंक फ्रॉड मामलों में महत्वपूर्ण मोड़ : संदेसरा समूह के ₹5,100 करोड़ चुकाने की पेशकश पर सुप्रीम कोर्ट ने बंद किए केस

       भारत में बैंकिंग सेक्टर से संबंधित बड़े वित्तीय घोटाले पिछले दशक में लगातार सुर्खियों में रहे हैं। विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, IL&FS संकट और PMC बैंक घोटाले के बाद संदेसरा–स्टर्लिंग बायोटेक ग्रुप का मामला भी देश के सबसे जटिल बैंक धोखाधड़ी मामलों में से एक माना जाता है। इस मामले में हजारों करोड़ रुपये के बैंक ऋण डुबोने, मनी लॉन्ड्रिंग, हवाला और फर्जी कंपनियों के नेटवर्क से धन के अवैध हस्तांतरण जैसे गंभीर आरोप लगे थे।

        हालांकि, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़े कई आपराधिक मुकदमों को रद्द (quash) कर दिया है, क्योंकि समूह के संचालकों ने बैंकों को ₹5,100 करोड़ रुपये का भुगतान करने पर सहमति जताई है। यह फैसला न केवल न्यायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की आर्थिक नीति, बैंकों की रिकवरी रणनीति, और आपराधिक कानून की भूमिका पर अनेक गंभीर प्रश्न भी खड़े करता है।

       यह लेख इस सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करता है—मामले की पृष्ठभूमि, जांच एजेंसियों की कार्रवाई, कानूनी तर्क, सुप्रीम कोर्ट की reasoning, बैंकिंग व्यवस्था पर प्रभाव, और इस निर्णय से जुड़ी संभावित आलोचनाएँ।


मामले की पृष्ठभूमि : स्टर्लिंग ग्रुप और संदेसरा परिवार

स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड, स्टर्लिंग SEZ, स्टर्लिंग इंटरनेशनल, PMT मशीनरी, और अन्य संबद्ध कंपनियाँ संदेसरा परिवार द्वारा संचालित थीं।

मुख्य आरोपी:

  • नितिन संदेसरा
  • चेतन संदेसरा
  • दीप्ति संदेसरा
  • हितेन पटेल

      माना जाता है कि इन कंपनियों ने कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों—जैसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), बैंक ऑफ इंडिया, PNB, यूको बैंक, आंध्रा बैंक सहित दर्जनों बैंकों से ₹8,000–₹10,000 करोड़ तक के ऋण लेकर उन्हें NPA में बदल दिया।


आरोप : फर्जी बिलिंग, हवाला, शेल कंपनियाँ और मनी लॉन्ड्रिंग

जांच एजेंसियों — CBI, ED, आयकर विभाग — ने आरोप लगाया था कि:

  • बड़ी मात्रा में ऋण की राशि फर्जी कंपनियों में siphon off की गई।
  • विदेशों में हवाला नेटवर्क के माध्यम से धन भेजा गया।
  • वास्तविक व्यवसाय के बजाय बैलेंस शीट को कृत्रिम रूप से inflate कर बैंकों को धोखा दिया गया।
  • दुबई, नाइजीरिया, अज़रबैजान जैसे देशों में ठिकाने बनाए गए।
  • समूह ‘ABS सेटलमेंट ग्रुप’ नाम से विदेशों में operate करता रहा।

2018 में ED ने इस मामले को “भारत के सबसे बड़े बैंक फ्रॉड मामलों में से एक” बताया था।


जांच और आपराधिक मुकदमे

इस मामले में कई आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए:

  • CBI FIRs
  • ED द्वारा PMLA केस
  • बैंक कर्मचारियों और समूह के अधिकारियों पर आरोप
  • संपत्तियों की कुर्की
  • बहु-स्तरीय चार्जशीट

आरोपितों पर धारा 420 (cheating), 406 (criminal breach of trust), 409, 120B (criminal conspiracy), Prevention of Corruption Act, और PMLA 2002 के अंतर्गत कठोर धाराएँ लगाई गई थीं।


संदेसरा परिवार का विदेश पलायन

2017–18 के दौरान संदेसरा परिवार भारत छोड़कर:

  • अज़रबैजान
  • नाइजीरिया
  • UAE

में रहने लगा। भारत सरकार की प्रत्यर्पण कोशिशों में समय लगा, लेकिन आरोपित खुद को “politically persecuted” बताते रहे।
हालाँकि, बैंकों से बातचीत के दौरान वे लगातार अपना दावा करते रहे कि वे राशि चुकाने के इच्छुक हैं


बैंकों और समूह के बीच Settlement Talks

2022–24 के दौरान बैंकों ने One-Time Settlement (OTS) और compromise settlement का विकल्प अपनाया।
आरोपितों ने कहा:

  • वे ₹5,100 करोड़ तत्काल और शेष राशि चरणबद्ध रूप से देने को तैयार हैं
  • बैंक इस सूत्र से अधिकतम वसूली कर सकते हैं
  • कानूनी प्रक्रिया दशकों चल सकती है, इसलिए settlements अधिक व्यावहारिक हैं

NCLT और बैंकों की समिति ने आर्थिक दृष्टिकोण से इसे व्यवहार्य माना।


सुप्रीम कोर्ट में मामला : आपराधिक मामलों को बंद करने की मांग

जब बैंकों और समूह के बीच भुगतान को लेकर समझौता होने लगा, तब आरोपितों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की कि:

  • यदि हम बैंकों को पूर्ण भुगतान कर रहे हैं
  • और कोई monetary loss नहीं हो रहा
  • तो आपराधिक मुकदमे जारी रखने का कोई उद्देश्य नहीं बनता
  • यह एक “commercial dispute” है
  • और PMLA व CBI के तहत आपराधिक मुकदमे समाप्त किए जाने चाहिए

सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा:

  • यह मामला मुख्यतः बैंकिंग व ऋण विवाद है
  • बैंकों को ₹5,100 करोड़ देने की सहमति सार्वजनिक हित में है
  • जब complainant (बैंक) स्वयं compromise कर रहा है
  • तो आपराधिक मुकदमे जारी रखने का औचित्य कम हो जाता है
  • आपराधिक मुकदमे का उद्देश्य दंड नहीं बल्कि क्षति की पूर्ति और न्याय है
  • यदि नुकसान की भरपाई हो जाए, तो मुकदमे रद्द किए जा सकते हैं

हालाँकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया:

  • यह आदेश साधारण नियम नहीं बन सकता
  • यह मामला “विशेष परिस्थितियों (extraordinary circumstances)” में तय किया गया है
  • corruption के मामलों में compromise आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता
  • अदालत ने केवल इसलिए हस्तक्षेप किया क्योंकि मामला लम्बे समय से रिकवरी और मुकदमों के बीच फंसा हुआ था

क्यों महत्वपूर्ण है यह निर्णय?

1. बैंकों के लिए बड़ी रिकवरी

बड़े NPA मामलों में अक्सर रकम वसूलना कठिन होता है।
यदि ₹5,100 करोड़ की वसूली हो जाती है, तो यह सरकारी बैंकों के लिए सकारात्मक परिणाम है।

2. लंबी आपराधिक प्रक्रिया को समाप्त किया गया

यह मामला लगभग 15–20 वर्षों से चल रहा था।
अदालत ने कहा कि अनंतकाल तक मुकदमे चलाना न्यायिक संसाधनों की बर्बादी है।

3. आर्थिक नुकसान की भरपाई को प्राथमिकता

सुप्रीम कोर्ट ने माना:

“जब आर्थिक क्षति की भरपाई संभव हो और शिकायतकर्ता स्वयं settlement के पक्ष में हो, तो आपराधिक दंड का उद्देश्य गौण हो सकता है।”

4. अन्य वित्तीय घोटालों के लिए उदाहरण?

यह निर्णय भविष्य में बड़े वित्तीय धोखाधड़ी मामलों में भी एक मिसाल के रूप में लिया जा सकता है — हालांकि कोर्ट ने सावधानी बरतने की सलाह भी दी है।


आलोचना : क्या यह निर्णय ‘बड़े आरोपियों’ को राहत देता है?

इस फैसले पर कई कानूनी विशेषज्ञों ने प्रश्न उठाए हैं:

1. क्या पैसा देकर आपराधिक मुकदमे रद्द किए जा सकते हैं?

कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि यह संदेश देता है कि:

“अगर आप बड़े हैं, तो पैसा देकर फौजदारी मामलों से बच सकते हैं।”

2. PMLA जैसे कठोर कानून का उद्देश्य?

ED आमतौर पर तर्क करती है कि वित्तीय अपराध मूलतः “धन” का नहीं बल्कि “अपराध से अर्जित धन” (proceeds of crime) का विषय है, जिसे settlement से समाप्त नहीं किया जा सकता।

3. भ्रष्टाचार के मामलों पर असर

यदि बैंक अधिकारी भी शामिल थे, तो यह केवल commercial dispute नहीं कहा जा सकता।

4. छोटे ऋणदाताओं और जमाकर्ताओं की स्थिति

जो बैंक NPA से प्रभावित हुए, उनकी भरपाई हो जाएँगी, लेकिन:

  • राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था
  • जमा पूंजी
  • बैंकिंग मानक

पर इसके दीर्घकालिक प्रभावों की चिंता भी है।


समर्थन : न्यायिक व्यावहारिकता का दृष्टिकोण

फैसले के समर्थक कहते हैं:

1. बैंकों के लिए सर्वोत्तम विकल्प

कानूनी लड़ाई वर्षों चलती, लेकिन वसूली अनिश्चित रहती।
₹5,100 करोड़ की तत्काल उपलब्धता व्यावहारिक समाधान है।

2. न्यायिक समय की बचत

अदालतों पर गैर-ज़रूरी भार कम होगा।

3. मुकदमों का उद्देश्य क्षतिपूर्ति

आर्थिक अपराधों में क्षति की भरपाई सर्वोच्च उद्देश्य माना जाता है — जो यहाँ पूर्ण हो रहा है।

4. Settlement हमेशा अवैध नहीं

कई व्यावसायिक मामलों में समझौता सर्वोत्तम समाधान होता है।


सुप्रीम कोर्ट का संतुलित दृष्टिकोण

कोर्ट ने न तो आरोपितों को “पूरी तरह क्लीन चिट” दी,
और न ही केवल settlement के कारण उन्हें बच निकलने दिया।

इसके बजाय अदालत ने कहा:

  • यह एक “unique fact situation” है
  • समझौते का लाभ complainant (बैंक) और सार्वजनिक हित दोनों को है
  • इसलिए विशेष परिस्थितियों में हस्तक्षेप उचित है

आगे क्या?

1. सभी मुकदमे समाप्त नहीं हुए हैं

कुछ अन्य मामले—विशेषकर ED की जांच—अब भी जारी रह सकते हैं।

2. धनराशि का वास्तविक भुगतान महत्वपूर्ण

अदालत का आदेश conditional है:

  • आरोपितों को पूरा भुगतान करना होगा
  • तभी आपराधिक मामलों का समापन प्रभावी माना जाएगा

3. अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत प्रभाव

विदेशों में चल रही प्रक्रियाओं पर भी इसका असर पड़ेगा।


निष्कर्ष : वित्तीय अपराध, न्याय और आर्थिक व्यावहारिकता का जटिल संतुलन

      संदेसरा–स्टर्लिंग समूह का मामला भारत के आर्थिक अपराधों की दुनिया में एक बड़े मोड़ का संकेत देता है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा आपराधिक मुकदमों को रद्द करने का निर्णय:

  • आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक
  • न्यायिक दृष्टि से संतुलित
  • लेकिन संभावित रूप से विवादास्पद

माना जा सकता है।

इस फैसले ने यह स्पष्ट किया है कि अदालतें केवल कानूनी कठोरता नहीं, बल्कि आर्थिक वास्तविकताओं और सार्वजनिक हित को भी महत्व देंगी।
लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया है कि यह निर्णय “नियम” नहीं बनेगा—केवल विशेष परिस्थितियों में ही ऐसा किया जा सकता है।