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सुप्रीम कोर्ट: “गलत ट्रेन में चढ़ने” का बहाना बनाकर रेलवे मुआवजा नहीं रोक सकता — एक महत्वपूर्ण फैसला

सुप्रीम कोर्ट: “गलत ट्रेन में चढ़ने” का बहाना बनाकर रेलवे मुआवजा नहीं रोक सकता — एक महत्वपूर्ण फैसला

       भारत में रेलवे प्रतिदिन लाखों यात्रियों को परिवहन सेवा प्रदान करता है और रेलवे सुरक्षा अधिनियम, उपभोक्ता संरक्षण सिद्धांत, तथा रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल अधिनियम के तहत यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का स्पष्ट दायित्व रेलवे पर है। यदि ट्रेन दुर्घटना, गिरने, धक्का लगने या अन्य किसी अनहोनी से कोई यात्री घायल होता है या मृत्यु हो जाती है, तो रेलवे पर मुआवजा देने का वैधानिक दायित्व बनता है।

        हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि रेलवे केवल इस आधार पर मुआवजा देने से इंकार नहीं कर सकता कि पीड़ित ‘गलत ट्रेन’ में चढ़ गया था। यह फैसला न केवल रेलवे दायित्व कानून की व्याख्या करता है, बल्कि गरीब एवं सामान्य यात्रियों के अधिकारों को सशक्त भी बनाता है।

नीचे इस ऐतिहासिक फैसले का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत है।


पृष्ठभूमि : मामला किस बारे में था?

      एक यात्री रेलवे स्टेशन पर अपनी निर्धारित ट्रेन पकड़ने के लिए उपस्थित था। प्लेटफॉर्म पर अफरातफरी थी, ट्रेनें करीब-करीब एक ही समय पर आ-जा रही थीं। भीड़, शोर और जल्दबाज़ी के कारण वह यात्री गलती से गलत ट्रेन में चढ़ गया।

        ट्रेन के चलते समय पांव फिसलने या धक्का लगने से वह नीचे गिर गया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। परिजनों ने रेलवे से मुआवजा (compensation) का दावा किया।

लेकिन रेलवे ने दावा खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि—

  • पीड़ित वैध यात्री नहीं था,
  • उसने गलत ट्रेन में चढ़कर “स्वयं जोखिम उठाया”,
  • इसलिए रेलवे किसी दुर्घटना के लिए जिम्मेदार नहीं है।

रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट ने भी रेलवे की बात मान ली।

आख़िरकार मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।


सुप्रीम कोर्ट का फैसला : “गलत ट्रेन में चढ़ना दुर्घटना को ‘अपवाद’ नहीं बनाता”

सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे और निचली अदालतों के निर्णय को गलत और अवैध बताते हुए कहा:

1. गलत ट्रेन में चढ़ना ‘स्वयं-जोखिम’ (Self-inflicted injury) नहीं है

यदि कोई यात्री गलती से गलत ट्रेन में चढ़ जाता है, तो इसे जानबूझकर किया गया कार्य नहीं माना जा सकता। भीड़, समय-तालिका की भ्रम स्थिति, प्लेटफॉर्म पर घोषणा की कमी — ये वास्तविक परिस्थितियाँ हैं।

2. Accident is an “untoward incident” under Section 123(c)(2) of Railways Act

रेलवे अधिनियम के अनुसार, किसी यात्री का ट्रेन से गिर जाना एक Untoward Incident है, जिसके लिए रेलवे पूर्ण रूप से जिम्मेदार है।

3. रेलवे अपने कर्तव्य से मुक्त नहीं हो सकता

रेलवे का वैधानिक दायित्व है:

  • प्लेटफॉर्म पर व्यवस्था
  • सुरक्षित चढ़ने-उतरने की स्थिति
  • ट्रेन की घोषणा
  • भीड़ प्रबंधन

यदि यह कर्तव्य सही से नहीं निभाए गए, तो गलत ट्रेन में चढ़ना भी रेलवे की लापरवाही के दायरे में आता है।

4. वैध टिकट होने पर यात्रा अधिकार खत्म नहीं होता

सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

“टिकट के रहते वह वैध यात्री है।
गलती से गलत ट्रेन में चढ़ने से ‘यात्री’ का दर्जा समाप्त नहीं होता।”

5. Compensation is statutory — इसे रोका नहीं जा सकता

मुआवजा अधिकार है, उपकार नहीं।


यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है? — विस्तृत विश्लेषण

यह फैसला कई कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है:


1. आम यात्री के अधिकार मजबूत हुए

भारत में रोज़ लाखों यात्री भीड़भाड़ वाले स्टेशनों पर यात्रा करते हैं। जरा सी चूक से गलत ट्रेन में चढ़ जाना आम बात है। रेलवे अक्सर इसी बहाने मुआवजा देने से बचता रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस रास्ते को पूरी तरह बंद कर दिया।


2. Railway की “Zero Liability” नीति पर रोक

रेलवे अक्सर इन बहानों से बचता था:

गलत ट्रेन में चढ़ा
प्लेटफ़ॉर्म बदल गया
दौड़ते समय गिर गया
अपने आपको जोखिम में डाला

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा:

“दुर्घटना चाहे कैसे भी हो — जब तक वह जानबूझकर खुद को नुकसान पहुँचाने का मामला नहीं है — रेलवे जिम्मेदार रहेगा।”


3. Poor & illiterate passengers के लिए राहत

भीड़भाड़, गलत घोषणा, कई ट्रेनें एक साथ आना — ऐसी स्थिति में कम-शिक्षित या अनजान यात्री गलत ट्रेन में चढ़ सकते हैं।
अब उनके परिवारों का मुआवजा सुरक्षित रहेगा।


सुप्रीम कोर्ट ने किन तर्कों के आधार पर रेलवे को दोषी माना?

सुप्रीम कोर्ट ने तीन प्रमुख तर्क दिए:


(1) Strict Liability लागू होती है

Railways Act 124A के अनुसार:

“रेलवे दुर्घटना में हुई मृत्यु पर रेलवे की strict liability है।”

इसमें railway की negligence साबित करना जरूरी नहीं होता।


(2) Passenger का गलत ट्रेन में चढ़ना ‘criminal act’ नहीं

यदि कोई व्यक्ति

  • बिना टिकट यात्रा करे
  • ट्रेन रोकने की कोशिश करे
  • जानबूझकर ट्रेन से कूदे

तो रेलवे मुआवजा रोक सकता है।
लेकिन गलत ट्रेन में चढ़ना इसमें नहीं आता।


(3) स्टेशन पर प्रबंधन में कमी

ट्रेन की घोषणा सही न होना,
प्लेटफ़ॉर्म पर अव्यवस्था,
भीड़ का ठीक से नियंत्रण न होना —
ये सब रेलवे की जिम्मेदारी है, यात्री की नहीं।


रेलवे के दायित्व (Duties of Railways) — सुप्रीम कोर्ट के अनुसार

फैसले में रेलवे पर निम्नलिखित जिम्मेदारियाँ पुनः स्पष्ट की गईं:

  1. साफ-सुथरी, स्पष्ट और समय पर घोषणा
  2. प्लेटफॉर्म पर पर्याप्त सुरक्षा
  3. यात्रियों को चढ़ने-उतरने में उचित समय देना
  4. गार्ड व ड्राइवर को प्लेटफॉर्म स्थिति पर ध्यान देना
  5. भीड़ प्रबंधन
  6. स्टेशन मास्टर की देखरेख सुनिश्चित करना

यदि इन जिम्मेदारियों में जरा भी कमी हो, तो मुआवजा रोकने का कोई अधिकार नहीं।


मुआवजा (Compensation) कितना मिलेगा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेलवे को:

  • ₹8,00,000 (आठ लाख) का वैधानिक मुआवजा देना ही होगा,
  • साथ में ब्याज (interest) भी जोड़ा जाएगा,
  • यदि दुर्घटना वर्ष पुरानी हो, तो ब्याज भारी हो सकता है।

न्यायालय ने कहा कि यह राशि “non-negotiable” है।


यह फैसला किन मामलों पर लागू होगा?

यह निर्णय निम्न स्थितियों वाले सभी मामलों पर लागू होता है:

  • गलत ट्रेन में चढ़ना
  • ट्रेन पकड़ते समय गिरना
  • धक्का लगकर गिरना
  • भीड़ के कारण पांव फिसलना
  • चलती ट्रेन में चढ़ने के दौरान दुर्घटना
  • गलत प्लेटफ़ॉर्म घोषणा के कारण दुर्घटना

हर स्थिति में मुआवजा मिलेगा।


रेलवे की दलीलें क्यों खारिज की गईं?

रेलवे ने कहा:

  1. पीड़ित ने गलत ट्रेन में चढ़कर “लापरवाही” की
  2. यह self-inflicted injury है
  3. यह accident की श्रेणी में नहीं आता

सुप्रीम कोर्ट ने कहा — सब गलत।

क्योंकि:

  • यह जानबूझकर किया गया कृत्य नहीं
  • यह एक दुर्घटना है
  • रेलवे की strict liability लागू होती है

फैसले का सामाजिक महत्व

यह फैसला न सिर्फ कानूनी दृष्टि से मजबूत है बल्कि सामाजिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है:

गरीब यात्रियों को सुरक्षा

रेलवे की जवाबदेही तय

न्यायिक व्यवस्था का मानवीय दृष्टिकोण

यात्री अधिकारों का विस्तार


निष्कर्ष : एक ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस सिद्धांत को पुनः स्थापित करता है:

“रेलवे सार्वजनिक सेवा है — इसमें लापरवाही या बहानेबाज़ी की कोई जगह नहीं।”

रेलवे अब यह नहीं कह सकता कि:

  • “पीड़ित गलत ट्रेन में चढ़ा था इसलिए हम मुआवजा नहीं देंगे।”

हर वह व्यक्ति, जिसके पास वैध टिकट है, और जो रेल परिसर में हुआ खतरा झेल रहा है — वह पूर्ण संरक्षण और मुआवजे का हकदार है।

यह निर्णय करोड़ों यात्रियों की सुरक्षा को मजबूती देने वाला ऐतिहासिक निर्णय है।