IndianLawNotes.com

“BNS की धारा 217 और 248: झूठी जानकारी, फ़र्ज़ी मामलों और दुरुपयोग पर सख़्त प्रावधान

“BNS की धारा 217 और 248: झूठी जानकारी, फ़र्ज़ी मामलों और दुरुपयोग पर सख़्त प्रावधान — महिला हो या पुरुष, सभी पर समान दंड”

लेख परिचय

भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS), 2023 भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक नया और व्यापक सुधार लेकर आई है। इस संहिता का उद्देश्य अपराधों की आधुनिक परिस्थितियों के अनुसार पुनर्संरचना करना, कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाना और न्यायिक प्रणाली को अधिक प्रभावी एवं पारदर्शी बनाना है।

इसी संदर्भ में, BNS की धारा 217 और धारा 248 विशेष रूप से उन स्थितियों में लागू होती हैं, जहाँ कोई व्यक्ति — चाहे वह पुरुष हो या महिला — जानबूझकर गलत या भ्रामक जानकारी देकर किसी अन्य को नुकसान पहुँचाने का प्रयास करता है, या झूठे आरोप लगाकर फ़र्ज़ी केस दर्ज कराता है

आज के समय में झूठे मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है — चाहे वह विवाह विवाद, दहेज, घरेलू हिंसा, बलात्कार या अन्य किसी प्रकार की आपराधिक शिकायत से जुड़ा हो। ऐसे मामलों से न केवल निर्दोष व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट होती है, बल्कि न्याय व्यवस्था पर एक अतिरिक्त बोझ भी पड़ता है।

BNS 2023 में इन अपराधों को बेहद गंभीर श्रेणी में रखा गया है और लिंग-निरपेक्ष (gender-neutral) बनाते हुए स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई महिला भी झूठी शिकायत करती है, तो उस पर वैसी ही कार्यवाही होगी जैसी किसी पुरुष पर होती


भाग 1: BNS की धारा 217 — लोक सेवक को झूठी जानकारी देना

1. धारा 217 क्या कहती है?

यह धारा उन मामलों पर लागू होती है जब:

  • कोई व्यक्ति लोक सेवक (जैसे पुलिस अधिकारी) को
  • जानबूझकर झूठी, भ्रामक या गुमराह करने वाली जानकारी देता है
  • ताकि किसी अन्य व्यक्ति को कानूनी चोट/हानि पहुँचाई जा सके
  • या जांच को गलत दिशा में मोड़ा जा सके।

यह अपराध इसलिए गंभीर माना गया है क्योंकि लोक सेवक का निर्णय नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति और प्रतिष्ठा को प्रभावित करता है।

यदि कोई जानबूझकर गलत तथ्य प्रस्तुत करता है और पुलिस को गुमराह करता है, तो इसका परिणाम किसी निर्दोष व्यक्ति की गिरफ्तारी, झूठे मुकदमे या सामाजिक सम्मान का नष्ट होना हो सकता है।


2. धारा 217 के तहत दंड

यदि यह साबित हो जाए कि व्यक्ति ने जानबूझकर लोक सेवक को गलत जानकारी दी:

  • कैद की सजा
    • अवधि: 3 वर्ष तक
  • जुर्माना
    • कोर्ट के विवेक अनुसार
  • या दोनों

यह सजा इस उद्देश्य से बनाई गई है कि कोई भी व्यक्ति पुलिस को गुमराह न करे और न्याय प्रशासन पर आंच न आए।


3. धारा 217: महिला पर भी समान सजा

BNS पूरी तरह gender-neutral कानून है।
इसका अर्थ:

  • यदि कोई महिला झूठी कहानी बनाकर पुलिस में शिकायत करती है
  • झूठा उत्पीड़न, दहेज, बलात्कार, छेड़छाड़, मारपीट आदि का आरोप लगाती है
  • और बाद में सिद्ध हो जाता है कि उसकी शिकायत झूठी थी

तो उसी पर धारा 217 के तहत कार्यवाही की जा सकती है।

उदाहरण

  • महिला प्रेम-प्रसंग में विफल होने पर झूठा बलात्कार आरोप लगा देती है।
  • महिला झूठी घरेलू हिंसा या दहेज उत्पीड़न की FIR दर्ज कराती है।
  • महिला पड़ोसियों या रिश्तेदारों पर गलत आरोप लगाकर पुलिस को गुमराह करती है।

इन सभी स्थितियों में यदि जांच में शिकायत झूठी सिद्ध होती है, तो महिला के खिलाफ FIR दर्ज हो सकती है।


भाग 2: BNS की धारा 248 — चोट पहुँचाने के इरादे से झूठे आरोप लगाना

1. धारा 248 का दायरा

धारा 248 विशेष रूप से उन परिस्थितियों में लागू होती है, जहाँ:

  • व्यक्ति दुर्भावनापूर्ण इरादे से
  • किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ झूठा आपराधिक मामला खड़ा करता है
  • ताकि उसे सामाजिक, आर्थिक या कानूनी रूप से हानि पहुँचाई जा सके

यह अपराध समाज में अत्यंत गंभीर माना गया है क्योंकि:

  • इससे निर्दोष व्यक्ति जेल जा सकता है
  • उसका करियर और प्रतिष्ठा नष्ट हो सकती है
  • समाज में गलत संदेश जाता है
  • न्याय-व्यवस्था पर भारी बोझ बढ़ता है

2. धारा 248 के तहत दंड

यदि यह सिद्ध हो जाए कि मामला पूरी तरह से झूठा, fabricated, या दुर्भावना से प्रेरित है, तो आरोपी को:

  • 7 वर्ष तक की कैद
  • जुर्माना
  • या दोनों

यह सजा कई गंभीर अपराधों के बराबर रखी गई है क्योंकि झूठा मामला दर्ज करना स्वयं एक अत्यंत गंभीर अपराध है।


3. धारा 248 के महत्वपूर्ण तत्व

इस धारा के तहत अपराध सिद्ध होने के लिए कोर्ट यह देखती है:

  • क्या आरोप का कोई वास्तविक आधार था?
  • क्या शिकायतकर्ता का इरादा स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण था?
  • क्या तथ्य जानबूझकर गलत प्रस्तुत किए गए?
  • क्या आरोपी ने नुकसान पहुँचाने का पूर्वनियोजित प्रयास किया?

यदि कोर्ट को लगता है कि शिकायत का उद्देश्य केवल बदला लेना, उत्पीड़न करना, पैसा वसूलना या झूठा दबाव बनाना है—
तो शिकायतकर्ता को दंडित किया जा सकता है।


भाग 3: महिला द्वारा झूठा मामला दर्ज करने पर सजा — अब कानून सख्त

BNS में बड़ा परिवर्तन:

पहले कई आपराधिक प्रावधान केवल महिलाओं के हित में बनाए गए थे, लेकिन उनका दुरुपयोग भी व्यापक था।
अब BNS स्पष्ट करता है कि:

  • कानून केवल पीड़ित के लिए नहीं है
  • बल्कि न्याय के लिए है
  • और किसी भी महिला द्वारा दुरुपयोग पर समान दंड होगा

कब-कब महिला पर कार्रवाई संभव?

  • झूठा दहेज उत्पीड़न (498A संबंधित शिकायतें झूठी सिद्ध होना)
  • झूठा बलात्कार/attempt to rape आरोप
  • झूठा घरेलू हिंसा आरोप
  • झूठा SC/ST Atrocities Act केस
  • प्रेम संबंध टूटने पर बदला लेने हेतु शिकायत
  • झूठी मारपीट या धमकी की FIR

इन सभी मामलों में यदि पुलिस या कोर्ट यह पाती है कि:

  • शिकायत fabricated थी
  • कोई सबूत नहीं था
  • बयान विरोधाभासी थे
  • इरादा प्रतिशोध था

तो महिला को इसी धारा के तहत जेल हो सकती है।


भाग 4: झूठे मामलों से न्याय व्यवस्था को होने वाले नुकसान

1. न्यायिक संसाधनों का दुरुपयोग

कोर्ट का समय असली अपराधों के बजाय झूठी कहानियों पर खर्च होता है।

2. निर्दोष व्यक्तियों की यातना

  • गिरफ्तारी
  • समाज में अपमान
  • मानसिक आघात
  • परिवार का टूटना
  • नौकरी छूटना
  • आर्थिक नुकसान

3. असली पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी

जब झूठी शिकायतें बढ़ती हैं, तो असली पीड़ित की आवाज दब जाती है।

4. कानून के प्रति अविश्वास

लोग मानने लगते हैं कि कोई भी किसी पर झूठा केस कर सकता है।


भाग 5: धारा 217 और 248 के तहत मामला कैसे बनता है?

(A) प्रक्रिया

  1. असली शिकायत की पुलिस जांच
  2. जांच में झूठे तथ्यों का खुलासा
  3. आरोपी (शिकायतकर्ता) के खिलाफ धारा 217/248 में केस दर्ज
  4. कोर्ट में मुकदमा
  5. दोष सिद्ध होने पर सजा

(B) सबूतों की आवश्यकता

  • कॉल रिकॉर्ड
  • चैट हिस्ट्री
  • CCTV फुटेज
  • गवाह
  • मेडिकल रिपोर्ट (झूठी होने पर)
  • पुलिस जांच रिपोर्ट

भाग 6: केस लॉ — झूठे मामलों पर सजा के उदाहरण

उदाहरण

K.A. Abbas v. Sabu Joseph (Kerala High Court, 2023)
महिला द्वारा झूठे आरोप लगाए गए, जाँच में मामला fabricated निकला।
कोर्ट ने महिला पर ₹1,00,000 का compensation लगाया और सख्त टिप्पणी की कि:

“False litigation is a crime against justice.”

यह उदाहरण BNS के नए प्रावधानों की भावना से मेल खाता है।


भाग 7: बचाव के उपाय (यदि कोई व्यक्ति झूठे केस में फंस जाए)

  • धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट में शिकायत
  • धारा 482 (High Court) में झूठी FIR quash कराना
  • कोर्ट में प्रतिवाद करके compensation लेना
  • झूठी शिकायतकर्ता के खिलाफ धारा 217 और 248 के तहत कार्रवाई कराना
  • बदनामी के लिए civil damages claim करना
  • मानव अधिकार आयोग में शिकायत

निष्कर्ष

Bharatiya Nyaya Sanhita की धारा 217 (लोक सेवक को झूठी जानकारी देना) और धारा 248 (दुर्भावनापूर्ण झूठा आरोप लगाना) भारत की न्याय प्रणाली में एक बड़ा सुधार हैं।

ये कानून स्पष्ट रूप से बताते हैं कि:

  • झूठी FIR, fabricated कहानी, false allegations — अब किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।
  • चाहे शिकायतकर्ता महिला हो या पुरुष — दोष सिद्ध होने पर समान दंड मिलेगा।

यह प्रावधान न्याय व्यवस्था को अधिक पारदर्शी, सुरक्षित और विश्वसनीय बनाते हैं, तथा उन निर्दोष लोगों को राहत देते हैं जो झूठे मामलों से वर्षों तक परेशान रहे।