“अति शीघ्रता ही नहीं बल्कि प्रक्रियागत परिपक्वता चाहिए”—Supreme Court of India ने Mekedatu बांध प्रस्ताव पर Tamil Nadu की याचिका को ‘अविलंबता पूर्व’ बताते हुए किया खारिज
प्रस्ताव व भूमि
भारत में अन्तर-राज्यीय नदियों और बाँध-प्रोजेक्ट्स का प्रश्न एक जटिल सामाजिक-राजनीतिक और कानूनी विषय रहा है। विशेष रूप से Cauvery River के मामले में Karnataka व Tamil Nadu के बीच लंबे समय से विवाद रहा है। इसके अंतर्गत Mekedatu नामक स्थान पर प्रस्तावित बाँध-परियोजना (‘Mekedatu balancing reservoir-cum-drinking water project’) ने फिर से तहलका मचा दिया है।
Tamil Nadu सरकार ने अपनी याचिका में इस प्रस्ताव को विरोध किया और Central Water Commission (CWC) द्वारा DPR तैयार-करने की अनुमति को रोकने की मांग की थी।
हालाँकि, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने Tamil Nadu की याचिका के संबंध में यह कहा कि “अभी रुके रहने की तैयारी नहीं हुई” और राज्य-सरकार की याचिका को फिलहाल खारिज कर दिया गया है, उसे ‘अविलंबता-पूर्व’ (premature) माना गया।
याचिकाविवरण एवं Tamil Nadu का पक्ष
Tamil Nadu ने तर्क दिया कि
- प्रस्तावित Mekedatu बाँध निर्माण-परियोजना CWC द्वारा DPR तैयार करने की अनुमति प्राप्त कर चुकी है, अर्थात 22-नवम्बर को अनुमति दी गई थी।
- इस अनुमति से, राज्य का दावा है, Cauvery नदी के प्रवाह-हिस्से में कमी आ सकती है, तथा राज्य के कृषि-क्षेत्र एवं जल-उपयोग पर प्रतिकूल असर हो सकता है।
- निर्णय लेने में सह-नदीय राज्यों (co-basin states) की सहमति नहीं ली गई है तथा मुख्य न्यायाधिकरण और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित वाटर अलोकेशन को प्रभावित करने का जोखिम है।
Tamil Nadu की इस दलील के आधार पर उन्होंने कहा कि किसी भी आगे की प्रक्रिया—विशेष रूप से DPR तैयार करना—यहाँ तक कि निर्माणपूर्व कार्य, तभी होनी चाहिए थी जब राज्य की सहमति एवं प्रासंगिक न्यायिक आदेश के अनुरूप हो।
Karnataka व केंद्र सरकार का जवाब
दूसरी ओर, Karnataka सरकार ने अपने पक्ष में प्रस्तुत किया कि
- Mekedatu प्रोजेक्ट का उद्देश्य मुख्य रूप से drinking water (बेंगलुरु एवं आसपास के क्षेत्र) की आपूर्ति व विद्युत उत्पादन है, न कि मुख्य रूप से सिंचाई विस्तार।
- प्रस्तावित जलसंग्रहण में ऐसे जल प्रवाह शामिल नहीं हैं जो Tamil Nadu के हिस्से को प्रभावित करेंगे, तथा कोर्ट द्वारा निर्देशित 177.25 TMcft की मात्रा जारी रखने की प्रतिबद्धता बनी हुई है।
- इसके अलावा, उन्होंने कहा कि Cauvery Water Management Authority (CWMA) के अधिकार क्षेत्र एवं सह-नदीय प्रक्रिया में किसी प्रकार की अनियमितता नहीं है।
केंद्र सरकार द्वारा भी CWC पर यह जिम्मेदारी थी कि वह प्रस्तावित DPR को देखते हुए सह-नदीय राज्य-विवाद एवं पर्यावरण-प्रभावों का परीक्षण करे।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय व टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि Tamil Nadu द्वारा दायर याचिका अभी उस स्थिति में नहीं पहुँच पाई है जहाँ कि कोर्ट DPR या परियोजना के आगे की मंजूरी या निर्माण को तुरंत रोकने का आदेश दे सके। इसलिए उन्होंने “No stay as of now” कहा।
साथ ही कोर्ट ने प्रशासनिक एवं न्यायिक प्रक्रिया की आवश्यकताओं को रेखांकित किया:
- यह देखा जाना बाकी है कि DPR तैयार होने के बाद क्या पर्यावरण विभाजन, सह-नदीय विचार, जल प्रवाह-मानदंड आदि की पूरी प्रक्रिया हुई है या नहीं।
- कोर्ट ने कहा कि “अभी तक प्रक्रिया नीती, विज्ञापन, तकनीकी अध्ययन पूरी तरह सामने नहीं आई है, इसलिए याचिका ‘premature’ मानी जाएगी।”
- कोर्ट ने CWC, Karnataka व केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया है, और इस मामले की आगे की सुनवाई के लिए एक माह का समय दिया गया है।
इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने प्रमुख रूप से यह कहा कि न्याय सिर्फ निष्कर्ष देने की प्रक्रिया नहीं है — बल्कि परिपूर्ण प्रक्रिया, सुनाव, साक्ष्य-अधिग्रहण तथा सह-नदीय सहयोग सुनिश्चित करने की प्रक्रिया है।
कानूनी एवं संवैधानिक दृष्टिकोण
- जल वितरण व अधिकार: देयagua किस राज्य को कौन-से हिस्से का पानी मिलेगा, यह Cauvery Water Disputes Tribunal व सुप्रीम कोर्ट के आदेशों द्वारा निर्धारित हुआ है। Tamil Nadu का तर्क है कि Mekedatu जैसे बाँध प्रस्ताव से वह भाग कम हो सकता है।
- प्रक्रिया-विहीन निर्णय का जोखिम: सुप्रीम कोर्ट ने यह रेखांकित किया है कि केवल प्रस्ताव-मंजूरी मिलना पर्याप्त नहीं—Environmental Impact Assessment (EIA), Terms of Reference (ToR), सह-नदीय राज्य-सहमति, परियोजना रिपोर्ट (DPR) आदि महत्वपूर्ण हैं।
- संविधान-सिद्धांत व नदियों-में न्याय: भारत में नदियों के संबंध में उच्च-राज्यों व निम्न-राज्यों के बीच न्याय सुनिश्चित करना संघातित दायित्व है। किसी भी ऊपरी राज्य द्वारा निर्णय लेने में निम्न-राज्य की सहमति व प्रभाव-विश्लेषण अनिवार्य है।
- साधारण रूप से ‘premature’ कहा जाना क्यों?: जब याचिका उस चरण पर दायर नहीं हुई जहाँ सभी तकनीकी/प्रक्रियात्मक पहल पूरी हो चुकी हों, तब न्यायालय उसे आगे बढ़ने योग्य नहीं समझता। यह न्याय की रक्षा-प्रक्रिया का हिस्सा है।
सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव व चुनौतियाँ
- क्षेत्रीय तनाव: Mekedatu मामला केवल तकनीकी बाँध-प्रस्ताव नहीं है, यह Karnataka व Tamil Nadu के बीच जल-स्रोत, राजनीतिक प्रतिष्ठा व ग्रामीण-कृषि हितों का संवेदनशील विषय है। Tamil Nadu ने विधानमंडल स्तर पर भी प्रतिवाद जताया है।
- जल-सुरक्षा व भविष्य-परिस्थिति: Bangalore-मेट्रो क्षेत्र व आसपास के क्षेत्रों में पेयजल-संवेदनशीलता है। Karnataka इस प्रस्ताव को Drinking Water एवं Power-स्रोत के रूप में देख रहा है। Tamil Nadu इसे अपने हिस्से के जल प्रवाह की कटौती के रूप में देख रहा है।
- वित्तीय व पर्यावरणीय बोझ: प्रस्तावित बाँध की लागत, पर्यावरणीय पुनर्स्थापन, वन/वन्यजीव प्रभाव, विस्थापन आदि विषय विवाद का हिस्सा हैं। इस कारण प्रक्रिया लंबी एवं जटिल होती जा रही है।
- संघीयता की कसौटी: इस प्रकार के परियोजनाओं में केंद्र-राज्य-राज्य (Upper riparian & Lower riparian) सहयोग का मॉडल परीक्षण पर है। यदि किसी राज्य को अन्य राज्य की चिंता को नजरअंदाज कर आगे बढ़ना होता है, तो यह संघीय संतुलन के लिए चिन्ह हो सकता है।
आगे का मार्ग व सुझाव
- सह-नदीय संवाद को तीव्र करें: Karnataka व Tamil Nadu को जल-स्रोत साझा-हित संवाद प्रारंभ करना होगा, जहाँ दोनों-का हित सुरक्षित हो।
- प्रक्रिया-पारदर्शिता सुनिश्चित करें: DPR, EIA, ToR, सह-नदीय सहमति, सार्वजनिक सुनवाई आदि को खुले रूप से जारी करना चाहिए ताकि निर्णय-दायित्व स्पष्ट हो।
- रियल-टाइम मॉनिटरिंग एवं डेटा साझा करें: नदी-प्रवाह, वर्षा, उपभोग डेटा, जलसंग्रह क्षमता आदि साझा कर विवाद को तथ्य-आधारित बनाया जा सकता है।
- न्यायालयीय मार्ग को अंतिम विकल्प बनाएं: सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में संकेत दिया है कि न्यायालय तभी हस्तक्षेप करेगा, जब प्रक्रिया पूरी हो चुकी हो और विवाद आगे बढ़ता हो। इसलिए हितधारकों को कोर्ट-के बाहर समाधान खोजने पर जोर देना चाहिए।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इस बात का प्रतीक है कि जल-वितरण व बाँध-निर्माण जैसी जटिल परियोजनाओं में ‘जल्दबाजी’ नहीं ‘ठोस प्रक्रिया’ मायने रखती है। Tamil Nadu की याचिका खारिज होकर यह संदेश गई है कि राज्यों को तकनीकी-व प्रक्रियात्मक अधूरेपन पर अनुमति नहीं मिल सकती।
इसलिए Mekedatu-मामले में अगला चरण केवल परियोजना निष्पादन नहीं, बल्कि सहमति-प्रक्रिया, तकनीकी विश्लेषण, न्यायिक मार्गदर्शन और संविधान-सदृश न्यायनिष्ठा होगा।