“भूमि अधिग्रहण मुआवजा: 50% राशि अब इंडेम्निटी बॉन्ड नहीं, बैंक गारंटी पर होगी जारी — दिल्ली हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश
प्रस्तावना
भूमि अधिग्रहण, बुनियादी ढाँचा विकास और सार्वजनिक हित से जुड़े विवादों में, मुआवजे का त्वरित विनियोजन एवं भूमि-हानीग्रस्तों (land-losers) को न्यायसंगत राहत पहुँचाना महत्वपूर्ण है। परन्तु इसके साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि सार्वजनिक कोष एवं अधिग्रहणकर्ता-एजेंसियों (विशेषतः सरकार और उसके उपक्रम) की वित्तीय स्थिति एवं सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी व्यवस्था सुव्यवस्थित हो। हाल ही में एक महत्वपूर्ण न्यायिक प्रवृत्ति उभरकर सामने आई है जिसका निचोड़ इस प्रकार है कि जब अधिग्रहण के बाद मुआवजा तय हो गया हो, परंतु विवाद या अपील अभी लंबित हो, तो ऐसे समय में पहले से बैठी शर्तें जैसे इंडेम्निटी बॉन्ड (indemnity bond) देने की आवश्यकता की तुलना में बैंक गारंटी (bank guarantee) देना अधिक उपयुक्त माना गया है। इस लेख का उद्देश्य इस प्रवृत्ति का विश्लेषण करना, इसके कारणों पर विचार करना, उपयुक्त नीति-सुझाव प्रस्तुत करना और अधिग्रहणकर्ता-एजेंसियों व भूमि-हानीग्रस्तों दोनों के दृष्टिकोण से लाभ-हानि का आकलन करना है।
१. पृष्ठभूमि एवं समस्या-परिस्थिति
जब कोई भूमि अधिग्रहित होती है और मुआवजा निर्धारित हो जाता है, तब अधिग्रहणकर्ता-एजेंसी (जैसे National Highways Authority of India – NHAI, राज्य क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण आदि) को उसे लाभग्रस्तों को देने का दायित्व होता है। किन्तु अक्सर बाद में मुआवजे के निर्धारण या विवादों (उच्च मुआवजा मांगे गए, अधिग्रहण की वैधता प्रतिवादित हो गई, अपील-प्रक्रिया लंबित रही) के कारण अधिग्रहणकर्ता-एजेंसी द्वारा पूरी राशि तुरंत नहीं दी जा सकती या देना सुरक्षित नहीं माना जाता।
ऐसे में न्यायालय अक्सर एक मध्यवर्ती व्यवस्था निर्धारित करते हैं: अधिग्रहणकर्ता राशि का एक भाग जमा कर दे, या लाभग्रस्तों को पहले कुछ प्रतिशत राशि (उदाहरण के लिए ५० %) दे दी जाए, शेष तब तक रोका जाए जब तक विवाद सुलझ न जाए या सुरक्षा न दी जाए। इससे लाभग्रस्तों को कुछ राहत मिलती है और अधिग्रहणकर्ता को यह आश्वस्ति कि पूरा मुआवजा बिना अड़चन के नहीं जाएगा।
लेकिन यहाँ प्रश्न उठता है कि इस “कुछ राशि पहले देने” की स्थिति में लाभग्रस्तों के सामने किस प्रकार की सुरक्षा-शर्तें लागू होनी चाहिए? प्रश्र यह है — क्या पर्याप्त है कि लाभग्रस्त एक इंडेम्निटी बॉन्ड (जिसमें वह वचन देता है कि यदि आगे कोई दोष निकलें तो राशि वापस देंगे) दें, अथवा बेहतर होगा कि वह बैंक गारंटी दे जो बैंक द्वारा थोक में गारंटीराशि देना सुनिश्चित करता है।
यहाँ न्यायालयों ने यह देखा कि इंडेम्निटी बॉन्ड अक्सर लाभग्रस्त के निजी वचन-पत्र के स्तर का होता है, जिसमें वित्तीय जोख़िम अधिक होता है और सार्वजनिक कोष की सुरक्षा कमजोर होती है; जबकि बैंक गारंटी अधिक विश्वसनीय होती है क्योंकि बैंक द्वारा लिखित गारंटी होती है जो “बिना विघ्न भुगतान” की स्थिति में बैंक से वसूली योग्य होती है। इस दृष्टि से, कई न्यायालयों ने ५० % मुआवजे की रिहाई-शर्त में बैंक गारंटी को इंडेम्निटी बॉन्ड की जगह स्वीकार किया है। उदाहरण के तौर पर, Punjab and Haryana High Court ने हाल ही में कहा है कि “The release of 50% of the compensation to land-losers shall be upon furnishing bank guarantee instead of indemnity bonds.”
अतः यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया-परिवर्तन है, जिसे ध्यान से समझना आवश्यक है।
२. न्यायिक प्रवृत्ति व तर्क
२.१ प्रमुख न्यायिक निर्देश
- उदाहरण के लिए, पंजाब एवं हरियाणा हाई-कोर्ट ने देखा कि एक अधिग्रहण मामले में जहाँ मुआवजे का धारा 36(2) के अंतर्गत हिस्सा स्थगित था, स्थानीय निष्पादन न्यायालय ने लाभग्रस्तों को ५० % मुआवजा देने की अनुमति दी, पर इंडेम्निटी बॉन्ड देने की शर्त रखी। एजेंसी ने इस शर्त को बदलने का अनुरोध किया कि इंडेम्निटी बॉन्ड के स्थान पर बैंक गारंटी दी जाए। न्यायालय ने इसे स्वीकार किया और कहा कि बैंक गारंटी सार्वजनिक कोष-रक्षा के दृष्टिकोण से अधिक सुदृढ़ है।
- इसी तरह, सर्वोच्च न्यायालय ने भी अधिग्रहण मुआवजे के मामले में यह कहा है कि ५० % राशि को बिना सुरक्षा के या हल्की सुरक्षा के जारी किया जा सकता है, और अवशिष्ट ५० % राशि पर सुरक्षा की जरूरत होती है।
२.२ तर्क व कारण
- सार्वजनिक कोष-सुरक्षा: जब राज्य/एजेंसी के नाम पर भारी राशि देनी हो, लाभग्रस्त द्वारा मात्र इंडेम्निटी बॉन्ड देने पर जोखिम अधिक रहता है कि अगर आगे विवाद पुनर्जीवित होता है, तो उसे वसूली करना कठिन हो सकता है। बैंक गारंटी में बैंक मुख्यदायी हो जाता है, जिससे जोखिम कम होता है।
- लाभग्रस्तों के हित में: लाभग्रस्त को भी जल्दी थोड़ा हिस्सा मिलना चाहिए ताकि उनकी आजीविका प्रभावित न हो। यदि राशि पूरी तरह रोकी जाए, तो उन्हें अत्यधिक प्रतिक्षा करनी पड़ेगी। इस दृष्टि से ५० % रिहाई-प्रावधान न्यायसंगत माना गया है।
- प्रक्रिया-मानक एवं समानता: यदि एक मामले में बैंक गारंटी लागू हो रही है, अन्य में सिर्फ इंडेम्निटी बॉन्ड लगाई जाए, तो असमानता उत्पन्न होगी। न्यायालय इसके समरूप प्रवाह को सुनिश्चित करना चाहते हैं।
- विवादात्मक स्थिति में संतुलन: विवाद लंबित हो सकती है, इसलिए ५० % राशि तुरंत देना और बाकी सुरक्षा पर अवाधित रखना एक व्यावहारिक संतुलन स्थापित करता है—लाभग्रस्त को राहत, राज्य को सुरक्षा।
३. प्रस्तावित प्रक्रिया-मॉडल एवं भूमिका
निम्नलिखित मॉडल-प्रस्ताव इस प्रवृत्ति के अनुरूप दिया जा सकता है:
३.१ जब मुआवजा तय हो गया हो लेकिन विवाद/अपील लंबित हो
- अधिग्रहणकर्ता-एजेंसी को निर्देश हो कि वह तय मुआवजे की पूरी राशि निर्दिष्ट अवधि में कोर्ट-निर्धारित निष्पादन खाते में जमा करें या सुनिश्चित करें कि राशि भुगतान योग्य हो।
- उस राशि का ५० % लाभग्रस्तों को जारी किया जाए, बशर्ते कि लाभग्रस्त या उनका प्रतिनिधि “बैंक गारंटी” द्वारा त्यागदायित्व स्वीकार कर लें।
- बैंक गारंटी का प्रारूप सुप्रीम कोर्ट/उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित मानक के अनुरूप हो, जिसमें बैंक को “बिना विचार/आपत्ति” भुगतान का दायित्व हो।
- बाकी ५० % राशि तब तक रोकी जाए जब तक विवाद न निपट जाए या खेप तय न हो जाए।
- यदि लाभग्रस्त बैंक गारंटी न दे सकें (उदाहरण के लिए उनके पास बैंक गारंटी देने की योग्यता नहीं है), तो वैकल्पिक साधन प्रेरित किया जा सकता है—पर इंडेम्निटी बॉन्ड को प्राथमिक रूप में नहीं रखा जाना चाहिए जब सार्वजनिक राशि प्रवाहित हो रही हो।
३.२ जब मुआवजा पूरी तरह निर्वाध हो गया हो
यदि मुआवजा विधिवत तय हो गया, विवाद समाप्त हो गया या अपील नहीं है, तो पूरी राशि लाभग्रस्त को बिना अतिरिक्त शर्त के दी जानी चाहिए; सुरक्षा-शर्तें कम-से-कम होनी चाहिए क्योंकि जोखिम कम हुआ है।
४. लाभ एवं चुनौतियाँ
४.१ लाभ
- भूमि-हानीग्रस्तों को जल्दी राहत मिलती है—५० % राशि जारी होने से भारी प्रतीक्षा से निजात मिलती है।
- अधिग्रहणकर्ता-एजेंसी और राज्य को दीर्घकालीन निधि-जोखिम कम होता है क्योंकि बैंक गारंटी अधिक ठोस सुरक्षा देती है।
- न्यायप्रक्रिया में एकरूपता आती है, जिससे क्षेत्र-विभिन्न व्यवहार कम होंगे।
- विवाद लंबित रहने के बावजूद, कुछ राशि लाभग्रस्तों तक पहुँचने से सामाजिक न्याय को बल मिलता है।
४.२ चुनौतियाँ एवं सावधानियाँ
- बैंक गारंटी प्राप्त करना लाभग्रस्तों के लिए आसान नहीं हो सकता—यदि लाभग्रस्त बैंक व्यवस्थित नहीं हैं, गारंटी देने में व्यय, देय योग्य साख की आवश्यकता हो सकती है।
- यदि गारंटी का प्रारूप बहुत जटिल हो, लाभग्रस्त बाधित हो सकते हैं। नीति-निर्धारकों को सरल व सुलभ मॉडल बनाना होगा।
- सुरक्षा-शर्तें लागू करते-करते यह आशंका है कि लाभग्रस्त के हिस्से को अविलम्ब जारी करना छोड़ दिया जाए—निष्पादन न्यायालयों एवं एजेंसियों को सतर्क रहना होगा कि “छोटी राशि तय देना” बहाना न बने।
- एजेंसियों द्वारा बैंक गारंटी की निगरानी व वसूल-प्रक्रिया सुनिश्चित होनी चाहिए; गारंटी बैंकों द्वारा भीतर-बराह-कम संस्था द्वारा जारी न हो जाए।
- यह प्रावधान उन मामलों तक सीमित रहना चाहिए जहाँ मुआवजा तय हो गया हो अथवा निर्वाध हो—जहाँ मुआवजा पूरी तरह विवाद में हो, पूरी राशि रोकी जाना अधिक न्यायसंगत हो सकता है।
५. नीति-सुझाव एवं व्यवहार-परिप्रेक्ष्य
- उच्च न्यायालय अथवा राज्य अधिग्रहण विधियों में ५० % रिहाई-प्रावधान को शामिल कर-मानक करें, ताकि सभी अधिग्रहण-मुआवजा मामलों में एक समान दृष्टिकोण अपनाया जाए।
- बैंक गारंटी का एक मानक प्रारूप तैयार किया जाए—जिसमें बैंक को स्पष्ट रूप से “अप्र्त्युत्तरित भुगतान” का दायित्व हो, बिना आगे की जाँच या विवाद के।
- लाभग्रस्तों के लिए गारंटी प्रक्रिया को आसान एवं सुलभ बनाया जाए—चित्र रूप में निर्देश, फीस विवरण, गारंटी बैंक सूची सार्वजनिक हो।
- यदि लाभग्रस्त गारंटी नहीं दे सकते, तो वैकल्पिक विकल्प (उदाहरण-स्वरूप: प्रवेण-बाँड + सरकारी गारंटी) तय किया जा सके—पर इंडेम्निटी बॉन्ड को प्राथमिक विकल्प न बनाया जाए।
- अधिग्रहणकर्ता-एजेंसी और निष्पादन न्यायालयों को यह निर्देश दिए जाएँ कि गारंटी देने के बाद ही राशि जारी हो, और गारंटी का पालन/नवीनीकरण सुनिश्चित हो।
- लाभग्रस्तों को समय-समय पर जानकारी एवं सलाह दी जाए कि गारंटी देने का क्या अर्थ है, क्या जोखिम है, तथा अगर गारंटी के बावजूद विवाद खड़ा हुआ तो उन्हें क्या उपाय उपलब्ध हैं।
- समय-सीमा निर्धारित की जाए कि मुआवजा तय होने के १०-१५ दिन के भीतर बैंक गारंटी प्रस्तुत न हो पाने पर अधिग्रहणकर्ता-एजेंसी को पूरा भुगतान करने हेतु प्रेरित किया जाए।
६. निष्कर्ष
संक्षिप्त में कहा जाए, तो भूमि अधिग्रहण केषेत्र में ५० % मुआवजे की जल्दरिहाई तथा शेष राशि पर सुरक्षा-व्यवस्था का संयोजन न्यायसंगत, व्यवहार-योग्य व समकालीन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इस प्रक्रिया में बैंक गारंटी को इंडेम्निटी बॉन्ड की जगह प्राथमिकता देना, न केवल लाभग्रस्तों को शीघ्र राहत देता है बल्कि सार्वजनिक कोष की सुरक्षा तथा अधिग्रहणकर्ता-एजेंसियों की वित्तीय जिम्मेदारी के दृष्टिकोण से भी अधिक सुरक्षित है।