⚖️ लोक अदालत में समझौता होने पर संपूर्ण कोर्ट फीस वापसी का अधिकार: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का ऐतिहासिक व स्पष्ट मार्गदर्शक निर्णय
भूमिका: भारतीय न्याय व्यवस्था में सुलह–न्याय का बढ़ता महत्व
भारत में न्यायिक प्रणाली आज भारी दबाव झेल रही है। लगभग हर स्तर पर मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है। करोड़ों मामले अदालतों में लंबित हैं, और न्याय की प्रक्रिया समय, धन और ऊर्जा का उपभोग करती है।
ऐसे परिवेश में वैकल्पिक विवाद निपटान (Alternative Dispute Resolution—ADR) प्रणाली न्याय प्रणाली का मजबूत स्तंभ बनकर उभरी है। ADR के विभिन्न रूपों — मध्यस्थता (Mediation), पंचायती न्याय (Arbitration), सुलह (Conciliation), और विशेष रूप से लोक अदालत (Lok Adalat) ने न्याय की गति को तेज करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
लोक अदालत की संरचना ऐसे सिद्धांतों पर आधारित है जहाँ:
- न्याय सस्ता हो
- न्याय त्वरित हो
- पक्षकारों में सौहार्द बना रहे
- एवं मुकदमेबाज़ी के खर्च को कम किया जा सके
लोक अदालत को इतना प्रभावी बनाने के पीछे की नीति यही है कि न्याय केवल निर्णय नहीं है, बल्कि समाधान है।
इसी सिद्धांत को सुदृढ़ करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हाल में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें कहा गया कि यदि विवाद का निपटारा लोक अदालत में समझौते से हो जाए तो वादी को संपूर्ण कोर्ट-फीस वापस दी जाएगी।
यह निर्णय न केवल वित्तीय राहत देता है बल्कि ADR प्रणाली को प्रोत्साहित करने की दिशा में बड़ा कदम है।
मामले की पृष्ठभूमि: Sunder Singh vs. Ramesh Chand & Another (2025)
वादी Sunder Singh ने प्रतिवादियों के विरुद्ध विशेष प्रदर्शन, कब्जा और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए सिविल वाद दायर किया था। कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, वादी ने अपनी याचिका पर पूर्ण कोर्ट-फीस जमा की।
मुकदमे के दौरान पक्षकारों के बीच Daily Lok Adalat के समक्ष समझौता हो गया। न्यायालय ने मुकदमे को “withdrawn as settled” बताते हुए निपटा दिया।
किन्तु लोक अदालत ने केवल 50% कोर्ट-फीस वापस लौटाने का आदेश दिया। वादी ने शेष 50% की वापसी हेतु आवेदन दिया, जो ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया।
वादी ने इस निर्णय के विरुद्ध हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की।
प्रमुख विधिक प्रश्न
इस मामले में न्यायालय के सामने मुख्य प्रश्न था:
क्या लोक अदालत में समझौता होने पर वादी को संपूर्ण कोर्ट फीस वापस मिलनी चाहिए या केवल 50%?
यह प्रश्न Section 16, Court Fees Act, 1870 और Legal Services Authorities Act, 1987 की व्याख्या से जुड़ा हुआ था।
लागू विधिक प्रावधान
1. Section 16, Court Fees Act, 1870
यह धारा स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि कोई वाद सुलह से निपट जाता है तो जमा की गई समस्त कोर्ट फीस वापस की जाएगी।
“When a suit is settled out of Court or by any method of alternative dispute resolution, full court-fee shall be refunded.”
यह प्रावधान सुलह को प्रोत्साहित करता है और मुकदमेबाज़ी की लागत घटाता है।
2. Legal Services Authorities Act, 1987
लोक अदालत को वैधानिक मान्यता प्रदान करता है और उसे सुलह-न्याय को बढ़ावा देने का अधिकार देता है।
3. Legal Services Authority Rules (Punjab & Haryana Amendment)
इन नियमों में स्पष्टतः उल्लेख है कि:
लोक अदालत में समझौता होने पर संपूर्ण कोर्ट फीस वापस की जाएगी।
वादी के तर्क
- लोक अदालत में समझौता हुआ है — अतः Section 16 लागू होता है
- कानून पूर्ण रिफंड का अधिकार देता है
- वादी ने मुकदमे को लंबा नहीं चलने दिया, इसलिए आर्थिक नुकसान नहीं होना चाहिए
- लोक अदालत अधिकार प्राप्त संस्था है, इसलिए Daily Lok Adalat भी लोक अदालत ही है
प्रतिवादी का तर्क
- Daily Lok Adalat स्थायी लोक अदालत के समकक्ष नहीं
- अतः इसे पूर्ण रिफंड का लाभ नहीं मिलना चाहिए
- इसलिए 50% रिफंड पर्याप्त
उच्च न्यायालय का विश्लेषण
न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा:
✅ Daily Lok Adalat भी लोक अदालत की ही श्रेणी में आता है।
✅ सुलह होने पर संपूर्ण कोर्ट फीस लौटाई जाएगी।
✅ Court Fee Refund वादी का वैधानिक अधिकार है, न कि न्यायालय का विवेकाधिकार।
न्यायालय ने कहा कि कानून का उद्देश्य ADR को प्रोत्साहित करना है। यदि लोक अदालत में सुलह करने वाले वादी को केवल 50% फीस मिलेगी, तो यह सुलह को हतोत्साहित करेगा।
अदालत ने इस सिद्धांत को मजबूत करते हुए कहा कि:
“समझौते करने वाले पक्ष को आर्थिक रूप से दंडित नहीं किया जा सकता।”
क्यों यह फैसला ऐतिहासिक है?
| महत्व | व्याख्या |
|---|---|
| ADR प्रणाली को बढ़ावा | सुलह आधारित न्याय व्यवस्था मज़बूत होती है |
| न्यायव्यवस्था पर बोझ कम | लंबित मामलों में कमी |
| वादी का आर्थिक संरक्षण | मुकदमा वापस लेने में नुकसान नहीं |
| विधिक स्पष्टता | भविष्य में विवादास्पद व्याख्या नहीं रहेगी |
व्यावहारिक स्थिति तालिका
| परिस्थिति | कोर्ट-फीस |
|---|---|
| मुकदमे का ट्रायल में निर्णय | ❌ नहीं |
| वाद वापस बिना समझौता | ❌ नहीं |
| कोर्ट के बाहर समझौता | ✅ संपूर्ण |
| लोक अदालत में समझौता | ✅ संपूर्ण |
| मध्यस्थता/ADR समझौता | ✅ संपूर्ण |
लोक अदालत: न्याय की नई संस्कृति
लोक अदालत का उद्देश्य केवल निर्णय देना नहीं, बल्कि समझौता और सौहार्द पैदा करना है।
लोक अदालत में:
- वकील और पक्षकार सहयोग करते हैं
- शत्रुता की जगह समाधान मिलता है
- लंबी प्रक्रिया नहीं होती
- खर्च कम होता है
- परिवार, संपत्ति, व्यापारिक विवाद जल्दी निपटते हैं
लॉ छात्रों और वकीलों के लिए सीख
- कोर्ट-फीस रिफंड आवेदन समय पर करें
- Settlement Order की प्रमाणित प्रति संलग्न करें
- Section 16 Court Fees Act उद्धृत करें
- आदेश में “Decided as Settled in Lok Adalat” लिखवाएँ
- गलत रिफंड आदेश मिलने पर पुनरीक्षण दायर करें
निष्कर्ष
यह फैसला न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण संदेश देता है:
न्याय केवल निर्णय का नाम नहीं, बल्कि समाधान का नाम है।
लोक अदालत में समझौते द्वारा मामलों का निपटान —
- न्यायपालिका के बोझ को कम करता है
- पक्षकारों के लिए लाभकारी है
- और वैधानिक अधिकारों को सुरक्षित करता है
इस निर्णय ने यह सिद्ध किया है कि:
✅ लोक अदालत में समझौता = संपूर्ण कोर्ट-फीस वापसी
यह निर्णय न केवल कानून की मंशा को सशक्त करता है, बल्कि ADR तंत्र को भी मज़बूती प्रदान करता है।