“NCLAT का ऐतिहासिक फैसला: पेटेंट विवादों पर CCI को अधिकार नहीं — पेटेंट अधिनियम की प्रधानता पुनः स्थापित”
🔷 परिचय
भारतीय कानूनी परिदृश्य में पेटेंट अधिकार और प्रतिस्पर्धा कानून (Competition Law) के बीच संबंध लंबे समय से एक जटिल विषय रहा है। हाल ही में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय अधिकरण (NCLAT) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India – CCI) को पेटेंट संबंधी विवादों की जांच का अधिकार नहीं है। इस फैसले में NCLAT ने कहा कि ऐसे मामलों में पेटेंट अधिनियम (Patent Act) की प्रधानता होगी और यह अधिनियम प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Competition Act) पर वरीयता रखेगा।
यह निर्णय न केवल भारतीय न्याय व्यवस्था में बौद्धिक संपदा अधिकारों (Intellectual Property Rights) की स्थिति को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि दो विधिक व्यवस्थाओं — पेटेंट कानून और प्रतिस्पर्धा कानून — के बीच कैसे संतुलन बनाया जाना चाहिए।
🔷 मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद स्विट्ज़रलैंड की फार्मा कंपनी Vifor International (AG) से जुड़ा था, जो कि Ferric Carboxymaltose (FCM) नामक इंजेक्शन के पेटेंट की स्वामित्व रखती है। यह इंजेक्शन आयरन डिफिशियेंसी (Iron Deficiency) के उपचार में उपयोग किया जाता है और इसके पेटेंट अधिकार Vifor International के पास थे।
कुछ भारतीय प्रतिस्पर्धियों ने Competition Commission of India (CCI) के समक्ष शिकायत दायर की थी कि Vifor International अपने पेटेंट अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है और इस प्रकार प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार (Anti-competitive Practices) में संलिप्त है।
हालांकि, CCI ने इस शिकायत को खारिज कर दिया और कहा कि यह मामला पेटेंट अधिकारों से जुड़ा है, जो कि उसके अधिकार क्षेत्र (jurisdiction) में नहीं आता।
इसके खिलाफ अपील राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय अधिकरण (NCLAT) में की गई थी, जहां अब यह विवाद सुलझा दिया गया है।
🔷 NCLAT का निर्णय
NCLAT की दो-सदस्यीय पीठ (Two-member Bench) ने CCI के आदेश को बरकरार रखते हुए अपील को खारिज कर दिया। अपने निर्णय में NCLAT ने कहा:
“Considering the judgment of the Delhi High Court in the case of Telefonaktiebolaget LM Ericsson (PUBL) and the Supreme Court’s decision in SLP No. 25026/2023, it is apparent that the CCI lacks the power to examine the allegations made against Vifor International (AG).”
इस प्रकार, NCLAT ने यह स्पष्ट कर दिया कि पेटेंट अधिकारों से जुड़े विवादों का निपटारा केवल पेटेंट अधिनियम, 1970 (The Patents Act, 1970) के अंतर्गत किया जा सकता है, और CCI इस क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
🔷 कानूनी विश्लेषण
(1) Patent Act बनाम Competition Act
- Patent Act, 1970 नवाचार और आविष्कारों की रक्षा करता है, ताकि आविष्कारक को उसके शोध का वैधानिक संरक्षण मिल सके।
 - वहीं, Competition Act, 2002 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बाजार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा बनी रहे और कोई संस्था अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग न करे।
 
कई बार यह दोनों अधिनियम आपस में टकराते हैं — विशेष रूप से तब जब कोई कंपनी अपने पेटेंट अधिकारों का उपयोग बाजार पर प्रभुत्व जमाने के लिए करती है।
हालांकि, NCLAT ने यह रेखांकित किया कि जब कोई विवाद सीधे पेटेंट अधिकारों से संबंधित हो, तो पेटेंट अधिनियम प्राथमिक विधि होगी और CCI को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं होगा।
(2) Telefonaktiebolaget LM Ericsson (PUBL) बनाम CCI मामला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने Telefonaktiebolaget LM Ericsson (PUBL) मामले में कहा था कि जब कोई कंपनी अपने पेटेंट अधिकारों का वैध प्रयोग कर रही हो, तो यह प्रतिस्पर्धा कानून के उल्लंघन के रूप में नहीं देखा जा सकता।
यह फैसला NCLAT के हालिया निर्णय के लिए एक प्रमुख न्यायिक मिसाल (Judicial Precedent) के रूप में सामने आया।
(3) सुप्रीम कोर्ट की पुष्टि
सुप्रीम कोर्ट ने SLP No. 25026/2023 में इस सिद्धांत की पुष्टि की थी कि CCI को पेटेंट अधिकारों के प्रयोग या दुरुपयोग से जुड़े मामलों की जांच का अधिकार नहीं है, क्योंकि इन मामलों के लिए पहले से ही एक विशेष कानून — The Patents Act, 1970 — मौजूद है।
इस आधार पर NCLAT ने भी यह माना कि Vifor International (AG) के खिलाफ दायर प्रतिस्पर्धा संबंधी शिकायत पर CCI जांच नहीं कर सकता।
🔷 फैसले का प्रभाव
- बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा में स्पष्टता:
इस निर्णय से यह सुनिश्चित हुआ है कि पेटेंट धारकों के अधिकारों की रक्षा पेटेंट कानून के तहत होगी, न कि प्रतिस्पर्धा कानून के हस्तक्षेप से। - अधिकार क्षेत्र की सीमा तय:
अब स्पष्ट हो गया है कि पेटेंट से जुड़े विवादों की जांच Controller of Patents या सिविल अदालतों के माध्यम से की जाएगी, न कि CCI के माध्यम से। - फार्मा सेक्टर में स्थिरता:
यह फैसला विशेष रूप से दवा उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है, जहां पेटेंट अधिकार और प्रतिस्पर्धा के बीच टकराव अक्सर देखने को मिलता है। - विधिक व्यवस्था में संतुलन:
यह निर्णय दर्शाता है कि न्यायालय पेटेंट और प्रतिस्पर्धा कानून के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए दृढ़ हैं, ताकि न तो नवाचार बाधित हो और न ही बाजार में प्रतिस्पर्धा का ह्रास हो। 
🔷 आलोचनात्मक दृष्टिकोण
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय प्रतिस्पर्धा आयोग की शक्तियों को सीमित कर सकता है, विशेष रूप से तब जब कोई कंपनी अपने पेटेंट अधिकारों का दुरुपयोग कर बाजार पर एकाधिकार (Monopoly) स्थापित कर लेती है।
हालांकि, दूसरी ओर, यह भी कहा जा रहा है कि CCI को पेटेंट विवादों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देने से नवाचार के प्रोत्साहन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि इससे पेटेंट धारकों के अधिकार कमजोर हो सकते हैं।
🔷 निष्कर्ष
NCLAT का यह फैसला भारतीय न्यायशास्त्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसने स्पष्ट किया है कि “Patent Act will prevail over the Competition Act” — अर्थात् जब मामला पेटेंट अधिकारों का हो, तो प्राथमिकता पेटेंट अधिनियम को दी जाएगी।
यह निर्णय न केवल Vifor International (AG) मामले में स्पष्टता लाता है, बल्कि भविष्य के उन सभी मामलों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिनमें बौद्धिक संपदा अधिकार और प्रतिस्पर्धा कानून के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
इससे यह भी संदेश जाता है कि भारत में नवाचार (Innovation) और प्रतिस्पर्धा (Competition) दोनों को संतुलित तरीके से बढ़ावा दिया जाएगा — ताकि आविष्कारकों के अधिकार भी सुरक्षित रहें और उपभोक्ताओं को भी निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा का लाभ मिल सके।
🔹 सारांश (Summary at a Glance):
| बिंदु | विवरण | 
|---|---|
| मामला | Vifor International (AG) बनाम CCI | 
| मंच | NCLAT (National Company Law Appellate Tribunal) | 
| मुख्य मुद्दा | क्या CCI पेटेंट विवादों की जांच कर सकता है? | 
| निर्णय | नहीं, पेटेंट अधिनियम की प्रधानता होगी | 
| आधार | Delhi HC का Ericsson निर्णय और SC का SLP 25026/2023 | 
| परिणाम | CCI को पेटेंट विवादों की जांच से बाहर रखा गया | 
| महत्त्व | Patent Act और Competition Act के बीच अधिकार क्षेत्र की स्पष्टता |