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अपील में सजा वृद्धि का सिद्धांत: आरोपी की अपील पर सजा बढ़ाना न्यायसंगत नहीं — भारतीय विधि में सिद्धांत, प्रावधान एवं न्यायिक दृष्टिकोण

अपील में सजा वृद्धि का सिद्धांत: आरोपी की अपील पर सजा बढ़ाना न्यायसंगत नहीं — भारतीय विधि में सिद्धांत, प्रावधान एवं न्यायिक दृष्टिकोण

भूमिका

भारतीय दंड न्याय प्रणाली का एक मूलभूत सिद्धांत यह है कि जब कोई व्यक्ति दंडादेश (conviction) के विरुद्ध उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में अपील करता है, तो उसका उद्देश्य सजा या दोषसिद्धि में कमी/रद्द करना होता है। ऐसे में यदि न्यायालय आरोपी की अपील सुनते समय उसकी सजा बढ़ा दे, तो यह न्याय के सिद्धांतों, प्राकृतिक न्याय (Principles of Natural Justice) और अपील के अधिकार (Right to Appeal) के विरुद्ध होगा।

अतः भारतीय न्याय प्रणाली में यह सिद्धांत स्थापित है —

“Accused की अपील में सजा बढ़ाई नहीं जा सकती, जब तक कि अभियोजन पक्ष या राज्य ने अलग से अपील प्रस्तुत न की हो।”

यह सिद्धांत निष्पक्ष न्याय (fair trial) और आरोपी के अधिकारों की रक्षा हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस लेख में हम इस सिद्धांत के विधिक आधार, संवैधानिक दृष्टिकोण, न्यायिक उदाहरण, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के प्रावधानों और उसके व्यावहारिक प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।


अपील का अधिकार क्या है?

अपील का अधिकार स्वाभाविक (inherent) अधिकार नहीं है, बल्कि यह विधि द्वारा प्रदत्त (statutory right) अधिकार है। इसका तात्पर्य यह है कि अपील वहीं संभव है जहां कानून अनुमति देता है। भारतीय संविधान और आपराधिक कानून में अपील का अधिकार आरोपी को अनेक स्तरों पर दिया गया है ताकि वह अपने विरुद्ध दिए गए निर्णय को चुनौती दे सके।

जब आरोपी अपील करता है, तो उसके दो मुख्य उद्देश्य होते हैं:

  1. दोषसिद्धि को चुनौती देना (to set aside conviction)
  2. सजा में कमी/राहत की मांग करना (to reduce sentence)

ऐसे में आरोपी के हितों की रक्षा आवश्यक है, ताकि वह यह भय न रखे कि अपील करने पर उसकी सजा बढ़ सकती है।


दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में प्रावधान

CrPC में सजा वृद्धि से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण धाराएँ हैं —

धारा (Section) विषय
Section 374 CrPC दोषसिद्धि एवं सजा के विरुद्ध अपील का अधिकार
Section 377 CrPC राज्य द्वारा अपर्याप्त सजा (inadequate sentence) के विरुद्ध अपील
Section 386 CrPC अपील पर न्यायालय की शक्तियाँ
Section 386(b) अपील सुनते समय सजा में बदलाव
Section 386(b)(iii) सजा बढ़ाने का अधिकार — परंतु तभी जब अभियोजन/राज्य ने अपील की हो

CrPC स्पष्ट कहती है कि—

यदि आरोपी ने केवल अपनी सजा के विरुद्ध अपील दायर की है, तो अदालत उसकी सजा बढ़ा नहीं सकती।

सजा बढ़ाने का अधिकार न्यायालय तभी प्रयोग कर सकता है जब:
✅ अभियोजन/राज्य ने सजा बढ़ाने हेतु अपील की हो
✅ न्यायालय आरोपी को पूर्वसूचना (Notice) दे
✅ आरोपी को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाए


इस सिद्धांत के पीछे तर्क

  1. Natural Justice का सिद्धांत — Audi Alteram Partem
    किसी भी व्यक्ति को दंड बढ़ाने से पहले सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए।
  2. Appeal का उद्देश्य राहत होता है, दंड नहीं
    यदि अपील में सजा बढ़ाई जा सके, तो आरोपी डर के कारण अपील का अधिकार प्रयोग नहीं करेगा।
  3. विधिक संतुलन
    अभियोजन और आरोपी दोनों को न्याय प्राप्त करने का समान अवसर मिलना चाहिए।
  4. दंड की निश्चितता और प्रक्रिया का सम्मान
    न्यायालय को अपने अधिकार नियंत्रित तरीके से उपयोग करने चाहिए।

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

State of Punjab v. Man Singh (AIR 1969 SC 1286)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

यदि आरोपी ने केवल सजा कम करने हेतु अपील की हो, तो उसकी सजा नहीं बढ़ाई जा सकती।

K. Chinnaswamy Reddy vs State of Andhra Pradesh (AIR 1962 SC 1788)

निर्णय:

न्यायालय सजा तभी बढ़ा सकता है जब अभियोजन ने अपील की हो।

Bengal Nagpur Railway v. Ratanji Ramji (AIR 1938 PC 67)

इस निर्णय ने यह सिद्धांत स्थापित किया कि—

अपीलकर्ता को अपेक्षा होती है कि उसकी अपील से उसकी स्थिति और खराब नहीं होगी।

Akhil Ali Jehangir Alid vs State of Maharashtra (2013)

सुप्रीम कोर्ट ने पुनः पुष्टि की—

आरोपी की अपील में दंड वृद्धि अस्वीकृत, जब तक राज्य/अभियोजन द्वारा स्वतंत्र अपील न हो।


अन्य प्रासंगिक निर्णय

वाद का नाम सिद्धांत
Shyam Deo Pandey v. State of Bihar Appeal only improves position unless prosecution appeals
Allauddin Mian v. State of Bihar Notice must be given before enhancement
State v. Laxman Criminal justice discourages prejudice against appellant

संवैधानिक दृष्टिकोण

इस सिद्धांत का संबंध निम्न संवैधानिक प्रावधानों से है:

अनुच्छेद विषय
Article 20 दंड कानूनों से सुरक्षा
Article 21 जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार — न्यायसंगत प्रक्रिया (due process)
Article 14 समानता और निष्पक्षता का अधिकार

सजा बढ़ाना ‘natural justice’ और ‘due process’ के विपरीत होगा जब तक विधि के अनुसार अपील न हो।


व्यावहारिक प्रभाव

प्रभाव विवरण
आरोपी को सुरक्षा अपील करने में भय नहीं
न्यायालय का दायित्व अभियोजन की अपील के बिना सजा नहीं बढ़ा सकते
आपराधिक प्रक्रिया में संतुलन अभियोजन और आरोपी दोनों के अधिकार सुरक्षित
न्यायिक पारदर्शिता सुनवाई और सूचना आवश्यक

उदाहरण से समझें

मान लीजिए किसी आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने 3 साल की सजा दी।

  • यदि आरोपी अपील करता है, तो उसकी सजा 1 साल या कम हो सकती है, या वह बरी भी हो सकता है।
  • लेकिन सजा 3 से 5 साल नहीं की जा सकती, जब तक राज्य अलग अपील न करे।

यदि राज्य अपील करता है और कोर्ट नोटिस देकर कहता है कि सजा बढ़ाने पर विचार होगा —
तब ही दंड बढ़ सकता है।


अपवाद

कुछ विशेष परिस्थितियों में जहां कानून में स्पष्ट दंड का प्रावधान है और ट्रायल कोर्ट ने अत्यधिक कम सजा दी हो, तब राज्य की अपील पर दंड बढ़ाया जा सकता है — परंतु आरोपी की अपील पर नहीं।


आलोचना और चिंताएँ

कुछ मामलों में यह तर्क दिया जा सकता है कि:

  • कभी-कभी ट्रायल कोर्ट अत्यधिक कम सजा दे देता है
  • आरोपी की अपील के समय न्यायालय तकनीकी रूप से सजा नहीं बढ़ा पाता

परंतु यह भी सत्य है कि अभियोजन को अलग अपील करने का अधिकार दिया गया है, जिससे संतुलन बना रहता है।


निष्कर्ष

भारतीय दंड न्याय प्रणाली में यह सिद्धांत न्याय, निष्पक्षता और आरोपी के अधिकारों की रक्षा का आधार है:

Accused की अपील में दंड नहीं बढ़ेगा, जब तक अभियोजन ने अलग अपील न दायर की हो।

यह सिद्धांत अपील प्रणाली की पवित्रता और न्यायिक निष्पक्षता को बनाये रखने के लिये अनिवार्य है। यह आरोपी को विश्वास देता है कि न्यायालय में अपील करके वह दंड बढ़ने का जोखिम नहीं उठाएगा, और यह न्याय व्यवस्था के प्रति व्यक्ति का विश्वास मजबूत करता है।