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“सड़क के आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: राज्यों से मांगी जवाबदेही”

“स्‍ट्रे डॉग्स केस: Supreme Court of India द्वारा ‘एबीसी रूल्स’ अनुपालन न करने वाले राज्यों/केन्द्रीय प्रदेशों के प्रमुख सचिवों को समन जारी”

प्रस्तावना

भारत में सड़कों पर आवारा कुत्तों (stray dogs) की संख्या, उनसे होने वाली समस्या एवं इससे जनस्वास्थ्य एवं सार्वजनिक सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव को दृष्टिगत करते हुए, सुप्रीम कॉर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। इस लेख में हम उस आदेश, उसके पृष्ठभूमि, कानूनी प्रावधान, राज्यों-संघीय प्रदेशों द्वारा अनुपालन की स्थिति तथा आगे की चुनौतियों पर विचार करेंगे।


पृष्ठभूमि

कुछ समय पहले मीडिया द्वारा एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक था “In a city hounded by strays, kids pay price”। इस रिपोर्ट ने यह उजागर किया था कि मुख्य महानगरों में आवारा कुत्तों के कारण कुत्ते काटने की घटनाएँ बढ़ रही थीं, बच्चों पर इसका विशेष प्रभाव हो रहा था। इसके बाद 28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने suo motu (स्वयं संज्ञान) लिया था।

11 अगस्त 2025 को एक द्व्य-न्यायाधीशीय पीठ ने दिल्ली-एनसीआर के लिए आदेश दिया कि आवारा कुत्तों को जल्द shelters में स्थानांतरित किया जाए और उन्हें पुनः सड़कों पर छोड़े न जाएँ।
परंतु इस आदेश पर पशु अधिकार संगठनों तथा अन्य पक्षों द्वारा आपत्ति जताई गई कि यह आदेश पिछले निर्देशों तथा कानून-नियमों के अनुरूप नहीं है।
इसलिए 13 अगस्त को मामला एक त्रि-न्यायाधीशीय पीठ को सौंपा गया और 22 अगस्त 2025 को उसने 11 अगस्त के निर्देशों को आंशिक रूप से संशोधित किया।
मुख्य संशोधन यह था कि अब प्रतिबंध लगा कि मास गिरफ्तारी और कभी-कभार पुनः छोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए, बल्कि जो कुत्ते पकड़े जाएँ, उन्हें “न्यूटरीकरण (sterilisation) + टीकाकरण (vaccination) + कृन्तक कीड़ा नाशक (deworming)” के बाद पुनः उसी इलाके में छोड़ने का मॉडल स्वीकार किया जाए, सिवाय उन कुत्तों के जो रेबिज (rabies) से संक्रमित हों, संदेहास्पद हों या आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित कर रहे हों।
साथ ही, सार्वजनिक रूप से खुले में कुत्तों को भोजन (feeding) देने पर पाबंदी लगाई गई और प्रत्येक वार्ड/क्षेत्र में निर्धारित फीडिंग स्पेस बनाने को कहा गया।
यह आदेश केवल दिल्ली-एनसीआर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे भारत में सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों (States/UTs) को इस दिशा में निर्देशित किया गया।


“एबीसी रूल्स” (ABC Rules) का कानूनी आधार

यहाँ “एबीसी” का अर्थ है Animal Birth Control (Dogs) Rules, 2023 (या उसके पहले के समकक्ष नियम) जिसका उद्देश्य आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करना है, उन्हें हानिरहित तरीके से प्रबंधन करना है तथा मानव-पशु दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
कानूनी रूप से यह नियम Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960 के अंतर्गत लागू होते हैं।
इन नियमों के मुताबिक, स्थानीय स्वशासन (municipal authorities), पशु-पशुपालन विभाग (Animal Husbandry Department) आदि को कारगर तंत्र स्थापित करना होता है — जिसमें कुत्तों का पकड़ना, उनका न्यूटरीकरण, टीकाकरण, कीड़ा-नाशक देना, पुनर्रिहाई (release) करना आदि शामिल है।
इस तरह, अदालत ने राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे इन नियमों के अनुपालन पर एक कम्प्लायन्स अफिडेविट (compliance affidavit) दाखिल करें जिसमें बताया जाए कि उन्होंने क्या-क्या कदम उठाए हैं।


सुप्रीम कोर्ट का आदेश एवं समन

27 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि उन राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों (States/UTs) के सचिव (Chief Secretaries) को व्यक्तिगत रूप से 3 नवंबर 2025 को उपस्थित होना होगा, जिन्होंने अपनी कम्प्लायन्स अफिडेविट नहीं दाखिल की है।
विशेष रूप से, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ (Vikram Nath), न्यायमूर्ति संदीप मेहता (Sandeep Mehta) और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजरिया (N.V. Anjaria) की पीठ ने यह देखा कि अब तक केवल दो राज्य-केन्द्रशासित प्रदेश — West Bengal और Telangana — और Municipal Corporation of Delhi ने अफिडेविट दाखिल किया है।
दिल्ली सरकार (NCT) ने खुद किफ़ायती रूप से अफिडेविट नहीं दी थी, केवल MCD ने जानकारी दी थी, जिसे पर्याप्त नहीं माना गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने तीखा अंदाज लिया — “लगातार घटनाएं हो रही हैं, देश की छवि विदेशी देशों की नजर में घट रही है” — जैसे भावों से।
अदालत ने कहा कि यदि निर्धारित समय में afidavit नहीं आये तो कोस्ट (costs) लगाया जा सकता है और अनुकरणात्मक (coercive) कदम उठाए जा सकते हैं।


अनुपालन की स्थिति एवं चुनौतियाँ

– अधिकांश राज्यों/UTs ने अभी तक उस अफिडेविट को दाखिल नहीं किया है, जो अदालत ने 22 अगस्त के आदेश के साथ माँगा था।
– अदालत ने विशेष रूप से यह प्रश्न उठाया कि क्या राज्य अधिकारी समाचारपत्र या सोशल मीडिया नहीं पढ़ते — “क्या उन्हें नहीं पता?” — जैसा कि मीडिया ने उद्धृत किया है।
– दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में कुत्ते काटने की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है: उदाहरणतः दिल्ली में 2023 में लगभग 17,874 कुत्ता काटने की घटनाएँ रहीं, 2024 में यह संख्या 25,210 तक बढ़ी।
– भारत में 2019 में लगभग 1.53 करोड़ आवारा कुत्ते थे, है जहाँ विभिन्न राज्यों में कुत्ता काटने की घटनाएँ हजारों में हैं।
इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि समस्या गंभीर है और समय-सापेक्ष कदम उठाने की आवश्यकता है।


कानूनी-नीति महत्त्व

  1. मानव-स्वास्थ्य एवं सुरक्षा: आवारा कुत्ते न केवल काटने-बिचाने के खतरे उत्पन्न करते हैं बल्कि रेबिज जैसी जानलेवा बीमारी का स्रोत भी बन सकते हैं। अदालत ने इसे सार्वजनिक सुरक्षा का मुद्दा माना है।
  2. पशु-कल्याण: सिर्फ कुत्तों को हटाना या खत्म करना ही समाधान नहीं है; उन्हें न्यूटरीकरण-टीकाकरण के बाद पुनः छोड़ने का मॉडल अपनाना है, जिससे उनकी संख्या नियंत्रित हो सके और मनुष्यों-पशुओं के बीच संतुलन बने।
  3. राज्य-कर्तव्य एवं जवाबदेही: राज्यों/UTs को निर्देश दिए गए हैं कि वे कानून-नियमों के अनुसार कदम उठाएँ और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी जवाबदेही प्रस्तुत करें। इस समन से यह स्पष्ट है कि शीर्ष स्तर (Chief Secretary) को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदारी उठानी होगी।
  4. राष्ट्रीय नीति-विन्यास: सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि इस तरह के मामलों को राज्यों के हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित किया जाएगा ताकि एक समग्र राष्ट्रीय नीति बनाई जा सके।

आगे की चुनौतियाँ एवं सुझाव

  • राज्यों/UTs को सुनिश्चित करना होगा कि वे प्रत्येक वार्ड/क्षेत्र में फीडिंग स्थान, पर्याप्त कुत्ता आश्रय (shelters/pounds), न्यूटरीकरण-टीकाकरण कार्यक्रम आदि क्रियान्वित करें।
  • यह सुनिश्चित करना कि स्थानीय निकाय, पशु-पशुपालन विभाग, नगर निगम आदि समन्वित रूप से काम करें — विभागीय सीमाओं एवं जिम्मेदारी-विभाजन को स्पष्ट करना होगा।
  • सार्वजनिक जागरूकता बढ़ानी होगी: नागरिकों को बताएँ कि कुत्तों को सार्वजनिक स्थान पर बिना अनुमति भोजन देने से समस्या बढ़ जाती है, क्यों कि इससे उनका सड़कों पर जमाव होता है और काटने-बिचाने की घटनाएँ बढ़ सकती हैं।
  • नियमित ट्रैकिंग एवं रिपोर्टिंग: राज्य-स्तर पर नियमित मासिक/त्रैमासिक गणना, कुत्ता काटने की घटनाओं का डाटा संग्रह, नियंत्रण कार्यक्रमों की प्रगति का विश्लेषण महत्वपूर्ण होगा।
  • मानव-पशु दोनों दृष्टिकोण से संतुलन: अदालत के शब्दानुसार — “पशु-क्रूरता पर प्रश्न उठना चाहिए लेकिन मानवों की क्रूरता पर क्या कहा जायेगा?” — यह संकेत है कि नीति-निर्माता केवल पशु-हक के पक्ष में नहीं बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा व मानव हित को भी ध्यान में रखें।

निष्कर्ष

स्‍ट्रे डॉग्स के रूप में आवारा कुत्तों की समस्या केवल स्थानीय स्तर की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा का मुद्दा बन चुकी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शीर्ष अधिकारियों को समन जारी करना इस बात का संकेत है कि न्यायालय ने इसे गंभीरता से लिया है और राज्यों/संघीय प्रदेशों से पूरी जवाबदेही की उम्मीद कर रहा है।
“एबीसी रूल्स” के अनुपालन के माध्यम से कुत्तों की संख्या नियंत्रण में लाना, काटने-बिचाने की घटनाओं को कम करना, मानव-पशु दोनों की रक्षा सुनिश्चित करना संभव है — यदि समयनिष्ठता, समन्वय और जवाबदेही के साथ कार्रवाई की जाए।
3 नवंबर 2025 की अगली सुनवाई को यह देखना होगा कि कितने राज्य/UTs ने समय पर अफिडेविट दाखिल कर जवाबदेही निभाई है — और आगे की दिशा-निर्देश क्या होंगे।