“इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता पर सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय : धारा 138C(4) प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति में भी वैध यदि आरोपी ने धारा 108 के अंतर्गत बयान में स्वीकार किया हो”
भूमिका :
भारतीय सीमा शुल्क अधिनियम (Customs Act, 1962) के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (Electronic Evidence) का प्रयोग तेजी से बढ़ा है। तकनीकी युग में अधिकांश लेन-देन, ईमेल, संदेश और डिजिटल रिकॉर्ड्स इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध रहते हैं, जो अपराध या कर-चोरी की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि — यदि आरोपी ने सीमा शुल्क अधिकारी के समक्ष धारा 108 के अंतर्गत दिए गए बयान में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की सामग्री को स्वीकार किया है, तो धारा 138C(4) के तहत आवश्यक प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति के बावजूद वह साक्ष्य स्वीकार्य (admissible) होगा।
यह फैसला न केवल सीमा शुल्क कानून के अंतर्गत बल्कि समग्र रूप से भारतीय साक्ष्य कानून और डिजिटल सबूतों की वैधता पर भी दूरगामी प्रभाव डालता है।
प्रमुख मुद्दा (Key Issue):
क्या Customs Act, 1962 की धारा 138C(4) के तहत प्रमाणपत्र (Certificate) के बिना भी कोई इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (जैसे ईमेल, कंप्यूटर डेटा, मोबाइल रिकॉर्ड आदि) अदालत में वैध हो सकता है, यदि आरोपी ने स्वयं उसकी सत्यता को स्वीकार कर लिया हो?
पृष्ठभूमि :
सीमा शुल्क विभाग (Customs Department) ने एक कंपनी और उसके निदेशकों के विरुद्ध स्मगलिंग और कर चोरी के आरोप लगाए। जांच के दौरान विभाग ने ईमेल, कंप्यूटर डेटा और मोबाइल संदेशों को जब्त किया, जो अवैध लेन-देन से संबंधित थे।
जांच के समय आरोपी निदेशक ने Customs Act की धारा 108 के अंतर्गत बयान देते हुए यह स्वीकार किया कि जब्त किए गए ईमेल और रिकॉर्ड उसी के हैं और उनमें निहित लेन-देन सत्य हैं।
बाद में, जब यह मामला अदालत में पहुंचा, तो आरोपी ने तर्क दिया कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बिना Section 138C(4) के प्रमाणपत्र के अदालत में स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि वह Evidence Act की धारा 65B के समान है और इसके बिना डिजिटल साक्ष्य को वैध नहीं माना जा सकता।
प्रासंगिक विधिक प्रावधान (Relevant Legal Provisions):
- Section 108, Customs Act, 1962
→ सीमा शुल्क अधिकारी को अधिकार देता है कि वह किसी भी व्यक्ति से शपथपूर्वक बयान प्राप्त कर सके, जो जांच या अपराध से संबंधित हो।
ऐसे बयान स्वीकारोक्ति (Confession) के रूप में माने जा सकते हैं, बशर्ते वे स्वेच्छा से दिए गए हों। - Section 138C, Customs Act, 1962
→ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स के साक्ष्य के रूप में प्रयोग की प्रक्रिया बताती है।
उपधारा (4) कहती है कि किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में तभी स्वीकार किया जा सकता है जब उसके साथ प्रमाणपत्र (Certificate) हो, जो उस कंप्यूटर सिस्टम के संचालन और रिकॉर्ड की सटीकता की पुष्टि करे। - Section 65B, Indian Evidence Act, 1872
→ डिजिटल रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने हेतु प्रमाणपत्र की आवश्यकता निर्धारित करती है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Supreme Court’s Ruling):
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि —
“यदि कोई व्यक्ति Customs Act की धारा 108 के अंतर्गत दिए गए बयान में स्वयं यह स्वीकार कर ले कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में निहित तथ्य सत्य हैं, तो उस स्थिति में धारा 138C(4) का प्रमाणपत्र आवश्यक नहीं है, क्योंकि प्रमाणपत्र का उद्देश्य सत्यापन है, जबकि आरोपी की स्वीकारोक्ति पहले से ही उस सत्यता को प्रमाणित कर देती है।”
अर्थात्, जब स्वयं आरोपी रिकॉर्ड की सत्यता स्वीकार कर लेता है, तो प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति साक्ष्य की वैधता को प्रभावित नहीं करती।
न्यायालय के तर्क (Court’s Reasoning):
- स्वीकारोक्ति का विधिक प्रभाव :
जब आरोपी स्वयं किसी साक्ष्य की सामग्री को स्वीकार कर लेता है, तो वह साक्ष्य को “स्वयं प्रमाणित” कर देता है।
ऐसी स्थिति में धारा 138C(4) का प्रमाणपत्र आवश्यक नहीं रह जाता, क्योंकि उसका उद्देश्य केवल रिकॉर्ड की विश्वसनीयता स्थापित करना है। - Section 108 के अंतर्गत बयान का महत्व :
यह बयान किसी सामान्य पुलिस जांच के तहत नहीं लिया जाता, बल्कि एक वैधानिक प्राधिकारी द्वारा विधिक शक्ति के अंतर्गत लिया जाता है।
अतः इसे स्वीकृत साक्ष्य के रूप में माना जा सकता है, जब तक कि यह सिद्ध न किया जाए कि यह जबरदस्ती लिया गया था। - तकनीकी प्रक्रिया पर अत्यधिक निर्भरता से बचाव :
न्यायालय ने कहा कि यदि हर इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को केवल तकनीकी प्रमाणपत्र के अभाव में खारिज कर दिया जाए, तो अनेक गंभीर अपराधों में न्याय प्राप्ति असंभव हो जाएगी। - न्यायिक दृष्टिकोण का संतुलन :
साक्ष्य अधिनियम और सीमा शुल्क अधिनियम दोनों को “समान उद्देश्य” से पढ़ा जाना चाहिए — सत्य का पता लगाना और अपराधी को दंडित करना।
पूर्ववर्ती न्यायिक दृष्टांत (Precedents):
- Anvar P.V. v. P.K. Basheer (2014) 10 SCC 473
→ सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड तभी स्वीकार्य होगा जब Section 65B का प्रमाणपत्र हो। - Arjun Panditrao Khotkar v. Kailash Kushanrao Gorantyal (2020) 7 SCC 1
→ इस निर्णय में भी प्रमाणपत्र की आवश्यकता को अनिवार्य बताया गया था, परंतु यह भी कहा गया कि यदि रिकॉर्ड की सत्यता स्वीकार कर ली गई हो, तो औपचारिक प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं रह जाती। - Kanhaiyalal v. Union of India (2008) 4 SCC 668
→ इसमें न्यायालय ने माना कि Section 108 के तहत दिया गया बयान तब तक वैध है जब तक यह साबित न हो जाए कि वह जबरन लिया गया।
न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश (Directions by the Court):
- धारा 138C(4) का प्रमाणपत्र केवल तब आवश्यक है जब रिकॉर्ड की सत्यता पर विवाद हो।
- यदि आरोपी ने धारा 108 के तहत बयान में रिकॉर्ड की सत्यता स्वीकार कर ली है, तो प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति से कोई नुकसान नहीं होगा।
- यह निर्णय केवल उन मामलों पर लागू होगा जहाँ स्वीकारोक्ति स्पष्ट, स्वेच्छा से और बिना दबाव के दी गई हो।
- जांच एजेंसियों को चाहिए कि वे भविष्य में भी प्रमाणपत्र प्राप्त करें ताकि साक्ष्य पर विवाद की संभावना समाप्त हो सके।
निर्णय का प्रभाव (Impact of the Judgment):
- कानूनी स्पष्टता :
इस निर्णय से सीमा शुल्क मामलों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता पर स्पष्टता आई है। - जांच प्रक्रिया में सरलता :
अब विभागीय अधिकारी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पर भरोसा कर सकते हैं जिन्हें आरोपी ने स्वयं स्वीकार किया हो। - Evidence Law का विकास :
यह फैसला डिजिटल युग में भारतीय साक्ष्य अधिनियम और विशेष अधिनियमों (जैसे Customs Act) की व्याख्या को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में स्थापित करता है। - अभियोजन पक्ष को मजबूती :
अब अभियोजन को यह साबित करने की आवश्यकता नहीं कि प्रत्येक इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज के लिए प्रमाणपत्र अनिवार्य है, यदि आरोपी ने उसे मान लिया हो। - आरोपी की सुरक्षा :
न्यायालय ने यह भी सुनिश्चित किया कि यदि स्वीकारोक्ति जबरदस्ती ली गई हो या गलत तरीके से दर्ज की गई हो, तो आरोपी को उसका खंडन करने का अवसर मिलेगा।
निष्कर्ष (Conclusion):
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय भारतीय न्याय-व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
इससे यह सिद्ध होता है कि न्यायालय तकनीकी औपचारिकताओं से अधिक सत्य और न्याय की भावना पर ध्यान देता है।
इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, चाहे वह ईमेल हो, संदेश, डेटा या कंप्यूटर रिकॉर्ड — यदि आरोपी ने स्वयं उसकी सत्यता को स्वीकार किया है, तो वह अपने आप में प्रमाण बन जाता है।
यह फैसला न केवल सीमा शुल्क कानून (Customs Act) की व्याख्या को आधुनिक बनाता है, बल्कि डिजिटल युग के साक्ष्य कानून (Evidence Law) की दिशा भी तय करता है।
संक्षिप्त सारांश (Summary in Short):
| बिंदु | विवरण |
|---|---|
| मामला | इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता बिना Section 138C(4) प्रमाणपत्र |
| कानून | Customs Act, 1962 – Sections 108 & 138C |
| मुख्य प्रश्न | क्या प्रमाणपत्र के बिना इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य वैध हो सकता है? |
| न्यायालय का मत | हाँ, यदि आरोपी ने धारा 108 के तहत बयान में साक्ष्य को स्वीकार किया हो |
| प्रभाव | डिजिटल साक्ष्य की वैधता पर स्पष्टता, अभियोजन को मजबूती |
| सिद्धांत | “स्वीकारोक्ति प्रमाणपत्र से श्रेष्ठ” — यदि सत्यता स्वयं आरोपी ने स्वीकार की हो |