“क्या लीजहोल्ड अधिकारों का ट्रांसफर ‘भूमि का हस्तांतरण’ है या ‘सेवा की आपूर्ति’? — सुप्रीम कोर्ट में अहम कर निर्धारण विवाद”
भूमिका : न्याय और कर प्रणाली के बीच जटिल सवाल
भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होने के बाद से कई ऐसे प्रश्न उठे हैं जो पारंपरिक कर व्यवस्था और आधुनिक लेनदेन के बीच संतुलन को चुनौती देते हैं। इन्हीं विवादित विषयों में से एक है — क्या भूमि पर लीजहोल्ड (Leasehold) अधिकारों का हस्तांतरण “भूमि का ट्रांसफर” माना जाएगा, जो GST से मुक्त है, या यह “सेवा की आपूर्ति” (Supply of Service) की श्रेणी में आएगा, जिस पर GST लागू होता है?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार करना स्वीकार किया है। यह मामला कराधान के क्षेत्र में दूरगामी प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि देश भर में हजारों करोड़ के लीज ट्रांजैक्शन इसी कानूनी व्याख्या पर निर्भर हैं।
मामले की पृष्ठभूमि : गुजरात हाईकोर्ट का फैसला
इस विवाद की शुरुआत गुजरात उच्च न्यायालय के एक महत्वपूर्ण निर्णय से हुई थी।
गुजरात हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि—
“भूमि के लीजहोल्ड अधिकारों का हस्तांतरण भूमि के ट्रांसफर के समान है, अतः यह GST के अंतर्गत नहीं आता।”
अदालत ने यह भी माना कि जब कोई व्यक्ति किसी भूमि के लीजहोल्ड अधिकार (leasehold rights) को किसी और को सौंपता है, तो यह वस्तुतः भूमि का ही हस्तांतरण है, क्योंकि इससे उस व्यक्ति का स्वामित्व-समान अधिकार दूसरे के पास चला जाता है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने यह माना कि ऐसा ट्रांजैक्शन सेवा की आपूर्ति नहीं, बल्कि अचल संपत्ति का हस्तांतरण (transfer of immovable property) है, और इसलिए यह GST से मुक्त (exempt) है।
इस फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार (Union of India) ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की है, यह कहते हुए कि हाईकोर्ट की व्याख्या GST कानून की मंशा और परिभाषा से मेल नहीं खाती।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई : कौन-सी बेंच कर रही है विचार?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति प्रसन्न बी. वरले शामिल हैं, अब यह निर्धारित करेगी कि—
- क्या लीजहोल्ड अधिकारों का ट्रांसफर “भूमि का ट्रांसफर” है,
- या फिर इसे “सेवा की आपूर्ति” (Supply of Service) माना जाएगा और इस पर GST लगाया जा सकता है।
विवाद का कानूनी सार : लीजहोल्ड अधिकार आखिर होते क्या हैं?
लीजहोल्ड अधिकार (Leasehold Rights) का अर्थ है किसी व्यक्ति को किसी भूमि या संपत्ति के उपयोग का अधिकार देना — आमतौर पर निर्धारित समय अवधि (जैसे 30, 60 या 99 वर्ष) के लिए — कुछ शर्तों और किराए (premium या consideration) के बदले में।
यह स्वामित्व (ownership) नहीं होता, बल्कि किरायेदारी (tenancy) या अधिकार उपयोग (right to use) का एक स्वरूप होता है। लेकिन भारत में लंबे समय के लीज (जैसे 99 वर्ष के लीज) को अक्सर “क्वासी ओनरशिप” (quasi-ownership) भी कहा जाता है, क्योंकि उसका प्रभाव भूमि स्वामित्व जैसा ही होता है।
GST कानून के अंतर्गत प्रमुख परिभाषाएं
- Section 7 of the Central Goods and Services Tax (CGST) Act, 2017
- यह बताता है कि “supply” में वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री, स्थानांतरण, विनिमय, लाइसेंसिंग, किराया, पट्टा (lease), या निपटान (disposal) आदि शामिल हैं, जब तक कि वह व्यावसायिक गतिविधि के तहत हो।
- Schedule III of CGST Act
- इसमें कुछ ऐसे लेनदेन सूचीबद्ध हैं जिन्हें “न तो वस्तु की आपूर्ति और न ही सेवा की आपूर्ति” माना जाता है।
- इनमें एक महत्वपूर्ण बिंदु है — “sale of land and, subject to clause (b) of paragraph 5 of Schedule II, sale of building.”
अर्थात्, भूमि की बिक्री (sale of land) पर GST नहीं लगता।
अब विवाद यह है कि —
क्या लीजहोल्ड अधिकारों का ट्रांसफर “sale of land” की श्रेणी में आता है या नहीं?
केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार की ओर से दलील दी गई है कि—
- लीजहोल्ड अधिकारों का ट्रांसफर वास्तव में भूमि की “बिक्री” नहीं है।
- यह भूमि के “उपयोग का सीमित अधिकार” (right to use the land) प्रदान करता है।
- इसलिए यह एक “सेवा की आपूर्ति” (supply of service) है, जिस पर GST लागू होता है।
सरकार का यह भी कहना है कि भूमि का ट्रांसफर तभी कहा जा सकता है जब स्वामित्व (ownership) पूरी तरह से बदल जाए। लेकिन लीज में केवल उपयोग का अधिकार (right to enjoy) दिया जाता है, स्वामित्व नहीं।
लीजहोल्ड ट्रांसफर के समर्थन में तर्क
दूसरी ओर, जिन करदाताओं या डेवलपर्स ने लीजहोल्ड अधिकार ट्रांसफर किए हैं, उनका कहना है कि—
- भूमि पर लंबे समय (जैसे 99 वर्षों) के लिए लीज देना वस्तुतः भूमि का हस्तांतरण है।
- ऐसा ट्रांजैक्शन एक capital asset transfer है, न कि कोई सेवा।
- जब सरकार खुद भूमि का लीज प्रीमियम (lease premium) लेकर ऐसे अधिकार देती है, तो वह भूमि की बिक्री जैसी आर्थिक वास्तविकता को जन्म देती है।
- इसलिए यह लेनदेन Schedule III के अंतर्गत आता है और GST से मुक्त होना चाहिए।
पूर्ववर्ती न्यायिक उदाहरण
इससे पहले भी कुछ न्यायिक मंचों पर ऐसे मामलों में विरोधाभासी राय दी गई है:
- S. S. Enterprises v. CCE (CESTAT Mumbai)
- यह कहा गया कि लीज प्रीमियम वसूलना भूमि की बिक्री जैसा ही है, इसलिए GST नहीं लगता।
- Greater Noida Industrial Development Authority (GNIDA) Cases
- कई बार राजस्व विभाग ने GNIDA और अन्य औद्योगिक विकास प्राधिकरणों से GST वसूला, लेकिन डेवलपर्स ने यह कहते हुए चुनौती दी कि यह भूमि ट्रांसफर है।
- Union of India v. Mineral Area Development Authority (SC, 2011)
- सुप्रीम कोर्ट ने यह माना था कि भूमि पर अधिकार देने के कई स्वरूप हो सकते हैं और हर स्थिति में “taxable service” नहीं माना जा सकता।
कानूनी और आर्थिक प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट का आगामी निर्णय न केवल कानूनी बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत प्रभावशाली होगा।
यदि कोर्ट यह कहता है कि—
- लीजहोल्ड ट्रांसफर भूमि का हस्तांतरण है, तो देशभर में ऐसे सभी लेनदेन GST मुक्त हो जाएंगे, जिससे सरकार को राजस्व हानि हो सकती है, लेकिन रियल एस्टेट सेक्टर को राहत मिलेगी।
- लेकिन अगर कोर्ट यह कहता है कि यह सेवा की आपूर्ति है, तो ऐसे सभी ट्रांजैक्शन पर 18% तक GST लागू रहेगा, जिससे डेवलपर्स और खरीदारों की लागत बढ़ जाएगी।
विशेषज्ञों की राय
कर विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला “form versus substance” के सिद्धांत पर निर्भर करेगा — यानी यह देखा जाएगा कि लीज ट्रांजैक्शन की वास्तविक प्रकृति क्या है।
- यदि यह सिर्फ “उपयोग का अधिकार” देता है, तो यह सेवा है।
- लेकिन अगर यह स्वामित्व के समान अधिकारों का हस्तांतरण करता है (जैसे कि 99 वर्ष की लीज बिना रद्दीकरण अधिकार के), तो यह भूमि का ट्रांसफर माना जा सकता है।
संविधानिक परिप्रेक्ष्य
संविधान के अनुसार,
- भूमि से जुड़े कर (Entry 49, List II) राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं,
- जबकि सेवाओं पर कर (Entry 97, List I) केंद्र सरकार के अंतर्गत आता है।
इसलिए यह मामला केवल GST की परिभाषा का नहीं, बल्कि संविधानिक शक्तियों के विभाजन (distribution of legislative powers) से भी जुड़ा हुआ है।
संभावित परिणाम और निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के आगामी निर्णय से निम्नलिखित प्रश्नों का समाधान होगा:
- क्या लीजहोल्ड अधिकार भूमि की बिक्री के समान माने जाएंगे?
- क्या ऐसे लेनदेन पर GST लागू होगा या नहीं?
- क्या केंद्र और राज्य के कराधिकारों के बीच कोई नया संतुलन स्थापित होगा?
निष्कर्ष : कर कानून के भविष्य पर असर
यह मामला केवल एक कर विवाद नहीं है, बल्कि यह भारतीय कर प्रणाली में भूमि और सेवा की अवधारणा की सीमाओं को परिभाषित करेगा।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस बात को स्पष्ट करेगा कि “अचल संपत्ति” और “सेवा” के बीच की रेखा कहाँ खींची जाए।
यदि कोर्ट हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखता है, तो यह रियल एस्टेट, इंफ्रास्ट्रक्चर, और औद्योगिक परियोजनाओं को बड़ी राहत देगा।
लेकिन यदि कोर्ट केंद्र सरकार के पक्ष में जाता है, तो भविष्य में लीज ट्रांजैक्शन पर टैक्स अनुपालन और लागत दोनों बढ़ जाएंगे।
इस प्रकार, आने वाले महीनों में यह मामला भारत के GST कानून के विकास में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हो सकता है।