“Delhi High Court ने वकील को ऑनलाइन सुनवाई में भाग लेने से रोका, ‘पैरेलल हियरिंग’ बताकर वीडियो बंद करना वीडियो-कॉन्फरेंसिंग नियमों के विरुद्ध”
भूमिका
कल्याणकारी दृष्टि से देखें तो न्याय-प्रवृत्ति में ऑनलाइन या हाइब्रिड (संकर) सुनवाइयाँ अब आम हो चुकी हैं। कोविड कालीन दौर के बाद से आगे-आगे चल रही यह प्रक्रिया न केवल सुविधा देती है, बल्कि व्यवहार में न्यायालयों की पहुंच को व्यापक बनाती है। लेकिन इस संदर्भ में यह भी अनिवार्य है कि वकील एवं अदालत दोनों-संबंधित-पक्ष इस नवीन व्यवस्था के लिए अपनाए गए नियमों-आचारों (etiquettes) तथा तकनीकी मानदंडों का पालन करें।
इसी पृष्ठभूमि में, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा एक वकील को वीडियो-कॉन्फरेंसिंग (VC) द्वारा सुनवाई में भाग लेने से प्रतिबंधित करने का आदेश बेहद महत्वपूर्ण माना जा सकता है। यह आदेश केवल एक वकील-व्यवहार पर नहीं, बल्कि ऑनलाइन सुनवाई व्यवस्था में शिष्टाचार, न्यायालय-सभ्यता, सुचिता (integrity) तथा प्रभावशाली आचरण (professional conduct) के व्यापक प्रश्न उठाता है।
घटना-वृत्तांत
- इस मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति Tejas Karia की पीठ ने एक महिला वकील को आदेश दिया कि वह आगे से वीडियो-कॉन्फरेंसिंग के माध्यम से सुनवाई में भाग नहीं ले सकेगी।
- विवरण के अनुसार, वह वकील प्रतिवादी क्रमांक 1 एवं 2 के पक्ष में प्रकट हुई थीं। शुरुआत में उन्होंने वीडियो कॉन्फरेंसिंग के ज़रिए हाजिरी दी, लेकिन जब अदालत ने एक प्रश्न उठाया—तब उन्होंने वीडियो बंद कर दिया और म्यूट कर लिया। बाद में उन्होंने यह बताया कि दूसरी (पैरेलल) सुनवाई चल रही थी इसीलिए उन्होंने ऐसा किया।
- न्यायपालिका ने स्पष्ट किया कि इस तरह वीडियो बंद-करने और म्यूट होने का आचरण, जिसमे यह दावा किया गया कि “दूसरी सुनवाई चल रही थी”, नया नियम – Electronic Evidence and Video‑Conferencing Rules, 2025 (दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 4 जुलाई 2025 को अधिसूचित) – के प्रतिकूल है।
- इस नियम के तहत, वीडियो-कॉन्फरेंसिंग पद्धति का उद्देश्य सुनवाई को पारदर्शी, सुचारु और न्याय-आचरण-सक्षम बनाना है। सहभागियों (वकील, पक्षकार, गवाह) को शांत, व्यवस्थित स्थान से जुड़ने, डिस्ट्रैक्शन न लेने, कैमरा ऑन रखने एवं अन्य गतिविधियों में असमर्थ न होने की आवश्यकता है।
- परिणामतः अदालत ने वकील को यह चेतावनी दी कि “आगे से इस न्यायालय की वीडियो-कॉन्फरेंसिंग सुनवाई में आपकी उपस्थिति स्वीकार नहीं होगी”।
- मूल विवाद सिविल वाणिज्यिक निवेदन का था: Mahindra HZPC Private Limited ने प्रतिवादी कंपनी Ram Farms व अन्य के विरुद्ध पौधा-विविधता (Plant Variety) “Colomba” एवं “SRF-C51” नामक आलू किस्म से संबंधित अपद्रव (infringement) का दावा किया था।
नियम-विचार : नियम-प्रावधान एवं अनुशासन
(i) नियम का परिचय
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा अधिसूचित Electronic Evidence and Video-Conferencing Rules, 2025 का उद्देश्य वीडियो-सुनवाई की प्रक्रिया को विधि-पारदर्शी, प्रभावी एवं व्यवस्थित बनाना है।
इन नियमों में शामिल हैं ऐसे निर्देश जैसे—उपयुक्त स्थान से जुड़ना, शांति बनाए रखना, वीडियो तथा ऑडियो यथासमय रखना, अन्य गतिविधियों से विचलित न होना आदि।
(ii) आचरण-अनुपालन का महत्व
इस घटना में मुख्य उल्लंघन था—सुनवाई के दौरान वीडियो बंद कर लेना तथा म्यूट रहना, यह मानते हुए कि दूसरी सुनवाई चल रही है। यह व्यवहार सुनवाई-प्रक्रिया के प्रति उपेक्षापूर्ण और न्यायालय-विभाजन (court’s time) के प्रति अनादर माना गया।
न्यायालय ने यह माना कि वीडियो-सुनवाई में ‘दृश्य उपस्थित’ रहना व ‘शब्द-सक्रियता’ रेखांकित-गुण हैं, जो कि वकील-पक्षकार से अपेक्षित हैं।
(iii) अनुशासनात्मक संदेश
अदालत का आदेश न सिर्फ उस वकील-व्यवहार पर प्रभावी रहा, बल्कि एक व्यापक संदेश भी है—कि ऑनलाइन सुनवाई व्यवस्था में देरी, अनावश्यक विचलन, निरुपयोगी बहस-गतिविधि या शिष्टाचार-उल्लंघन सहन नहीं किया जाएगा।
यह संकेत देता है कि न्यायालय अब वीडियो-सुनवाई को केवल सुविधा नहीं, बल्कि समान-मान्य (equivalent) न्यायालय-मंच मान रहा है, जिसमें आचरण-मानदंड उतने ही सख्त हैं जितने शारीरिक उपस्थिति-सुनवाई में।
विश्लेषण एवं चिन्तनीय बिंदु
(1) ऑनलाइन सुनवाई का लाभ एवं चुनौती
ऑनलाइन/हाइब्रिड सुनवाई ने वकील-पक्षकारों की पहुंच को आसान बनाया है—यातायात, समय-व्यय, विविध स्थानों से भागीदारी की सुविधा मिली है।
लेकिन साथ में यह चुनौतियाँ भी लाई: तकनीकी समस्या (इंटरनेट कनेक्शन, टूट-फूट), विचलन (अनुचित स्थान से उपस्थिति), शिष्टाचार-भंग (कैमरा बंद करना, मल्टी-टास्किंग) आदि।
इस घटना में स्पष्ट है कि वकील ने ‘पैरेलल हियरिंग’ का हवाला देकर वीडियो बंद कर लिया—which न्यायालय के समक्ष उचित ठहराव नहीं पाया।
(2) न्यायालय की जवाबदेही एवं प्रक्रिया-शुद्धता
नीति-दृष्टि से देखें तो न्यायालय ने इस तरह आदेश देकर यह सुनिश्चित किया कि ऑनलाइन सुनवाई-प्रक्रिया सिर्फ तकनीकी रूप से स्वीकार्य न रहे, बल्कि उसमें “शुद्ध संचालन” (procedural integrity) कायम रहे।
यह भी संकेत है कि यदि वकील/पक्षकार नियमों का पालन नहीं करें, तो जोखिम उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबंध या सुनवाई में प्रतिकूल परिणाम भुगतना पड़ सकते हैं।
(3) वकील-व्यवहार एवं पेशेवर आचरण
वकील-पेशे को सिर्फ तर्क-विनिमय का माध्यम नहीं माना जा सकता, बल्कि इसमें न्यायालय-सम्मान, समय-प्रबंधन, सुनवाई-उपस्थिति एवं आचरण-मानदंड भी शामिल हैं। ऑनलाइन माध्यम में ये अपेक्षाएँ और भी स्पष्ट हो जाती हैं।
यह उदाहरण बताता है कि केवल उपस्थित होना पर्याप्त नहीं—उपस्थिति के समय सक्रिय भागीदारी, शिष्टाचार-अनुकूल व्यवहार और सुनवाई-प्रक्रिया-मानकों का पालन आवश्यक है।
(4) व्यापक प्रभाव
- इस आदेश के बाद अन्य वकील-पक्षकारों के लिए एक चेतावनी प्रस्तुत हुई है कि ऑनलाइन सुनवाई में “कैमरा बंद रखना या म्यूट रहने का कारण-निरपेक्ष विकल्प” नहीं होगा।
- न्यायालय-प्रणाली-विश्वास को बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है—यदि सुनवाई मंच में ऐसी घटनाएँ होती हों, तो जनता का न्याय-प्रक्रिया-विश्वास प्रभावित हो सकता है।
- भविष्य में, ऑनलाइन सुनवाई संबंधी दिशानिर्देश और प्रशिक्षण की आवश्यकता बढ़ सकती है—वकील, पक्षकार, गवाह तथा रजिस्ट्रियों को यह समझना होगा कि तकनीक के साथ-साथ आचरण-मानदंड भी बदल गए हैं।
व्यावहारिक सुझाव व सोर्स-व्यवस्था
- वकील-पक्षकारों के लिए सुझाव
- सुनवाई से पहले सुनिश्चित करें कि इंटरनेट कनेक्शन, कैमरा-माइक्रोफोन उपकरण ठीक से काम कर रहे हों।
- सुनवाई के दौरान ऐसी जगह से जोड़ें जहाँ शांति हो-बिना बाहरी विचलन, बैकग्राउंड गतिविधि न्यूनतम हो।
- वीडियो ऑन रखें, व यदि म्यूट करना आवश्यक हो तो निष्पक्ष कारण हो एवं सुनवाई से पूर्व न्यायालय को जानकरी देना बेहतर रहेगा।
- “पैरेलल हियरिंग” या अन्य बहुकार्यक्षमता (multi-tasking) का हवाला देने से बचें—यदि ऐसा करना ही हो, तो मुख्य सुनवाई के दौरान पूरी सक्रियता बनाए रखें।
- वादविवाद या दलील-प्रस्तुति से पूर्व स्वयं को सुनवाई-मानदंडों (etiquettes) व तकनीकी निर्देशों से परिचित करें—विशेषकर जिन न्यायालयों ने ऑनलाइन सुनवाई हेतु नियम जारी किए हों।
- न्यायालय/प्रशासन हेतु सुझाव
- ऑनलाइन सुनवाई संबंधी नियमों-आदर्श व्यवहार (best practices) को बार-बार अपडेट और प्रसारित करें—जैसे कि Electronic Evidence and Video‑Conferencing Rules, 2025।
- बार और जिला-बार संगठनों के माध्यम से वकीलों को प्रशिक्षण-कार्यशालाएँ उपलब्ध करवाएं, ताकि तकनीकी व आचरण-दोनों रूपों में तैयारी हो सके।
- सुनवाई शुरू होने से पूर्व शोर्ट निर्देश (brief reminders) देना—जैसे “कृपया कैमरा ऑन रखें, बाहरी आवाज़ कम रखें, म्यूट/कैमरा बंद न करें जब तक न्यायालय अनुमति न दे।”
- तकनीकी त्रुटियों के लिए बफर समय (buffer time) रखें, किन्तु आचरण-अनुपालन को ढिलाई का कारण नहीं बनने दें।
निष्कर्ष
यह घटना न केवल एक वकील-व्यवहार तक सीमित है, बल्कि न्यायालय-प्रणाली के लिए संकेतचिह्न है कि ऑनलाइन सुनवाई अब पारंपरिक सुनवाई की तरह ही गंभीर, शिष्ट और प्रभावशाली रूप से संचालित होगी।
Delhi High Court द्वारा वकील को वीडियो-सुनवाई से प्रतिबंधित करने का आदेश इस दृष्टि से बहुत मायने रखता है—यह बताता है कि तकनीक ने न्याय की पहुँच बढ़ाई है, लेकिन आचरण-मानदंडों को कमजोर नहीं बनने दिया जाएगा।
वकील, पक्षकार तथा न्यायालय सभी के लिए अब यही संदेश है—“वीडियो-सुनवाई में सिर्फ जुड़ना पर्याप्त नहीं; सक्रिय, शिष्ट, जवाबदेह भागीदारी आवश्यक है।”