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“नाबालिग विवाह और कानूनी सहमति: नेहा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2025 – इलाहाबाद हाईकोर्ट का विश्लेषण”

नेहा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य | 2025 – नाबालिग पत्नी और विवाह में सहमति का न्यायिक विश्लेषण (इलाहाबाद उच्च न्यायालय)


I. प्रस्तावना

भारत में बाल विवाह, नाबालिगों के अधिकार, और उनके विवाह में सहमति का मुद्दा संवेदनशील एवं जटिल है। हालिया नेहा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) मामले में, उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि नाबालिग पत्नी को उसके बालिग पति के साथ रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती, भले ही विवाह उसकी सहमति से हुआ हो। यह निर्णय भारतीय कानून में नाबालिगों की सुरक्षा और उनकी आयु आधारित सहमति की सीमा को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है।

इस मामले की पृष्ठभूमि में Balak Nyaya Sanhita (BNS), 2023 और भारतीय दंड संहिता (IPC), 375 के प्रावधान महत्वपूर्ण थे। BNS की धारा 63(vi) के अनुसार, सहमति की वैध आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है। वहीं IPC की धारा 375 में पहले मौजूद Exception 2, जो कि 15 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ पति द्वारा किए गए यौन संबंध को बलात्कार से मुक्त करता था, अब लागू नहीं है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने Independent Thought vs Union of India (2017) में सीमित कर दिया था।

इस लेख में हम इस फैसले के कानूनी पहलुओं, सामाजिक प्रभावों, और न्यायिक विचारों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।


II. मामले का तथ्यात्मक पृष्ठभूमि (Case Facts)

  1. विवाह की स्थिति:
    इस मामले में एक नाबालिग लड़की (जन्मतिथि: 5 अक्टूबर 2008) ने अपनी मर्जी से एक बालिग युवक से विवाह किया। विवाह 2025 में संपन्न हुआ, जब लड़की की उम्र 17 वर्ष से कम थी।
  2. संतान का जन्म:
    विवाह के बाद इस नाबालिग लड़की ने एक बच्चे को जन्म दिया।
  3. पिता की शिकायत:
    लड़की के पिता ने इस विवाह को अपराध बताते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई। इसके अंतर्गत मामला BNS, 2023 की धारा 137(2) के तहत दर्ज किया गया।
  4. लड़की की स्थिति:
    लड़की ने अपने माता-पिता के साथ जाने से इनकार किया, यह कहते हुए कि उसे जान का खतरा है। इसके बाद बाल कल्याण समिति ने उसे राजकीय बाल गृह में सुरक्षित स्थान पर भेजा।
  5. पति की याचिका:
    बालिग पति ने याचिका दायर की कि उसकी पत्नी को उसके साथ रहने की अनुमति दी जाए।
  6. न्यायालय का निर्णय:
    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति की याचिका खारिज कर दी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि नाबालिग लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम होने के कारण, वह पति के साथ नहीं रह सकती, भले ही विवाह उसकी सहमति से हुआ हो।

III. कानूनी आधार (Legal Basis)

  1. BNS, 2023 – धारा 63(vi): सहमति की वैध आयु
    • BNS की धारा 63(vi) के अनुसार किसी भी विवाह में सहमति की वैध आयु 18 वर्ष है।
    • इसका अर्थ यह है कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की की सहमति कानूनी दृष्टि से मान्य नहीं है।
  2. IPC, 375 – बलात्कार और अपवाद (Exception 2)
    • पहले IPC की धारा 375 में Exception 2 था, जिसके अनुसार 15 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ पति द्वारा यौन संबंध बलात्कार नहीं माना जाता था।
    • Independent Thought vs Union of India (2017) के सुप्रीम कोर्ट निर्णय के बाद यह Exception सीमित कर दी गई। अब 18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध बलात्कार का अपराध माना जाएगा।
  3. BNS, 2023 – धारा 137(2)
    • यह प्रावधान अपहरण या वैध संरक्षकता के बिना किसी व्यक्ति को ले जाने के लिए दंड का प्रावधान करता है।
    • दोषी को सात साल तक का कारावास और जुर्माने की सज़ा हो सकती है।

IV. न्यायालय के तर्क (Judicial Reasoning)

  1. नाबालिग की सुरक्षा सर्वोपरि है:
    • न्यायालय ने कहा कि नाबालिग लड़की की सुरक्षा और स्वास्थ्य सर्वोच्च प्राथमिकता है।
    • बाल विवाह में सहमति के बावजूद, नाबालिग को विवाह में रहने की अनुमति देना उसके जीवन और स्वास्थ्य के लिए जोखिमपूर्ण है।
  2. सहमति की कानूनी आयु:
    • लड़की की आयु 18 वर्ष से कम थी।
    • इसलिए उसकी सहमति कानूनी दृष्टि से मान्य नहीं थी।
  3. Exception 2 अब लागू नहीं:
    • IPC की Exception 2 अब लागू नहीं है।
    • इसका अर्थ है कि बालिग पति के साथ रहने की स्थिति में भी लड़की को बलात्कार और यौन उत्पीड़न से संरक्षण दिया जाएगा।
  4. बाल कल्याण समिति की भूमिका:
    • न्यायालय ने बाल कल्याण समिति के निर्णय को सही माना कि लड़की को सुरक्षित रखने के लिए उसे राजकीय बाल गृह में रखा गया।
  5. पिता की शिकायत और अपराध का दर्ज होना:
    • पिता ने BNS की धारा 137(2) के अंतर्गत मामला दर्ज कराया।
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह प्रावधान नाबालिग की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

V. सामाजिक और कानूनी महत्व (Social & Legal Significance)

  1. बाल विवाह के खिलाफ संदेश:
    • यह निर्णय बाल विवाह के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश देता है।
    • नाबालिग की सहमति विवाह में उसकी सुरक्षा की प्राथमिकता को प्रभावित नहीं कर सकती।
  2. नाबालिगों की सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण:
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि नाबालिगों को किसी भी प्रकार के शारीरिक या मानसिक जोखिम से बचाना राज्य और परिवार की जिम्मेदारी है।
  3. कानूनी सुधार और संवैधानिक अधिकार:
    • IPC और BNS के संशोधन नाबालिगों के अधिकारों और सुरक्षा को मजबूत करते हैं।
    • यह निर्णय भारत में बाल संरक्षण कानूनों की व्यावहारिकता को दिखाता है।
  4. सामाजिक जागरूकता:
    • इस फैसले से समाज में बाल विवाह के दुष्परिणामों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।
    • माता-पिता और अभिभावक कानूनी दृष्टि से अपनी जिम्मेदारी को समझेंगे।

VI. निर्णय का सारांश (Judgment Summary)

  1. नाबालिग लड़की (17 वर्ष से कम) ने अपनी मर्जी से विवाह किया था।
  2. BNS की धारा 63(vi) के अनुसार, सहमति की वैध आयु 18 वर्ष है।
  3. IPC की धारा 375 में Exception 2 अब लागू नहीं है।
  4. न्यायालय ने पति की याचिका खारिज कर दी।
  5. बाल कल्याण समिति ने नाबालिग को सुरक्षित स्थान पर रखा।
  6. नाबालिग को उसके बालिग पति के साथ रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

VII. निष्कर्ष (Conclusion)

नेहा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) का यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था में बाल अधिकारों और सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:

  • नाबालिग की सहमति विवाह में कानूनी रूप से मान्य नहीं है।
  • विवाह की वैधता या सहमति के दावे के बावजूद, नाबालिग पत्नी को बालिग पति के साथ रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
  • IPC और BNS के प्रावधान नाबालिगों के संरक्षण को सुनिश्चित करते हैं।
  • यह निर्णय बाल विवाह, नाबालिगों की सुरक्षा और समाज में कानूनी जागरूकता के लिए एक मिसाल है।

न्यायालय ने बाल कल्याण समिति और कानून के माध्यम से नाबालिग लड़की के जीवन और स्वास्थ्य की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा। यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टि से बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।