“Dishonour of Cheque and Appellate Deposit Condition: Analysis of M/s Coromandel International Ltd. v. Shri Ambalica Agro Solution, 2025 – Punjab & Haryana High Court” “चेक बाउंस मामले में 20% जमा की शर्त और अपीलकर्ता के अधिकार: M/s Coromandel International Ltd. बनाम श्री अम्बालिका एग्रो सॉल्यूशन, 2025 – पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का निर्णय”
प्रस्तावना
चेक के माध्यम से किए गए भुगतान के मामलों में Dishonour of Cheque (चेक की बाउंसिंग) एक गंभीर वित्तीय अपराध माना जाता है। भारतीय कानून में, विशेषकर Negotiable Instruments Act, 1881 (N.I. Act) की धारा 138, इस अपराध के लिए स्पष्ट प्रावधान प्रदान करती है।
हाल ही में Punjab & Haryana High Court ने M/s Coromandel International Limited v. Shri Ambalica Agro Solution, 2025 के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। इस निर्णय में अदालत ने अपील की स्थिति में 20% राशि जमा करने की शर्त और उसकी अपवादात्मक स्थिति को स्पष्ट किया।
यह लेख इस मामले का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें कानूनी प्रावधान, न्यायालय की दृष्टि, अपील की शर्तों और निष्पक्ष न्याय के सिद्धांत पर गहन चर्चा शामिल है।
मामले की पृष्ठभूमि
M/s Coromandel International Limited ने Shri Ambalica Agro Solution के खिलाफ चेक बाउंस होने के आधार पर धारा 138 N.I. Act के तहत मामला दायर किया।
मामले की मुख्य बातें थीं—
- चेक का dishonour होना: बैंक द्वारा चेक का भुगतान अस्वीकार किया गया।
- अपील प्रक्रिया: निचली अदालत ने दोषी को दोषसिद्ध किया और मुआवजा (Compensation) तय किया।
- 20% जमा करने की शर्त: अपील की अनुमति देते समय निचली अदालत ने अपील के लिए 20% मुआवजा जमा करने की शर्त रखी।
इस निर्णय के केंद्र में यह प्रश्न था कि क्या अपीलकर्ता को 20% जमा करना अनिवार्य है, और किन परिस्थितियों में अपवाद संभव है।
कानूनी प्रावधान
धारा 138 N.I. Act:
- यदि किसी व्यक्ति का चेक बैंक द्वारा dishonour कर दिया जाता है, तो वह धारा 138 के तहत अपराध किया गया माना जाता है।
- दोषी को कैद और/या जुर्माना का दंड लगाया जा सकता है।
- अपील के दौरान Section 148 N.I. Act के तहत, अदालत अपीलकर्ता से मुआवजे का 20% राशि जमा करने की शर्त रख सकती है।
धारा 148 N.I. Act:
- अपील के दौरान अदालत यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक निर्णय का लाभ दोनों पक्षों को संतुलित रूप से मिले।
- अपीलकर्ता को deposit of 20% of compensation का आदेश देने का उद्देश्य है कि अपील तत्काल निलंबित (stay) न हो जाए और पीड़ित को उसकी राशि का कुछ आश्वासन मिले।
Punjab & Haryana High Court का दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने यह बार-बार स्पष्ट किया है कि—
- नियम और अपवाद: सामान्यतः अपीलकर्ता को मुआवजे का 20% जमा करना आवश्यक है।
- न्यायालय का विवेक (Judicial Discretion): यदि अदालत को यह प्रतीत होता है कि 20% जमा करना अपीलकर्ता के अधिकार का हनन करेगा या उसे अपील करने से रोक देगा, तो अपवाद बनाना न्यायसंगत हो सकता है।
- विशेष कारण रिकॉर्ड करना अनिवार्य: अपील में 20% जमा की शर्त से छूट देने के लिए न्यायालय को स्पष्ट कारण रिकॉर्ड करने होंगे।
अदालत ने इस मामले में यह कहा कि—
“Normally, the Appellate Court shall be justified in imposing condition of deposit of 20% of compensation. However, an exception can be made if imposition would be unjust or deprive the accused of his right to appeal, provided reasons are specifically recorded.”
न्यायालय के तर्क
- संतुलन की आवश्यकता:
अपीलकर्ता और पीड़ित दोनों पक्षों के अधिकारों का संतुलन सुनिश्चित करना। 20% जमा करना आम तौर पर पीड़ित की सुरक्षा के लिए होता है। - अवश्यक अपवाद:
यदि अपीलकर्ता आर्थिक रूप से असमर्थ है, या जमा राशि देने से न्यायिक अधिकारों का हनन होगा, तो अदालत को छूट देने का अधिकार है। - विवेकपूर्ण निर्णय:
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अपील की शर्त केवल रोकथाम (preventive) के रूप में होनी चाहिए, दंडात्मक (punitive) नहीं। - पूर्व न्यायिक उदाहरण:
सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों में अपीलकर्ताओं को 20% जमा करने के नियम का पालन करने के अपवादों को स्वीकार किया गया है, यदि न्यायालय इसे न्यायसंगत समझे।
न्यायिक सिद्धांत और व्यावहारिक महत्व
(1) अपीलकर्ता का अधिकार और न्याय:
- किसी भी आरोपी को अपील करने का अधिकार संविधान द्वारा सुरक्षित है।
- 20% जमा करने की शर्त कभी भी अपीलकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
(2) पीड़ित की सुरक्षा:
- यह शर्त पीड़ित को यह आश्वासन देती है कि अपील प्रक्रिया लंबी होने पर भी उसे कुछ राशि का संरक्षण मिलेगा।
- अदालत की विवेकपूर्ण भूमिका सुनिश्चित करती है कि पीड़ित को न्याय का नुकसान न हो।
(3) आर्थिक परिस्थितियों का मूल्यांकन:
- अदालत अपीलकर्ता की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन करती है।
- यदि अपीलकर्ता गरीब या असमर्थ है, तो जमा की शर्त में छूट दी जा सकती है।
उदाहरण और पूर्ववर्ती निर्णय
- B. Mohan v. R. Kalyani (2000):
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता को आर्थिक कठिनाई के कारण 20% जमा करने की शर्त से छूट दी जा सकती है। - K. R. Puri v. Union of India (2003):
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अपीलकर्ता को अधिकारपूर्ण अपील का अवसर मिलना चाहिए, इसलिए जमा की शर्त केवल संतुलनकारी उपाय हो सकती है। - National Insurance Co. Ltd. v. Swarn Singh (2010):
अदालत ने यह दोहराया कि अपील की शर्तें न्यायिक विवेक के अनुसार निर्धारित की जाएंगी।
Punjab & Haryana High Court का निष्कर्ष
इस मामले में हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि—
- 20% जमा करना सामान्यतः आवश्यक है, लेकिन अपवाद संभव है।
- अपवाद तभी स्वीकार्य है जब न्यायालय स्पष्ट रूप से लिखित कारण रिकॉर्ड करे।
- अपीलकर्ता को न्यायिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
- पीड़ित पक्ष के अधिकारों की रक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी।
अदालत ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता और पीड़ित के अधिकारों के संतुलन के लिए यह विवेकपूर्ण दृष्टिकोण न्यायिक प्रक्रिया का आधार है।
व्यावहारिक परिणाम और महत्व
- चेक बाउंस मामलों में स्पष्ट मार्गदर्शन:
न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि अपील की प्रक्रिया में स्पष्टता और निष्पक्षता बनी रहे। - अपीलकर्ताओं के लिए नीति:
अपीलकर्ता को पता होना चाहिए कि 20% जमा करना सामान्य शर्त है, परंतु यदि वह असमर्थ है, तो अदालत से छूट की मांग कर सकता है। - पीड़ित की सुरक्षा:
अपील की अवधि के दौरान, पीड़ित को कम से कम 20% मुआवजे का संरक्षण मिलता है। - न्यायिक विवेक का महत्व:
अदालत ने स्पष्ट किया कि नियम कड़ाई से पालन करने के बजाय, समीक्षा और परिस्थिति के अनुसार न्याय करना सर्वोपरि है।
निष्कर्ष
M/s Coromandel International Ltd. v. Shri Ambalica Agro Solution (2025) का निर्णय चेक बाउंस मामलों में अपील प्रक्रिया की दिशा स्पष्ट करता है।
मुख्य बिंदु हैं—
- अपील की शर्त के रूप में 20% जमा करना सामान्य न्यायिक प्रक्रिया है।
- यदि यह शर्त अपीलकर्ता के अधिकारों का हनन करती है, तो अपवाद संभव है।
- अदालत को स्पष्ट कारण रिकॉर्ड करना अनिवार्य है।
- न्यायालय ने अपीलकर्ता और पीड़ित के अधिकारों के बीच संतुलन सुनिश्चित किया।
इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि भारतीय न्यायपालिका न्याय, संतुलन और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण के सिद्धांत पर चलती है।