सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला — धारा 498A के मामलों में अब दो महीने तक नहीं होगी गिरफ्तारी, हाई कोर्ट के दिशा-निर्देश रहेंगे लागू
🔷 प्रस्तावना: वैवाहिक विवादों में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
भारत में वैवाहिक विवादों से जुड़े मामलों में “दहेज उत्पीड़न” या “क्रूरता” के नाम पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत मुकदमे दर्ज कराए जाने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है। हालांकि यह धारा महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी, किंतु समय के साथ इसका दुरुपयोग (misuse) भी व्यापक रूप से सामने आया है। इसी पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि — धारा 498A के अंतर्गत दर्ज मामलों में दो महीने तक कोई गिरफ्तारी नहीं की जाएगी, बल्कि पहले परिवार कल्याण समिति (Family Welfare Committee) द्वारा मामले की जांच की जाएगी।
यह आदेश न केवल झूठे मामलों के खिलाफ एक सुरक्षात्मक कदम है, बल्कि इससे वास्तविक पीड़ितों को भी न्याय मिलने की संभावना अधिक मजबूत हुई है।
🔷 पृष्ठभूमि: इलाहाबाद हाई कोर्ट का 2022 का ऐतिहासिक निर्णय
13 जून 2022 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धारा 498A के बढ़ते दुरुपयोग पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा था कि – “अक्सर देखा गया है कि पत्नी अपने पति के साथ-साथ पूरे ससुराल परिवार को आरोपों में फंसा देती है, चाहे उनका प्रत्यक्ष संबंध घटना से न हो।”
इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए हाई कोर्ट ने कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश (Guidelines) जारी किए थे, जिनमें मुख्य रूप से कहा गया था कि —
- प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति (Family Welfare Committee) गठित की जाएगी।
- 498A की किसी भी शिकायत पर तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
- पहले मामला परिवार कल्याण समिति के समक्ष भेजा जाएगा, जो दो महीने के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
- समिति की रिपोर्ट के बाद ही पुलिस आगे की कार्रवाई करेगी।
- समिति में सामाजिक कार्यकर्ता, अधिवक्ता, या वरिष्ठ नागरिक जैसे निष्पक्ष सदस्य शामिल होंगे।
🔷 सुप्रीम कोर्ट की मुहर: हाई कोर्ट के दिशानिर्देश रहेंगे लागू
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की दो-न्यायाधीशीय पीठ ने 22 जुलाई 2025 को सुनाए गए अपने फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के इन दिशा-निर्देशों को वैधानिक समर्थन (Judicial Approval) प्रदान किया।
पीठ ने स्पष्ट कहा —
“हम यह निर्देश देते हैं कि इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देश पूरे देश में लागू रहेंगे। पुलिस और प्रशासन यह सुनिश्चित करें कि परिवार कल्याण समिति की जांच रिपोर्ट आने से पहले किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी न की जाए।”
🔷 केस की पृष्ठभूमि: झूठे मामलों से तबाह हुआ परिवार
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक विशेष वैवाहिक विवाद के मामले में सुनाया गया, जिसमें पत्नी और उसके परिवार ने पति और उसके पिता पर धारा 498A (क्रूरता), धारा 307 (हत्या का प्रयास) और यहां तक कि धारा 376 (बलात्कार) जैसे गंभीर आरोप लगाए थे।
इन झूठे आरोपों के कारण —
- पति को 109 दिनों की जेल काटनी पड़ी।
- पिता को 103 दिनों तक जेल में रहना पड़ा।
अंततः जांच और सबूतों से यह स्पष्ट हो गया कि आरोप मनगढ़ंत और झूठे थे।
पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा —
“झूठे आरोपों के कारण जो मानसिक और सामाजिक यातना इन लोगों ने सही है, उसकी भरपाई किसी भी रूप में संभव नहीं है।”
🔷 अनुच्छेद 142 का प्रयोग: न्याय के पूर्णनिष्पादन की शक्ति
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग किया। अदालत ने न केवल आपराधिक मामले रद्द (quash) किए, बल्कि पति-पत्नी के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद को देखते हुए विवाह को भी भंग (dissolve) करने का आदेश दिया।
इस निर्णय के साथ न्यायालय ने यह संदेश दिया कि —
“न्याय केवल सजा देने का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन में संतुलन और शांति लाने का उपकरण भी है।”
🔷 ऐतिहासिक संदर्भ: सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों की झलक
धारा 498A के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार चिंतित रह चुका है।
- राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2017) — सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गिरफ्तारी से पहले मामला परिवार कल्याण समिति के पास भेजा जाए।
- सोशल एक्शन फोरम फॉर मैनकाइंड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018) — इस फैसले में कोर्ट ने 2017 के दिशानिर्देशों को वापस ले लिया था, यह कहते हुए कि इससे महिला सुरक्षा पर विपरीत असर पड़ेगा।
- वर्तमान निर्णय (2025) — अब वही व्यवस्था नए सिरे से प्रभावी रूप में बहाल कर दी गई है, जिससे दोनों पक्षों के अधिकारों में संतुलन स्थापित हुआ है।
🔷 दहेज कानून का उद्देश्य और उसका दुरुपयोग
धारा 498A की मूल भावना महिलाओं को दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से बचाना थी। लेकिन आंकड़ों के अनुसार, देश में बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें झूठे आरोप लगाकर पूरे परिवार को प्रताड़ित किया गया।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार —
- हर वर्ष लगभग 1 लाख से अधिक 498A के मामले दर्ज किए जाते हैं।
- इनमें से लगभग 70% मामले अंततः फर्जी या असिद्ध पाए जाते हैं।
- लाखों पुरुष और उनके परिवार मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न के शिकार होते हैं।
इसलिए, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल पुरुषों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि न्यायिक प्रणाली में संतुलन (Balance of Justice) भी लाता है।
🔷 परिवार कल्याण समिति की भूमिका और संरचना
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि परिवार कल्याण समिति कोई “अदालत” नहीं होगी, बल्कि एक मध्यस्थ (Mediator) या सलाहकार संस्था के रूप में कार्य करेगी।
मुख्य कार्य:
- पति-पत्नी दोनों पक्षों की बात सुनना।
- झूठे आरोपों की संभावना पर प्राथमिक राय देना।
- मामले को सुलझाने के लिए सामंजस्य का प्रयास करना।
- दो महीने के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
इससे न केवल न्यायिक भार कम होगा, बल्कि सुलह-सफाई और पुनर्मिलन की संभावना भी बढ़ेगी।
🔷 समाज पर प्रभाव: संतुलन, सुलह और न्याय की दिशा में कदम
इस निर्णय का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ना तय है।
- महिलाओं की सुरक्षा बनी रहेगी, क्योंकि वास्तविक पीड़ितों को अब भी न्याय मिलेगा।
- पुरुषों और उनके परिवारों को राहत मिलेगी, क्योंकि बिना जांच गिरफ्तारी नहीं होगी।
- न्यायालयों पर बोझ घटेगा, क्योंकि बहुत से झूठे या अतिशयोक्तिपूर्ण मामले प्रारंभिक स्तर पर ही समाप्त हो जाएंगे।
- मध्यस्थता (Mediation) की भूमिका मजबूत होगी, जिससे वैवाहिक संस्थान को संरक्षित रखने का मार्ग खुला रहेगा।
🔷 विशेषज्ञों की राय
सीनियर एडवोकेट अरविंद शंकर कहते हैं —
“यह फैसला न्यायिक विवेक और मानवीय संवेदनशीलता का उत्कृष्ट उदाहरण है। कोर्ट ने दोनों पक्षों के अधिकारों का संतुलन कायम किया है।”
महिला अधिकार कार्यकर्ता रश्मि देसाई का मत है —
“यह फैसला महिलाओं के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि कानून का उपयोग सुरक्षा के लिए हो, न कि बदले की भावना से।”
🔷 निष्कर्ष: न्याय और संवेदना का संतुलन
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में एक मील का पत्थर (Landmark Judgment) के रूप में दर्ज होगा। यह न केवल कानून के दुरुपयोग पर नियंत्रण का माध्यम बनेगा, बल्कि न्याय को उसके वास्तविक अर्थ — “सत्य, निष्पक्षता और करुणा” — के करीब ले जाएगा।
अब जब दो महीने तक गिरफ्तारी पर रोक रहेगी, तो हर पक्ष को अपनी बात रखने का अवसर मिलेगा, और कानून का उद्देश्य — संरक्षण, न कि प्रतिशोध — साकार होगा।
⚖️ सारांश:
| विषय | विवरण |
|---|---|
| निर्णय देने वाली पीठ | मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई व न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह |
| निर्णय तिथि | 22 जुलाई 2025 |
| प्रमुख बिंदु | 498A मामलों में 2 माह तक गिरफ्तारी नहीं |
| स्रोत | इलाहाबाद हाई कोर्ट का 2022 निर्णय |
| उद्देश्य | कानून के दुरुपयोग को रोकना, पारिवारिक विवादों में सुलह को बढ़ावा देना |
| संवैधानिक आधार | अनुच्छेद 142 (पूर्ण न्याय हेतु शक्ति) |
🔔 निष्कर्षतः, सुप्रीम कोर्ट का यह कदम “कानूनी न्याय” के साथ-साथ “सामाजिक न्याय” की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है — जो यह संदेश देता है कि “कानून का उद्देश्य केवल अपराधी को सजा देना नहीं, बल्कि निर्दोष को बचाना भी है।”