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“वेश्या संग रंगरेलियां मनाना मानव तस्करी व देह व्यापार नहीं” — इलाहाबाद हाईकोर्ट

🏛️ “वेश्या संग रंगरेलियां मनाना मानव तस्करी व देह व्यापार नहीं” — इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला और न्यायिक दृष्टिकोण का नया आयाम


प्रस्तावना

भारत के सामाजिक और कानूनी ढांचे में देह व्यापार (Prostitution) और मानव तस्करी (Human Trafficking) दो ऐसे अपराध हैं जिन्हें लेकर लंबे समय से बहस जारी है। जहां मानव तस्करी को गंभीर संगठित अपराध माना जाता है, वहीं देह व्यापार के संदर्भ में यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या वयस्कों के बीच सहमति से हुआ यौन संबंध भी अपराध की श्रेणी में आता है?

इस प्रश्न पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें कहा गया कि —

“वेश्या संग रंगरेलियां मनाना (सहमति से यौन संबंध बनाना) न तो मानव तस्करी है और न ही देह व्यापार की श्रेणी में आता है।”

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने दी, जिसने एक व्यक्ति के खिलाफ मानव तस्करी एवं अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम (Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956 – ITPA) के तहत चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द (quash) कर दिया।

यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से, बल्कि नैतिक, सामाजिक और मानवाधिकार दृष्टि से भी एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।


मामले की पृष्ठभूमि

  • मामला: विपुल कोहली बनाम राज्य बनाम उत्तर प्रदेश
  • न्यायालय: इलाहाबाद हाईकोर्ट, प्रयागराज
  • न्यायाधीश: न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर
  • निर्णय की तिथि: 20 मई 2024
  • स्थान: गाजियाबाद – एलोरा थाई स्पा सेंटर, सेक्टर-49, गौतम बुद्ध नगर

घटना का विवरण

20 मई 2024 को गाजियाबाद पुलिस ने एलोरा थाई स्पा सेंटर में छापेमारी की। वहां से पुलिस ने कुछ पुरुषों और महिलाओं को “आपत्तिजनक अवस्था” में पकड़ा।
इन्हीं में से एक थे — विपुल कोहली, जो ग्राहक के रूप में वहां मौजूद थे।

पुलिस ने उन पर आरोप लगाया कि वह “देह व्यापार” में लिप्त हैं और उन्हें मानव तस्करी (Section 370 IPC) और अनैतिक देह व्यापार (ITPA) की धाराओं में अभियुक्त बनाया गया।

पुलिस की विवेचना के बाद चार्जशीट (Charge-sheet) दाखिल की गई, और एसीजेएम (ACJM) की अदालत ने संज्ञान लेते हुए विपुल कोहली को तलब करने के लिए समन आदेश जारी किया।

इस आदेश के खिलाफ विपुल कोहली ने हाईकोर्ट में याचिका (Criminal Misc. Application u/s 482 Cr.P.C.) दाखिल की।


याची (आरोपी) की दलीलें

विपुल कोहली के अधिवक्ता ने अदालत में निम्नलिखित दलीलें दीं —

  1. ग्राहक होना अपराध नहीं:
    याची न तो स्पा सेंटर का मालिक है और न ही उसका कर्मचारी। वह केवल एक ग्राहक था, जिसने सेवाओं के बदले भुगतान किया।
  2. कोई मानव तस्करी नहीं हुई:
    याची ने किसी महिला को व्यापार में शामिल नहीं किया, न ही उसे शोषण के लिए मजबूर किया। अतः भारतीय दंड संहिता की धारा 370 (मानव तस्करी) लागू नहीं होती।
  3. कोई वेश्यावृत्ति का संचालन नहीं:
    ITPA की धारा 3, 4, 5 उन लोगों पर लागू होती है जो देह व्यापार चलाते, लाभ कमाते या प्रोत्साहित करते हैं।
    याची ने ऐसा कुछ नहीं किया — वह केवल ग्राहक था।
  4. सहमति से यौन क्रिया अपराध नहीं:
    वयस्क महिला की सहमति से यौन संबंध बनाना, जबरदस्ती या हिंसा न हो, तो न तो भारतीय दंड संहिता और न ही ITPA की धाराओं में अपराध है।

राज्य (सरकार) की ओर से तर्क

सरकारी अधिवक्ता (A.G.A.) ने कहा कि —

  • स्पा सेंटर में देह व्यापार चलता था;
  • पुलिस ने महिला और पुरुष को “आपत्तिजनक स्थिति” में पकड़ा;
  • इससे यह स्पष्ट है कि वहां देह व्यापार चलाया जा रहा था, इसलिए ट्रायल जरूरी है।

न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय

न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट किए —


1️⃣ ग्राहक अपराधी नहीं है

कोर्ट ने कहा कि —

“किसी वयस्क व्यक्ति द्वारा अपनी इच्छा से किसी वेश्या के साथ यौन संबंध बनाना — यदि वह सहमति से हो — तो यह न तो मानव तस्करी है, न ही देह व्यापार के संचालन में उसकी कोई भूमिका बनती है।”

अर्थात् — केवल “ग्राहक होने” से व्यक्ति अपराधी नहीं बन जाता।


2️⃣ देह व्यापार (Prostitution) और मानव तस्करी (Trafficking) में अंतर

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि —

  • मानव तस्करी (Section 370 IPC) का अर्थ है किसी व्यक्ति को जबरदस्ती, धोखे, भय या दबाव से यौन शोषण या जबरन श्रम में लगाना।
  • जबकि देह व्यापार (Prostitution)स्वेच्छा से यौन सेवा देना — जब तक जबरदस्ती या शोषण नहीं होता, तब तक इसे अपराध नहीं कहा जा सकता।

3️⃣ कानून की मंशा: शोषण पर रोक, सहमति पर नहीं

कोर्ट ने कहा —

“अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम, 1956 (ITPA) का उद्देश्य यह नहीं है कि किसी सहमति-आधारित यौन क्रिया को दंडित किया जाए, बल्कि इसका उद्देश्य उन स्थितियों को रोकना है जहाँ किसी महिला को जबरदस्ती इस धंधे में धकेला जाता है।”

इसलिए, यदि महिला स्वतंत्र है, वयस्क है, और उसने अपनी मर्जी से सेवा दी है, तो यह “अनैतिक देह व्यापार” नहीं कहा जा सकता।


4️⃣ केवल ‘आपत्तिजनक अवस्था’ में पकड़ा जाना अपराध नहीं

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि —

“किसी व्यक्ति का किसी महिला के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पाया जाना अपने-आप में अपराध का प्रमाण नहीं है। जब तक यह साबित न हो कि वह किसी अवैध देह व्यापार का संचालन या प्रोत्साहन कर रहा था, उसे अपराधी नहीं ठहराया जा सकता।”


5️⃣ पुलिस विवेचना की सीमाएँ

अदालत ने यह पाया कि पुलिस ने केवल “आपत्तिजनक अवस्था” को आधार बनाकर ही मामला दर्ज कर लिया, जबकि किसी भी प्रकार का प्रमाण नहीं था कि —

  • याची किसी रैकेट का हिस्सा था,
  • या महिलाओं को देह व्यापार में धकेलने का काम करता था।

6️⃣ परिणाम: कार्यवाही रद्द

अंततः न्यायालय ने कहा —

“ट्रायल कोर्ट द्वारा प्रारंभ की गई कार्यवाही अनुचित है। ऐसे में, अभियुक्त विपुल कोहली के विरुद्ध जारी आपराधिक प्रक्रिया को निरस्त किया जाता है।”

इस प्रकार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही रद्द (quash) कर दी और विपुल कोहली को राहत प्रदान की।


कानूनी दृष्टिकोण से विश्लेषण

(A) धारा 370 IPC — मानव तस्करी

  • यह धारा तब लागू होती है जब किसी व्यक्ति को “जबरदस्ती या छल से शोषण के लिए प्रेरित या भेजा गया हो”।
  • याची के मामले में ऐसी कोई बात नहीं थी।
  • अतः, “ट्रैफिकिंग” का अपराध नहीं बनता।

(B) अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम (ITPA)

  • इस अधिनियम की धारा 3 से 7 तक उन व्यक्तियों पर दंड का प्रावधान है जो —
    1. देह व्यापार चलाते हैं,
    2. उससे लाभ उठाते हैं,
    3. या किसी को इस व्यवसाय में भेजते हैं।
  • ग्राहक के लिए कोई दंड प्रावधान नहीं है, जब तक वह किसी प्रकार की मजबूरी या हिंसा में शामिल न हो।

नैतिक और सामाजिक पहलू

यह फैसला केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक दृष्टि से भी कई सवाल खड़े करता है —

  1. देह व्यापार का अपराधीकरण बनाम वैधता
    भारत में देह व्यापार पूर्णतः अवैध नहीं है, परंतु उसके “संचालन” और “शोषण” के रूप अपराध माने जाते हैं।
  2. महिलाओं के अधिकार
    वयस्क महिला को अपने शरीर पर निर्णय लेने का अधिकार है। यदि वह अपनी इच्छा से यौन कार्य करती है, तो उसे अपराध मानना संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के विपरीत होगा।
  3. पुलिस की भूमिका
    कई बार पुलिस “छापेमारी” में केवल ग्राहक या महिला को पकड़ती है, जबकि असली दलाल या संचालक छूट जाते हैं। इस फैसले ने यह भी संकेत दिया कि पुलिस को विवेचना में अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए।
  4. समाज में नैतिक दृष्टिकोण
    सामाजिक रूप से भारत में सेक्स वर्क को अब भी “कलंक” की दृष्टि से देखा जाता है। परंतु, यह निर्णय बताता है कि कानून और नैतिकता दो अलग-अलग क्षेत्र हैं — कानून का काम “अपराध” तय करना है, “पाप” नहीं।

महत्वपूर्ण नजीरें (Precedents)

  1. Budhadev Karmaskar v. State of West Bengal (2011)
    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्कर भी “मानव हैं” और उन्हें सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है।
  2. Gaurav Jain v. Union of India (1997)
    कोर्ट ने कहा कि देह व्यापार में लगी महिलाओं के पुनर्वास पर ध्यान देना चाहिए, न कि उनके दमन पर।
  3. Lata Singh v. State of U.P. (2006)
    कोर्ट ने यह माना कि वयस्क व्यक्ति अपनी मर्जी से जीवन जीने और संबंध बनाने के लिए स्वतंत्र है।

इन नज़ीरों की पृष्ठभूमि में इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय पूरी तरह से संवैधानिक और न्यायसंगत माना जा सकता है।


निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला भारतीय समाज में देह व्यापार और मानव तस्करी को लेकर प्रचलित भ्रम को दूर करता है।

मुख्य संदेश स्पष्ट है —

“सहमति से यौन संबंध अपराध नहीं है; अपराध तब है जब किसी को जबरदस्ती, धोखे या भय से उस काम में धकेला जाए।”

यह निर्णय न केवल एक व्यक्ति को राहत देने वाला है, बल्कि पुलिस, अभियोजन और समाज को यह याद दिलाता है कि —

  • कानून का उद्देश्य नैतिकता थोपना नहीं,
  • बल्कि मानवाधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना है।

अंततः, न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की यह टिप्पणी —

“वेश्या संग रंगरेलियां मनाना मानव तस्करी व देह व्यापार नहीं है।”
भारतीय दंड व्यवस्था में एक नई व्याख्या प्रस्तुत करती है, जो आने वाले समय में समान मामलों में न्यायिक मार्गदर्शन का आधार बनेगी।