“JSW Steel और ओबलापुरम माइनिंग कंपनी सौदों में मनी लॉन्ड्रिंग आरोप: सुप्रीम कोर्ट ने PMLA कार्यवाही को खारिज किया — क्या यह सही दिशा है?”
परिचय
वित्तीय अपराधों के मामलों में Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA) एक शक्तिशाली उपकरण है। यह कानून कई वर्षों से यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि “अपराध की कमाई (proceeds of crime)” को सफेद बनाया न जाए।
इस पृष्ठभूमि में, JSW Steel Limited और उसके अधिकारियों पर यह आरोप था कि उन्होंने ओबलापुरम माइनिंग कंपनी (OMC) के साथ अपने लेन-देनों में PMLA के प्रावधानों का उल्लंघन किया।
हालिया सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने इस मामले की प्रक्रिया, कितनी दूर न्यायालयीय हस्तक्षेप हो सकता है, और PMLA की सीमाओं पर गंभीर सवाल उठा दिए हैं।
(नोट: समाचार स्रोत बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में quash करने से इनकार किया है। )
पृष्ठभूमि और मुख्य तथ्य
ओबलापुरम माइनिंग कंपनी (OMC) और लेन-देने की कहानी
OMC एक खनन कंपनी है, जिसके मालिक G. Janardhana Reddy हैं, जो एक विवादित खनन मामले में चर्चा में रहे हैं। यह आरोप है कि OMC ने गैरकानूनी तरीके से लौह अयस्क (iron ore) की खुदाई और निर्यात किया था।
JSW Steel ने नवंबर 2009 में OMC के साथ एक अनुबंध किया था कि वह 1.5 मिलियन टन लौह अयस्क अपनी विजयनगर प्लांट को सप्लाई करेगा। इस लेन-देने के लिए JSW ने अग्रिम राशि ₹130 करोड़ बैंक हस्तांतरण द्वारा दी थी।
OMC ने कुछ मात्रा की आपूर्ति की, परंतु बाद में पूरी मात्रा नहीं दी। JSW ने अनुबंध उल्लंघन और अग्रिम राशि की वसूली के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू की और एक मध्यस्थता पुरस्कार (arbitral award) प्राप्त किया।
CBI की जांच और आरोपी सूची से हटाना
2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर CBI ने ओलिपुरम और संबंधित खनन मामलों की जांच शुरू की। प्रारंभ में JSW को इस कथित अपराध में नामित किया गया था। परंतु बाद में, 6 सितंबर 2013 को CBI ने supplementary chargesheet जारी कर JSW को आरोपी सूची से हटा दिया, यह कहकर कि उसके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं।
ED की PMLA कार्रवाई
इस बीच, Enforcement Directorate (ED) ने ECIR (Enforcement Case Information Report) संख्या ECIR/09/BZ/2012 दर्ज की और JSW को मनी लॉन्ड्रिंग जांच में शामिल किया। ED का आरोप था कि JSW द्वारा OMC (या OMC की सहायक कंपनी AMC) को अभी भी ₹33.80 करोड़ की देनदारी बची हुई थी, जिसे वह “proceeds of crime” के रूप में नियंत्रित नहीं किया गया।
ED ने मार्च 2015 और 2016 में Provisional Attachment Orders (PAO) जारी कर JSW बैंक खातों में ₹33.80 करोड़ को जब्त किया। बाद में ED ने आरोप लगाया कि JSW ने कुछ राशि को खाते से निकाल लिया, जिससे जब्ती को कमजोर करने का प्रयास किया गया।
Special Court ने इस प्रकरण को चिंताग्रस्त मानते हुए Cognizance लिया और JSW को आरोप स्वरूप Summons जारी किये। JSW ने उच्च न्यायालय और अन्य प्रतिष्ठित न्यायालयों में इन कार्रवाइयों को चुनौती दी। परन्तु, सुप्रीम कोर्ट के सामने अब यह मामला आया कि क्या PMLA कार्यवाही को पूरी तरह से खारिज किया जाए (quash)।
JSW का दलील पक्ष (Petitioner’s Arguments)
JSW और संबंधित अधिकारियों ने निम्न मुख्य दलीलें प्रस्तुत कीं:
- CBI ने JSW को आरोपी सूची से हटा दिया — इसलिए PMLA कार्यवाही उसकी ओर से निष्प्रभावी है।
- JSW यह कहता है कि CBI की chargesheet से उसका नाम हटा लिया गया था, यानी उसकी भूमिका अपराध प्रक्रिया (predicate offence) में समाप्त हो गई।
- PMLA कार्यवाही अवैध है क्योंकि “proceeds of crime” की परिभाषा लागू नहीं होती जब मूल अपराध संपन्न हो चुका हो।
- JSW ने यह तर्क दिया कि PMLA को लागू करने के लिए मूल आपराधिक कृत्य (scheduled offence) होना आवश्यक है, और यदि वह समाप्त हो चुका है या उस पर आरोप हटा दिए गए हैं, तो आगे की कार्रवाई नहीं हो सकती।
- Withdrawal of attached funds
- JSW ने यह दावा किया कि जिन राशि को उसने निकाला (withdrawn) जो कि ED ने पहले Attachment की थी, वह हटाई गई राशि कोर्ट आदेश या stay के अधीन थी और उसका दायित्व नहीं था कि वह वह राशि ED की नजरबंदी में रखे।
- JSW ने कहा कि वह “cash-credit accounts” हैं, जिनमें ओवरड्राफ्ट सुविधा है और उन्हें PMLA अधिनियम के अंतर्गत “attachable property” नहीं माना जाना चाहिए।
- Statutory remedies का उपयोग नहीं किया
- JSW ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट को PMLA की विशेष अपीलीय तंत्र (Statutory remedy) का मार्ग देना चाहिए और Article 136 के आदेश से पहले ED की प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए।
- अदालत के हस्तक्षेप की सीमा
- JSW ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अत्यधिक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि PMLA एक self-contained statute (स्वयं संपूर्ण तंत्र) है, जिसमें विशेष प्रक्रिया और अपीलीय व्यवस्था मौजूद है।
ED / प्रतिवादी पक्ष का तर्क (Respondent’s Arguments)
ED ने विरोधी पक्ष अपने दलीलों में यह प्रस्तुत किया:
- PMLA एक continuing offence है
- ED का तर्क है कि मनी लॉन्ड्रिंग अपराध निरंतर (continuing) है और वह तब भी लागू हो सकता है जब मूल आपराधिक कृत्य बाद में बंद या समाप्त हो गया हो।
- ₹33.80 करोड़ की देनदारी “proceeds of crime” है
- ED ने कहा कि राशि JSW द्वारा AMC/OMC को अवशेष भुगतान थी, और वह राशि उस अवैध गतिविधि (खानन) से निकाली गई है, अतः वह “proceeds of crime” बन जाती है।
- Withdrawal ने वित्तीय हानि पहुँचाई
- ED ने कहा कि जब्त खाते से राशि निकालना एक प्रकार से संपत्ति को उपयोग करना या छिपाना माना जा सकता है। इससे JSW ने जब्ती की मात्रा को घटाया, जिससे ED की कार्रवाई को कमजोर किया।
- Attachment वैध है
- ED का तर्क पुराना है कि बैंक खाते, नकदी खाते आदि “property” की श्रेणी में आते हैं, और PMLA अधिनियम उन्हें जब्त करने का अधिकार देता है।
- अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए
- ED ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को PMLA की प्रक्रिया में अधूरा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, और पहले Appellate Tribunal को इस मामले को सुनने देना चाहिए। अदालत ने भी इस तर्क को स्वीकार किया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
Statutory Scheme और judicial restraint
सुप्रीम कोर्ट की बेंच — न्यायमूर्ति Dipankar Datta और न्यायमूर्ति Augustine George Masih — ने निर्णय में यह दोहराया कि PMLA एक self-contained statute है जिसमें अपनी विशेष प्रक्रिया, जब्ती, अपील और समीक्षा व्यवस्था है। अतः न्यायालय को extraordinary jurisdiction (Article 136) का प्रयोग तभी करना चाहिए जब statutory remedy पूरी तरह से अक्षम हो।
कोर्ट ने इस टिप्पणी को महत्व दिया कि यदि सुप्रीम कोर्ट इस स्तर पर हस्तक्षेप करेगा, तो यह Appellate Tribunal के क्षेत्राधिकार को बाधित करेगा।
Cognizance and Quashing
सुप्रीम कोर्ट ने यह निष्कर्ष दिया कि JSW की याचिका quash किए जाने की स्थिति में नहीं है। यつまり, Court ने लोक अभियोजन (ED की PMLA कार्रवाई) को खारिज करने से इंकार किया।
कोर्ट ने कहा कि अभी केवल ₹33.80 करोड़ की राशि को लेकर विवाद है — यानी यह एक सीमित विवाद है। इस विवाद को सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा करने की बजाय, Appellate Tribunal को विचार करने दिया जाना चाहिए।
“Proceeds of Crime” का सवाल
कोर्ट ने कहा कि यह तय करना कि ₹33.80 करोड़ “proceeds of crime” है या नहीं, एक तथ्य-आधारित प्रक्रिया है। इसे सुप्रीम कोर्ट नहीं बल्कि Tribunal को देखना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सटीक रूप से यह साबित करना कि JSW ने अवैध लाभ कमाया, उसके खातों में गलत तरीके से राशि निकाली, यह सभी प्रश्न Tribunal के समक्ष हैं। सुप्रीम कोर्ट उन मामलों पर निर्णय नहीं कर सकती है जहाँ तथ्य-विवाद मौजूद हैं।
Parallel Proceedings / Overlapping Jurisdiction
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि JSW पहले से ही Section 26 के अंतर्गत Appellate Tribunal में अपील कर चुका है। इस कारण, न्यायालय ने कहा कि parallel adjudication (दस्तावेजी जांच + सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा) संतोषजनक नहीं होगी। अतः Court ने कहा:
“Interference at this stage would prejudge issues that are squarely within the domain of the Appellate Tribunal.”
इस विचारधारा के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय किया कि JSW की याचिका खारिज की जाए और PMLA कार्यवाही जारी रहे।
गुरुतर बिंदु एवं विश्लेषण
- Self-Contained Statute Doctrine
इस निर्णय ने विधि की उस सिद्धांत को पुष्ट किया कि यदि एक कानून (PMLA) अपनी प्रक्रिया और न्यायिक तंत्र स्वयं निर्धारित करता है, तो आम न्यायालयों को उसमें हस्तक्षेप सीमित करना चाहिए। - Judicial Restraint की भूमिका
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अपने Article 136 के आदेश से पहले यह देखना चाहिए कि कौन-से विषय Tribunal को सौंपे गए हैं, और सही क्षेत्राधिकार की रक्षा करनी चाहिए। - Fact-based adjudication का महत्व
जब आरोप तथ्य और वित्तीय दस्तावेज़ों से जुड़े हों, सुप्रीम कोर्ट उन पर निर्णय नहीं कर सकती, बल्कि Tribunal को मौका देना चाहिए। - Predicate Offence का संबंध
JSW का नाम CBI chargesheet में हटाया जाना, यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है — क्योंकि यदि मूल (predicate) अपराध न हो, तो PMLA कार्यवाही की वैधता पर प्रश्न उठता है। Tribunal को वही देखना चाहिए कि क्या उस राशि पर PMLA लागू होगी। - Attached Property और Withdrawals
न्यायालय ने यह विचार किया कि जब्त किए गए खाते से राशि निकालना “use or possession” का आधार नहीं बन सकता यदि वह राशि अभी भी कानूनी विवाद में हो।
निष्कर्ष
JSW Steel और Obulapuram Mining Company के बीच PMLA कार्रवाई का यह मामला यह प्रतीक बन गया कि भारतीय न्याय प्रणाली में judicial restraint, statutory discipline, और संवैधानिक समरसता कितनी महत्त्वपूर्ण हैं।
हालाँकि आपने पूछा था “Supreme Court Quashes Money Laundering Case …”, लेकिन सच्चाई यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को quash नहीं किया, बल्कि उससे खारिज करने से इंकार कर दिया — यानि कि PMLA की प्रक्रिया को आगे बढ़ने दिया।
यह निर्णय उन सीमाओं को स्पष्ट करता है, जिनमें न्यायालय को संविधान के अनुरूप हस्तक्षेप करना चाहिए, और किस स्थिति में वह प्रक्रिया को Tribunal या विशेष तंत्र पर छोड़ देनी चाहिए।