आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में समय-समय पर हुए संशोधनों का मूल्यांकन, विशेष रूप से 2020 के संशोधन का प्रभाव
प्रस्तावना
भारत में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति, मूल्य नियंत्रण और वितरण व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (Essential Commodities Act, 1955) एक महत्वपूर्ण कानूनी ढांचा है। इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार को विशेष परिस्थितियों में आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण और व्यापार पर नियंत्रण रखने का अधिकार प्राप्त है। समय-समय पर इस अधिनियम में संशोधन किए गए हैं, जिनका उद्देश्य बदलते आर्थिक परिप्रेक्ष्य, कृषि उत्पादकता में वृद्धि और वैश्वीकरण के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति और मूल्य नियंत्रण व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाना है।
1. आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 का मूल उद्देश्य और संरचना
आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि खाद्यान्न, दवाएँ, उर्वरक, तेल, पेट्रोलियम उत्पाद आदि जैसी आवश्यक वस्तुएँ सामान्य जनता को उचित मूल्य पर उपलब्ध हों। इसके तहत केंद्र सरकार को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त थे:
- वस्तुओं की सूची निर्धारण: केंद्र सरकार यह निर्धारित कर सकती थी कि कौन सी वस्तुएँ आवश्यक हैं और उन्हें अधिनियम के तहत नियंत्रित किया जाएगा।
- मूल्य नियंत्रण: आवश्यक वस्तुओं के मूल्य पर नियंत्रण रखने के लिए सरकार आदेश जारी कर सकती थी।
- भंडारण सीमा: व्यापारियों और निर्माताओं के लिए भंडारण की सीमा निर्धारित की जा सकती थी ताकि जमाखोरी और कालाबाजारी को रोका जा सके।
- वितरण व्यवस्था: सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से आवश्यक वस्तुओं का वितरण सुनिश्चित किया जा सके।
2. समय-समय पर किए गए प्रमुख संशोधन
(i) 1976 का संशोधन
1976 में अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे केंद्र सरकार को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हुईं। इस संशोधन के तहत जमाखोरी और कालाबाजारी पर सख्त नियंत्रण लगाने के लिए विशेष प्रावधान जोड़े गए।
(ii) 1981 का संशोधन
1981 में पेट्रोलियम उत्पादों को आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल किया गया, ताकि इनकी आपूर्ति और मूल्य नियंत्रण सुनिश्चित किया जा सके।
(iii) 2002 का संशोधन
2002 में सरकार ने 11 वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर किया, जैसे कि खाद्य तेल, दालें आदि, क्योंकि इनकी आपूर्ति और मूल्य नियंत्रण में सुधार हुआ था और बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी थी।
(iv) 2020 का संशोधन
2020 में आवश्यक वस्तु अधिनियम में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया गया, जिसे आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 कहा जाता है। इस संशोधन का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में सुधार लाना, किसानों की आय बढ़ाना और कृषि उत्पादों के भंडारण और व्यापार में लचीलापन प्रदान करना था।
3. 2020 के संशोधन के प्रमुख प्रावधान
आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 में निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान शामिल किए गए:
(i) भंडारण सीमा में छूट
संशोधन के तहत, कृषि उत्पादों जैसे कि आलू, प्याज, दालें, खाद्य तेल, तेलबीज आदि पर भंडारण सीमा केवल विशेष परिस्थितियों में लागू की जाएगी, जैसे कि युद्ध, अकाल, प्राकृतिक आपदा या मूल्य में असाधारण वृद्धि। सामान्य परिस्थितियों में इन पर भंडारण सीमा लागू नहीं होगी।
(ii) मूल्य वृद्धि के आधार पर नियंत्रण
यदि किसी कृषि उत्पाद की खुदरा मूल्य में 100% या उससे अधिक की वृद्धि होती है, तो उस पर भंडारण सीमा लागू की जा सकती है। इसी प्रकार, गैर-नाशवां पदार्थों की मूल्य वृद्धि 50% या उससे अधिक होने पर भंडारण सीमा लागू की जा सकती है।
(iii) सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सुरक्षा
संशोधन में यह स्पष्ट किया गया कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित की जाने वाली वस्तुओं पर भंडारण सीमा लागू नहीं होगी, ताकि गरीब और जरूरतमंद वर्ग को आवश्यक वस्तुएँ समय पर और उचित मूल्य पर मिल सकें।
(iv) निवेश को बढ़ावा
संशोधन का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा देना था, ताकि भंडारण, प्रसंस्करण और वितरण की सुविधाओं में सुधार हो सके। इससे कृषि उत्पादों की बर्बादी कम होगी और किसानों को बेहतर मूल्य मिलेगा।
4. 2020 के संशोधन का प्रभाव
(i) किसानों के लिए सकारात्मक प्रभाव
संशोधन से किसानों को अपने उत्पादों को अधिक समय तक भंडारण करने की सुविधा मिली, जिससे वे बाजार में मूल्य वृद्धि का लाभ उठा सकते थे। इसके अलावा, निजी निवेश के माध्यम से भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं में सुधार हुआ, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त हुआ।
(ii) उपभोक्ताओं पर प्रभाव
संशोधन के बाद, कुछ कृषि उत्पादों की कीमतों में वृद्धि देखी गई, क्योंकि भंडारण सीमा में छूट मिलने से व्यापारी अधिक स्टॉक करने लगे। इससे बाजार में आपूर्ति कम हुई और कीमतें बढ़ीं। हालांकि, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित की जाने वाली वस्तुओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
(iii) राज्य सरकारों की भूमिका
संशोधन के बाद, राज्य सरकारों को भंडारण सीमा लागू करने में कठिनाई हुई, क्योंकि यह केवल विशेष परिस्थितियों में लागू की जा सकती थी। इससे राज्य सरकारों की नियंत्रण क्षमता में कमी आई।
(iv) विपक्ष और किसानों की प्रतिक्रिया
संशोधन के बाद, विपक्षी दलों और किसान संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि इससे बड़े व्यापारी और कंपनियाँ कृषि उत्पादों की कीमतों पर नियंत्रण स्थापित करेंगी, जिससे किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलेगा और उपभोक्ताओं को भी उच्च कीमतों का सामना करना पड़ेगा।
5. आलोचनाएँ और चुनौतियाँ
(i) जमाखोरी और कालाबाजारी की संभावना
भंडारण सीमा में छूट मिलने से जमाखोरी और कालाबाजारी की संभावना बढ़ गई है। बड़े व्यापारी और कंपनियाँ अधिक स्टॉक करके कीमतों में वृद्धि कर सकते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों का सामना करना पड़ेगा।
(ii) छोटे किसानों की अनदेखी
संशोधन से बड़े व्यापारी और कंपनियाँ तो लाभान्वित हो सकती हैं, लेकिन छोटे और सीमांत किसान इससे लाभान्वित नहीं हो पाएंगे। उन्हें अपने उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है।
(iii) राज्य सरकारों की सीमित भूमिका
संशोधन के बाद, राज्य सरकारों को भंडारण सीमा लागू करने में कठिनाई हुई, क्योंकि यह केवल विशेष परिस्थितियों में लागू की जा सकती थी। इससे राज्य सरकारों की नियंत्रण क्षमता में कमी आई।
6. निष्कर्ष
आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 ने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हालांकि, इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी सामने आए हैं, जैसे कि जमाखोरी, कालाबाजारी और कीमतों में वृद्धि। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए सरकार को प्रभावी निगरानी, पारदर्शिता और किसानों के हितों की रक्षा करने वाली नीतियाँ अपनानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकारों को भी अपनी भूमिका निभाने के लिए सक्षम बनाना आवश्यक है, ताकि आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति और मूल्य नियंत्रण व्यवस्था प्रभावी बनी रहे।