बोट बनाम बौल्ट: ध्वन्यात्मक समानता और ट्रेडमार्क विवाद पर दिल्ली उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला
भारत में ब्रांडिंग और ट्रेडमार्क संरक्षण का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। आज के डिजिटल युग में जब अधिकांश उपभोक्ता उत्पाद ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से खरीदते हैं, तब ब्रांड नाम और उनकी पहचान उपभोक्ता के लिए सबसे बड़ा मार्गदर्शक तत्व बन जाते हैं। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बोट (boAt) और बौल्ट (Boult) ब्रांडों के बीच हुए विवाद में एक अहम फैसला सुनाया, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि ध्वन्यात्मक समानता (Phonetic Similarity) आज भी ट्रेडमार्क विवादों में उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थी। यह निर्णय ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत “उपभोक्ता भ्रम” (Consumer Confusion) और “ब्रांड पहचान” (Brand Identity) से जुड़े सिद्धांतों की व्याख्या करता है।
मामले की पृष्ठभूमि
बोट, जो कि इमेजिन मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड का लोकप्रिय ब्रांड है, भारत में इयरफ़ोन, हेडफ़ोन, स्मार्टवॉच और अन्य इलेक्ट्रॉनिक एक्सेसरीज़ के लिए जाना जाता है। बोट ने अदालत में याचिका दायर की कि एक्सोटिक माइल नामक कंपनी अपने उत्पादों पर “बौल्ट (Boult)” नाम का इस्तेमाल कर रही है, जो दिखने और सुनने में “बोट (boAt)” से काफी मिलता-जुलता है।
बोट ने तर्क दिया कि ध्वन्यात्मक और दृश्य समानता के कारण उपभोक्ता भ्रमित हो सकते हैं और यह ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 29(2) और 29(4) का उल्लंघन है।
प्रारंभिक निषेधाज्ञा और अपील
एकल न्यायाधीश ने बोट के पक्ष में अंतरिम आदेश पारित करते हुए एक्सोटिक माइल को “बौल्ट” नाम का उपयोग करने से रोक दिया।
हालांकि, एक्सोटिक माइल ने इस आदेश को चुनौती दी और अपील करते हुए कहा कि ऑनलाइन बिक्री में ध्वन्यात्मक समानता का महत्व कम हो जाता है, क्योंकि उपभोक्ता उत्पादों को स्क्रीन पर देख सकते हैं और सीधे तुलना कर सकते हैं।
एक्सोटिक माइल के तर्क
- ऑनलाइन उपस्थिति – चूंकि उत्पाद ऑनलाइन बेचे जाते हैं, उपभोक्ता दृश्य रूप से दोनों ब्रांडों को अलग कर सकते हैं।
- भ्रम की संभावना कम – इस परिदृश्य में उपभोक्ता गलती से गलत ब्रांड नहीं खरीदेंगे।
- नया ब्रांड नाम – एक्सोटिक माइल ने बताया कि उसने “Boult” नाम का उपयोग बंद कर दिया है और अब “GOBOULT” नाम का इस्तेमाल करेगा।
अदालत का दृष्टिकोण: ध्वन्यात्मक समानता का महत्व
दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति अजय दिगपॉल शामिल थे, ने कहा कि:
- मानव मस्तिष्क और स्मृति ब्रांड नामों को अक्सर ध्वनि और रूप-रंग के आधार पर याद रखते हैं।
- यदि उपभोक्ता को नाम का आंशिक रूप याद रहता है, तो “boAt” और “Boult” के बीच आसानी से भ्रम हो सकता है।
- यह भ्रम केवल ऑनलाइन ही नहीं, बल्कि भौतिक दुकानों में भी संभव है, जहाँ उपभोक्ता उत्पाद खरीदते समय नामों पर ध्यान देते हैं।
- इसलिए ध्वन्यात्मक समानता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
GOBOULT और टैगलाइन विवाद
- GOBOULT का प्रयोग – अदालत ने माना कि वर्तमान निषेधाज्ञा केवल “Boult” पर लागू है, “GOBOULT” पर नहीं। जब तक बोट अलग कार्यवाही दायर नहीं करता, तब तक एक्सोटिक माइल इसे इस्तेमाल कर सकता है।
- टैगलाइन विवाद – बोट की टैगलाइन “Plug into Nirvana” थी, जबकि Boult ने “Unplug Yourself” का इस्तेमाल किया।
- एकल न्यायाधीश ने इसे भी प्रतिबंधित कर दिया था।
- लेकिन खंडपीठ ने यह आदेश पलट दिया क्योंकि बोट ने अपनी याचिका में टैगलाइन पर रोक की मांग ही नहीं की थी।
- अदालत ने कहा कि न्यायालय केवल वही राहत दे सकता है जो पक्षकार मांगते हैं।
न्यायालय का अंतिम निर्णय
- “Boult” पर अंतरिम निषेधाज्ञा बरकरार रही।
- “GOBOULT” का प्रयोग तब तक अनुमत रहेगा जब तक अलग कार्यवाही न की जाए।
- “Unplug Yourself” टैगलाइन पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया।
- अदालत ने स्पष्ट किया कि डिजिटल युग में भी उपभोक्ता भ्रम की संभावना को गंभीरता से लिया जाएगा।
निर्णय का महत्व
1. ध्वन्यात्मक समानता की प्रासंगिकता
यह मामला स्पष्ट करता है कि भले ही ऑनलाइन खरीददारी बढ़ गई हो, लेकिन ध्वन्यात्मक समानता आज भी ट्रेडमार्क कानून में एक अहम कसौटी है।
2. ब्रांड संरक्षण बनाम निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा
अदालत ने संतुलन बनाए रखा – जहाँ “Boult” को रोका गया, वहीं “GOBOULT” और टैगलाइन के प्रयोग को छूट दी गई।
3. न्यायिक अनुशासन का पालन
अदालत ने कहा कि न्यायालय केवल वही राहत प्रदान कर सकता है जो याचिकाकर्ता ने मांगी है।
4. डिजिटल मार्केटप्लेस पर असर
यह फैसला उन सभी कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण है जो ऑनलाइन कारोबार करती हैं। इससे यह संदेश जाता है कि ब्रांड पहचान का संरक्षण केवल भौतिक दुकानों तक सीमित नहीं है।
ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की प्रासंगिक धाराएँ
- धारा 29(2): यदि कोई चिह्न किसी पंजीकृत ट्रेडमार्क से भ्रामक रूप से मिलता-जुलता है और समान या संबंधित वस्तुओं पर प्रयोग होता है, तो यह उल्लंघन होगा।
- धारा 29(4): यदि भले ही वस्तुएँ समान न हों, लेकिन चिह्न इतना मिलता-जुलता हो कि उपभोक्ता को भ्रमित कर दे और पंजीकृत ट्रेडमार्क की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाए, तो यह भी उल्लंघन होगा।
निष्कर्ष
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह फैसला भारतीय ट्रेडमार्क कानून की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण मिसाल है। अदालत ने यह दोहराया कि ब्रांड नाम की ध्वन्यात्मक और दृश्य समानता उपभोक्ता भ्रम का कारण बन सकती है, चाहे बिक्री ऑनलाइन हो या ऑफलाइन।
इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि कंपनियों को अपने ब्रांड नाम और टैगलाइन चुनते समय अत्यधिक सतर्क रहना होगा, क्योंकि ब्रांड की पहचान और उपभोक्ता का भरोसा किसी भी व्यवसाय के लिए सबसे बड़ा पूंजी है।
बोट बनाम बौल्ट केस (Delhi High Court, 2025) से जुड़े 10 शॉर्ट आंसर
(150–200 शब्द प्रत्येक)
1. बोट और बौल्ट विवाद किस विषय से संबंधित है?
→ यह विवाद ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के अंतर्गत ट्रेडमार्क उल्लंघन से जुड़ा है। लोकप्रिय ब्रांड boAt (इमेजिन मार्केटिंग प्रा. लि.) ने यह दावा किया कि एक्सोटिक माइल कंपनी “Boult” नाम का प्रयोग कर रही है, जो ध्वन्यात्मक और दृश्य रूप से “boAt” से मिलता-जुलता है। बोट का तर्क था कि इससे उपभोक्ता भ्रमित हो सकते हैं और उनके ब्रांड की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है। इसलिए, उन्होंने धारा 29(2) और 29(4) के तहत निषेधाज्ञा की मांग की।
2. बोट ने किस कानूनी प्रावधान के तहत मामला दायर किया?
→ बोट ने ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 29(2) और धारा 29(4) का हवाला दिया। धारा 29(2) कहती है कि यदि कोई चिह्न किसी पंजीकृत ट्रेडमार्क से मिलता-जुलता है और समान वस्तुओं पर प्रयोग होता है, तो यह उल्लंघन है। धारा 29(4) उस स्थिति पर लागू होती है जब असमान वस्तुओं पर भी भ्रामक रूप से समान ट्रेडमार्क का उपयोग प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाता है।
3. प्रारंभिक निर्णय में अदालत ने क्या आदेश दिया?
→ एकल न्यायाधीश ने बोट के पक्ष में अंतरिम आदेश पारित किया और एक्सोटिक माइल को “Boult” नाम के प्रयोग से रोक दिया। न्यायालय ने माना कि “boAt” और “Boult” में ध्वन्यात्मक और दृश्य समानता है, जिससे उपभोक्ता भ्रमित हो सकते हैं। इसलिए, ब्रांड संरक्षण की दृष्टि से यह निषेधाज्ञा आवश्यक है।
4. एक्सोटिक माइल ने अपील में क्या तर्क दिया?
→ एक्सोटिक माइल ने खंडपीठ के सामने तर्क दिया कि:
- ऑनलाइन बिक्री में उपभोक्ता उत्पाद और ब्रांड दोनों स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, इसलिए भ्रम की संभावना कम है।
- ध्वन्यात्मक समानता डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मायने नहीं रखती।
- उन्होंने “Boult” का प्रयोग बंद कर दिया है और अब “GOBOULT” नाम का इस्तेमाल करेंगे।
5. ध्वन्यात्मक समानता पर अदालत की क्या राय रही?
→ खंडपीठ (न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और अजय दिगपॉल) ने कहा कि ध्वन्यात्मक समानता अभी भी महत्वपूर्ण है। उपभोक्ता ब्रांड नामों को ध्वनि और दृश्य रूप में याद रखते हैं। यदि उपभोक्ता को नाम आंशिक रूप से याद हो तो “boAt” और “Boult” में आसानी से भ्रम हो सकता है। यह भ्रम ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों जगह संभव है।
6. GOBOULT नाम के प्रयोग को लेकर अदालत का रुख क्या रहा?
→ अदालत ने माना कि मौजूदा निषेधाज्ञा केवल “Boult” पर लागू है, “GOBOULT” पर नहीं। जब तक बोट अलग से मुकदमा दायर नहीं करता, एक्सोटिक माइल “GOBOULT” का प्रयोग जारी रख सकता है। इसका अर्थ यह है कि न्यायालय निषेधाज्ञा केवल उन्हीं चिन्हों पर लगाएगा जिनके विरुद्ध शिकायत की गई हो।
7. टैगलाइन विवाद पर अदालत का क्या निर्णय रहा?
→ बोट की टैगलाइन थी “Plug into Nirvana”, जबकि Boult ने “Unplug Yourself” का प्रयोग किया। एकल न्यायाधीश ने Boult को टैगलाइन प्रयोग से भी रोक दिया था। लेकिन खंडपीठ ने यह आदेश पलट दिया क्योंकि बोट ने अपनी याचिका में टैगलाइन पर रोक की मांग ही नहीं की थी। अदालत ने कहा कि न्यायालय केवल वही राहत दे सकता है जो पक्षकार मांगते हैं।
8. अदालत ने ब्रांड संरक्षण और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के बीच कैसे संतुलन बनाया?
→ अदालत ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। “Boult” के प्रयोग को रोका गया क्योंकि यह “boAt” से मिलता-जुलता था और उपभोक्ता को भ्रमित कर सकता था। लेकिन “GOBOULT” और “Unplug Yourself” के प्रयोग की अनुमति दी गई क्योंकि उस पर बोट ने सीधी आपत्ति नहीं की थी। इससे स्पष्ट हुआ कि अदालत ब्रांड संरक्षण और प्रतिस्पर्धा, दोनों को संतुलित करती है।
9. इस केस से भारतीय ट्रेडमार्क कानून में क्या सिद्धांत स्पष्ट हुआ?
→ यह केस स्पष्ट करता है कि:
- ध्वन्यात्मक समानता (Phonetic Similarity) ट्रेडमार्क उल्लंघन में अहम कसौटी है।
- ऑनलाइन मार्केटप्लेस में भी उपभोक्ता भ्रम को गंभीरता से लिया जाएगा।
- न्यायालय केवल वही राहत देगा जो याचिकाकर्ता मांगेगा।
- ट्रेडमार्क उल्लंघन का निर्धारण केवल दृश्य समानता से नहीं, बल्कि ध्वन्यात्मक और मानसिक छवि से भी होगा।
10. उपभोक्ता और ब्रांड के लिए इस निर्णय का क्या महत्व है?
→ उपभोक्ताओं के लिए यह निर्णय सुरक्षा का आश्वासन है कि उन्हें भ्रामक रूप से मिलते-जुलते ब्रांडों से गुमराह नहीं किया जाएगा। ब्रांडों के लिए यह चेतावनी है कि नया नाम चुनते समय ध्वन्यात्मक और दृश्य समानता का ध्यान रखना अनिवार्य है। डिजिटल युग में भी ब्रांड पहचान (Brand Identity) की रक्षा उतनी ही महत्वपूर्ण है।