अगर कोई लड़की आपको ‘कलुआ’ या ‘नामर्द’ बोले तो जाएगी जेल: BNS धारा 356 का विस्तृत विश्लेषण
भारतीय समाज में किसी व्यक्ति की गरिमा और सम्मान को अत्यंत महत्व दिया गया है। संविधान से लेकर आपराधिक कानून तक, हर स्तर पर यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई भी नागरिक अपमानित या नीचा दिखाए जाने से सुरक्षित रहे। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि गुस्से या बहस के दौरान लोग अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल कर देते हैं।
विशेषकर, किसी पुरुष को “कलुआ” (त्वचा के रंग पर टिप्पणी) या “नामर्द” (पुरुषत्व पर आक्षेप) कहना न केवल सामाजिक रूप से अस्वीकार्य है, बल्कि भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS), 2023 के अंतर्गत एक गंभीर अपराध है। इसके लिए धारा 356 में प्रावधान किया गया है, जिसके तहत दोषी को तीन साल तक की सजा हो सकती है।
1. BNS और व्यक्तिगत गरिमा का संरक्षण
भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 ने पुराने भारतीय दंड संहिता (IPC) की जगह ली है। BNS में कई धाराएँ नागरिकों के सम्मान और गरिमा की रक्षा करती हैं।
- संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ-साथ मानव गरिमा की रक्षा करता है।
- इसी को आगे बढ़ाते हुए BNS की धारा 356 यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी व्यक्ति दूसरों का जानबूझकर अपमान न करे।
2. BNS धारा 356 क्या कहती है?
धारा 356, भारतीय न्याय संहिता, 2023 का सार यह है:
- यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य को जानबूझकर अपमानित करता है,
- ताकि उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचे,
- और यह अपमान सार्वजनिक रूप से हो,
- तो यह अपराध माना जाएगा।
सजा:
➡ तीन वर्ष तक की कारावास
➡ या जुर्माना
➡ या दोनों
3. “कलुआ” और “नामर्द” क्यों अपराध माने जाएंगे?
- कलुआ:
- यह शब्द आमतौर पर त्वचा के रंग को नीचा दिखाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- यह जातीय टिप्पणी और निजी गरिमा पर चोट के समान है।
- किसी को उसकी शारीरिक विशेषताओं के आधार पर अपमानित करना भेदभावपूर्ण है।
- नामर्द:
- यह शब्द किसी पुरुष की पुरुषत्व और मर्दानगी पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
- यह उसकी सामाजिक स्थिति और मानसिक गरिमा को गहरा आघात पहुँचाता है।
- अदालतें मान चुकी हैं कि किसी की मर्दानगी पर हमला करना गंभीर अपमान है।
इस प्रकार, यदि कोई लड़की गुस्से में या जानबूझकर ऐसे शब्दों का प्रयोग करती है, तो यह धारा 356 के अंतर्गत अपराध माना जाएगा।
4. न्यायालयीन दृष्टिकोण
भारतीय न्यायपालिका ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि अपमानजनक शब्दों का प्रयोग आपराधिक अपमान (Criminal Intimidation / Insult) की श्रेणी में आता है।
- State of Karnataka बनाम Shivalingaiah (1988 CrLJ 1728): अदालत ने कहा कि किसी भी चोट या शब्द से यदि व्यक्ति की गरिमा पर गहरा प्रभाव पड़ता है, तो यह गंभीर अपराध है।
- Swaran Singh बनाम State (2008): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जातिगत या शारीरिक विशेषताओं पर आधारित अपमान संविधान और कानून दोनों के खिलाफ है।
इन दृष्टांतों से स्पष्ट है कि “कलुआ” और “नामर्द” जैसे शब्द केवल गाली-गलौज नहीं, बल्कि गंभीर आपराधिक अपमान हैं।
5. शिकायत कैसे दर्ज करें?
यदि कोई व्यक्ति, चाहे वह लड़की हो या कोई अन्य, आपको ऐसे अपमानजनक शब्द कहे तो आप निम्न कदम उठा सकते हैं:
- लिखित शिकायत दर्ज करें:
- निकटतम पुलिस स्टेशन में जाकर धारा 356 BNS के तहत शिकायत दर्ज कराएँ।
- घटना की तारीख, समय और स्थान स्पष्ट लिखें।
- सबूत जुटाएँ:
- यदि घटना सार्वजनिक रूप से हुई है तो गवाहों के नाम दें।
- यदि मोबाइल पर रिकॉर्डिंग या सीसीटीवी फुटेज है तो उसे सुरक्षित रखें।
- उच्च अधिकारी को सूचित करें:
- यदि पुलिस कार्रवाई न करे तो SP या जिला मजिस्ट्रेट को आवेदन दें।
- न्यायालय का सहारा लें:
- मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत याचिका दायर कर सकते हैं।
6. क्या महिला भी अपराधी हो सकती है?
कानून की नजर में सभी नागरिक समान हैं।
- यदि कोई महिला अपमानजनक शब्द बोलती है, तो वह भी धारा 356 के तहत दोषी होगी।
- भारतीय न्याय संहिता में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि महिला को इस अपराध से छूट मिलेगी।
- अदालत परिस्थिति देखकर सजा निर्धारित करेगी।
7. सामाजिक प्रभाव
“कलुआ” या “नामर्द” कहकर किसी का अपमान करना केवल व्यक्तिगत हमला नहीं है, बल्कि इसका समाज पर भी गहरा असर पड़ता है।
- यह भेदभाव और हीनभावना को बढ़ावा देता है।
- इससे मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
- यह हिंसा और झगड़े को जन्म दे सकता है।
इसलिए कानून ने ऐसे व्यवहार को अपराध की श्रेणी में रखा है।
8. व्यावहारिक उदाहरण
मान लीजिए—
- किसी बहस के दौरान एक लड़की गुस्से में किसी लड़के को “नामर्द” कह देती है।
- लड़का आहत होकर पुलिस में शिकायत दर्ज करता है।
- पुलिस जाँच में यह साबित हो जाता है कि लड़की ने जानबूझकर अपमान किया।
ऐसी स्थिति में लड़की के खिलाफ धारा 356 BNS के तहत केस चलेगा और अदालत उसे तीन साल तक की सजा या जुर्माना दे सकती है।
9. आलोचना और सावधानियाँ
कुछ लोग कहते हैं कि इस तरह की धाराएँ गाली-गलौज के मामलों में ज्यादा उपयोगी हो सकती हैं, लेकिन उनका दुरुपयोग भी संभव है।
- कभी-कभी लोग झूठे आरोप लगाकर किसी को फँसा सकते हैं।
- अदालत को यह देखना होगा कि क्या वास्तव में अपमान की मंशा थी या यह सिर्फ गुस्से में कही गई बात थी।
सावधानी:
- पुलिस और अदालत को हर मामले की परिस्थितियों और गंभीरता का मूल्यांकन करना चाहिए।
10. निष्कर्ष
भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने यह सुनिश्चित किया है कि नागरिकों की गरिमा सुरक्षित रहे।
- किसी भी व्यक्ति, चाहे पुरुष हो या महिला, को यह अधिकार नहीं कि वह दूसरों को अपमानित करे।
- “कलुआ” या “नामर्द” जैसे शब्द न केवल सामाजिक रूप से अस्वीकार्य हैं, बल्कि कानूनी रूप से भी दंडनीय अपराध हैं।
- धारा 356 BNS ऐसे अपमानजनक शब्दों पर रोक लगाती है और दोषी को तीन साल तक की सजा दिला सकती है।
यह कानून हमें सिखाता है कि समाज में सम्मानजनक भाषा का प्रयोग जरूरी है और किसी की गरिमा पर चोट करना केवल नैतिक रूप से गलत ही नहीं बल्कि कानूनन अपराध भी है।
1. BNS धारा 356 क्या कहती है?
Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS) की धारा 356 उस स्थिति पर लागू होती है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को अपमानित करने के लिए ऐसे शब्दों या इशारों का प्रयोग करता है, जो उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाते हैं। इसमें गाली-गलौज, अपमानजनक नाम से पुकारना या सार्वजनिक रूप से किसी की बेइज्जती करना शामिल है। यह अपराध संज्ञेय (cognizable) और जमानती (bailable) श्रेणी में आता है।
2. “कलुआ” या “नामर्द” जैसे शब्द अपराध क्यों हैं?
“कलुआ” या “नामर्द” जैसे शब्द किसी की जाति, रंग, क्षमता या मर्दानगी पर हमला करते हैं। भारतीय कानून में किसी की मानसिक गरिमा और सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाना अपराध माना जाता है। इसलिए ऐसे शब्द कहना धारा 356 BNS के तहत सज़ा योग्य अपराध है।
3. इसमें अधिकतम सज़ा कितनी है?
BNS धारा 356 के अनुसार, यदि कोई जानबूझकर अपमानजनक शब्दों से किसी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाता है तो उसे 3 साल तक की कैद और/या जुर्माना हो सकता है।
4. क्या महिला भी इस धारा के तहत दोषी ठहराई जा सकती है?
हाँ, यह धारा लिंग-निरपेक्ष (gender-neutral) है। यदि कोई महिला किसी पुरुष को “कलुआ” या “नामर्द” कहकर अपमानित करती है, तो वह भी सज़ा की हकदार होगी।
5. क्या यह अपराध जमानती है?
हाँ, BNS धारा 356 के तहत दर्ज अपराध जमानती है, यानी आरोपी अदालत या पुलिस स्टेशन से जमानत ले सकता है।
6. शिकायत कैसे दर्ज की जाती है?
पीड़ित व्यक्ति पुलिस थाने में FIR दर्ज करा सकता है या फिर मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत पेश कर सकता है। शिकायत लिखित रूप में होनी चाहिए और यदि कोई गवाह मौजूद हो तो उसका नाम भी दर्ज किया जा सकता है।
7. क्या यह अपराध संज्ञेय है?
हाँ, यह अपराध संज्ञेय (Cognizable) है, यानी पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के भी FIR दर्ज करके जांच कर सकती है।
8. इस धारा का उद्देश्य क्या है?
इस धारा का मुख्य उद्देश्य समाज में लोगों की इज्जत, गरिमा और आत्म-सम्मान की रक्षा करना है। किसी भी व्यक्ति को गाली-गलौज या अपमानजनक शब्दों से नीचा दिखाना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है।
9. कोर्ट किन बातों को ध्यान में रखता है?
कोर्ट यह देखता है कि –
- शब्द जानबूझकर अपमान के इरादे से कहे गए या नहीं।
- क्या इससे पीड़ित की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची।
- घटना सार्वजनिक या निजी स्थान पर हुई।
10. इस धारा का सामाजिक महत्व क्या है?
यह धारा समाज को यह संदेश देती है कि शब्दों की ताकत भी चोट पहुँचाती है। शारीरिक हिंसा की तरह मानसिक और सामाजिक अपमान भी गंभीर अपराध है। इससे लोगों को अपनी भाषा और व्यवहार में जिम्मेदारी बरतने की चेतावनी मिलती है।