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SOGA (Sale of Goods Act, 1930) LLB notes

SOGA – Short Answers 


1. विक्रय अनुबंध की परिभाषा और प्रकार
विक्रय अनुबंध, SOGA की धारा 4 के अनुसार, ऐसा अनुबंध है जिसमें एक पक्ष (विक्रेता) किसी वस्तु का स्वामित्व दूसरे पक्ष (खरीदार) को हस्तांतरित करने के लिए और खरीदार उसके लिए कीमत चुकाने के लिए सहमत होता है। यह मौखिक या लिखित हो सकता है। विक्रय अनुबंध के दो मुख्य प्रकार हैं: (1) विशिष्ट वस्तुओं की बिक्री (Specific Goods), और (2) अनिर्दिष्ट या सामान्य वस्तुओं की बिक्री (Unascertained/Generic Goods)। विशिष्ट वस्तु वह होती है जो अनुबंध समय निर्धारित होती है, जबकि अनिर्दिष्ट वस्तु वह होती है जिसे अनुबंध के समय चयनित नहीं किया गया हो। इसके अलावा, भविष्य की वस्तुओं (Future Goods) की बिक्री भी वैध है, जब वस्तु अस्तित्व में आती है।


2. वस्तु और स्वामित्व का स्थानांतरण
SOGA के अंतर्गत, वस्तु का स्वामित्व (Property) खरीदार को तब हस्तांतरित होता है जब अनुबंध के अनुसार डिलीवरी दी जाती है। यदि वस्तु विशिष्ट है और अनुबंध में सुपुर्दगी का प्रावधान है, तो जोखिम और स्वामित्व खरीदार को तब स्थानांतरित होते हैं। अनिर्दिष्ट वस्तु में, चयन के समय स्वामित्व और जोखिम खरीदार पर आता है। विक्रेता का कर्तव्य है कि वह वस्तु का स्वामित्व बिना किसी अवरोध के हस्तांतरित करे, और खरीदार का कर्तव्य है कि वह कीमत का भुगतान करे।


3. शर्त (Condition) और वारंटी (Warranty)
SOGA में अनुबंध की शर्त (Condition) वह प्रमुख शर्त है, जिसका उल्लंघन होने पर खरीदार अनुबंध रद्द कर सकता है। वारंटी (Warranty) एक मामूली गारंटी है, जिसका उल्लंघन होने पर केवल मुआवजा मिल सकता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई खरीदी गई वस्तु अनुबंध में निर्दिष्ट गुणवत्ता की नहीं है, तो यह Condition का उल्लंघन है। यदि कोई अतिरिक्त विशेषता न हो, तो वह Warranty का उल्लंघन हो सकता है। शर्त और वारंटी का स्पष्ट ज्ञान अनुबंध और न्यायिक फैसलों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।


4. Implied Conditions और Implied Warranties
SOGA के अनुसार, अनुबंध में कुछ शर्तें और वारंटियाँ स्वतः लागू होती हैं, जिन्हें Implied Conditions और Implied Warranties कहते हैं। उदाहरण के लिए: विक्रेता यह गारंटी देता है कि वह वस्तु का स्वामी है और वस्तु किसी तीसरे पक्ष के दावे से मुक्त है। इसी तरह, वस्तु की उपयुक्तता और गुणवत्ता भी Implicit होती है। ये खरीदार के अधिकारों की रक्षा करती हैं और अनुबंध के उल्लंघन पर कानूनी उपाय प्रदान करती हैं।


5. Future Goods का अनुबंध
भविष्य की वस्तु (Future Goods) की बिक्री तब होती है जब वस्तु अनुबंध बनने के समय अस्तित्व में नहीं होती, लेकिन भविष्य में उत्पन्न होगी। उदाहरण के लिए, किसी फसल की बिक्री अनुबंध के समय तय की जाती है, लेकिन फसल काटने के बाद ही सुपुर्दगी संभव है। Future Goods की बिक्री तब वैध मानी जाती है जब वस्तु अस्तित्व में आती है और अनुबंध के अनुसार डिलीवरी दी जाती है।


6. खरीदार और विक्रेता के कर्तव्य
विक्रेता का मुख्य कर्तव्य है कि वह वस्तु सुपुर्द करे, उसका स्वामित्व हस्तांतरित करे और गुणवत्ता की गारंटी दे। खरीदार का कर्तव्य है कि वह कीमत का भुगतान समय पर करे और वस्तु को स्वीकार करे। यदि कोई पक्ष इन कर्तव्यों का पालन नहीं करता, तो दूसरा पक्ष अनुबंध रद्द या मुआवजा मांग सकता है।


7. वस्तु में दोष और खरीदार के अधिकार
यदि खरीदी गई वस्तु में छिपा दोष (Hidden Defect) होता है, और विक्रेता ने उसे न बताया, तो यह Fraud (धोखाधड़ी) के अंतर्गत आता है। खरीदार इस स्थिति में अनुबंध रद्द कर सकता है या मुआवजा मांग सकता है। SOGA में दोष और छिपी खामी की परिभाषा न्यायालयीन निर्णयों से विकसित हुई है।


8. Risk का हस्तांतरण
विशिष्ट वस्तु की बिक्री में जोखिम खरीदार पर तब आता है जब वस्तु सुपुर्द की जाती है। अनिर्दिष्ट वस्तु में, जोखिम उस समय खरीदार पर आता है जब वस्तु का चयन किया जाता है। विक्रेता की देरी या दोष की स्थिति में खरीदार पर जोखिम नहीं आता। यह नियम अनुबंध और वस्तु के प्रकार पर निर्भर करता है।


9. चोरी की वस्तु की बिक्री और निषिद्ध अनुबंध
SOGA के अंतर्गत, चोरी की वस्तु की बिक्री निषिद्ध और अवैध है। ऐसा अनुबंध वैध नहीं माना जाता। न्यायालय में इसका कोई समर्थन नहीं है। इस प्रकार के अनुबंधों में खरीदार और विक्रेता दोनों कानूनी कार्रवाई का सामना कर सकते हैं।


10. अनुबंध के उल्लंघन पर उपाय
SOGA में अनुबंध उल्लंघन (Breach of Contract) की स्थिति में खरीदार और विक्रेता दोनों के पास कानूनी उपाय हैं। खरीदार अनुबंध रद्द कर सकता है, मुआवजा मांग सकता है या वस्तु स्वीकार कर सकता है। विक्रेता भी मुआवजा, डिलीवरी का आदेश या अनुबंध रद्द करने के लिए न्यायालय का सहारा ले सकता है। न्यायालय अनुबंध की शर्तों, वस्तु की गुणवत्ता और कीमत के भुगतान के आधार पर निर्णय देता है।


11. वस्तु का वर्गीकरण: विशिष्ट, अनिर्दिष्ट और भविष्य की वस्तुएँ
SOGA के अंतर्गत, वस्तुओं को तीन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:

  1. विशिष्ट वस्तुएँ (Specific Goods): ये वस्तुएँ अनुबंध के समय स्पष्ट रूप से पहचानी जाती हैं। उदाहरण के लिए, किसी विशेष कार या मशीन का अनुबंध। इन वस्तुओं का स्वामित्व और जोखिम खरीदार को सुपुर्दगी के समय स्थानांतरित होता है।
  2. अनिर्दिष्ट वस्तुएँ (Unascertained/Generic Goods): ये वस्तुएँ अनुबंध के समय चयनित नहीं होती हैं, जैसे किसी गोदाम में रखी गेहूँ या चीनी। इन वस्तुओं का स्वामित्व और जोखिम केवल चयन के समय खरीदार पर आता है।
  3. भविष्य की वस्तुएँ (Future Goods): ऐसी वस्तुएँ जो अनुबंध बनने के समय अस्तित्व में नहीं होती, लेकिन भविष्य में उत्पन्न होंगी। उदाहरण के लिए, आगामी फसल या निर्माणाधीन मशीन। इनकी बिक्री तब वैध मानी जाती है जब वस्तु अस्तित्व में आती है।

वस्तु के प्रकार का निर्धारण अनुबंध की प्रकृति, डिलीवरी और जोखिम के हस्तांतरण के लिए महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने विभिन्न मामलों में स्पष्ट किया है कि अनुबंध में वस्तु की प्रकृति और चयन का उल्लेख आवश्यक है।


12. अनुबंध में मूल्य और कीमत का महत्व
विक्रय अनुबंध में कीमत (Price) का निर्धारण अत्यंत महत्वपूर्ण है। SOGA के अनुसार, कीमत धन में होनी चाहिए और वस्तु के बदले ली जाती है। यदि कीमत अनुबंध में स्पष्ट नहीं है, तो न्यायालय उसे वस्तु की सामान्य बाजार कीमत या उचित मूल्य के आधार पर तय कर सकता है। कीमत का निर्धारण खरीदार और विक्रेता के अधिकार और अनुबंध की वैधता पर सीधा प्रभाव डालता है।


13. Implied Conditions और Express Conditions
SOGA में अनुबंध में शामिल शर्तें दो प्रकार की होती हैं:

  1. Express Conditions: जो सीधे अनुबंध में लिखित या मौखिक रूप में दी गई हों।
  2. Implied Conditions: जो स्वतः लागू होती हैं, जैसे कि विक्रेता वस्तु का स्वामी है और वस्तु किसी तीसरे पक्ष के दावे से मुक्त है।

Implied Conditions खरीदार के संरक्षण के लिए आवश्यक हैं। यदि इनका उल्लंघन होता है, तो खरीदार अनुबंध रद्द कर सकता है या मुआवजा मांग सकता है।


14. Implied Warranties और उनकी भूमिका
Implied Warranties वे गारंटियाँ हैं जो अनुबंध में स्वतः लागू होती हैं। उदाहरण के लिए, वस्तु उपयुक्त होनी चाहिए और विशेष उद्देश्य के लिए खरीदी गई हो तो उस उद्देश्य के अनुरूप होनी चाहिए। यदि विक्रेता इन वारंटियों का उल्लंघन करता है, तो खरीदार मुआवजा मांग सकता है, लेकिन अनुबंध रद्द नहीं कर सकता।


15. शर्त और वारंटी में अंतर और न्यायालयीन दृष्टिकोण
SOGA में शर्त (Condition) महत्वपूर्ण होती है, और उल्लंघन होने पर अनुबंध रद्द किया जा सकता है। वारंटी (Warranty) कम महत्वपूर्ण होती है और उल्लंघन होने पर केवल मुआवजा मिलता है। न्यायालय ने कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि शर्त और वारंटी का सही पहचान करना खरीदार और विक्रेता दोनों के लिए आवश्यक है।


16. Risk का हस्तांतरण
SOGA में जोखिम का हस्तांतरण वस्तु के प्रकार पर निर्भर करता है।

  • विशिष्ट वस्तुएँ: जोखिम सुपुर्दगी के समय खरीदार पर आता है।
  • अनिर्दिष्ट वस्तुएँ: जोखिम तब आता है जब वस्तु का चयन होता है।
  • Future Goods: जोखिम केवल वस्तु के अस्तित्व में आने पर लागू होता है।

यदि डिलीवरी में विलंब या दोष हो तो जोखिम विक्रेता पर बना रहता है।


17. अनुबंध का उल्लंघन और खरीदार के उपाय
यदि विक्रेता वस्तु सुपुर्द करने में विफल रहता है या गुणवत्ता पूरी नहीं होती, तो खरीदार के पास उपाय हैं:

  1. अनुबंध रद्द करना
  2. मुआवजा मांगना
  3. वस्तु स्वीकार करना और कमी का मुआवजा लेना

न्यायालय निर्णय लेते समय अनुबंध की शर्तें, वस्तु का प्रकार और कीमत का भुगतान ध्यान में रखता है।


18. अनुबंध का उल्लंघन और विक्रेता के उपाय
यदि खरीदार कीमत का भुगतान नहीं करता या अनुबंध को पूरा नहीं करता, तो विक्रेता के पास उपाय हैं:

  1. वस्तु वापस लेना (Reclaim)
  2. मुआवजा का दावा करना
  3. अनुबंध रद्द कराना

न्यायालय मामले के तथ्य और अनुबंध की शर्तों के आधार पर निर्णय देता है।


19. Future Goods और जोखिम का न्यायालयीन विश्लेषण
भविष्य की वस्तुओं के अनुबंध में जोखिम का हस्तांतरण वस्तु के अस्तित्व में आने के समय होता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि वस्तु अस्तित्व में नहीं आती, तो अनुबंध स्वतः विफल होता है और खरीदार पर कोई जोखिम नहीं आता। यह नियम खरीदार और विक्रेता दोनों के हितों की रक्षा करता है।


20. चोरी की वस्तु की बिक्री और कानूनी परिणाम
SOGA के अनुसार, चोरी की वस्तु की बिक्री अवैध है। ऐसे अनुबंध न्यायालय द्वारा समर्थन नहीं पाएंगे। खरीदार और विक्रेता दोनों कानूनी कार्रवाई के अधीन हो सकते हैं। यह नियम वस्तु के स्वामित्व और अधिकारों की सुरक्षा करता है। न्यायालय ने कई मामलों में इसे स्पष्ट किया है कि चोरी की वस्तु का अनुबंध वैध नहीं माना जा सकता।