लावारिस जब्त वाहनों की सुपुर्दगी : न्यायालयीन दृष्टिकोण और विधिक विवेचना
(Bareilly Court Order on Release of Seized Vehicle under Supurdginama, 2025)
प्रस्तावना
भारतीय विधि व्यवस्था में जब भी कोई वाहन या संपत्ति पुलिस द्वारा किसी कारणवश जब्त की जाती है, तब उसके निस्तारण अथवा सुपुर्दगी (Custody/Release) का प्रश्न न्यायालय के समक्ष आता है। यह स्थिति तब और जटिल हो जाती है जब जब्त वाहन किसी अपराध में प्रयुक्त न होकर केवल कागजात न होने या लावारिस अवस्था में पुलिस थाने पर दाखिल किया गया हो। ऐसे मामलों में, वाहन स्वामी की आजीविका, व्यक्तिगत आवश्यकता तथा विधिक अधिकारों की रक्षा न्यायालय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विषय हो जाता है।
दिनांक 10 सितंबर 2025 को बरेली के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कक्ष संख्या 5 द्वारा पारित आदेश इसी सन्दर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है। इस आदेश में प्रार्थी राजा पुत्र नजीर अहमद द्वारा अपने ट्रैक्टर की सुपुर्दगी हेतु प्रस्तुत प्रार्थना पत्र को स्वीकार किया गया तथा वाहन की सुपुर्दगी की अनुमति दी गई।
प्रकरण का संक्षिप्त विवरण
मामला :
सरकार बनाम राजा
थाना : सी०बी०गंज, बरेली
- प्रार्थी/अधिकृत व्यक्ति : राजा पुत्र नजीर अहमद, निवासी ग्राम सरनिया, थाना सी०बी०गंज, जिला बरेली।
- वाहन : ट्रैक्टर संख्या यू०पी० 25 डी०एफ0 0427
- घटना : 31.07.2025 को थाना सी०बी०गंज पुलिस द्वारा कागजात न होने के कारण वाहन को लावारिस दाखिल कर जब्त किया गया।
- आवेदन : प्रार्थी द्वारा यह कहते हुए कि ट्रैक्टर उसकी कृषि एवं आजीविका का एकमात्र साधन है, वाहन की सुपुर्दगी हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया।
न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत तर्क
- प्रार्थी का पक्ष
- वाहन का स्वामित्व राजा के नाम पंजीकृत है।
- पुलिस द्वारा केवल कागजात न होने के आधार पर वाहन जब्त किया गया है।
- कृषि कार्य रुक गया है और जीवन-यापन कठिन हो रहा है।
- वाहन की सुपुर्दगी न होने पर प्रार्थी को अपूरणीय क्षति होगी।
- पुलिस की आख्या
- ट्रैक्टर दिनांक 31.07.2025 को उपनिरीक्षक द्वारा लावारिस दाखिल किया गया।
- वाहन थाने परिसर में खड़ा है।
- वाहन के संबंध में अन्य कोई मुकदमा लंबित नहीं बताया गया।
- दस्तावेजी साक्ष्य
- वाहन का पंजीयन प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें स्वामी का नाम राजा अंकित है।
- आधार कार्ड की प्रति प्रस्तुत की गई।
न्यायालय की विधिक विवेचना
न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का एक महत्वपूर्ण निर्णय दयाशंकर पाण्डेय बनाम राजेन्द्र प्रसाद सिंह व अन्य, 1988 (25) ए०सी०सी० 313 उद्धृत किया।
इस निर्णय में स्पष्ट किया गया था कि—
“मजिस्ट्रेट न्यायालय को ऐसी सम्पत्ति के निस्तारण का आदेश पारित करने का विधिक क्षेत्राधिकार है जो किसी अपराध से सम्बंधित न हो और जिन्हें पुलिस द्वारा लावारिस अवस्था में रखा गया हो।”
अर्थात, यदि कोई संपत्ति/वाहन अपराध में प्रयुक्त न हुआ हो, मात्र लावारिस या औपचारिकता के तहत थाने में दाखिल हो, तो मजिस्ट्रेट उस संपत्ति को वास्तविक स्वामी की सुपुर्दगी में दे सकता है।
आदेश
अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, बरेली ने निम्नलिखित आदेश पारित किया—
- प्रार्थना पत्र स्वीकार – राजा द्वारा प्रस्तुत आवेदन स्वीकार किया गया।
- वाहन सुपुर्दगी आदेश – थानाध्यक्ष को निर्देशित किया गया कि यदि वाहन किसी अन्य मुकदमे में वांछित न हो, तो उसे राजा की सुपुर्दगी में दे दिया जाए।
- अंडरटेकिंग (Undertaking) की शर्त – प्रार्थी से यह अपेक्षा की गई कि यदि भविष्य में वाहन पर कोई अन्य दावा प्रस्तुत होता है, तो वह बिना शर्त न्यायालय के समक्ष वाहन प्रस्तुत करेगा।
विधिक महत्व
इस आदेश के कई विधिक पहलू हैं :
- न्यायालय का अधिकार-क्षेत्र
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 451 और 457 मजिस्ट्रेट को ऐसे आदेश पारित करने का अधिकार देती है।
- धारा 451 में “कस्टडी ऑफ प्रॉपर्टी” (Custody of Property) का उल्लेख है, जबकि धारा 457 में “लावारिस संपत्ति” से संबंधित प्रावधान हैं।
- स्वामित्व का महत्व
- वाहन का पंजीयन प्रमाण पत्र स्वामित्व का प्रमुख साक्ष्य है।
- जब स्वामित्व विवादित न हो, तो न्यायालय सुपुर्दगी आदेश देने से नहीं हिचकिचाता।
- आजीविका का पहलू
- भारतीय न्यायालय बार-बार यह कहते रहे हैं कि वाहन केवल एक संपत्ति नहीं है, बल्कि कृषि कार्य अथवा जीविका का साधन है।
- इस दृष्टि से सुपुर्दगी न देना व्यक्ति के जीवन-यापन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन होगा।
- सार्वजनिक हित एवं सुरक्षा
- न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि वाहन किसी अन्य मामले में वांछित न हो।
- इससे न्यायालय का आदेश कानून और व्यवस्था के अनुकूल हो गया।
अन्य न्यायिक दृष्टांत
- सुंदरभाई अंबालाल देसाई बनाम गुजरात राज्य (AIR 2003 SC 638)
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब्त वाहन लंबे समय तक थानों में पड़े रहते हैं और क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
- इसलिए, न्यायालयों को चाहिए कि ऐसे वाहनों को शीघ्रता से स्वामी की सुपुर्दगी में दिया जाए।
- सतीश चंद्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2005 CriLJ 1740)
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि वाहन की सुपुर्दगी में अनावश्यक देरी करना न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
- हसन अहमद बनाम मध्यप्रदेश राज्य (2010 CriLJ 2624)
- वाहन की सुपुर्दगी न देना व्यक्ति की जीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
व्यावहारिक प्रभाव
- वाहन स्वामियों के लिए राहत
- यह आदेश उन हजारों किसानों और छोटे व्यवसायियों के लिए मिसाल है जिनके वाहन मात्र कागजात न होने या औपचारिक कारणों से थानों में खड़े कर दिए जाते हैं।
- पुलिस थानों पर भार कम होना
- थानों में खड़े वाहनों के रख-रखाव का दायित्व पुलिस पर आता है। सुपुर्दगी आदेश से यह बोझ कम होता है।
- न्यायालय की संवेदनशीलता
- आदेश दर्शाता है कि न्यायालय केवल विधिक पहलुओं पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय दृष्टिकोण से भी निर्णय करता है।
निष्कर्ष
बरेली न्यायालय का 10 सितंबर 2025 का यह आदेश भारतीय विधिक परंपरा में “सुपुर्दगी आदेशों” के महत्व को रेखांकित करता है। इसमें यह स्पष्ट संदेश निहित है कि—
- जब्त वाहन यदि किसी अपराध से संबंधित न हो,
- उसका स्वामित्व प्रमाणित हो,
- और वाहन व्यक्ति की आजीविका का साधन हो,
तो न्यायालय को चाहिए कि शीघ्रता से उसकी सुपुर्दगी वास्तविक स्वामी को दे।
यह आदेश न केवल विधिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की रक्षा के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
1. प्रश्न: प्रार्थी राजा ने किस वाहन की सुपुर्दगी हेतु आवेदन किया?
उत्तर: ट्रैक्टर संख्या यू०पी० 25 डी०एफ0 0427।
2. प्रश्न: पुलिस ने वाहन को क्यों जब्त किया था?
उत्तर: चेकिंग के दौरान कागजात न होने पर वाहन को लावारिस दाखिल कर थाने में खड़ा किया गया।
3. प्रश्न: वाहन किस थाने में दाखिल किया गया था?
उत्तर: थाना सी०बी०गंज, जिला बरेली।
4. प्रश्न: वाहन का स्वामी कौन है?
उत्तर: वाहन पंजीकरण प्रमाण पत्र के अनुसार, राजा पुत्र नजीर अहमद।
5. प्रश्न: प्रार्थी ने वाहन की सुपुर्दगी क्यों मांगी?
उत्तर: क्योंकि ट्रैक्टर उसकी कृषि एवं आजीविका का एकमात्र साधन है।
6. प्रश्न: पुलिस आख्या में वाहन के बारे में क्या कहा गया?
उत्तर: वाहन लावारिस दाखिल है और थाने परिसर में खड़ा है।
7. प्रश्न: न्यायालय ने कौन-सा उच्च न्यायालय का निर्णय उद्धृत किया?
उत्तर: दयाशंकर पाण्डेय बनाम राजेन्द्र प्रसाद सिंह व अन्य, 1988 (25) ए०सी०सी० 313।
8. प्रश्न: उस निर्णय में क्या विधि व्यवस्था दी गई थी?
उत्तर: मजिस्ट्रेट न्यायालय को लावारिस संपत्ति/वाहन के निस्तारण का अधिकार है यदि वह अपराध से संबंधित न हो।
9. प्रश्न: बरेली न्यायालय ने अपने आदेश में क्या कहा?
उत्तर: यदि वाहन किसी अन्य मुकदमे में वांछित न हो, तो उसे प्रार्थी राजा की सुपुर्दगी में अवमुक्त किया जाए।
10. प्रश्न: सुपुर्दगी आदेश के साथ प्रार्थी को कौन-सी शर्त पूरी करनी होगी?
उत्तर: प्रार्थी को अंडरटेकिंग दाखिल करनी होगी कि भविष्य में कोई अन्य दावा आने पर वह वाहन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करेगा।