धारा 125 CrPC और मुस्लिम महिला का भरण-पोषण अधिकार : पटना हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
भारत का पारिवारिक कानून ढांचा व्यक्तिगत कानूनों (Personal Laws) और समान प्रक्रिया संहिताओं (Procedural Codes) के बीच संतुलन बनाने का निरंतर प्रयास करता है। इसी क्रम में पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती है, यदि पति ने इद्दत की अवधि में उसकी भविष्य की उचित व्यवस्था नहीं की है। यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और न्यायिक संरक्षण को मजबूत करता है तथा महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम कदम है।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
यह मामला एक मुस्लिम दंपत्ति से जुड़ा था, जिनका विवाह कुछ समय पहले हुआ था। पत्नी ने अपने पति पर क्रूरता का आरोप लगाया और कहा कि परिस्थितियों के कारण उसे अपने माता-पिता के घर लौटना पड़ा। उसने अदालत में यह भी कहा कि उसकी कोई व्यक्तिगत आय नहीं थी और वह अपने जीवनयापन के लिए पूरी तरह पति पर निर्भर थी।
दूसरी ओर, पति विदेश में कार्यरत था और लगभग ₹1 लाख प्रति माह कमाता था। पत्नी ने अदालत से भरण-पोषण (maintenance) की मांग की।
फैमिली कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए पति को आदेश दिया कि वह पत्नी को ₹7,000 प्रति माह भरण-पोषण के रूप में दे।
पति की दलीलें
पति ने इस आदेश को चुनौती दी और हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका (CrPC की धारा 397/401 के तहत) दाखिल की।
उसने निम्नलिखित प्रमुख दलीलें दीं:
- विवाह आपसी सहमति से समाप्त हो चुका है, इसलिए पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार नहीं है।
- उसने पहले ही पत्नी को ₹1,00,000 अलीमनी (alimony) और इद्दत की अवधि का खर्च चुका दिया है।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार तलाकशुदा महिला केवल इद्दत अवधि तक ही भरण-पोषण की हकदार होती है।
- फैमिली कोर्ट ने उसकी आय का गलत आकलन किया है।
पत्नी की दलीलें
पत्नी ने पति की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि:
- पति का “आपसी तलाक” का दावा झूठा और बिना सबूत के है।
- उसे मानसिक और शारीरिक क्रूरता का सामना करना पड़ा।
- पति ने उसकी स्थायी भरण-पोषण की कोई उचित व्यवस्था नहीं की है।
- मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 और CrPC की धारा 125 उसे न्याय दिलाने के लिए पर्याप्त आधार प्रदान करते हैं।
- उसका भरण-पोषण पति की जिम्मेदारी है क्योंकि उसकी कोई व्यक्तिगत आय नहीं है।
हाई कोर्ट का निर्णय
पटना हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं।
- आपसी तलाक का दावा अस्वीकृत:
अदालत ने कहा कि पति ने अपने कथित “आपसी तलाक” (Mutual Divorce) का कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया। केवल मौखिक बयान पर इसे मान्य नहीं किया जा सकता। - भरण-पोषण का अधिकार तलाक के बाद भी जारी:
कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला का अधिकार केवल इद्दत अवधि तक सीमित नहीं है। यदि पति ने इद्दत की अवधि में उसकी भविष्य की उचित व्यवस्था (Reasonable and Fair Provision) नहीं की है, तो महिला CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार बनी रहती है। - धारा 125 CrPC का व्यापक उद्देश्य:
अदालत ने कहा कि CrPC की धारा 125 एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान (Secular Provision) है, जो धर्म, जाति या पंथ से परे होकर किसी भी परित्यक्त पत्नी, बच्चे या माता-पिता को भरण-पोषण की गारंटी देता है। - ₹7,000 भरण-पोषण उचित:
पति की आय लगभग ₹1 लाख प्रति माह होने के बावजूद फैमिली कोर्ट ने केवल ₹7,000 मासिक भरण-पोषण तय किया था। हाई कोर्ट ने कहा कि यह राशि उचित और न्यायसंगत है।
कानूनी प्रावधानों की चर्चा
1. धारा 125 CrPC
धारा 125 भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो उपेक्षित पत्नियों, बच्चों और माता-पिता को न्याय प्रदान करता है। यह किसी भी महिला को “पत्नी” के रूप में भरण-पोषण का अधिकार देता है, चाहे उसका धर्म कोई भी हो।
2. धारा 397 और 401 CrPC
ये धाराएं पुनरीक्षण (Revision) से संबंधित हैं। पति ने इन्हीं धाराओं के अंतर्गत फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
3. मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986
इस अधिनियम में तलाकशुदा मुस्लिम महिला के अधिकारों की व्यवस्था की गई है। 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने Daniel Latifi बनाम भारत सरकार मामले में स्पष्ट किया था कि पति को तलाक के समय या इद्दत की अवधि में पत्नी के लिए “उचित और न्यायोचित प्रावधान” करना आवश्यक है। यदि यह प्रावधान नहीं किया गया, तो महिला CrPC की धारा 125 का सहारा ले सकती है।
न्यायिक दृष्टांत (Case Laws)
- शाह बानो केस (Mohd. Ahmad Khan v. Shah Bano Begum, 1985)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम महिला भी CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार है। - डेनियल लतीफी केस (Daniel Latifi v. Union of India, 2001)
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पति को इद्दत अवधि में पत्नी के पूरे भविष्य के लिए “न्यायोचित प्रावधान” करना अनिवार्य है। - शबाना बानो केस (Shabana Bano v. Imran Khan, 2010)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि इद्दत अवधि में उचित प्रावधान नहीं किया गया है, तो महिला को CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है।
महत्वपूर्ण बिंदु
- भरण-पोषण का अधिकार मुस्लिम महिला के लिए केवल धार्मिक कानून तक सीमित नहीं है।
- CrPC की धारा 125 एक समान रूप से लागू होने वाली कानूनी गारंटी है।
- तलाकशुदा महिला को भी संरक्षण प्राप्त है, बशर्ते पति ने इद्दत के समय उचित प्रावधान न किया हो।
- अदालतों का दृष्टिकोण महिला की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
सामाजिक और कानूनी महत्व
यह निर्णय मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए एक बड़ी राहत है। यह संदेश देता है कि :
- महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा को धर्म या व्यक्तिगत कानूनों की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता।
- पुरुषों पर यह जिम्मेदारी है कि वे पत्नी के जीवन-यापन की उचित व्यवस्था करें।
- न्यायपालिका समाज में लैंगिक समानता (Gender Justice) को स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयासरत है।
निष्कर्ष
पटना हाई कोर्ट का यह निर्णय केवल एक परिवार या दंपत्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण है। यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को मजबूती देता है और यह सुनिश्चित करता है कि वे आर्थिक रूप से असुरक्षित न रहें।
धारा 125 CrPC का उद्देश्य है – किसी भी महिला, बच्चे या बुजुर्ग को भूखा या असहाय न छोड़ा जाए। यह फैसला उसी संवैधानिक और मानवीय दृष्टिकोण की पुष्टि करता है।